गु, 01/27/2011 - 12:27 |
अनुरंजन झा को 'मेरी दिल्ली' अवार्ड |
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'सीएनईबी' के सीओओ अनुरंजन झा को 'मेरी दिल्ली' अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा। एन.एन.एस मीडिया ग्रुप द्वारा हर वर्ष दिया जाने वाला यह पुरस्कार समाज के विभिन्न क्षेत्र से जुड़े लोगों को उनके बेहतरीन योगदान के लिए दिया जाता है। 8वें 'मेरी दिल्ली' अवार्ड 2010 में मीडिया क्षेत्र से इस बार झा का चयन हुआ है। दिल्ली में 5 फरवरी को आयोजित एक समारोह में विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को सम्मानित किया जाएगा। आगे पढ़ें |
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'हिन्दुस्तान' का हापुड़ संस्करण लॉन्च |
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हिन्दी दैनिक 'हिन्दुस्तान' ने उत्तर प्रदेश में 24 जनवरी, 2011 को हापुड़ संस्करण लॉन्च किया है। इस संस्करण में स्थानीय खबरों के लिए कुल आठ पृष्ठ समर्पित किए गए हैं। इससे पहले 'हिन्दुस्तान' ने गाजियाबाद, नोएडा, गुड़गांव और फरीदाबाद संस्करण लॉन्च किया था जिसमें स्थानीय खबरों को प्रमुखता दी गई थी। 'हिन्दुस्तान' के मुख्य संपादक, शशि शेखर ने इस अवसर पर कहा, "अपने शहर में क्या घटना घट रही है इसके प्रति पाठक ज्यादा रुचि लेते हैं। इन क्षेत्रों में अति स्थानीय संस्करण की जरूरत है और मेरा मानना है कि ये संस्करण स्थानीय जरूरतों को पूरा कर रहे हैं।" आगे पढ़ें |
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'बीबीसी रेडियो' की हिन्दी सेवा बन्द होगी |
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'बीबीसी' से एक बुरी खबर आ रही है। खबर यह है कि 'बीबीसी' ने विश्व की पांच भाषाओं की सेवा को बंद करने का फैसला किया है। इतना ही नहीं, इसके अलावा वह अपनी हिंदी रेडियो सेवा भी बंद करने जा रही है। 'बीबीसी' ने यह कदम कॉस्ट कटिंग की कोशिशों के तहत उठाया है। इस निर्णय से 'बीबीसी' में कार्यरत लगभग 650 लोगों का जीवन प्रभावित होगा क्योंकि इन लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ेगा। 'बीबीसी' के लिए यह दिन 'काला दिन' से कम नहीं है। आगे पढ़ें |
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विशेष खबरें |
मीडिया ग्लैमर नहीं जिम्मेदारी है: शशि शेखर 1950 से अब तक मीडिया में बहुत बदलाव हुआ है। टेक्नोलॉजी ने बहुत बदल दिया है। उस समय जिन मशीनों पर काम होता था उसमें बहुत श्रम लगता था। अब कंप्यूटर ने बहुत कुछ बदल दिया है और क्वालिटी में भी अंतर आया है। मेरा मानना है कि अब मीडिया पहले से बेहतर काम कर रही है। वैश्विक परिदृश्य में मीडिया में भी कई तरह का बदलाव आया है। मीडिया में विदेशी पूंजी निवेश हो रहा है। पूंजी के प्रभाव से अब पत्रकारों को पहले से बेहतर पैसे और सुविधाएं मिल रहीं है। लेकिन इस पूंजी ने कुछ प्रश्न भी खड़े किए हैं। |
