Sunday, 21 April 2013 12:39 |
गंगा सहाय मीणा आदिवासी विमर्श में मुक्ति की भाषा का संदर्भ और इसकी समझ दलित विमर्श से एकदम भिन्न है। आज देश के आदिवासी बेहद कठिन दौर में जी रहे हैं और अपने अस्तित्व तथा अस्मिता की रक्षा के लिए संघर्षरत हैं। जिन तत्त्वों से आदिवासी अस्मिता परिभाषित होती है, उनमें उनकी विशिष्ट भाषा भी एक प्रमुख तत्त्व है। इसलिए आदिवासी भाषाओं को बचाने का सवाल आदिवासी विमर्श का एक अहम मुद्दा है। हिंदी किसी आदिवासी की मातृभाषा नहीं है, इसलिए 'हिंदी के समक्ष उपस्थित खतरा' या हिंदी की मुक्ति का प्रश्न आदिवासी विमर्श के किसी काम का नहीं है। ईसाई धर्म ग्रहण करने के बाद आदिवासियों ने अंग्रेजी के रास्ते तथाकथित मुख्यधारा में जगह बनाना शुरू किया। इसलिए अंग्रेजी से उनका ऐसा कोई वैरभाव भी नहीं है, जैसा हिंदी-हितैषियों का है। अंग्रेजी के प्रभाव में वे अठारहवीं-उन्नीसवीं सदी से हैं। इसके बावजूद उन्होंने अपनी भाषाओं को बचाए रखा। आज आदिवासियों की मूल चिंता अपनी भाषा को बचाने की है। आदिवासी भाषाओं के सामने अंग्रेजी और हिंदी, दोनों ने ही अस्तित्त्व की चुनौती खड़ी कर दी है। एक आदिवासी भाषा का मरना हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता, उसकी स्मृति और ज्ञान परंपरा का खत्म होना है। इसलिए भारतीय संदर्भ में अंग्रेजी और हिंदी के वर्चस्व से आदिवासी भाषाओं की मुक्ति जरूरी है। मुक्ति की भाषा के सवाल से लेकर भाषाओं की मुक्ति के संदर्भ तक चीजों को ठीक से समझने और सावधानी बरतने की जरूरत है। जिस तरह वैश्विक पूंजीवाद और अमेरिकी साम्राज्यवाद गरीबों के हक की विचारधारा और व्यवस्था नहीं है, उसी तरह अंग्रेजी बहुत सीमित संदर्भों में ही वंचितों के हित की भाषा हो सकती है। दूसरी बात यह कि जैसे अंग्रेजों के शोषण के अलावा सामंती, जातिवादी और लैंगिक शोषण भारतीय समाज का सच है, वैसे ही छोटी और आदिवासी भाषाओं के संदर्भ में अंग्रेजी के अलावा हिंदी के वर्चस्व का सच भी हमें स्वीकार करना चाहिए। बाजार और सत्ता द्वारा निर्मित मुक्ति के संदर्भ स्थायी महत्त्व के नहीं हैं, इसलिए इनके प्रति सतर्कता अपेक्षित है। अगर हम सचमुच अपनी भाषाओं को बचाना चाहते हैं तो उनका व्यवहार जारी रखने के लिए उन्हें रोजगार से जोड़ना और उचित सम्मान देना होगा। |
This Blog is all about Black Untouchables,Indigenous, Aboriginal People worldwide, Refugees, Persecuted nationalities, Minorities and golbal RESISTANCE. The style is autobiographical full of Experiences with Academic Indepth Investigation. It is all against Brahminical Zionist White Postmodern Galaxy MANUSMRITI APARTEID order, ILLUMINITY worldwide and HEGEMONIES Worldwide to ensure LIBERATION of our Peoeple Enslaved and Persecuted, Displaced and Kiled.
Sunday, April 21, 2013
वर्चस्व के इलाके
वर्चस्व के इलाके
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment