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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Thursday, April 11, 2013

औकात हमारी शर्म! शर्म! शर्म!

औकात हमारी

शर्म! शर्म! शर्म!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​



भारत में अर्थव्यवस्था, राजनीति,समाज और जीवन के हर क्षेत्र में बहुसंख्य जनता अंत्यज, अपांक्तेय और बहिस्कृत है नस्लवादी वंशवादी आधिपात्यवादी जायनवादी मनुस्मृति व्यवस्था के तहत। मुक्त बाजार के वधस्थल पर मारे जाने को वे नियतिबद्ध है। पर यह सत्य है कि विज्ञान और तकनीक के मामले में भारत सचमुच सुपरपावर है। हमारे यहां मीडिया सर्वशक्तिमान है तो सोशल मीडिया का भी जबर्दस्त विकास हुआ है। एक दशक पहले भाषाय़ी सोशल मीडिया सिरे से गायब था। वैकल्पिक मीडिया बतौर कुछ लघुपत्रिकाएं ही हमारे हाथ में थी। पर मोबाइल क्रांति की ​​वजह से आज भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करनेवालों की संख्या दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले गर्व करने लायक है। भाषाय़ी सोशल मीडिया का बहुत तेज विकास हुआ है। सोशल मीडिया के जरिये स्टिंग आपरेशन हो रहे हैं। लेकिन बांग्लादेश में सोशल मीडिया और ब्लागरों ने कट्टर इस्लामी राष्ट्रवाद के विरुद्ध लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता का जो आंदोलन छेड़ा हुआ है और उसके जरिये पूरे बांग्लादेश को एक सूत्र में जोड़ दिया है, उसके मुकाबले में हम अपने विज्ञान और तकनीकी विकास को तो हिंदू राष्ट्र के एजंडे में ही खपा रहे हैं। हम क्यों तकनीक के जरिये कोई जन प्रतिरोध की पहल करने में चूक रहे हैं, यह सवाल हमरी प्रतिबद्धता और ईमानदारी पर प्रश्नचिह्न खड़े करती है। क्यों हम यह मुहिम छेड़ नहीं सकते कि घोटालों की जांच के लिए अगर राष्ट्रपति का संवैधानिक रक्षाकवच बाधक है तो कालाधन के तिलिस्म को तोड़ने के लिए इस राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग लगाया​ जाना चाहिए,यह आवाज बुलंद नहीं कर सकते? बांग्लादेश के ब्लागरों ने युद्धअपराधियों के विरुद्ध महासंग्राम छेड़ दिया है, पर हम बालात्कारियों की फांसी के लिए महातांडव मचाकर सैनय बल के रक्षाकवच को यथावतरखते हुए कानून तो बना लेते हैं, पर भोपाल गैस त्रासदी, बाबरी विध्वंस, सिख नरसंहार और गुजरात ​दंगों के दोषियों के विरुद्ध, मानवता के युद्दअपराधियों की फांसी की मांग दबे स्वर से भी उठाने में नाकाम हैं! हम आर्थिक सुधारों के विरुद्ध, कारपोरेट अश्वमेध यज्ञ के खिलाफ, बिल्डर प्रोमोटर माफिया राज धन बल और बाहुबल के खिलाफ, बायोमेट्रिक नागरिकता केखिलाफ, जल जंगल जमीन और नागरिकता, आजीविका और जीवन व प्रकृति से बेदखली के खिलाफ मामूली सी हलचल पैदा करने में भी नाकाम हैं। शर्म! शर्म! शर्म!


और दावा यह किया जा रहा है कि अगले आम चुनाव में सोशल मीडिया लोकसभा की 160 सीटों को प्रभावित कर सकता है। यह बात एक अध्ययन में सामने आई है।


आईआरआईएस ज्ञान फाउंडेशन और भारतीय इंटरनेट एवं मोबाइल संघ के अध्ययन में यह कहा गया है कि अगले आम चुनाव में लोकसभा की 543 सीटों में से 160 अहम सीटों पर सोशल मीडिया का प्रभाव रहने की संभावना है। अध्ययन में कहा गया है कि इनमें से महाराष्ट्र से सबसे अधिक प्रभाव वाली 21 सीट और गुजरात से 17 सीट शामिल है।


अगर यह सच है तो जनादेश को धर्माध राष्ट्रवाद के जरिये बदलकर एक अल्पमत सरकार बार बार पिछले बीस साल से जलसंहार संस्कृति का शंखनाद करने में कामयाब क्यो है?