मीडिया की जिम्मेदारी भी बढ़ी है: श्रवण गर्ग मीडिया में काफी बदलाव आया है और यह गणतंत्र के साथ परिपक्व हुआ है। इस दौरान, एक ओर गणतंत्र के साथ मीडिया काफी मजबूत हुआ है तो वहीं दूसरी ओर गणतंत्र में जो कमजोरियां प्रकट हुईं वह मीडिया में भी आईं है। मीडिया में जिस तेजी से विस्तार हुआ है उस तेजी से इसमें प्रोफेशनल लोगों की आपूर्ति नही हो पाई है और दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी वाले देश के लिए यह चिंताजनक पहलू है। समय के साथ, मीडिया की जिम्मेदारी भी बढ़ी है और यह ताकतवर भी हुआ है। तमाम कमियों के बावजूद मीडिया बहुत ईमानदारी से काम कर रहा है। |
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अगर ख़बर का असर नहीं है तो मीडिया की कोई प्रासंगिकता नहीं: सतीश के सिंह लोकतंत्र के जो अंग हैं उसमें मौजूदा समय में मीडिया की भूमिका अहम हो गई है। समय-समय पर बदलाव आते रहते हैं और जब लोकतंत्र की कोई एक संस्था शिथिल पड़ने लगती है तो दूसरे से उम्मीद जग जाती है। टेक्नोलॉजी, कम्युनिकेशंस और बदलाव की वजह से मीडिया का दायरा बढ़ गया है, इसकी गूंज हो गई है। जाहिर तौर पर इससे लोगों की उम्मीदें भी बढ़ गई हैं। शायद मीडिया का इतना महत्व, प्रभाव, उम्मीद और भूमिका पहले कभी नहीं रहा है। हां, आजादी के बाद एक-दो बार इस तरह की भूमिका में मीडिया जरूर आई। |
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मीडिया आज भी आम सरोकारों की बात करता है: पंकज पचौरी 1950 में मीडिया कुछ छोटे पत्र-पत्रिकाओं और पुराने घरानों 'टाइम्स ऑफ इंडिया', 'हिन्दुस्तान' तथा 'इंडियन एक्सप्रेस' तक सीमित था। अब भारत में मीडिया एक पूरा उद्योग बन गया है। कुल 37 कंपनियां शेयर बाजार में सूचीबद्ध हैं और इनकी कुल कीमत 70 हजार करोड़ से ज्यादा है। दुनिया की सभी बड़ी कंपनियां भारतीय मीडिया में पैसा निवेश कर रहीं है चाहे टीवी में, चाहे प्रिंट में हो। यह देश के लिए अच्छा है। इससे मीडिया जगत में प्रतिद्वंदिता और प्रोफेशनलिज्म बढ़ा है। |
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अखबार के आकार-प्रकार, चरित्र, उद्देश्यों और प्रसार में बहुत व्यापक परिवर्तन हुये हैं: राहुल देव जिसको हम याद करते है उस पत्रकारिता का उद्देश्य देश को आजाद करना था और उसके लिए माहौल बनाना था. लोक जागरण, स्वाधीनता के लिए संघर्ष और विदेशी शासकों से लड़ने और सजा पाने का जोखिम उठाकर लोगों को आजादी की लड़ाई के लिए तैयार करना ही अखबारों का उद्देश्य था। हालांकि उस समय भी शायद ऐसे अखबार थे, जो इन आदर्शों से प्रेरित नहीं थे और कुछ तो सीधे अंग्रेज शासको के पक्ष में लिखने वाले थे। |
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मीडिया के आकार में बढ़ोतरी से गुणवता में गिरावट आई है: सुधीर चौधरी 'लाइव इंडिया' के सीईओ और एडिटर-इन-चीफ सुधीर चौधरी ने पत्रकारिता में आये बदलावों पर चर्चा करते हुए बताया कि लोगों की पहले की अपेक्षा अब खबरों में रुचि बढ़ी है। और उनके पास खबरें देखने और पढ़ने के कई ऑप्शन भी मिल गये हैं। अब देखें तो खबरों के कई माध्यम मौजूद हैं जैसे टीवी, डिजिटल, रेडियो और प्रिंट जिससे लोगों को पल-पल की खबरें मिलती रहती हैं। मीडिया में क्रांति सी आ गई है। और हर तरह की अलग-अलग कैटेगरी के चैनल हैं, अखबार हैं। आज के समय में मीडिया का स्पेशलाइजेशन हो गया है। |
