---------- Forwarded message ----------
From: Tara Tripathi <nirmaltara@gmail.com>
Date: 2011/4/21
Subject: नैतिक शिक्षा
-- नैतिक शिक्षा
नैतिकता ज्ञान नहीं है, आचरण है. आचरण माता-पिता, गुरु और समाज के आचरण
से विकसित होता है. हमारे शिक्षाविद पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा को
अनिवार्य करने पर जोर देते हैं, पर मुझे यह सब से बड़ा छ्द्म लगता है.
माता-पिता ऊपरी आमदनी के आगे दीन-ईमान को गिरवी रखने के लिए तैयार रहते
हैं. नैतिकता का मूल्यांकन करने वाले अध्यापक, कक्षा में पढाने से जी
चुराते हैं. प्रधानाचार्य विद्यालयों के कोषों और अनुदानों कुतरने में
लगे रहते हैं. जनपद स्तर से लेकर राज्य एवं केन्द्र स्तर तक के अधिकारी
उत्कोच से अपनी जेबें भर रहे होते हैं. विधायकों एवं मन्त्रियों की
कर्मकुंडली और भी गर्हित होती जा रही है. और तो और सर्वोच्च न्यायालय के
कतिपय न्यायाधीशों की निष्ठा भी सन्देह से परे नहीं रह गयी है. ऐसे
अनैतिक माहौल में विद्यालयों में नैतिक शिक्षा का प्राविधान राष्ट्र की
अगली पीढ़ी में अनास्था पैदा करने और इस प्रकार नैतिक स्तर को रसातल की
और ले जाने से अधिक कुछ नहीं कर सकती.
यदि एक निष्ठावान अध्यापक भी कक्षा में सत्याचरण का उपदेश दे और घर में
काली कमाई का जोर हो तो उसका उपदेश छात्र को अध्यापक का काली कमाई न कर
पाना मात्र लगेगा. यदि किसी प्रकार के भ्रष्टाचार और अनाचार के प्रति
व्यक्ति के पद और सामाजिक स्तर की परवाह न करते हुए तत्काल कठोर दंड
दिया जाने लगे तो अनैतिकता एक दिन में ही ठिकाने लग जाएगी. बच्चे का हाथ
एक बार आग से छू जाय तो बार-बार उकसाने पर भी वह आग को हाथ नहीं लगाता.
ऐसा स्थायी प्रभाव 'आग को हाथ नहीं लगाना चाहिए' उपदेश से सम्भव है क्या?
nirmaltara
From: Tara Tripathi <nirmaltara@gmail.com>
Date: 2011/4/21
Subject: नैतिक शिक्षा
-- नैतिक शिक्षा
नैतिकता ज्ञान नहीं है, आचरण है. आचरण माता-पिता, गुरु और समाज के आचरण
से विकसित होता है. हमारे शिक्षाविद पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा को
अनिवार्य करने पर जोर देते हैं, पर मुझे यह सब से बड़ा छ्द्म लगता है.
माता-पिता ऊपरी आमदनी के आगे दीन-ईमान को गिरवी रखने के लिए तैयार रहते
हैं. नैतिकता का मूल्यांकन करने वाले अध्यापक, कक्षा में पढाने से जी
चुराते हैं. प्रधानाचार्य विद्यालयों के कोषों और अनुदानों कुतरने में
लगे रहते हैं. जनपद स्तर से लेकर राज्य एवं केन्द्र स्तर तक के अधिकारी
उत्कोच से अपनी जेबें भर रहे होते हैं. विधायकों एवं मन्त्रियों की
कर्मकुंडली और भी गर्हित होती जा रही है. और तो और सर्वोच्च न्यायालय के
कतिपय न्यायाधीशों की निष्ठा भी सन्देह से परे नहीं रह गयी है. ऐसे
अनैतिक माहौल में विद्यालयों में नैतिक शिक्षा का प्राविधान राष्ट्र की
अगली पीढ़ी में अनास्था पैदा करने और इस प्रकार नैतिक स्तर को रसातल की
और ले जाने से अधिक कुछ नहीं कर सकती.
यदि एक निष्ठावान अध्यापक भी कक्षा में सत्याचरण का उपदेश दे और घर में
काली कमाई का जोर हो तो उसका उपदेश छात्र को अध्यापक का काली कमाई न कर
पाना मात्र लगेगा. यदि किसी प्रकार के भ्रष्टाचार और अनाचार के प्रति
व्यक्ति के पद और सामाजिक स्तर की परवाह न करते हुए तत्काल कठोर दंड
दिया जाने लगे तो अनैतिकता एक दिन में ही ठिकाने लग जाएगी. बच्चे का हाथ
एक बार आग से छू जाय तो बार-बार उकसाने पर भी वह आग को हाथ नहीं लगाता.
ऐसा स्थायी प्रभाव 'आग को हाथ नहीं लगाना चाहिए' उपदेश से सम्भव है क्या?
nirmaltara
--
Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/
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