दोस्तों ने गिर्दा के गीत गाते दी अंतिम विदाई
जनकवि गिर्दा का पार्थिव शरीर आज पंचतत्व में विलीन हो गया. गिर्दा के गीत गाते हुए उनके मित्रों ने उन्हें विदाई दी. गिर्दा के आवास पर आज सुबह से ही उनके प्रशंसक इकट्ठा होने लगे थे. सबने एक एक कर उनके पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि के जरिए अपनी श्रद्धांजलि प्रकट की.
श्रद्धांजलि देने वालों में हिंदुस्तान के संपादक नवीन जोशी, बीबीसी के राजेश जोशी, आंदोलन के साथी शमशेर बिष्ट, पीसी तिवारी, हेमंत बिष्ट, पत्रकार दिनेश मानसेरा, राजीव लोचन शाह, नवीन बिष्ट, पदमश्री शेखर पाठक, विपिन चंद्रा, राहुल शेखावत, जहांगीर राजू, जहूर आलम, घनश्याम भट्ट, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य, बीजेपी एमएलए खडक सिंह बोरा समेत कई जनप्रतिनिधि, समाजिक संगठनों से जुड़े पदाधिकारी, ट्रेड यूनियन के नेता, प्रशासनिक अधिकारी, जज आदि शामिल थे.
: गिरदा की आवाज में सुनें फैज की एक रचना : उत्तराखंड से एक बुरी खबर आ रही है. रंगकर्मी, सोशल एक्टिविस्ट और जनकवि गिरीश चंद्र तिवारी उर्फ गिरदा का आज 68 साल की उम्र निधन हो गया. पेट में अल्सर की वजह से उन्हें तीन दिन पहले हल्द्वानी के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. अल्सर फट जाने और इनफेक्शन की वजह से उन्हें बचाया नहीं जा सका. हालांकि डाक्टरों ने आपरेशन कर उन्हें बचाने की भरसक कोशिश की थी.चिपको आंदोलन, उत्तराखंड अलग राज्य आंदोलन समेत कई जनांदोलनों में बेहद सक्रिय रहे इस जनकवि ने अपनी कविताओं के माध्यम से लाखों लोगों को जागरूक किया. सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अभियान चलाने में वे सदा आगे रहे. गिरदा के परिवार में उनका एक बेटा व पत्नी हैं. निधन आज सुबह दस बजे हल्द्वानी के निजी अस्पताल में हुआ.
गिरदा ने युवावस्था से ही उत्तराखंड की पीड़ा को अपनी कविताओं में उकेरना प्रारंभ कर दिया था. 1974 का वन बचाओ आंदोलन हो या 1984 का नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन या 1994 का निर्णायक उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आंदोलन, सभी में गिरदा ने अपनी कविताओं के जरिए जनजागरण किया. गिरदा अपनी कविताओं से जनसमस्याओं के समाधान के लिए बने शासन-प्रशासन के तंत्र पर तीखे तंज भी कसते रहे हैं. उत्तराखंड की कोई भी समस्या हो, कोई भी आंदोलन हो, कोई भी पीड़ा हो, गिरदा अपनी कविता के माध्यम से सब जगह उपस्थित रहे. उम्र अधिक हो जाने के बावजूद भी उनकी कलम नहीं रुकी.
गिरीश चंद्र तिवारी गिरदा का जन्म 1945 में ज्योली हवालबाग में श्री हंसादत्त तिवाडी तथा श्रीमती जीवन्ती तिवाडी के घर पर हुआ. छठें दशक में पीलीभीत में पीडब्ल्यूडी में नौकरी के दौरान गिरदा का संपर्क कवि सम्मेलनों के माध्यम से अनेक हस्तियों से हुआ. 28 नवंबर 1967 को वह गीत एवं नाट्य प्रभाग से जुड़े. 1977 में भारतेंदु हरिश्चंद्र का 'अंधायुग' नाटक निर्देशित किया. गिरदा द्वारा लिखित नाटक 'नगाड़े खामोश हैं' काफी चर्चित है.
1978 में गिरदा की सामाजिक कविताओं का संकलन 'हमारी कविता के आंखर' नाम से प्रकाशित हुआ. 1999 में दुर्गेश पंत के साथ गिरदा ने शिखरों के स्वर नामक कविता संग्रह संपादित किया. प्रसिद्ध वीरगाथा गायक झुसिया दमाई पर गिरदा ने 400 पेज का एक शोध तैयार किया. इसमें बताया गया कि तीजन बाई की पण्डवानी और झुसिया दमाई की वीरगाथाओं में काफी समानताएं हैं. गिरदा को उत्तराखंडी प्रवासियों के संगठन यूएएनए द्वारा अमेरिका बुलाकर सम्मानित किया गया.
गिरदा की आवाज में फैज की रचना ''हम मेहनतकश जगवालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे, एक खेत नहीं एक देश नहीं हम सारी दुनिया मांगेंगे...'' को सुनने के लिए क्लिक करें... काकेश की कतरनें
गिरीश तिवारी गिरदा के क्रांतिकारी संबोधन, विचारों व कुछ गीतों को आप इन वीडियो पर क्लिक करके देख सुन सकते हैं...
written by Bhaskar Upreti, August 26, 2010
written by v}Sr cgqxq.kk] ikSM|h, August 26, 2010
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written by anurag dwary, August 23, 2010
अभी तो दोस्ती हुई थी .... आपने वायदा किया था ... अगली बार आपके साथ घंटों बैठने का वक्त भी दिया था ...
आप ताउम्र किसी से नहीं हारा ... फिर अल्सर की क्या बिसात थी ...
क्या लिखूं ... लिखते भी नहीं बन रहा ...
बस आपकी लाइनें याद आ रही हैं ... फिर आई बरखा ऋतु लाई ... नव जीवन जल धार ...
written by narayan pargain, August 23, 2010
written by charu tiwari, August 22, 2010
हम ओड, बारूड़ी, कुलि, कबाड़ी,
जब य दुनि हं हिसाब ल्यूलो,
एक हांग निं मांगू, पफांग नि मांगू,
खाता-खतौनी क हिसाब ल्यूलो।
..............................................
मेरी हाड~नकि बनि छू य कुर्सी,
जेमज भैबैर कर छां तुम राज,
कैकि बाबूकि निहुनि य कुर्सी,
तुमरि मैवाद छु पांचे साल
...............................................
कस होलो उत्तराखंड, कस हमार नेता,
कस होलो पधान गौंक, कसि हलि व्यवस्था,
जड़ि-कंजड़ि उखेलि सबुकि, पिफर पफैसाल करूल,
उत्तराखंड ल्यल, उकड़ि मन कस बनूलो।
written by arun sharma, August 22, 2010
written by विजय वर्धन उप्रेती, August 22, 2010
विजय वर्धन उप्रेती
अध्यक्षए हिमालयन जर्नलिस्ट एसोसिएशनए पिथौरागढए उत्तराखण्ड
written by ravishankar vedoriya 9685229651, August 22, 2010
written by sanjay, August 22, 2010
Hari Om
'सेल' के पूर्व चेयरमैन की किताब से खुले कई राज | |
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Palash Biswas
Pl Read:
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