Wednesday, October 10, 2012

Fwd: [New post] सोशल मीडिया पर लगाम



---------- Forwarded message ----------
From: Samyantar <donotreply@wordpress.com>
Date: 2012/10/9
Subject: [New post] सोशल मीडिया पर लगाम
To: palashbiswaskl@gmail.com


समयांतर डैस्क posted: "यह तो एक बहाना है : पीयूष पंत अगर हम उन लोंगो की अभिव्यक्ति की आजादी पर विश्वास नहीं करते जो हमें ना "

New post on Samyantar

सोशल मीडिया पर लगाम

by समयांतर डैस्क

यह तो एक बहाना है : पीयूष पंत

social-mediaअगर हम उन लोंगो की अभिव्यक्ति की आजादी पर विश्वास नहीं करते जो हमें ना पसंद हैं तो इसका सीधा मतलब है कि अभिव्यक्ति की आजादी पर हमारा विश्वास है ही नहीं। ' नोम चोमस्की का यह कथन मनमोहन सिंह की सरकार पर सटीक बैठता है क्योंकि वो हमेशा ऐसे मौकों की तलाश में रहती है जिनका फायदा उठा कर वो अभिव्यक्ति की आजादी को संविधान सम्मत नागरिक अधिकारों की सूची से ही बाहर निकाल दे। तभी तो वो मौका मिलते ही उन व्यक्तियों और संस्थाओं की अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला करना शुरू कर देती है जो यूं पी ए सरकार की नीतियों की आलोचना करते रहें हैं। चूंकि पिछले कुछ वर्षों के दौरान हुए मीडिया के कोर्पोरितिकरण के चलते मुख्यधारा के मीडिया में ऐसी खबरों, संपादकीय टिप्पडिय़ों और संपादकीय पृष्ठों में छपने वाले लेखों का अभाव होता चला गया है जो सरकार की किरकिरी कर सकें, लिहाजा व्यक्तिगत अभिव्यक्ति को पंख तथा अनंत आकाश प्रदान करने वाला सोशल मीडिया अब सरकार के निशाने पर रहने लगा है, सोशल मीडिया पर नकेल कसने का सरकार कोई भी मौका नहीं छोडऩा चाहती है।

हाल में असम में हुए सांप्रदायिक दंगे और बंगलुरु तथा पुणे से उत्तर पूर्वी लोगों के पलायन ने सरकार को ये मौका एक बार फिर मुहैया करा दिया। सांप्रदायिक माहौल पैदा करने और दंगो को अंजाम देने के लिए एस एम एस, एम एम एस और सोशल नेटवर्किंग साइट्स को जिम्मेदार ठहराया गया। कहा गया की इनके द्वारा अफवाहें फैला कर माहौल को विषाक्त किया गया। सरकार ने फेसबुक और ट्विटर समेत अन्य सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर उत्तर पूर्वी नागरिकों के कुछ शहरों से पलायन को अंजाम देने वाली अफवाहों को फैलाने में मदद करने वाली 'भड़काऊ सामग्री' को हटाने का दबाव बनाया। 20 अगस्त को एक व्यक्तव्य जारी कर भारत सरकार ने कहा कि ऐसे 245वेब पेजों तक पहुंच बंद कर दी गई है जिनमें प्रायोजित वीडिओ और छवियां दी गई हैं। दूरसंचार सचिव ने तो ऐसी वेबसाईटों पर, जो ऐसी सामग्रियों को नहीं हटातीं, कानूनी कारवाई तक की धमकी दे डाली।

चौंकाने वाली बात यह है कि दंगों के असली कारण की खोजबीन करने के बजाय भारत सरकार ने भड़काऊ सामग्री का प्रसार करने का ठीकरा पाकिस्तानी वेबसाईट्स के सर फोड़ दिया। सरकारी व्यक्तव्य में कहा गया-' ऐसा पाया गया है कि सोशल नेटवर्किंग साईटों पर बहुत सी सामग्री देश के बाहर से चढ़ाई गई है' सीधा-सीधा इशारा पाकिस्तान की तरफ था। सरकार ने रोके गए (ब्लॉक) किए गए पेजों का ब्यौरा नहीं दिया है। पाकिस्तान सरकार ने लगाए गए आरोपों का खंडन किया है। बड़ी बात तो ये है कि भारतीय मीडिया ने ही सरकार की कलई खोल दी। 22 अगस्त के इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार सोमवार 20 अगस्त तक सरकार द्वारा ब्लॉक किए गए 245 वेब पेजों में से केवल पांचवां हिस्से में ही उत्तरपूर्व के लोगों या असम की घटनाओं का जिक्र था। इससे यह संकेत तो मिल ही जाते हैं कि घृणा का माहौल तैयार करने में पाकिस्तान के इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की भूमिका को बढ़ा-चढ़ा के पेश किया गया। अखबार के अनुसार एक सरकारी सूत्र का कहना था कि ब्लॉक किए गए वेब पेजों में दो ही ऐसे थे जिनमें असम हिंसा से संबंधित सही या जोड़ कर बनाए गए वीडिओ या चित्र थे। सरकार के पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार 50 से भी कम वेब पेजों में असम की हिंसा का संदर्भ था या उत्तरपूर्वी लोगों के खिलाफ घृणा पैदा करनेवाले संदेश थे। और लगभग सभी संदेश भारत से इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की तरफ से थे।

