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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Tuesday, June 25, 2013

आज के समय में प्रसांगिक उत्तराखंड के जनकवि गिर्दा की यह कविता

आज के समय में प्रसांगिक 
उत्तराखंड के जनकवि गिर्दा की यह कविता 
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"बोल व्योपारी तब क्या होगा -- ??"

सारा पानी चूस रहे हो,
नदी-समन्दर लूट रहे हो,
गंगा-यमुना की छाती पर
कंकड़-पत्थर कूट रहे हो,

उफ!! तुम्हारी ये खुदगर्जी,
चलेगी कब तक ये मनमर्जी,
जिस दिन डोलगी ये धरती,
सर से निकलेगी सब मस्ती,

महल-चौबारे बह जायेंगे
खाली रौखड़ रह जायेंगे
बूँद-बूँद को तरसोगे जब -
बोल व्योपारी – तब क्या होगा ?
नगद – उधारी – तब क्या होगा ??

आज भले ही मौज उड़ा लो,
नदियों को प्यासा तड़पा लो,
गंगा को कीचड़ कर डालो,

लेकिन डोलेगी जब धरती – बोल व्योपारी – तब क्या होगा ?
वर्ल्ड बैंक के टोकनधारी – तब क्या होगा ?
योजनकारी – तब क्या होगा ?
नगद-उधारी तब क्या होगा ?
(सौजन्य = संध्या नवोदिता )

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