| "Leader centered organizations bear no fruit except lengthening of slavery." – Chaman Lal दक्षिण भारत में शूद्रों (मूलनिवासियों) को असमानतावादी , अन्यायावादी विदेशी यूरेशियन ब्राह्मणों के विरोध में पेरियार ने जगाया ! जन-जागरण के कारण DMK का मूवमेंट खड़ा हुवा ! DMK के मूवमेंट में DMK संस्था के तौर पर खड़ी नहीं हुई बल्कि इसमें सम्मिलित अंध-भक्त और व्यक्ति-भक्त लोगों की नासमझी के कारन 'करुना निधि' नाम का एक परिवारवादी व्यक्ति (मसीहा) निर्माण हो गया ! इस अकेले त्रिश्नाग्रस्त परिवारवादी व्यक्ति को ब्राह्मणों ने अपने साम, दाम. दंड और भेद की निति से पेरियार रमा स्वामी के आन्दोलन के उद्देश्य की कीमत के एवज में अपने नियंत्रण में किया ! परिणाम स्वरुप पेरियार रामा स्वामी का आन्दोलन दिशाहीन और उदीश्यहीन हो गया ! करुना निधि ने क्या पेरियार का आन्दोलन उनकी भावना के अनुसार क्या भारत में आगे बढ़ाया ? उन्होंने तमिलनाडु में जहां-जहां पेरियार की मूर्ति लगी थी उसके आस-पास चार-चार पुलिस वालों कि ड्यूटी लगा लगा कर उनको और उनकी विचारधारा को कैद कर दिया और मानसिक मुक्ति के उनके आन्दोलन को वहीँ का वहीँ रोक कर चौपट कर दिया ! ब्राह्मणवाद अपनी गति से अपनी जड़ें फैलाता ही रहा ! परोक्ष रूप से एक परिवारवादी व्यक्ति-निर्माण होने के कारन ब्राह्मणवाद तमिलनाडु में फिर स्थापित हो गया ! भारत में अम्बेडकरवाद को छोड़कर जितने भी वाद निर्माण हुवे वह सब ब्राह्मणों ने या ब्राह्मणों की व्यवस्था के समर्थक लोगों ने निर्माण किये ! जिस रामायण में विदेशी ब्राह्मण राम (पुष्यमित्र सुंग ) भारत के मूलनिवासियों कि षड़यंत्र-पूर्वक हत्या करता है, ऐसे हत्यारे को पुरषोतम राम मानकर, रामायण मेलों का आयोजन कराने वाले कायस्थ राम मनोहर लोहिया ने समाजवाद की अवधारण को भारत में परिभाषित किया ! इनको और जय प्रकाश नारायण को लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव (दोनों मूलनिवासी) ने ब्राह्मणवाद के ही छद्दम रूप समाजवाद को अपना आदर्श मानकर जो आन्दोलन निर्माण किये उन-उन आंदोलनों के माध्यम से मूलनिवासियों की कोई भी संस्था निर्माण नहीं हुई बल्कि परिवारवादी और त्रिश्नाग्रस्त लालू प्रसाद यादव और मुलयम सिंह यादव व्यक्ति के तौर पर इन आंदोलनों से निर्माण हुवे ! इन निर्मित नेतावों को ब्राह्मणों ने अपने साम,दाम,दंड, और भेद की निति से अपने कब्जे में किया और परिणाम यहाँ तक हुवा कि इन नेतावों ने ब्राह्मणवादी दलों को भारत में ब्राह्मणवाद को टिकाये रखने के लिए बिना मांगे समर्थन दिया ! इन आंदोलनों में शामिल जन-साधारण लोगों की किसी भी मौलिक समस्याओं का समाधान व्यक्ति-निर्माण होने की बदोलत नहीं हुवा है ! फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन के उद्देश्य को बामसेफ के माध्यम से प्रस्थापित करने का आन्दोलन हमारे कुछ मूलनिवासी लोगों ने चलाया और अपने पूर्व के आंदोलनों से व्यक्ति-निर्माण होने के दुष्प्रभावों का आंकलन