लेकिन सरकार को सोशल साईटस पर शिकंजा कसने का बहाना मिल गया। और मौके का फायदा उठाते हुए सरकार ने अपने विरोधी ब्लॉग्स तथा सोशअल नेटवर्किंग साईटों को ब्लॉक करना शुरू कर दिया। हद तो तब हो गई जब दो ऐसे पाकिस्तानी वेब पेजों को ब्लॉक कर दिया गया जो पिछले एक महीने से पकिस्तान में दिखाई जा रही छद्म छवियों (मार्फ्ड) की आलोचना कर रहे थे। बात यहीं खत्म नहीं हुयी। सरकार ने दक्षिणपंथी विचारधारा वाले संघ परिवार के ट्विट हैंडल और संघ परिवार से जुड़े प्रवीन तोगडिय़ा तथा मुखपत्र पांचजन्य के ट्विट हैंडल को भी ब्लॉक कर दिया। दो पत्रकारों के भी ट्विट्स को ब्लॉक कर दिया गया। इस बहाने ब्रिटिश अखबार द टेलीग्राफ और टी वी नेटवर्क अल जजीरा के कुछ पन्नों को भी ब्लॉक करने के लिए कहा। ये सब बिना कोई कारण बताये किया गया। एक रटा-रटाया देश की सुरक्षा का तर्क सरकार देती रही। प्रभावित पत्रकारों का कहना है, सरकार मौके का फायदा उठा कर अपने खिलाफ लिखने वाले पत्रकारों और पत्रों की आवाज बंद करना चाहती है।

यही कारण है कि सरकार ने लगे हाथों उन ब्लॅाग्स और ट्विटर अकाउंट्स को भी नाप लिया जो व्यंग्य-विनोद के जरिये प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर टिप्पणी करते थे। खबर है कि प्रधानमंत्री कार्यालय से मिलते-जुलते छह ट्विट्स को ब्लॉक कर दिया गया है। इससे तो यही संदेश मिलता है कि वर्तमान सरकार राजनितिक आलोचना को बर्दाश्त नहीं कर सकती और नागरिकों के अभिव्यक्ति के अधिकार को कुचलने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। मनमोहन सिंह सरकार ऐसी कोशिश पहले भी कर चुकी है। मार्च, 2012 में मीडिया संबंधी साईट 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' ने कहा था कि भारत सरकार इंटरनेट सेवा मुहय्या करनेवालों पर नेट इस्तेमाल करने वालों का निजी ब्यौरा उपलब्ध कराने का दबाव बना रही है। गूगल का भी कहना है कि सन 2011 में पिछले छह महीनों की तुलना में जुलाई से दिसंबर के बीच भारत सरकार द्वारा सामग्री हटाये जाने संबंधी गुजारिश में 49 फीसद का इजाफा हुआ था। (देखें समयांतर का जुलाई, 2012 का संपादकीय: 'क्या इंटरनेट एक लोकतांत्रिक माध्यम के रूप में बच पाएगा?') साफ है कि सरकार सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के बहाने राजनीतिक सेंसरशिप लागू करना चाहती है। पिछले साल न्यूयॉर्क इंडिया इंक ब्लॉग में एक खबर थी कि संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने बड़ी सोशल मीडिया कंपनीयों के प्रतिनिधियों की एक बैठक बुला कर उन्हें फेसबुक पर देश के एक राजनेता (मनमोहन सिंह) पर बने कार्टून दिखाए और उनसे अपनी-अपनी साईट्स पर छपने वाली सामग्री को पूर्व में सेंसर करने का प्रस्ताव रखा था। पिछले साल ही द हिंदू में छपी खबर के अनुसार गूगल ने बताया कि जनवरी से जून 2011 के बीच उससे 358 सामग्रियों को हटाने को कहा गया। इनमें से 255 सामग्रियां 'सरकारी आलोचना' की श्रेणी में आती थीं। हिंदू आगे लिखता है कि ' रोचक तथ्य यह है कि सामग्री के बड़े हिस्से को हटाने की गुजारिश एक कानून लागू करवाने वाली स्थानीय एजेंसी से ही आयी थी जो ऑरकुट से ऐसे 236 समुदायों और प्रोफाईल्स को हटवाना चाहती थी जो एक स्थानीय नेता की आलोचना से भरे थे। ' गूगल ने इस राजनेता का नाम बताने से तो मना कर दिया लेकिन इतना जरूर कहा कि उसने गुजारिश मानने से मना कर दी क्योंकि सामग्री हमारे सामुदायिक स्तर या स्थानीत कानून का उल्लघं नहीं करती थी। कपिल सिब्बल के इस कदम की व्यापक आलोचना हुई। मंत्री जी सामग्री के पूर्व सेंसर के प्रस्ताव वाली बात से मुकर गए और पत्रकारों को देवी-देवताओं के चित्रों वाले फेसबुक के पेज दिखा कहने लगे वे तो इस सामग्री को हटाने की बात कर रहे थे।

ऐसा ही सरकारी प्रयास अब ट्विटर पर छपने वाली सामग्री को लेकर दिखाई दे रहा है जिसके चलते राजनीतिक आलोचना के मुद्दे को समुदाय अथवा संप्रदाय विशेष के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के मुद्दे में तब्दील कर सरकार द्वारा अभिव्यक्ति के लोकतान्त्रिक अधिकार का गला घोंटने का सतत प्रयास किया जा रहा है। डर तो ये है कि आगामी दिनों में 'सार्वजनिक हित' को ढाल बना सरकारी सेंसर की गाज उन वेबसाईटों, ब्लॉगों और ट्विट्स पर ना गिरे जो सरकार की आर्थिक नीतियों से पैदा हो रही तबाही के चलते पैदा हो रहे जनांदोलनों की खबरें, लेख और वीडियो छाप रहें हैं।

Comment    See all comments

Unsubscribe or change your email settings at Manage Subscriptions.

Trouble clicking? Copy and paste this URL into your browser:
http://www.samayantar.com/restrictiing-social-media/



No comments:

Post a Comment