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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Sunday, June 23, 2013

राहत के नाम पर कपड़े, पैसे, खाना न भेजें, वह जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच रहा

राहत के नाम पर कपड़े, पैसे, खाना न भेजें, वह जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच रहा


Rajiv Nayan Bahuguna : वस्तु स्थिति को समझिए... आप यदि राहत के नाम पर कोई खाद्य सामग्री या वस्त्र भेज रहे हैं, तो वह ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुंच रहा. जब वहां के रास्ते ही बंद हैं तो पंहुच कैसे सकती है? उसकी कहीं बीच में ही बन्दरबाँट हो रही है... इसलिए किसी को भी पैसा न भेजें. कई एनजीओ का धंधा ही यही है. उनकी मौज आ जाती है. जब रास्ते खुलेंगे, तो खुद जाकर आकलन कीजिए और फिर किसी गाँव य परिवार को गोद लें..

आपदा पीड़ितो को भी नकदी न दें, मेरा कटु अनुभव है कि वह पैसा दारु के ठेकों पर जाता है. इधर मदद आती है, और उधर शराब माफिया दुर्गम गांवों में जाकर दारू की होम डिलीवरी स्टार्ट कर देता है... लोग फिर से आनन-फानन में मलबे के ढेर या आपदा प्रवण जगह पर घर बना लेते हैं.. अभी चुप बैठिये. आर्मी को अपना काम करने दीजिए. उसके सिवा अभी कोई कुछ नहीं कर सकता. आप यहाँ आकर केवल आर्मी को डिस्टर्ब करेंगे..

केन्द्र सरकार पर दबाव डालें कि सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र के लिए अलग संरक्षण वादी नीति बनाये, ताकि आपदाओं का स्थायी हल हो... फिर से नम्र निवेदन है कि पैसा न भेजें, वह लोगों को भ्रष्ट, परजीवी, अकर्मण्य और चटोरा बनाएगा... इस सारी आपदा के मूल में पैसे का लालच है, चाहे वह सरकारों का हो, या स्थानीय लोगों का...

उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार और लोक गायक राजीव नयन बहुगुणा के फेसबुक वॉल से.

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