ना करके, सबक न धारण करके, फिर व्यक्ति (मसीहा) के तौर पर कांशीराम को निर्माण कर दिया, कांशीराम ने आगे चलकर एक त्रिश्नाग्रस्त महिला के हाथों इस आन्दोलन की बागडोर देकर फिर मायावती को एक व्यक्ति (मसीहा) के तौर पर निर्माण कर दिया ! ब्राह्मणों ने अपने साम, दाम, दंड, और भेद की निति से परिवारवादी त्रिश्नाग्रस्त मायावती को अपने नियंत्रण में करके 'बहुजन हिताय बहुजन सुखाया' से ' सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाया' के नाम पर ब्राह्मणों के व्यवस्था के अनुसार उनके हित में 'अल्प्जन हिताय अल्प जन सुखाया' करा दिया ! मूलनिवासी बहुजनो को आभासी सुख देने के लिए तथागत गौतम बुद्धा की विचारधारा के विरोध में, विचारधारा कि हत्या करने की कीमत पर, अपने और महापुरुषों के कुछ बुत खड़े करवा दिए – और भाई लोग इससे सोचते है कि आन्दोलन सफल हो गया ! इस व्यक्ति-निर्माण के आन्दोलन में भी जन-साधारण लोगों की किसी भी मौलिक समस्याओं का समाधान नहीं हुवा ! इसके बाद कुछ लोगों ने कांशीराम से सबक लेकर, मूलनिवासी बहुजन समाज की संस्था निर्माण करने के उद्देश्य से बामसेफ को रजिस्टर कराकर संस्थागत आन्दोलन की शुरुवात की, संस्थागत कार्य करते-करते कब उन्होंने 'वामन मेश्राम' नाम के व्यक्ति की निर्मिती कर डाली उन लोगों को पता ही नहीं चला, और २००३ में जब अपनी मह्त्वकाक्षा पूर्ण करने हेतु वामन मेश्राम ने 'होमो-सेक्सुअल' एक्ट में शामिल एवं साबित होने पर बामसेफ संघठन में वर्टीकल विभाजन को अंजाम दे दिया ! इसके बाद षड़यंत्र-पूर्वक वामन मेश्राम ने बामसेफ के संस्थागत नियम-कायदों को बदल कर व्यक्ति-आधारित आन्दोलन की तर्ज़ पर अपने आप को मूलनिवासी बहुजन समाज का छद्दम मसीहा निर्माण करने की शुरुवात कर दी ! भोले-भाले लोगों ने फिर इसको अपनी मुक्ति का आन्दोलन समझकर उसको प्रस्थापित कर दिया और भोले-भाले लोगों ने अपने से पूर्व व्यक्ति-निर्माण के दुष्प्रभावों का आंकलन नहीं किया, जिस कारण से एक-बार फिर GPL खाने की समाज के लोगों के समक्ष संभावनाएं निर्माण हो गयी ! लेकिन इसी बीच वामन मेश्राम के फरेब, धोलेबाज़ी, भांडगिरी के कुछ भुक्तभोगी कार्यकर्तावों ने वामन मेश्राम के भांडगिरी के दांवपेंचों को समझकर उससे अलग होकर संस्थागत आन्दोलन की महत्ता को मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया ! अब वामन मेश्राम के बहुजन समाज के भांड के तौर पर व्यक्ति-आधारित सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि मूलनिवासी बहुजन समाज के अंध-भक्त ऊपर दी गयी एतिहासिक बातों से सबक लेते हैं या नहीं ! अगर सबक लेते है तो संस्था निर्माण की वजह से व्यक्ति-आधारित स्वार्थी आन्दोलन निष्प्रभावी होगा और मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों की मुक्ति का रास्ता प्रसस्त होगा ! जय मूलनिवासी ! आपका मिशन में, चमन लाल, कोऑर्डिनेटर (बामसेफ सविंधान संसोधन समिती ) |
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