| Thursday, 26 April 2012 11:59 |
अरविंद कुमार सेन अप्रत्यक्ष कारोबार (थर्ड पार्टी रूट) का मतलब यह है कि भारत-पाकिस्तान में बिकने वाली वस्तुएं तीसरे देश के जरिए इन देशों के बाजारों में पहुंचती हैं। मसलन, भारत के दवा, इस्पात, आॅटोमोबाइलऔर इंजीनियरी उत्पादों की पाकिस्तान में भारी मांग है, लेकिन ये उत्पाद दुबई और सिंगापुर, यहां तक कि जर्मनी के रास्ते पाकिस्तान में पहुंचाए जाते हैं। यही बात पाकिस्तान से भारत में आयात की जाने वाली वस्तुओं पर लागू होती है। मुनाफे में तीसरे पक्ष की हिस्सेदारी के कारण पाकिस्तान पहुंचते-पहुंचते भारतीय उत्पाद बेहद महंगे होने के कारण बाजार से बाहर हो जाते हैं। पाकिस्तान सरकार करों के रूप में होने वाली आमदनी से महरूम रह जाती है, वहीं आम जनता की भारतीय उत्पाद खरीदने की हसरत पूरी नहीं हो पाती है। भारत और पाकिस्तान के कुल बाहरी कारोबार का महज एक फीसद व्यापार ही दोनों देशों के बीच होता है, जबकि भौगोलिक और सांस्कृतिक नजदीकी को देखते हुए यह आंकड़ा साठ फीसद होना चाहिए। फिलहाल भारत और पाकिस्तान ने अपने यहां एक दूसरे केबैंकिंग सुविधाएं शुरू करने पर रोक लगा रखी है। ऐसे में दोनों देशों के बीच होने वाले कारोबार का भुगतान ईरान में स्थित एशियन क्लियरिंग यूनियन (एसीयू) की लंबी प्रणाली के मार्फत किया जाता है और इसमें वक्तजाया होने के साथ ही हस्तांतरण शुल्क के रूप में कारोबारियों पर आर्थिक बोझ भी बढ़ जाता है। दोनों देशों को जोड़ने वाली लचर परिवहन सुविधाएं और कारोबारियों को वीजा मिलने में होने वाली देरी कोढ़ में खाज का काम करती है। भारत और पाकिस्तान ही नहीं, पूरे दक्षिण एशिया के बीच मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) वक्तकी मांग है। दुनिया के बाकी मुल्कों में जीडीपी में निर्यात का औसत अट्ठाईस फीसद है, वहीं भारत और श्रीलंका में अठारह फीसद और पाकिस्तान में महज बारह फीसद। अर्थशास्त्री इस बात पर सहमत हैं कि एफटीए होने से देशों के बीच व्यापार, निवेश, रोजगार और लोगों की आमदनी बढ़ती है। कारोबार बढ़ने से लोगों के हित एक दूसरे के देश की प्रगति के साथ जुड़ जाते हैं, ऐसे में अमन के दुश्मन कट्टरपंथियों की राह मुश्किल हो जाती है। अमेरिका, कनाडा और मैक्सिको के बीच मुक्त व्यापार समझौता (नाफ्टा) होने के सात बरस के भीतर ही आपसी कारोबार तिगुना हो गया है और हरेक देश में मजदूरी की दर और रोजगार में इजाफा हुआ है। भारत की अर्थव्यवस्था पाकिस्तान के मुकाबले नौ गुना ज्यादा बड़ी है, इसलिए दक्षिण एशिया में कारोबारी पहल से अमन लाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी भी भारत की ही है। भारत में दक्षिण एशिया की पचहत्तर फीसद आबादी रहती है और दक्षिण एशिया की बयासी फीसद जीडीपी पर भारत का नियंत्रण है। दक्षिण एशिया में दुनिया की चौबीस फीसद आबादी रहती है, लेकिन इस आबादी का आधा हिस्सा दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब है। आतंकवाद का कहर अलग से है। फिलवक्तदक्षिण एशिया अपने इतिहास में निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। पाकिस्तान में लोकतंत्र का पौधा पनप रहा है, श्रीलंका सत्ताईस साल पुराने गृहयुद्ध से उबर चुका है, बांग्लादेश कट्टरपंथियों की पकड़ से बाहर लोकतांत्रिक हवा में सांस ले रहा है और नेपाल भी कमोबेश शांति की राह पर है। लिहाजा दक्षिण एशिया में मुक्तव्यापार समझौते के लिए इससे अच्छा वक्त नहीं हो सकता। अंतरराष्ट्रीय आर्थिक हलकों में इक्कीसवीं सदी को तीसरी दुनिया के उदय और विकास का दौर कहा जा रहा है। अमेरिका और यूरोप के आर्थिक संकट के बाद दक्षिण एशिया के पास वैश्विक स्तर पर शक्तिशाली क्षेत्रीय ताकत के रूप में उभरने का मौका है। भारत इस अभियान की अगुआई करने में सक्षम है और इसके लिए कारोबार अहम हथियार है। भारत-पाकिस्तान के बीच चल रही कारोबारी मंत्रणा के बीच पिछले दिनों पाकिस्तान ने अपने डेढ़ लाख सैनिक भारतीय सीमा से हटा कर अफगानिस्तान से लगती सीमा पर तैनात कर दिए। यह विश्वास बहाली का ही फायदा है कि भारत ने इस अवसर का कोई कूटनीतिक फायदा उठाने की कोशिश नहीं की। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह लंबे समय से पाकिस्तान के साथ बेहतर संबंधों के हिमायती और दक्षिण एशिया के बीच एफटीए के पक्षधर रहे हैं। दिवालिया होने के कगार पर खड़ी पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की बदहाली का खमियाजा भारत और आखिरकार पूरे दक्षिण एशिया को भुगतना पड़ेगा, इसलिए खुशहाल और स्थिर पाकिस्तान हमारे हित में है। कश्मीर जैसे विवादित मुद्दों को परे रख कर भारत को इस नाजुक मौके का इस्तेमाल पाकिस्तान के साथ संबंध सुधार कर दक्षिण एशिया में शांति के लिए करना चाहिए। शांति और विकास के पथ पर अग्रसर दक्षिण एशिया ही वैश्विक मंच पर भारत का उदय सुनिश्चित करेगा। |
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Thursday, April 26, 2012
कारोबार से अमन
कारोबार से अमन
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