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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Monday, April 23, 2012

भारत में कालिदास और टैगोर की कविताएं बेमतलब : काटजू

http://bhadas4media.com/article-comment/3982-2012-04-23-04-24-09.html

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Details Category: [LINK=/article-comment.html]इवेंट, पावर-पुलिस, न्यूज-व्यूज, चर्चा-चिट्ठी...[/LINK] Published Date Written by B4M
मुरादाबाद : भारतीय प्रेस परिषद के प्रमुख न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने कहा है कि सिर्फ मनोरंजन करने वाले साहित्य का कोई मतलब नहीं है, देश को ऐसे साहित्य की जरूरत है जो समाज की सेवा को समर्पित हो। काटजू ने कहा कि ऐसे देश में जहां किसान खुदकुशी करते हैं और जहां 47 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, वहां कीट्स, टीएस एलियट, टैगोर और कालिदास की कविताएं बेमानी हैं क्योंकि वे मनोरंजन के अलावा कोई सामाजिक उददेश्यों को पूरा नहीं करती हैं।

काटजू ने उर्दू लेखक दिवंगत डाक्टर मोहम्मद हसन द्वारा लिखित पुस्तक आड़े तिरछे रास्ते का विमोचन करने के बाद रविवार को कहा कि भारत जैसे देश में कला के मकसद से रची गई कला अनुपयोगी है और आज की जरूरत यह है कि कला को सामाजिक उद्देश्य के साथ प्रेरित किया जाए। उन्होंने कहा, कला और साहित्य के दो प्रकार हैं। पहला, कला के लिए कला और दूसरा कला सामाजिक उद्देश्य के लिए। (एजेंसी)

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