Monday, June 24, 2013

गंगा किनारे सड़ रही लाशें, खेतों में काम करना मुश्किल

गंगा किनारे सड़ रही लाशें, खेतों में काम करना मुश्किल

मोरना/मुजफ्फरनगर ब्यूरो | अंतिम अपडेट 24 जून 2013 2:47 PM IST पर

dead bodies lying beside the ganga, govt fails to reach
उत्तराखंड में जल प्रलय की भेंट चढ़ गए तीर्थ यात्रियों की गंगा खादर में बहकर आई लाशों को चील-कौए नोंच रहे हैं। शुक्रताल से बिजनौर तक फैले गंगा क्षेत्र में दूर तक लाशें बिखरी पड़ी हैं।

तबाही का शिकार बने श्रद्धालुओं में महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है। ग्रामीण दुर्गंध की वजह से खेतों पर नहीं जा रहे। प्रशासन भी हाथ बांधे खड़ा है।

गंगा खादर में जलस्तर घटने के बाद उत्तराखंड की तबाही का सच सामने आ रहा है। रविवार को 'अमर उजाला' टीम ने खादर के दुर्गम इलाके का रुख किया।

सिताबपुरी गांव से बाणगंगा घाट तक चार किमी जंगल का सफर तय किया। महाराजनगर गांव के योगेश और किसान राधे मदद के लिए साथ चल पड़े।

सात किलोमीटर चलने पर ऐसी भयावह तस्वीर सामने आई कि रूह कांप गई। जगह-जगह लाशें पड़ी थी। किसी का पैर बाहर था तो किसी का हाथ।

आसपास नजर दौड़ाने पर दस लाशें नजर आईं, जिनमें सात महिलाएं थीं। दुर्गंध में सांस लेना भी दूभर था। कुछ लाशों को चील-कौए नोंच रहे थे।

आपदा की बलि चढ़ गई बेगुनाह जिंदगियों का ऐसा हश्र होगा, किसी ने सोचा भी न होगा। शुक्रताल की सीमा से जुड़े गंगा क्षेत्र में बहकर आई लाशों की संख्या बढ़ सकती है।

बालावाली से बिजनौर बैराज तक के क्षेत्र में पहुंचने में अभी तक प्रशासन भी नाकाम रहा है। पहाड़ों से बहकर आए कीचड़ में चलना कठिन है।

बाढ़ प्रभावित गांव के किसान सीताराम और चंद्रभान ने बताया कि चार फीट तक फैले रेत को उठाया जाए, तो और लाशें मिलेंगी। 

हाथ बांधे खड़ा है प्रशासन
गंगा खादर में बढ़ती लाशों के बावजूद शासन और प्रशासन बंधे हाथ खड़ा है। बिजनौर और मुजफ्फरनगर के क्षेत्र में गंगा खादर आता है। तीन दिन से दुर्गंध फैलने की सूचना के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पा रही है।

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