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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Friday, July 5, 2013

बल भैजी आज सुणा "अथ कथा विश्व के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले अखबार की"

Status Update
By चन्द्रशेखर करगेती
बल भैजी आज सुणा "अथ कथा विश्व के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले अखबार की"

बल दाज्यू कल ग्याडू बता रहा था कि वो पिछले कई दिनों से विश्व का सबसे अधिक पढ़े जाने वाल अखबार को नियमित तौर पर देख रहा है , उसका कहना था कि आजकल यह समाचार-पत्र कम और विज्ञापन-पत्र ज्यादा लगता है, जिस पेज को पलटो उस पृष्ठ के एक तिहाई भाग पर जन सरोकार के समाचार कम खून चुसू संस्थानों के विज्ञापन ज्यादा पढ़ने को मिल रहें है, वो भी पाठकों की जेब से निकले रुपयों की बदोलत ? अब बगैर समझे झेलों इस विश्व के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले समाचार पत्र को ? 

बल भैजी किसी भी अखबार में कितने विज्ञापन छपेंगे उसके भी सरकार ने मानक बनाए हैं, लेकिन उन मानकों और नियमों का क्या जो समाचर पत्रों और उनके पत्रकारों के लिए लागू करने के नाम पर सुचना विभाग की फाईलों में वर्षों से जंग खा रहें हैं ! 

दाज्यू बात यही खत्म नहीं होती, समाचार पत्रों के नाम पर विशुद्ध व्यापार करने वालों ने कैसे हर उस आदमी की जेब पर डाका डाला है जो इनकी पहुँच में है, जन सेवा के नाम पर जनता को लूटने वाले राजनेता ही नहीं है, इस जमात में विश्व के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले टाईप के मालिक-प्रबंधन भी कम नहीं है, ये कैसे जनता की जेब पर खुले आम डाका डालते हैं, और वे पकड़े भी नहीं जाए हैं, इसका छोटा सा उदाहरण उत्तराखंड में छपने वाले एक समाचार-पत्र के तीन संस्करणों से समझा जा सकता, इनके 26 पृष्ठ के देहरादून सिटी संस्करण की कीमत 2.50 रुपया,24 पृष्ठ के ही गढवाल संस्करण की कीमत 3.50 रूपये है, 24 पृष्ठ के हल्द्वानी संस्करण की कीमत 4.00 रूपये, और ताज्जुब की बात ये कि देहरादून की तरह हल्द्वानी में भी इनका अपना छापाखाना है, जो अखबार कम विज्ञापन के मार्फ़त नोट ज्यादा छाप रहा है, पाठक से विज्ञापन पढ़ने की भी कीमत खुले आम वसुली जा रही है, ये खेल तो यूँ ही खेला जाता है जब तक पाठक के समझ में ना आये, साथ ही सरकार से अखबारी पेपर के नाम पर सब्सिडी ली जाती है वो अलग...

ये ही अखबार आपको बताएंगे कि टमाटर के भाव दिल्ली में 25 रूपये किलों, देहरादून में 15 रूपये किलों और हल्द्वानी में 50 रूपये किलों....इनमें और समय को देख कर टमाटर के भाव बढाने वाले व्यपारियों के बीच भी काफी समानतायें है, भाव बढे नहीं होते हैं बल्कि इनके द्वारा बढाए जाते हैं l 

ये खेल तो छोटा है इससे पहले हल्द्वानी से लगभग 9 साल तक बिना रजिस्ट्रेशन के शुल्क की चौरी कर अखबार छापता रहा,वो तो एक ग्याडू जिसने अंगुली कर दी तो सुचना विभाग नींद से जाग गया ! जो बाद में फिर सो गया अब भैजी सूचना विभाग के अधिकारी भले ही आँखे बंद कर अपने को चूसना विभाग के कर्मचारी समझे, बातें और भी बहुत सी हैं चर्चा आगे बढ़ेगी तो बात खटिया-चादर-गमछे से से स्कोर्पियों फ्लेटों तक जायेगी, लेकिन अपना काम तो जनता की आंखे खोलना है सो लिख दिया !

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