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Memories of Another day

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Thursday, April 11, 2013

‘नमो’ की अजब-गज़ब तर्ज़-ए-सियासत

'नमो' की अजब-गज़ब तर्ज़-ए-सियासत

निर्मल रानी


भारतीय राजनीति में राजनेताओं द्वारा लोकप्रियता हासिल करने के लिए लोकहितकारी रास्ते अपनाए जाने के बजाए लोकलुभावन बातें कर जनमानस को अपनी ओर आकर्षित करने का ढर्रा हालांकि काफी पुराना हो चुका है। परंतु दिन-प्रतिदिन सियासत के इस अंदाज़ में और भी परिवर्तन आता जा रहा है। खासतौर पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इन दिनों जिस शैली की राजनीति की जा रही है उसे देखकर तो ऐसा लगने लगा है कि गोया भविष्य की तर्ज़- ए-सियासत संभवत: मोदी शैली की ही होने वाली है। यानी आधारहीन, तर्क विहीन, लोकलुभावन बातें करना,झूठे-सच्चे आंकड़े पेश कर लोगों की प्रशंसा हासिल करना,विपक्ष पर वार करने के लिए लालू यादव की तर्ज़ पर चुटकले छोडक़र मसखरेपन की राजनीति का सहारा लेते हुए जनता को लुभाने की कोशिश करना, अपने सांप्रदायिक एजेंडे को बड़ी चतुराई व सफाई के साथ लागू करना, विकास का झूठा ढिंढोरा पीटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मार्किटिंग ऐजेंसियों का सहारा लेना, अमिताभ बच्चन जैसे सुपर स्टार को राज्य का ब्रांड एबेंसडर बनाकर गुजरात की तरक्की का झूठा बखान करवाना तथा अपने राजनैतिक हितों के लिए अपराधियों को संरक्षण देना जैसी तमाम बातें भी शामिल हैं।

 

जबसे नरेंद्र मोदी के विषय में मीडिया में यह चर्चा छिड़ी है कि वे 2014 के प्रस्तावित लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री के पद के दावेदार हो सकते हैं उस समय से तो मोदी की तर्ज़-ए-सियासत कुछ और ही निराली होती जा रही है। कभी वे गुजरात को देश का पहले नंबर का दुग्ध उत्पादक राज्य बता डालते हैं तो कभी गुजरात को देश के सबसे प्रगतिशील राज्यों में गिना डालते हैं। गुजरात में अल्पसंख्यकों सहित बहुसंख्य समाज के बड़े पैमाने पर विरोधी होने के बावजूद वे स्वयं को 6 करोड़ गुजरातवासियों का स्वयंभू रूप से 'केयरटेकर' बताते रहते हैं। उनके भाषणों तथा उनकी शैली व हावभाव देखकर कोई भी व्यक्ति बड़ी आसानी से यह समझ सकता है कि वे देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए कितने व्याकुल हैं। बल्कि कभी-कभी तो उनके तेवरों से यह भी महसूस होता है गोया प्रधानमंत्री की कुर्सी अब उनसे चंद ही कदमों के फासले पर रह गई है। आजकल मीडिया ने नरेंद्र मोदी पर अपनी गहरी नज़रें जमा रखी हैं। यहां तक कि उनके भाषण के लाईव कवरेज तक दिए जाने लगे हैं। मीडिया ने उनकी विवादित शख्सियत का बखान करते-करते उन्हें इतना अधिक प्रचारित कर दिया है कि दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों को समाचारों में बमुश्किल ही स्थान मिल पा रहा है। यह सब भी नरेंद्र मोदी के मार्किटिंग मैनेजमेंट का ही एक हिस्सा है। उनके भाषण को सुनकर तथा उनकी आवाज़ व अंदाज़ को सुन-देखकर कोई भी व्यक्ति आसानी से यह समझ सकता है कि उनका लहजा बनावटी है तथा वे अपने भाषण की अदायगी में पूरी तरह से अभिनय का सहारा ले रहे हैं।

 