सबसे अधिक प्रभाव वाली (हाई इंपैक्ट) सीट से आशय उन सीटों से है जहां पिछले लोकसभा चुनाव में विजयी उम्मीदवार के जीत का अंतर फेसबुक का प्रयोग करने वालों से कम है अथवा जिन सीटों पर फेसबुक का प्रयोग करने वालों की संख्या कुल मतदाताओं की संख्या का 10 प्रतिशत है। उत्तरप्रदेश में ऐसे सीटों की संख्या 14, कर्नाटक में 12, तमिलनाडु में 12, आंध्र प्रदेश में 11 और केरल में 10 है।


अध्ययन के अनुसार, मध्यप्रदेश में ऐसे सीटों की संख्या 9 जबकि दिल्ली में सात है। हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में ऐसे सीटों की संख्या पांच.पांच है जबकि छत्तीसगढ, बिहार, जम्मू कश्मीर, झारखंड और पश्चिम बंगाल में ऐसी चार-चार सीटें हैं। अध्ययन में 67 सीटों को अत्यधिक प्रभाव वाले जबकि शेष सीटों को कम प्रभाव वाली सीटों के रूप में पहचान की गई है।


धर्मांध हिंदू राष्ट्रवाद के पताकातले हम तो बांग्लादेश और पाकिस्तान के कट्टरपंथियों के साथ खड़े हैं! हमें इसका जरा सा अंदेशा नहीं है।जबकि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने ईशनिंदा कानून बनाने की मांग ठुकरा दी है। इस्लामी कट्टरपंथी संगठनों ने चेतावनी दी थी कि सरकार ने उनका 13 सूत्रीय एजेंडा नहीं माना तो पांच मई से देश भर में हिंसक प्रदर्शन होंगे। इस एजेंडे में ईशनिंदा कानून बनाना और नास्तिक ब्लॉगरों को फांसी की सजा देना शामिल है।


भारत का पड़ोसी देश बांग्लादेश जल रहा है। हालात कुछ-कुछ 71 के मुक्ति संग्राम जैसे ही हैं। 1971 के मुक्ति संग्राम में इस्लामी कट्टरपंथी पार्टी जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों ने आंदोलन के दमन में तत्कालीन पाकिस्तानी हुकूमत की मदद की। लेकिन राजनीतिक कारणों से इसके नेता अब तक बचते आ रहे थे। अब नई पीढ़ी इन्हें सजा ए मौत दिलाने पर आमादा है जिसके लिए ढाका में शाहबाग मूवमेंट चल रहा है।


बांग्लादेश में एक बार फिर बदलाव की बयार बह रही है। फरवरी में ढाका का शाहबाग चौक तहरीर स्क्वायर बन गया। नौजवानों की ऊर्जा और गुस्से ने इस इलाके को प्रोजोन्मो छॉतोर करार दिया। प्रोजोन्मो छातोर यानि नई पीढ़ी का चौराहा।इस चौक में वो युवा पीढ़ी उमड़ती रही जिसमें आक्रोश है उन अपराधों को लेकर जिन्हें उनके जन्म से भी पहले 1971 के मुक्ति संग्राम में अंजाम दिया गया। पाकिस्तान से बांग्लादेश की आजादी इसी मुक्ति संग्राम की देन थी। लेकिन इस मुक्ति संग्राम के दौरान कुछ घर के भेदिए भी थे जिन्होंने पाकिस्तानी फौज का साथ दिया। जमात ए इस्लामी को उन्हीं कट्टरपंथी संगठनों में से एक माना जाता है। लोगों का ये गुस्सा तब और भड़क उठा जब इस मूवमेंट से जुड़े एक ब्लॉगर राजीव हैदर का घर लौटते हुए कत्ल कर दिया गया। लोगों ने जमात के नेताओं को सजा देने की मांग और तेज कर दी।


