प्रधानमंत्री का किया धरा गुड़ गोबर। फिर ओड़ीशा में लटक गया पास्को!
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
प्रधान मंत्री के दक्षिण कोरिया में किया धरा गुड़गोबर हो गया। वहां पास्को के बारे में किये वायदे के विपरीत पास्को की 12 अरब डॉलर की ओड़ीशा परियोजना एक बार फिर ग्रीन ट्रिब्युनल के पर्यावरण लाल झंडी दिखा देने से अधर में लटक गयी है।पर्यावरण संबंधी राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल ने कहा है कि पॉस्को मेगा इस्पात परियोजना को जनवरी 2011 में दी गई पर्यावरण संबंधी मंजूरी, पर्यावरण मंत्रालय द्वारा इसकी फिर से समीक्षा किये जाने तक स्थगित रहेगी। जब कोल इंडिया पर लगाम कसने के लिए पीएमओ की भूमिका अहम मानी जा रही हो और वित्तमंत्री उद्योग जगत और निवेशकों को आश्वस्त करने के लिए तरह तरह के करतब कर रहे हों, ऐसे में बाजार के लिए इससे बुरी खबर नहीं हो सकती। पर पास्को परियोजना में आदिवासियों के हक हकूक के लिए लड़ रहे लोगों के लिए यह राहत की बात जरूर है।हरित न्यायाधिकरण ने जनवरी 2011 में पर्यावरण मंत्रालय को पोस्को को दी गई अनुमति की समीक्षा करने का आदेश दिया था। बहरहाल पर्यावरण मंत्रालय से जयराम रमेश की छूट्टी के बावजूद पास्को की समस्याएं कम होती नहीं दीख रही। गौरतलब है कि भारत ने दक्षिण कोरिया को आश्वस्त किया है कि वह ओडिशा में 52,000 करोड़ रुपये के पास्को प्रोजेक्ट को लेकर आगे बढ़ने का इच्छुक है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यहां दक्षिण कोरिया के शीर्ष मुख्य कार्यपालन अधिकारियों (सीईओ) से भारत के प्रति भरोसा बनाए रखने की अपील की है। तय था कि पॉस्को स्टील प्लांट पर प्रधानमंत्री के स्पष्टीकरण को कोरियाई कंपनियां गंभीरता से लेंगी। ऐसा हुआ भी है। वैसे भी, उड़ीसा में लगने वाली पॉस्को मेगा स्टील प्लांट भारत में यह अब तक का सबसे बड़ा विदेशी पूंजी निवेश है। यह पूंजी लगभग साठ हजार करोड़ रुपये की है। हालांकि अब भी यह परियोजना भूमि अधिग्रहण की पेचीदगियों में फंसी है।प्रधानमंत्री ने अपने दौरे में बार-बार दक्षिण कोरियाई निवेश के महत्व को रेखांकित किया और भारत में एलजी, सैमसंग, हूंडाई आदि ब्रांडों की लोकप्रियता की चर्चा भी की। प्रधानमंत्री परमाणु सामग्रियों की सुरक्षा पर आयोजित शिखर वार्ता में शामिल होने के लिए दक्षिण कोरिया गए थे।
पर्यावरण संरक्षण की वैश्विक मुहिम के नजरिये से यह फैसला तात्पर्यपूर्ण है।पास्को और वेदांत के खिलाफ देशबर के पर्यावरण प्रेमी और जन ांदोलनों से जुड़े लोग बरसों से आंदोलन कर रहे है। मालूम हो कि आज रात पूरी दुनिया में एक साथ अंधेरा छा जाएगा। शाम 8.30 से 9.30 तक अर्थ ऑवर मनाया जाएगा। संयुक्त राष्ट्र शनिवार को बत्तियां बुझाकर पर्यावरण संरक्षण की वैश्विक मुहिम अर्थ ऑवर में शामिल होगा। संयुक्त राष्ट्र न्यू यॉर्क स्थित मुख्यालय की बत्तियां बुझाकर वैश्विक मुहिम का हिस्सा बनेगा।पर्यावरण संरक्षण में लगे संगठन वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) द्वारा अर्थ ऑवर की शुरुआत 2007 में ऑस्ट्रेलिया में की गई थी। संस्था ने पूरे विश्व में लोगों से स्थानीय समय के अनुसार रात में 8.30 बजे से एक घंटे तक बत्तियां बुझाने का आह्वान किया था।
नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने दक्षिण कोरियाई कम्पनी पॉस्को के ओडिशा में प्रस्तावित इस्पात संयंत्र को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से मिली मंजूरी शुक्रवार को रद्द कर दी। ट्राइब्यूनल ने इस संयंत्र को मंजूरी देने के पर्यावरण मंत्रालय के तरीके की आलोचना भी की है। प्रफुल्ल सामंत्रे की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सीवी रामुलु और देवेंद्र कुमार अग्रवाल की पीठ ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से कहा कि वह पिछले साल जनवरी में इस संयंत्र को दी गई मंजूरी की समीक्षा करे। मंत्रालय ने पिछले साल पोस्को परियोजना को मंजूरी थी. इस स्टील प्लांट के बनने के बाद प्रतिवर्ष 4 मीलियन मीट्रिक टन स्टील का उत्पादन हो सकेगा. सरकार ने कंपनी को 400 मेगावाट पावर प्लांट बनाने के लिए भी मंजूरी दी थी।कोरिया की दिग्गज स्टील कंपनी पोस्को ने कुछ दिनों पहले दावा किया था कि पारादीप में बनने जा रहे इसके प्लांट में हो रही देरी के चलते इसकी लागत में 20 फीसदी के करीब की बढ़ोतरी हो सकती है।बहरहाल कंपनी के अधिकारियों ने बताया कि न्यायाधिकरण ने 2007 में पोस्को को दी गई अनुमति रद्द नहीं की है बल्कि 2011 में तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश द्वारा दी गई सशर्त अनुमति पर रोक लगाई गई है।
पोस्को उड़ीसा के जगतसिंहपुर जिले में स्थित पारादीप के निकट यह प्लांट लगा रही है। 1.2 करोड़ टन सालाना क्षमता वाले इस प्लांट के लिए कंपनी ने पहले 52,000 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान व्यक्त किया था।
आदेश में कहा गया, "जब तक मंत्रालय समीक्षा नहीं कर लेता तब तक परियोजना को 31 जनवरी 2011 को मिली पर्यावरण मंजूरी स्थगित रहेगी।"
ट्रिब्यूनल के मुताबिक राज्य सरकार तथा पॉस्को के बीच सहमति ज्ञापन के मुताबिक यह परियोजना इस्पात के 12 मिलियन टन सलाना (एमटीपीए) उत्पादन के लिए है, लेकिन पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए) रिपोर्ट सिर्फ पहले चरण के चार एमटीपीए इस्पात उत्पादन के लिए तैयार किया गया है।
आदेश में कहा गया, "ईआईए को शुरू से इसकी सम्पूर्ण क्षमता तक मूल्यांकन करना चाहिए।"
आदेश में यह भी कहा गया कि पॉस्को को कटक शहर के लिए निर्धारित पेय जल संसाधन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और पानी का अपना स्रोत ढूंढना चाहिए।
पॉस्को को अपनी परियोजना के लिए 4,004 एकड़ भूमि चाहिए। निर्धारित भूखंड का अधिकांश हिस्सा सरकारी क्षेत्र का है और कुल भूमि में से 2,900 एकड़ वन भूमि है।
गांव के लोग परियोजना का विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि इससे उनकी पान की खेती उजड़ जाएगी।
कम्पनी और राज्य सरकार का हालांकि कहना है कि परियोजना से क्षेत्र में समृद्धि आएगी और लोगों को रोजगार मिलेगा।
इससे पहले पिछले साल पर्यावरण मंत्रालय ने ओड़िशा सरकार को ओड़ीशा के जगतसिंहपुर जिले में पारादीप के निकट बावन हजार करोड रूपए की पास्को इस्पात परियोजना के लिए एक हजार २५३ हैक्टेयर वन भूमि देने की अंतिम मंजूरी दे दी थी।मंत्रालय ने गोबिन्दपुर गांव की विवादित जमीन इस्पात कंपनी को देने के लिए राज्य सरकार को मंजूरी दे दी।पास्को इंडिया ने २२ जून, २००५ को ओडिशा सरकार के साथ पांच वर्ष के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये थे।
नक्सलियों ने उन सभी विस्थापन विरोधी नेताओं को भी रिहा करने की मांग की है, जिन्हें पास्को और वेदांता जैसी विभिन्न औद्योगिक परियोजनाओं के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए गिरफ्तार किया गया है। मालूम हो कि राज्य के आधे से अधिक, 30 जिलों में नक्सली सक्रिय हैं, और कंधमाल जिला नक्सलियों का गढ़ माना जाता है।
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