ए राजा की प्रायोजित रिहाई
ए राजा रिहा हो गये. एक दिन पहले ही. उन्हें उसी सीबीआई की विशेष अदालत ने जमानत दे दी जो अब तक जेल की कालकोठरी में बंद किये हुए थी. रिहा होने के बाद आज राजा संसद भी पहुंचे. कुछ मिनट के लिए शून्यकाल में हिस्सा भी लिया. पीछे की सीट पर बैठे. चेहरा दिखाया और डीएमके समर्थकों के साथ चले गये. लेकिन राजा की इस रिहाई में दो बाएं ऐसी हैं जो चौंकानेवाली हैं और इस बात की ओर इशारा करती हैं कि राजा की रिहाई प्रायोजित रिहाई है. सब कुछ पूर्व निर्धारित था सिर्फ मंचन बाकी था जिसे मंगलवार को पूरा कर दिया गया.
सबसे पहला सवाल चलिए सीबीआई की विशेष अदालत से ही पूछते हैं. सीबीआई की विशेष अदालत के जो जज साहब हैं उनका नाम है ओपी सैनी. यही ओपी सैनी हैं जो पहले राजा को जमानत न देने पर अड़े हुए थे और सीबीआई द्वारा अनापत्ति दिखाये जाने के बाद भी इसे देश का सबसे संवेदनशील मामला बताकर केवल राजा को नहीं बल्कि कनिमोझी को भी जमानत देने से मना कर दिया था. हालांकि बाद में जैसे ही कनिमोझी को जमानत मिली जमनतों की झड़ी लग गई. आखिर में सिर्फ ए राजा बचे थे और क्योंकि सीबीआई अपनी पड़ताल पूरी कर चुकी है और अदालती जिरह चलेगी इसलिए ए राजा को जेल के अंदर रखने का कोई तुक नहीं बनता है. कानूनन भी राजा जमानत के हकदार थे. तो फिर सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें जमानत क्यों नहीं दी?
बकौल सुब्रमण्यम स्वामी राजा की जान को खतरा था. वे कहते हैं कि राजा तो जमानत के हकदार थे लेकिन अगर वे जमानत पर पहले बाहर आ जाते तो उनकी जान को खतरा हो सकता था. इसका मतलब है कि राजा को प्रायोजित जमानत दी गई है. अगर यह सच है तो कानून के साथ एक भद्दा मजाक खेला गया है.
जमानत न देने का निर्णय जितना सवाल उठाता है उससे ज्यादा अचानक जमानत दे देना सवाल खड़े करता है. राजा की जमानत पर 11 मई को ही सुनवाई हो गई थी और फैसला मंगलवार 15 तक के लिए सुरक्षित रख लिया गया था. लेकिन जिस तरह से 15 मई को राजा के निर्वाचन क्षेत्र से समर्थक पटियाला हाउस कोर्ट के बाहर इकट्ठा हुए जश्न मनाने की तैयारी के साथ उससे यह संदेह भी पैदा होता है कि इसका मतलब राजा के समर्थकों को पता था कि आज उनके साहब की जमानत हो ही जाएगी. वे जो समर्थक आये थे राजा उन्हीं के साथ संसद भी गये और उन्हीं के साथ आज भी हैं. तो क्या राजा के समर्थकों को पहले ही संदेश भेज दिया गया था कि मंगलवार को राजा की रिहाई होने जा रही है. इसलिए वे जश्न मनाने की तैयारी के साथ पटियाला हाउस कोर्ट पहुंचे.
अगर इन दोनों घटनाओं को देखें तो शक बढ़ता है कि राजा की गिरफ्तारी और जमानत दोनों ही प्रायोजित हैं. सुब्रममण्यम स्वामी का वह आरोप सही नजर आता है जिसमें वे कहते हैं कि कुछ ऊंची मछलियों को बचाने के लिए टूजी घोटाले में छोटी मछली राजा को फंसाया गया था. टूजी घोटाले की कड़ियां इतनी पेंचीदा हैं और इतने पक्षकार हैं कि इसकी सुनवाई में करीब दशकभर लग जाएंगे. अगर एक दशक बाद कोई दोषी करार भी दिया जाता है तो ऊंची अदालत में जाकर जमानत पा लेगा और निश्चिंत हो जाएगा. तो फिर घोटाले का क्या हुआ? जिस घोटाले के नाम पर पूरा देश करीब सालभर अटका रहा और आम आदमी के हिस्से के अरबों रूपये कुछ जेबों में पहुंचा दिये गये, उसको क्या हासिल हुआ?
इसलिए अब शक और पुख्ता हो जाता है कि सीबीआई और सीबीआई की अदालतें सिर्फ सरकार के संकेतों का पालन करती हैं. और कुछ नहीं. राजा की गिरफ्तारी और रिहाई का प्रोयोजित कांड इसी बात को पुख्ता करता है.

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