पाकिस्तान सांप्रदायिक कारणों से वजूद में आया लेकिन पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान के बीच भौगोलिक ही नहीं सांस्कृतिक फासला भी बड़ा था। पूर्वी पाकिस्तान को अपनी तहजीब और बांग्ला जुबान पर गर्व था। यही बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम की जड़ बना लेकिन कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी के नेता अपने सांप्रदायिक रुझान के चलते पश्चिमी पाकिस्तान की फौज के साथ हो लिए। जहां मुजीबुर्रहमान की अगुवाई में मुक्ति वाहिनी लड़ रही थी तो, पाकिस्तान फौज के समर्थन से जमाते इस्लामी के रजाकार। आजादी की इस लड़ाई को दबाने के लिए लगभग 30 लाख लोग मौत के घाट उतारे गए और 2 लाख महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया।


वैसे इन विरोध-प्रदर्शनों के पीछे राजनीति भी है। बांग्लादेश में इसी साल आम चुनाव भी होने वाले हैं। जमात ए इस्लामी का आरोप है कि शाहबाग मूवमेंट को सत्तारूढ़ शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग का समर्थन हासिल है। दूसरी ओर बेगम खालिदा जिया की बीएनपी पर्दे के पीछे से जमात ए इस्लामी के साथ है। लेकिन अगर बांग्लादेशी राष्ट्रवाद के नाम पर ध्रुवीकरण हुआ तो वो शेख हसीना के लिए फायदेमंद साबित होगा। फिलहाल तो हिंसा पर आमादा कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी है तो दूसरी तरफ वो नौजवान जो शाहबाग चौक से युद्ध अपराधियों को कड़ी सजा दिलाने के लिए ललकार रहे हैं।


बांग्लादेश की पुलिस ने विपक्ष समर्थक बांग्ला समाचार पत्र 'आमार देश' के संपादक को गिरफ्तार कर लिया गया है.

ढाका से प्राप्त एक ख़बर में कहा गया कि संपादक पर राष्ट्रद्रोह और धार्मिक तनाव को उकसाने के आरोप है.


पुलिस के अनुसार महमूदुर रहमान को गुरुवार 11 अप्रैल की सुबह ढाका के कारवां बाजार इलाके में स्थित उनके कार्यालय से गिरफ्तार किया गया.


प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि सादे वर्दी में पहुंचे पुलिसकर्मी ने रहमान को अखबार के दफ्तर पर छापेमारी कर पकड़ लिया.


संपादक को पुलिस की खुफिया शाखा के मुख्यालय ले जाया गया ताकि शुरुआती पूछताछ की जा सके.


पुलिस के एक प्रवक्ता ने बताया, ''कई आरोपों की जांच के बाद मिले सबूत के आधार पर उन्हें गिरफ्तार किया गया है.''

प्रधानमंत्री शेख हसीना ने मंगलवार को कहा कि 'बांग्लादेश एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र है। हमारे यहां दूसरे कानून धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाने वालों से निबटने में सक्षम हैं। यहां हर व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने की पूरी आजादी है। हमें नए कानून की कोई जरूरत नहीं है।' एक नए इस्लामी संगठन हिफाजत-ए-इस्लाम ने छह अप्रैल को ढाका में ईशनिंदा कानून की मांग को लेकर प्रदर्शन किए थे। जमात-ए-इस्लामी पहले से 1971 की लड़ाई के दोषियों को फांसी देने के विरोध में प्रदर्शन कर रही है।

कट्टरपंथियों की प्रमुख मांगें

पाकिस्तान की तर्ज पर ईशनिंदा कानून बने। इसके तहत इस्लाम और पैगंबर मोहम्मद की आलोचना करने वाले को मौत की सजा मिले।

महिलाओं और पुरुषों के एक साथ काम करने पर रोक लगे।

इस्लाम में गलत बताई गई सभी सांस्कृतिक गतिविधियों पर रोक लगे।

नास्तिक ब्लागरों को फांसी पर चढ़ाए जाने की व्यवस्था हो।




हम विकसित सुपरपावर बनने के ख्वाब में विशेषाधिकारों का जीवन जी रहे हैं और हमारी शिक्षा उच्चशिक्षा विकसित राष्ट्रों के हवाले है। फिर भी हमें अपने गौरवशाली अतीत पर गर्व है और उस अतीत गर्व का गुणगान करते हुए हम अपने विशेाधिकार जारी रखना चाहते हैं। अभी अभी भारत और जर्मनी के बीच गुरुवार को 6 महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, जिनमें हायर एजुकेशन के क्षेत्र में जॉइंट रिसर्च और ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में सहयोग का करार भी शामिल है। इन समझौतों के तहत उच्च शिक्षा के क्षेत्र में संयुक्त अनुसंधान के लिए अगले चार साल के दौरान 70 लाख यूरो के खर्च का प्रावधान किया जाएगा। भारत में ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर के लिए जर्मनी एक अरब यूरो का सस्ता लोन देगा।दोनों पक्षों ने वार्ता के बाद भारत में विदेशी भाषा के तौर पर जर्मन भाषा को प्रोमोट करने का कॉन्ट्रैक्ट भी साइन किया। इन समझौतों के तहत भारत और जर्मनी उच्च शिक्षा के क्षेत्र में संयुक्त अनुसंधान और नए प्रॉजेक्ट्स के लिए 35-35 लाख यूरो का योगदान करेंगे। अधिकारियों के मुताबिक इस समय भारत में केंद्रीय विद्यालयों में 30,000 बच्चे जर्मन भाषा सीख रहे हैं। नए करार के तहत दोनों पक्ष मिलकर भारत में जर्मन भाषा की पढ़ाई की क्षमता का विस्तार करेंगे।


ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर बनाने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इसके अलावा, कृषि क्षेत्र में सहयोग का एक समझौता किया गया। ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर के लिए की गई संधि के तहत विभिन्न राज्यों में बिजली ग्रिड प्रणाली का उपयोग अक्षय ऊर्जा और गैर-पारंपरिक ऊर्जा सोतों से पैदा बिजली के ट्रांसमिशन के लिए किया जाएगा।


इन समझौतों में भारत-जर्मन नागरिक सुरक्षा अनुसंधान का भी एक करार है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ जर्मनी की यात्रा पर आए मानव संसाधन विकास मंत्री एम। पल्लम राजू ने कहा कि दोनों देश एक-दूसरे की ताकत जानते हैं और संयुक्त अनुसंधान के लिए कुछ क्षेत्रों की पहचान की है। उन्होंने यह भी कहा कि जर्मनी तकनीकी रूप से काफी मजबूत देश है। इसे देखते हुए आईआईटी चेन्नै और आईआईटी मंडी के बहुत से कार्यक्रमों में जर्मन विशेषज्ञों की मदद ली जा रही है।


हम हिंदुत्व के जयघोष के साथ हिंदू राष्ट्र के एजंडे के साथ दुनियाभर के हिंदुओं की बलि चढ़ाने के लिए तैयार हैं, हमे बांग्लादेश या पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओं की कतई परवाह नहीं है। तो दूसरी तरफ बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के विरूद्ध बढ़ रही हिंसा के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए बांग्लादेशी मूल के हिन्दू यहां व्हाइट हाउस के बाहर जुटे और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से उनकी सुरक्षा करने और कट्टरपंथी बांग्लादेशी संगठन जमाते इस्लामी को विदेशी आतंकवादी समूह की सूची में शामिल करने की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने 'हम बांग्लादेश का तालिबानीकरण नहीं चाहते' और 'हिन्दुओं को बचाओ' जैसे नारे लगाते हुए ओबामा को एक ज्ञापन सौंपा और उनसे बांग्लादेशी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करने और 'जमाते इस्लामी, बांग्लादेश' को विदेशी आतंकवादी समूह की सूची में शामिल करने की मांग की।विरोध प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेशी सरकार से घृणा अपराध कानूनों के अधिनियमन की मांग करते हुए ज्ञापन में कहा, 'हम सभी से इसके लिए एकजुट होने की और बांग्लादेशी अल्पसंख्यकों को बचाने के लिए जो बन पड़े वह करने की अपील करते हैं।' प्रदर्शनकारियों ने साथ ही सभी सांप्रदायिक मामलों की निगरानी, उन्हें रोकने और मुकदमा चलाने के अभियोजन संबंधी अधिकार के साथ एक निगरानी प्रकोष्ठ की स्थापना की मांग की। इस शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन रैली का आयोजन बांग्लादेश हिन्दू बौद्ध ईसाई एकता परिषद ने किया था। कई दूसरे संगठनों ने भी इसका समर्थन किया।