पिछले दिनों दिल्ली में महिला उद्यमियों की सभा में नरेंद्र मोदी ने लिज्जत पापड़ जैसे राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय खाद्य उत्पाद को गुजरात की मिलकियत बताने की कोशिश की। जबकि वास्तव में लिज्जत पापड़ की शुरुआत महाराष्ट्र से हुई थी और महाराष्ट्र से विस्तार करने के बाद यह ब्रांड बाद में गुजरात में पहुंचा। इसी प्रकार महिलाओं को लुभाने के लिए तथा महिलाओं की हमदर्दी हासिल करने के लिए उन्होंने फरमाया कि उनकी सरकार ने स्थानीय निकायों में 50 प्रतिशत महिला आरक्षण किए जाने से संबंधित बिल पारित कराकर राज्यपाल को भेज दिया। परंतु राज्यपाल ने जोकि स्वयं एक महिला भी हैं उस महिला आरक्षण बिल को अपने पास रोक रखा है। मोदी के इस वक्तव्य का सीधा अर्थ था कि वे अपने इस बयान से एक तीर से दो शिकार एक साथ खेल रहे थे। एक तो महिलाओं को लुभाने की कोशिश करना दूसरे राज्यपाल के बहाने कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार पर निशाना साधना। परंतु उनके इस गैरजि़म्मेदाराना बयान के तुरंत बाद ही गुजरात राजभवन की ओर से मोदी के इस वक्तव्य पर राज्यपाल की ओर से खंडन जारी कर यह बता दिया गया कि मोदी का बयान भ्रमित करने वाला है तथा राजभवन में ऐसा कोई बिल लंबित नहीं है। संभवत: मोदी जानते हैं कि मीडिया द्वारा उन्हें दिए जा रहे महत्व के चलते जितने लोगों तक उनके भाषण का समाचार पहुंचेगा उतने लोगों तक राज्यपाल महोदया के खंडन या उनके द्वारा दी जाने वाली स$फाई का समाचार नहीं पहुंच सकेगा। और यदि गुजरात के राज्य स्तरीय समाचारों में राजभवन गुजरात का प्रेस नोट प्रकाशित हो भी गया तो उन्हें इसकी भी कोई परवाह नहीं। क्योंकि 2002 के बाद वे गुजरात में बड़ी सफलता के साथ समाज को विभाजित कर ही चुके हैं।

 

इसी प्रकार महिला सशक्तिकरण की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए उन्होंने कुछ और महत्वपूर्ण बातें की। उन्होंने अपने राज्य में महिलाओं के नाम संपत्ति की खरीद करने पर स्टाम्प रजिस्ट्रेशन फीस माफ करने की नीति का जि़क्र किया। साथ ही उन्होंने महिलाओं पर यह भी एहसान जताया कि हालांकि इस नीति के चलते सरकार को 5-6 सौ करोड़ के राजस्व का नुकसान ज़रूर हो रहा है परंतु इसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में महिलाओं के नाम संपत्ति कराए जाने के समाचार भी आने लगे हैं। मोदी ने गुजरात की ऐसी नीति लागू करने वाला अकेला राज्य बताया। जबकि हक़ीक़त यह है कि हिमाचल प्रदेश व हरियाणा सहित देश के और भी कई राज्य ऐसे हैं जहां महिलाओं के नाम पर संपत्ति किए जाने में कई प्रकार की छूट पहले ही दी जा रही है। उन्होंने 'मैंने यह किया और मैंने वो किया' की अपनी चिरपरिचित भाषण शैली में यह भी कहा कि उन्होंने स्कूल में बच्चे का दाखिला कराते वक्त बच्चे की माता का नाम पिता के नाम से भी पहले लिखे जाने की हिदायत जारी की है। हालांकि मोदी इस नीति में भी महिला सशक्तिकरण की संभावना देखते हैं जबकि वास्तव में इन बातों का न तो महिला सशक्तिकरण से कोई वास्ता है न ही नारी उत्थान पर इसका कोई प्रभाव पडऩे वाला है। उधर गुजरात में ही नरेंद्र मोदी के विरोधी व आलोचक मोदी के गुजरात के विकास के सभी दावों को खोखला करार देते हुए संक्षेप में यही कहते हैं कि गुजरात पहले से ही देश के प्रगतिशील राज्यों की सूची में था। नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के समय भी गुजरात एक विकासशील राज्य था जबकि मोदी ने 2002 में गुजरात दंगों में अपनी पक्षपात भूमिका निभाकर राज्य में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ही कराया है और कुछ नहीं।