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विश्वसनीयता बनाए रखना आज मीडिया के लिए बड़ी चुनौती है: एन. के. सिंह 1950 से लेकर अब तक मीडिया में काफी बदलाव आया है। पहले तो प्रिंट मीडिया ही हुआ करता था। उस दौर में कंपोजिंग बहुत मुश्किल हुआ करती थी। पहले हैंड कंपोजिंग हुआ करती थी फिर मोनो कंपोजिंग और लाइनो कंपोजिंग आई। जाहिर तौर पर इस दौरान टेक्नोलॉजी बढ़ी और फोटो कंपोजिंग आई और यह बदलाव अभी भी जारी है। गैर संपादकीय कामों में भी काफी बदलाव आया और अब तो प्रूफ रीडिंग की अलग से परंपरा ही खत्म हो गई। एडिटोरियल करेक्टर भी बदला है। आजादी के बाद कई तरह के बदलाव आए। |
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मीडिया ने कई ऐसे मुद्दे उठाये हैं जिससे जजमेन्ट भी बदला है: निशिकांत ठाकुर आजादी से पहले की पत्रकारिता विदेशियों को भगाने के लिए की गयी थी इसमें महात्मा गांधी सहित तमाम बड़े लोग जुड़े। आज की पत्रकारिता से देश के वातावरण को स्वच्छ बनाने का प्रयास किया जा रहा है। पहले भी पत्रकारिता में समाज के अच्छे लोग आते थे और आज भी पत्रकारिता में समाज के अच्छे लोग आ रहे हैं। पहले के मुकाबले प्रिन्ट, इलेक्ट्रॉनिक और अब डिजिटल और मजबूत हुई है। |
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आज की मीडिया आम लोगों की मीडिया है: सुप्रिय प्रसाद बीएजी फिल्म्स के 'न्यूज़24' के न्यूज़ डायरेक्टर, सुप्रिय प्रसाद ने गणतंत्र दिवस पर अपने विचार समाचार4मीडिया के सामने रखते हुए बताया कि भारतीय पत्रकारिता में पहले की अपेक्षा बहुत सारे बदलाव आये हैं और टीवी आने पर इन बदलावों में काफी बढ़ोतरी हुई है। क्योंकि अब ख़बरें 24 घंटे दिखानी होती हैं तो ख़बरों के सलेक्शन में काफी दिक्कत होती हैं। वर्तमान में दिनों-दिन समय के अनुसार बदलाव हो रहे हैं। अब माध्यम भी कई आ गये हैं। जिससे भी कई असर पड़ने लगे हैं। इंटरनेट के आने से खबरों को सीधा-सीधा लोगों से जोड़कर देखे जाने लगा है। |
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आज की पत्रकारिता को देश, समाज और जनता के सरोकारों से जुड़ने की जरुरत है: उर्मिलेश उर्मिल आजादी से पहले भारत में जो पत्रकारिता थी वो एक मिशन से प्रेरित थी देश आजाद कैसे हो, कैसे अपने लोगों का राज आये भारतीय स्वतंत्रता आदोलन में विभिन्न धारायें रही हैं और उनकी विचार धारात्मक पृष्ठभूमि भी उसकी अभिव्यक्ति हर तरह के रचनात्मक लेखन और पत्रकारिता में भी दिखायी पड़ी। गणेश शंकर विद्यार्थी, पं. नेहरू, महात्मा गांधी जैसे बडे नेताओं का लेखन भी आजाद और खुशहाल भारत के सपने से प्रेरित था। रामवृक्ष बेनीपुरी, राहुल सांस्कृत्यायन सहित प्रेमचंद की रचनायें कथा-साहित्य और नोबल में समाज के विभिन्न पहलू झलकते थे। |
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पटरी से उतर गई है खबरपालिका- वेद प्रताप वैदिक आजादी के पहले की पत्रकारिता व्रत थी, अब वह वृत्ति है, प्रोफेशन है। जैसे और काम-धंधे होते हैं, वैसे ही पत्रकारिता हो गई है। इसीलिए पत्रकारिता अब प्रोफेशन है, मिशन नहीं। इसीलिए जब आप पत्रकारों को दलाली करते हुये, ब्लैकमेल करते हुये और पत्रकारिता की आड़ में दूसरे धंधे करते हुये पाते हैं, तो दुख जरूर होता है लेकिन आश्चर्य नहीं होता क्योंकि पूरा देश इसी राह पर चल रहा है। |