पुष्परंजन, संपादक, ईयू-एशिया न्यूज ने जो लिखा है , तनिक उसपर गौर करें और अपनी शर्मिंदगी का उत्सव मनाइये!


उन्होंने कहा- बैठ जाओ़../ कहा, सिर नीचे/रोना चालू रखो, आंसुओं को लुढ़कने दो। नजरबंदी के दौरान 2008 में तस्लीमा नसरीन नेबंदिनी नामक कविता में जो कुछ लिखा, वही आज के बांग्लादेश का सच है। तस्लीमा का बांग्लादेश वहीं का वहीं है, जहां 19 साल पहले वह छोड़ गईं थीं। पर सोशल मीडिया के आने से अब तस्लीमा जैसों की संख्या सैकड़ों में हैं और इन 'नास्तिकों' के ख़ून के प्यासे हजारों में।


बांग्लादेश में पांच वर्षों से 1971 के नरसंहार की सुनवाई चल रही है। इसके जिम्मेदार लोगों को सजा दिलाने के वास्ते माहौल बनाने में ब्लॉगरों का ग्रुप 'शाहबाग मूवमेंट' का बड़ा हाथ रहा है। इस आंदोलन को आगे बढ़ाने वालों में ढाका का ब्लॉगर अहमद राजिब हैदर एक चर्चित नाम रहा, जिसे 'मीरपुर का कसाई' के खिलाफ प्रदर्शन के ठीक तीन दिन बाद 15 फरवरी, 2013 को उन्मादी भीड़ ने घर से खींचा व तड़पा-तड़पाकर मार दिया। ऐसा नहीं कि कट्टरपंथी अंगूठा छाप हैं। उनमें बहुत से सोशल मीडिया पर हैं। यू-ट्यूब पर कट्टरपंथी नेताओं के आग उगलने वाले बयान देखे जा सकते हैं। मगर इन्हें शाहबाग आंदोलनकारियों के चिट्ठों पर आपत्ति है।


बांग्लादेश में चुनाव अब बहुत दूर नहीं हैं। 1971 के नरसंहार के दोषियों को छुड़ाने के सवाल पर घटी हिंसक घटनाओं में अब तक अस्सी से अधिक लोग मारे गए हैं। रोज-रोज हड़ताल से लोग पक गए हैं। कट्टरपंथी  माहौल को गरमाने में लगे हुए हैं, जिन्हें विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की अध्यक्ष खालिदा जिया की सरपरस्ती हासिल है। बीएनपी चाहती है कि कम-से-कम चुनाव तक 'जमायते इस्लामी', 'जमायते मुजाहिदीन बांग्लादेश' यही समां बांधे रखें। लेकिन बांग्लादेश की राजनीति में सब कुछ कट्टरपंथियों को ही तय करना होता, तो शेख मुजीबुर्रहमान जैसे नेता नहीं होते और शेख हसीना सत्ता में नहीं आतीं। वहां उदारवादी और सर्वधर्म समभाव में यकीन करने वालों की संख्या फिर भी ज्यादा है। लेकिन कट्टरपंथियों के हल्ला-बोल से सभी डरे हुए हैं।


