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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, April 21, 2012

अब जीवन मांग रही है बुंदेलखंड की नदियाँ

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अब जीवन मांग रही है बुंदेलखंड की नदियाँ

अब जीवन मांग रही है बुंदेलखंड की नदियाँ

By  | April 21, 2012 at 10:28 am | No comments | राज्यनामा

 अंबरीश कुमार

महोबा। बुंदेलखंड अब पर्यावरण विनाश की कीमत चुकाने लगा है । पहले पानी का जो संकट जून में पैदा होता था वह अब सामने है । पिछले साल के मुकाबले पानी का भू जल स्तर पंद्रह फुट नीचे जा चुका है और ताल तालाब सूखने लगे है । पिछली बार मानसून ठीकठाक रहा पर पिछले एक दशक में जिस बेरहमी से बुंदेलखंड के प्राकृतिक संसाधनों को लूट कर उजड़ा गया उसके चलते पानी संचय नहीं किया जा सका जिसका नतीजा सामने है । कीरत सागर उन तालाब में एक है जो सैकड़ों सालों से इस अंचल के लोगों की प्यास बुझाने के साथ उनका जीवन बना हुआ था पर अब यह खुद जीवन मांग रहा है । पानी का हाल यह है कि कही एक फुट तो कही चुल्लू भर पानी । पानी भी ऐसा जिसके पीने के बाद लोग अस्पताल पहुँच रहे है । सिर्फ बुधवार की रात महोबा के जिला अस्पताल में सौ से ज्यादा लोग पानी की बीमारी के चलते पहुंचे ।महोबा के सभी बड़े तालाब मसलन मदन सागर, रहील्य सागर, कल्याण सागर, दिसरापुर सागर और विजय सागर संकट में है । महोबा में तो बड़े तालाब है पर संकट सभी तरह के ताल तालाब से लेकर नदियों तक पर मंडरा रहा है । बुंदेलखंड में पानी का संकट गहराने जा रहा है । यह स्थिति झांसी ,हमीरपुर ,जालौन से लेकर बांदा तक की है । संकट की मुख्य वजह पहले जंगल का सफाया और फिर खनन के नाम पर पहाड़ को खोदकर खाई में बदल देना है । इस समूची कवायद में ताल तालाब बर्बाद हुए तो नदियाँ भी सूखने लगी । यही वजह है कि बेतवा ,यमुना, उर्मिल, पहूज, कुंआरी और कालीसिंध जैसी कई नदियाँ बुंदेलखंड में खुद जीवन मांग रही है तो उनकी सहायक नदियाँ दम तोड़ चुकी है । नदियों की धारा टूटने का सबसे बड़ा कारण है अत्याधिक खनन ।इससे नदियों की धारा को तो तोड़ा ही गया है साथ ही बहती धारा की दिशा भी बदल दी गयी है ।सामान्य खनन से सौ गुना अधिक खनन के चलते अब यह अंचल बूंद-बूंद पानी के लिए मोहताज हो रहा है ।जंगल रहे नहीं और पहाड़ को बारूद लगा कर उड़ा दिया गया ऐसे में पानी के परंपरागत श्रोत तो ख़त्म हुए ही नदियों पर भी संकट गहरा गया है । पहाड़ में बारूद लगाने का सिलसिला थमा नहीं है जिसके चलते पर्यावरण चौपट हो चुका है । बुंदेलखंड में १०३३ वैध खदाने है जिनमे २६० सिर्फ महोबा में । इससे अंदाजा लगा सकते है इस अंचल में बारूद का कैसा इस्तेमाल हो रहा है । लगातार विस्फोट से सबसे ज्यादा नुकसान पानी के परंपरागत श्रोतों के साथ भू जल पर होता है । सरकार इस संकट से किस तरह निपटना चाहती है यह देखना रोचक होगा । पिछले कुछ सालों में मह्होबा जिले में जंगलात विभाग ने कागजों पर जो जंगल उगाए है उसका रकबा समूचे महोबा जिले का चार गुना है। यह जंगल किसके कितना काम आएगा यह समझ सकते है । महोबा में हरिश्चंद्र के मुताबिक बुंदेलखंड के कुछ क्षेत्रों में पहाड़ों की ब्लास्टिंग की वजह से वातावरण दूषित हो चुका है। पर्यावरण के साथ जो खिलवाड़ पहले हो रहा था वह अब भी जारी है । नेता वाही है सिर्फ झंडे बदल गए है । सरकार सिर्फ उन जिलों को देख रही है जो पहले से ही विकसित है। बुंदेलखंड के महोबा,बांदा, चित्रकूट,हमीरपुर, जालौन जिलों में बांधों व नदियों के पानी अपनी छोर छोड़ डैक लेबल ( खतरे के निशान )तक पहुंच गए हैं। जिसकी वजह से वहां के निवासियों को पीने के लिए भी पानी बड़ी मुश्किल से मिल पा रहा है। एक उम्मीद कुँए व तालाब की जो रहती थी इस बार उसने भी साथ छोड़ दिया उनकी भी तलहटी सूख रही है । गौरतलब है कि जो हाल यहां पानी का मई जून की भीषण गर्मियों में होता था। इस बार ऐसी स्थति अप्रैल से ही देखने को मिल रही है। जालौन जिले पर नजर डाले तो पानी के संकट की एक बानगी नजर आएगी ।इस जिले में कुल 1556 तालाब हैं जिसमें 557 आदर्श तालाब हैं जो वर्ष 2009 से 2011 के बीच बनवाए गए थे थे लेकिन इनको बनवाते समय पानी भरने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई जिसके छलते अब वे बदहाल है । इस जिले के चारो ओर पांच बड़ी नदियां हैं जिसमें यमुना, वेतवा, पहूज, कुंआरी,कालीसिंध अब बरसाती नदी नाले में बदलती जा रही है । उरई से सुनील मिश्र के मुताबिक पानी के नाम पर करोड़ो का खेल करने वाले विभागों की करतूतो के कारण एक फिर पानी का संकट पैदा होने के आसार दिखने लगे है क्योकि बुन्देखण्ड पैकेज मे परम्परागत स्रोत कहे जाने वाले 2215 कुओ का जीर्णोधार करने के लिये 9.44 करोड का बजट लघु सिचाई विभाग को दिया गया था जो खर्च भी कर लिया गया पर कुँओं की दशा जस के तस है । इसी तरह जिले के 651 आदर्श तालाबो के लिये 35 करोड की धनराशि डीआरडीए. को दी गई थी जिसमें 31 करोड खर्च कर दिए गए जिसमें 557 आदर्श तालाबो को बनवा भी दिया गया । पर क्या बना यह पता नहीं क्योकि पिथउपुर, बम्हौरा, देवकली, महेवा, उरकलाकला, कीरतपुर, मई, आदि गांव के तालाबों को खाली देखा गया हैँ। और ऐसे ही अधिकांश तालाबो को भरा ही नही जा सकता इनके भरने के लिये कोई बंदोवस्त नही है नहर का पानी भी इनको नही भर सकता क्योकि यह तालाब नहरो की ऊँचाई से अधिक ऊँचाई पर बनवा दिए गए है ।दूसरी तरफ जिले में हैण्डपम्प पानी देने से जबाव देने लगे है जल स्तर 5 से 10 फुट नीचे चला गया है । कोंच, कदौरा, डकोर, महेवा, ब्लाकों के गांवो में पेयजल के संकट के साथ-साथ मवेशियों के पीने के लिये पानी का संकट दिखाई देने लगा है।जला निगम के अधिशाषी अभियंता केशवलाल की माने तो उरई नगर जो जनपद का मुख्यलाय है यहां 25.84 एमएलडी पानी की आवश्यकता है लेकिन सिर्फ 17.26 एमएलडी पानी दिया जा पा रहा है जो आने वाले संकट को बता रहा है ।

अम्बरीश कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं. छात्र आन्दोलन से पत्रकारिता तक के सफ़र में जन सरोकारों के लिए लड़ते रहे हैं. फिलहाल जनसत्ता के उत्तर प्रदेश ब्यूरो चीफ. विरोधसे साभार

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