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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Friday, November 24, 2017

मंदिर मस्जिद विवाद से देश में कारपोरेट राज बहाल तो जाति युद्ध से जनसंख्या सफाये का मास्टर प्लान! पद्मावती विवाद का तो न कोई संदर्भ है और न प्रसंग। यह मुकम्मल मनुस्मृति राज का कारपोरेट महाभारत है।

मंदिर मस्जिद विवाद से देश में कारपोरेट राज बहाल तो जाति युद्ध से जनसंख्या सफाये का मास्टर प्लान!

पद्मावती विवाद का तो न कोई संदर्भ है और न प्रसंग।

यह मुकम्मल मनुस्मृति राज का कारपोरेट महाभारत है।

राजनीति,कारपोरेट वर्चस्व और मीडिया का त्रिशुल परमाणु बम से भी खतरनाक।

सामाजिक तानाबाने को मजबूत किये बिना हम इस कारपोरेट राज का मुकाबला नहीं कर सकते।

पलाश विश्वास

मंदिर मस्जिद विवाद से देश में कारपोरेट राज बहाल तो जाति युद्ध से जनसंख्या सफाये का मास्टर प्लान है।


पद्मावती विवाद का तो न कोई संदर्भ है और न प्रसंग।


मंदिर मस्जिद विवाद के धारमिक ध्रूवीकरण से इस देश की अर्थव्यवस्था सिरे से बेदखल हो गयी और मुकम्मल कारपोरेट राज कायम हो गया।


तो यह समझने की बात है कि पद्मावती विवाद से नये सिरे से जातियुद्ध छेड़ने के कारपोरेट हित क्या हो सकते हैं।


यह देश व्यापी महाभारत भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को  सिरे से खत्म करने वाला है।


यह मुकम्मल मनुस्मृति राज का कारपोरेट महाभारत है।


यह जनसंख्या सफाये का मास्टर प्लान है।


पद्मावती विवाद को लेकर जिस तरह जाति धर्म के नाम भारतीय जनमानस का ध्रूवीकरण हुआ है,वह भारत विभाजन की त्रासदी की निरंतरता है।


जाति केंद्रित वैमनस्य और घृणा धर्मोन्माद से कहीं ज्यादा भयानक है,जो भारतीय समाज में मनुस्मृति विधान के संविधान और कानून के राज पर वर्चस्व का प्रमाण है।


अफसोस यह है कि इस आत्मघाती जातियुद्ध का बौद्धिक नेतृत्व पढ़े लिखे प्रबुद्ध लोग कर रहे हैं तो दूसरी ओर बाबा साहेब भीमाराव अंबेडकर के स्वयंभू अनुयायी भी इस भयंकर जातियुद्ध की पैदल सेना के सिपाहसालर बनते दीख रहे हैं।


मिथकों को समाज,राष्ट्र और सामाजिक यथार्थ,अर्थव्यवस्था और भारतीय नागरिकों की रोजमर्रे की जिंदगी और उससे जुड़े तमाम मसलों को सिरे से नजरअंदाज करके कारपोरेट राज की निरंकुश सत्ता मजबूत करने में सत्ता विमर्श का यह सारा खेल सिरे से जनविरोधी है।


राजनीति,कारपोरेट वर्चस्व और मीडिया का त्रिशुल परमाणु बम से भी खतरनाक है तो इसे मिसाइलों की तरह जनमानस में निरंतर दागने में कोई कोर कसर समझदार, प्रतिबद्ध,वैचारिक लोग नहीं छोड़ रहे हैं और वे भूल रहे हैं कि धर्मोन्माद से भी बड़ी समस्या भारत की जाति व्यवस्था और उसमें निहित अन्याय और असमता की समस्या है तो अंबेकरी आंदोलन के लोगों को भी इस बात की कोई परवाह नहीं है।


करनी सेना और ब्राह्मणसमाज के फतवे के पक्ष विपक्ष में जो महाभारत का पर्यावरण देश के मौसम और जलवायु को लहूलुहान कर रहा है,उससे क्रोनि कैपिटलिज्म का कंपनी राज और निरंकुश होता जा रहा है।


ऐसे विवाद दुनियाभर में किसी न किसी छद्म मुद्दे को लेकर खड़ा करना कारपोरेट वर्चस्व के लिए अनिवार्य शर्त है।


मोनिका लिवनेस्की,सलमान रश्दी,पामेला बोर्डेस जैसे प्रकरण और उनकी आड़ में विश्वव्यापी विध्वंस का हालिया इतिहास को हम भूल रहे हैं।


तेल युद्ध और शीत युद्ध की पृष्ठभूमि में इन्ही विवादों की आड़ में दुनिया का भूगोल सिरे से बदल दिया गया है और इऩ्ही विवादों की वजह से आज दुनिया की आधी आबादी शरणार्थी है और दुनियाभर में सरहदो के आर पार युद्ध और गृहयुद्ध जारी है।


ईव्हीएम के करिश्मे पर नानाविध खबरें आ रही हैं।चुनाव नतीजे पर इसका असर भी जाहिर है, होता होगा।लेकिन मेरे लिए यह कोई निर्णायक मुद्दा नहीं है।क्योंकि भारत में चुनावी समीकरण और सत्ता परिवर्तन से कारपोरेट राज बदलने की कोई सूरत नहीं है।सत्तापक्ष विपक्ष में कोई बुनियादी फर्क नहीं है।कारपोरेट फंडिग से चलनेवाली राजनीति का कोई जन सरोकार नहीं है और वह कारपोरेट हित में काम करेगी। राजनीति और कारपोरेट के इसी गठबंधन को हम क्रोनी कैपिटैलिज्म कहते हैं।