ये कट्टरपंथी चाहते हैं कि बांग्लादेश के संविधान से 'सेकुलर' शब्द हटाया जाए, और इसे इस्लामी राष्ट्र घोषित किया जाए। यह भी दबाव है कि देश में 'ईश निंदा कानून' लागू हो, और जो ब्लॉगर इस्लाम की अवमानना करते हुए पाए जाएं, उन्हें फांसी पर लटका दिया जाए। वैसे, शेख हसीना सरकार ने कानून में ऐसे किसी बदलाव से मना कर दिया है। बांग्लादेश में सात साल से 'समव्हेयर इन ब्लॉग नेट' चल रहा था, जिसे सरकार ने निष्क्रिय कर दिया है। पहली अप्रैल को बांग्लादेश की खुफिया एजेंसी ने 'अमार ब्लॉग डॉट कॉम' पर लिखने वाले कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया था। बांग्लादेश में ब्लॉगरों के दमन के विरुद्ध सौ देशों के ब्लॉगर खड़े हो गए हैं। क्या भारत में ऐसा कुछ होने की उम्मीद की जानी चाहिए?


सीमापार से नये सिरे से उत्पीडन के शिकार असहाय लाखों शरणार्थियों की अनिवार्य सुनामी से हमें कोई मतलब नहीं है। विभाजन पीड़ित हिंदू शरणार्थियों के उत्पीड़न के खिला फ हमारी जुबान  बंद है लेकिनबांग्लादेश मुक्ति संग्राम को रुपहले परदे पर उतारकर भारत-बांग्लादेश के संबंधों की सांस्कृतिक डोर को मजबूत करने के प्रयास किए जाएंगे। पाकिस्तान के जुल्म-ओ-सितम से बंगाल के लोगों को मुक्ति दिलाने में शहीद हुए भारतीय सैनिकों का इस फिल्म और बांग्लादेश के इतिहास में यथोचित उल्लेख होगा। दोनों देशों के सूचना प्रसारण मंत्रियों की मुलाकात में इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा हुई। भारतीय सूचना मंत्री मनीष तिवारी और बांग्लादेश के उनके समकक्ष हसनुल हक ईनू के बीच दोनों देशों के बीच सूचना प्रसारण से जुड़े विषयों पर सहयोग बढ़ाने को लेकर सहमति बनी। इसी कड़ी में दोनों देश संयुक्त उपक्रम में मुक्ति संग्राम पर एक फिल्म बनाने पर भी सहमत हुए। फिल्म पर विचार-विमर्श कर विस्तृत खाका जल्द ही तैयार कर लिया जाएगा।


ईनू ने तिवारी से 1971 के मुक्ति संग्राम में शहीद हुए भारतीय सैनिकों के नाम भी मांगे। उनका कहना था कि बांग्लादेश अपने जन्म से जुड़े ऐतिहासिक अवसरों पर इन सैनिकों के योगदान को यथोचित स्थान देगा। बांग्लादेश और भारत के बीच संबंधों में पिछले दिनों आई तल्खी को दूर करने के लिए खुद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी तरफ से पहल की थी। राष्ट्रपति बनने के बाद मुखर्जी सबसे पहले बांग्लादेश की ही विदेश यात्रा पर गए थे। दोनों देशों के बीच संबंधों में सांस्कृतिक विरासत और रिश्तों की ऊष्मा बढ़ाने की यह कोशिश लगातार जारी है।


इसी कड़ी में मनीष तिवारी और हसनुल हक ईनू ने दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक विरासत सूचना प्रसारण माध्यम के जरिये भी साझा और पुख्ता करने पर खूब चर्चा की। दोनों मंत्रियों ने तय किया कि एक दूसरे के देश की ऐतिहासिक धरोहरों को भी साझा किया जाएगा। साथ ही बांग्लादेश के मंत्री ने आग्रह किया कि निजी वितरण तंत्र के जरिये उनके देश को डाउनलिंकिंग की सुविधा भी मुहैया कराई जाए। दोनों देशों के बीच सूचना प्रसारण तंत्र के जटिल विषयों का समाधान करने के लिए एक संयुक्त कार्यसमूह गठित करने की संभावनाओं पर भी विचार किया जाएगा।


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