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आज भी पत्रकारिता में अच्छे लोग ज्यादा हैं: संतोष भारतीय आजादी के पहले की पत्रकारिता में भी दो धाराये थीं, कुछ लोग आजादी की लड़ाई का समर्थन करते थे लेकिन पत्रकारों की एक बड़ी संख्या ऐसी भी थी जो वायसराय और दूसरे अंग्रेज बहादुर के यहां चाय पीने में अपनी इज्जत समझते थे। आज भी पत्रकारिता में ऐसी ही दो धारायें चल रही हैं। एक ईमानदार पत्रकारों का वर्ग है जो लिखने में ईमानदारी बरतता है और अपने विषय की पकड़ भी रखता है। जनता के लिए मार्गदर्शक भी बनता है। |
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सरोकार की पत्रकारिता अब भी जीवित है: किशोर मालवीय 1950 से अब तक मीडिया में काफी बदलाव हुए हैं। यह बदलाव कंटेंट और तकनीक दोनों में हुए है। तकनीक ने मीडिया को काफी एडवांस बनाया है लेकिन कंटेंट पर काफी हद तक बाजार हावी होता चला गया। लोगों को लगता है कि पहले पत्रकारिता आम सरोकार के ज्यादा करीब थी और अब उससे दूर होती नजर आ रही है। बाजार के असर के कारण ऐसा लगता है लेकिन सरोकार की पत्रकारिता अब भी जीवित है भले ही इसका प्रतिशत कम हो। |
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पत्रकारिता आज मिशन से उद्योग में परिर्वतित हो गयी है: उमेश त्रिवेदी आजादी से पहले की पत्रकारिता का एक ध्येय था, देश की आजादी। उससे जुड़े भाव इस बात का अहसास कराते थे कि हम हमारी सोच, हमारी विचार धारा, हमारा लेखन उसके इर्द-गिद घूमता था और वह जो पत्रकारिता का समय था वह बाद के कुछ सालों तक बना रहा और पत्रकारिता वाला मिशन रूप-स्वरूप डेढ़ दशक तक रहा। समाज को ध्यान मे रखकर पत्रकारिता होती रही लेकिन धीरे-धीरे निहित स्वार्थों ने इसमें अपनी जगह बनाना शुरू कर दिया और पूंजी का वर्चस्व कायम होने लगा एवं पत्रकारिता आज मिशन से उद्योग में परिर्वतित हो गयी है। |
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आज पत्रकारिता अपने उद्देश्य से भटक गयी है: प्रो.निशीथ राय आजादी की पहले की जो पत्रकारिता थी उसका एक मिशन था, एक क्लियर विजन था, देश को आजाद करना है कहीं भी कोई कॉमर्शियल उद्देश्य नही था लेकिन अब आजादी के बाद की पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य समाज सेवा के स्थान पर व्यवसाय परक हुआ है आज पत्रकारिता अन्य व्यवसाय की तरह एक प्रोडक्ट हो गया है और उसको लाभकारी व्यवसाय बनाने के लिए तरह-तरह के अनैतिक कार्य भी किये जाने लगे हैं। |
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यह मौका आत्म मंथन का है: शीतल राजपूत 'ज़ी न्यूज़' मुझे लगता है कि संविधान में बदलाव के बारे में सोचने से ज्यादा यह मौका आत्म मंथन का है कि हमने कितनी शिद्दत से कोशिश की है उन मूल्यों, उन हकों और उन जिम्मेदारियों को निभाने की जो हमारे इस महान गणतंत्र का आधार है। |
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