गुजरात में अव्वल तो सत्ता परिवर्तन के कोई आसार जाति समीकरण के बदल जाने से नहीं है और न ऐसे किसी परिवर्तन का भारतीय कारपोरेट राज में कोई असर होना है।


सीधे तौर पर साफ साफ कहे तो राष्ट्रीय और प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट की  छूट दस साल के मनमोहनी राजकाज में मिली हुई थी,कांग्रेस के सत्ता से बेदखल होने के बाद उनकी सेहत पर कोई असर नहीं हुआ है।बल्कि कंपनियों का पाल बदलने से ही कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गयी।अब जबतक उन्ही कंपनियों का समर्थन मोदी महाराज को जारी है,कोई सत्ता समीकरण उन्हें बेदखल नहीं कर सकता।


मान भी लें कि वे बेदखल हो गये तो फिर मनमोहनी राजकाज की पुनरावृत्ति से कारपोरेट राज का अंत होगा,ऐसी कोई संभावना नहीं है।कांग्रेस और भाजपा के अलावा राज्यों में जो दल सत्ता पर काबिज हैं या विपक्ष में हैं,उनमें को कोई मुक्तबाजार के कारपोरेट राज के खिलाफ नहीं है और न कोई जनता का पक्षधर है।


1991 से भारत की आर्थिक नीतियों की निरंतराता में कोई व्यवधान नहीं आाया है।डिजिटल इंडिया की मौलिक योजना कांग्रेस की रही है जैसे आधार परियोजना,कर सुधार और जीएसटी कांग्रेस की परियोजनाएं है जिन्हें भाजपा की सरकार ने अमल में लाने का काम किया है।अब भी राज्यसभा में भाजपा को बहुमत नहीं है।अब भी केंद्र में गठबंधन सरकार है।


1989 से हमेशा केंद्र में अल्पमत या गठबंधन की सरकारे रही हैं।इसी दरम्यान तमाम आर्थिक सुधार हो गये।कुछ भी सार्वजनिक नहीं बचा है।


किसानों का सत्यानाश तो पहले हो ही चुका है अब कारोबारियों का भी सफाया होने लगा है और रोजगार, नौकरियां,आजीविका सिरे से खत्म करने की सारी संसदीय प्रक्रिया निर्विरोध सर्वदलीय सहमति से संपन्न होती रही है।


इस निरंकुश कारपोरेट राज ने भारत का सामाजिक तानाबाना और उत्पादन प्रणाली को तहस नहस कर दिया है।नतीजतन भोजन, पानी,रोजगार, शिक्षा,चिकित्सा और बुनियादी जरुरतों और सेवाओं से आम जनता सिरे से बेदखल हैं।किसान जमीन से बेदखल हो रहे हैं तो व्यवसायी कारोबार से।बच्चे अपने भविष्य से बेदखल हो रहे हैं तो युवा पीढ़ियां रोजगार और आजीविका से।


सामाजिक तानाबाने को मजबूत किये बिना हम इस कारपोरेट राज का मुकाबला नहीं कर सकते।इसलिए हम किसी भी राजनीतिक पक्ष विपक्ष में नहीं हैं।


हम हालात बदलने के लिए नये सिरे से संत फकीर, नवजागरण,मतुआ,लिंगायत  जैसे सामाजिक आंदोलन की जरुरत महसूस करते हैं, इन आंदोलनों के जैसे शिक्षा और चेतना आंदोलन की जरुरत महसूस करते हैं और महावनगर राजधानी से सांस्कृति आंदोलन को जनपदों की जड़ों में वापस ले जाने की जरुरत महसूस करते हैं। बाकी बचे खुचे जीवन में इसी काम में लगना है।



बहरहाल हमारे लिए सीधे जनता के मुखातिब होने का कोई माध्यम बचा नहीं है।प्रबुद्धजनों का पढ़ा लिखा तबका चूंकि सत्ता वर्ग के नाभिनाल से जुड़कर अपनी हैसियत और राजनीति के मुताबिक अपने ही हित में जनहित और राष्ट्रहित की व्याख्या करता है,तो उनपर भी हमारे कहे लिखे का असर होना नहीं हैे।

बहरहाल प्रिंट से बाहर हो जाने के बाद नब्वे के दशक से ब्लागिंग और सोशल मीडिया के मार्फत बोलते लिखते रहने का मेरा विकल्प भी अब सिरे से खत्म होने को है।


फिलहाल दो तीन महीने के लिए उत्तराखंड की तराई के सिडकुल साम्राज्य में मरुद्यान की तरह अभी तक साबुत अपने गांव में डेरा रहेगा।इसलिए कंप्यूटर,नेट के बिना मेरा लिखना बोलना स्थगित ही रहना है क्योंकि मैं स्मार्ट फोन का अभ्यस्त नहीं हूं।


पत्र व्यवाहर के लिए अब मेरा पता इस प्रकार रहेगाः

पलाश विश्वास

द्वारा पद्मलोचन विश्वास

गांव बसंतीपुर

पोस्टःदिनेशपुर

जिलाः उधमसिंह नगर,उत्तराखंड

पिनकोडः263160


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