| Wednesday, 25 April 2012 10:45 |
| भारत डोगरा इन वैज्ञानिकों ने यह भी कहा है कि विश्व में जीएम फसलों का प्रसार बहुत सीमित रहा है और पिछले दशक में इसकी नई फसलें बाजार में नहीं आ सकी हैं और किसान भी इन्हें स्वीकार करने से कतराते रहे हैं। उन्होंने अपने पत्र में आगे यह भी जोड़ा कि जीएम तकनीक में ऐसी मूलभूत समस्याएं हैं जिनके कारण कृषि में यह सफल नहीं है। जीएम फसलों में उत्पादन और उत्पादकता के मामले में स्थिरता कम है। इन वैज्ञानिकों के उपर्युक्त पत्र में यह भी कहा गया है कि जलवायु बदलाव के दौर में जीएम फसलों से जुड़ी समस्याएं और बढ़ सकती हैं। जीएम फसलें स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक हो सकती हैं, इससे संबंधित ढेर सारी जानकारी उपलब्ध है और इसके बारे में जन चेतना भी बढ़ रही है। यही वजह है कि अनेक देशों में जीएम फसलों और खाद्य पर कडेÞ प्रतिबंध हैं। जहां ऐसे प्रतिबंध होंगे, वहां के बाजार का लाभ उठाने में जीएम फसल उगाने वाले किसान वंचित हो जाएंगे। यह मांग भी जोर पकड़ रही है कि जीएम उत्पाद पर इसका लेबल लगाया जाए। जीएम उत्पाद का लेबल लगा होगा तो स्वास्थ्य के बारे में चिंतित लोग इसे न खरीद कर सामान्य उत्पाद को खरीदेंगे और इस कारण भी जीएम फसल उगाने वाले किसान की फसल कम बिकेगी या उसकी फसल को कीमत कम मिलेगी। पर सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा तो यह है कि जीएम फसलें जेनेटिक प्रदूषण से उन किसानों के खेतों को भी प्रभावित कर देंगी जो सामान्य फसलें उगा रहे हैं। इस तरह जिन किसानों ने जीएम फसलें उगाने से साफ इनकार किया है, उनकी फसलों पर भी इन खतरनाक फसलों का असर हो सकता है। कुछ किसान जीएम फसल उगाएंगे तो जेनेटिक प्रदूषण की आशंका के कारण पूरे क्षेत्र को ही जीएम प्रभावित मान लिया जाएगा और इस क्षेत्र में उगाई गई फसलों पर कुछ बाजारों में प्रतिबंध लग सकता है। यह ध्यान में रखना बहुत जरूरी है कि जीएम फसलों का थोड़ा-बहुत प्रसार और परीक्षण भी बहुत घातक हो सकता है। सवाल यह नहीं है कि उन फसलों को थोड़ा-बहुत उगाने से उत्पादकता बढ़ने के नतीजे मिलेंगे या नहीं। मूल मुद्दा यह है कि इनसे सामान्य फसलें भी संक्रमित या प्रदूषित हो सकती हैं। यह जेनेटिक प्रदूषण बहुत तेजी से फैल सकता है और इस कारण जो क्षति होगी उसकी भरपाई नहीं हो सकती। अगर एक बार जेनेटिक प्रदूषण फैल गया तो दुनिया भर में अच्छी गुणवत्ता और सुरक्षित खाद्यों का जो बाजार है, जिसमें फसलों की बेहतर कीमत मिलती है, वह हमसे छिन जाएगा। आने वाले समय के लक्षण अभी से दिख रहे हैं कि स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग दुनिया भर में रासायनिक और जेनेटिक प्रदूषण से मुक्त खाद्यों के लिए बेहतर कीमत देने को तैयार होंगे। अगर जेनेटिक प्रदूषण को न रोका गया तो किसानों का यह बाजार उनसे छिन जाएगा और वैसे भी खेती की बहुत क्षति होगी। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जहां प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों को केवल इस कारण परेशान किया गया या उनका अनुसंधान बाधित किया गया, क्योंकि उनके अनुसंधान से जीई फसलों के खतरे पता चलने लगे थे। इन कुप्रयासों के बावजूद निष्ठावान वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों से जीई फसलों के गंभीर खतरों को बताने वाले दर्जनों अध्ययन उपलब्ध हैं। जैफरी एम स्मिथ की पुस्तक 'जेनेटिक रुलेट्' (जुआ) के तीन सौ से अधिक पृष्ठों में ऐसे दर्जनों अध्ययनों का सार-संक्षेप या परिचय उपलब्ध है। इनमें चूहों पर हुए अनुसंधानों में पेट, लीवर, आंतों जैसे विभिन्न महत्त्वपूर्ण अंगों के बुरी तरह क्षतिग्रस्त होने की चर्चा है। जीई फसल या उत्पाद खाने वाले पशु-पक्षियों के मरने या बीमार होने की चर्चा है और जेनेटिक उत्पादों से मनुष्यों में भी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का वर्णन है। अब तक उपलब्ध सारे तथ्यों के आधार पर यह दृढ़ता से कहा जा सकता है कि सभी जीएम फसलों पर पूरी तरह रोक लगनी चाहिए। इनके परीक्षणों पर भी इस हद तक रोक लगनी चाहिए ताकि इनसे जेनेटिक प्रदूषण फैलने की कोई आशंका न रहे। देश के पर्यावरण, कृषि और स्वास्थ्य की खातिर यह नीतिगत निर्णय लेना जरूरी हो गया है। |
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Wednesday, April 25, 2012
बीटी कपास का सबक
बीटी कपास का सबक
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