 

जहां तक महिला सशक्तिकरण के प्रति मोदी की चिंता व उनके बड़बोलेपन का प्रश्र है तो उन्हें महिला सशक्तिकरण के 'माया कोडनानी मॉडल' के रूप में भी देखा जा सकता है। क्या नरेंद्र मोदी का महिला सशक्तिकरण इसी बात में था कि उन्होंने गुजरात दंगों की मुख्य आरोपी माया कोडनानी को आरोपी होने के बावजूद अपने मंत्रिमंडल में स्थान देकर उसे स्वास्थय मंत्री बना दिया और आज वही हत्यारी महिला देश में अब तक की सबसे लंबी सज़ा पाने वाली महिला के रूप में जेल की सला$खों के पीछे है? और अदालत द्वारा सज़ा सुनाए जाने के बाद मजबूरीवश मोदी को अपनी उस चहेती नेत्री को मंत्रीपद से हटाना पड़ा। मोदी का महिला सशक्तिकरण क्या यही है कि सोहराबुद्दीन व उसकी पत्नी कौसर बी को फर्जी एनकाऊंटर में मारने का षड्यंत्र रचने वाले अमित शाह को मंत्रिमंडल तथा संगठन में प्रमुख स्थान दिया जाए? मोदी का महिला सशक्तिकरण मॉडल उन दर्दनाक हादसों से भी याद किया जा सकता है जबकि उनकी पार्टी से संबद्ध दुर्गावाहिनी की महिला सदस्यों ने 2002 में सैकड़ों महिलाओं का कत्लेआम किया? महिला सशक्तिकरण का विचार उस समय कहां दम तोड़ रहा था जबकि गुजरात में तलवारों से गर्भवती महिलाओं के पेट से बच्चे निकाल कर औरतों व बच्चों को मारा जा रहा था? मोदी राज में इशरत जहां के रूप में एक महिला की फर्जी मुठभेढ़ में मारी जाती है और मोदी जी महिला सशक्तिकरण की बात करें यह कैसी तर्ज़-ए-सियासत है?

 

नरेंद्र मोदी जी यदि वास्तव में यह कहते हैं कि अब वे गुजरात का क़र्ज़ उतार चुके हैं और देश का क़र्ज़ उतारना चाहते हैं तो सर्वप्रथम उन्हें महिला सशक्तिकरण के संबंध में दिए जा रहे अपने विचारों पर अमल करते हुए प्रधानमंत्री बनने के सपने देखने बंद कर देने चाहिए और पार्टी की दूसरी लोकप्रिय नेत्री सुषमा स्वराज के नाम को प्रधानमंत्री पद के लिए आगे करना चाहिए। वैसे तो उन के आलोचक उनकी अपनी छोड़ी हुई पत्नी तथा उनकी मां की सिथति को देखकर ही उनके महिला सशक्तिकरण पर दिए गए भाषण को हास्यास्पद व शत-प्रतिशत लोक लुभावन बताते हैं। जो भी हो नरेंद्र मोदी अपनी अजब-गज़ब तर्ज़ ए-सियासत के बल पर देश व मीडिया को अपनी ओर आकर्षित करने में ज़रूर माहिर हैं। कहीं ऐसा न हो कि इसी लोकलुभावन, ढोंगपूर्ण व अहंकारपूर्ण एवं झूठ व फरेब पर आधारित राजनैतिक शैली का देश में बोलबाला हो। और यदि ऐसा होता है तो निश्चित रूप से राजनीति व राजनेताओं पर से जनता का रहा-सहा विश्वास बिल्कुल ही उठ जाएगा।

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