अब बुद्धदेव भी माकपा नेतृत्व पर बरसे
केंद्र के खिलाफ जिहाद की नेता ममता और स्थानीय, राज्य स्तरीय मुद्दों को लेकर आंदोलन की वामपंथियों की आदत ही नहीं
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
बंगाल में वाम पंथियों के आंदोलन की एक ही दिशा रही है,केंद्र के खिलाफ सर्वात्मक आंदोलन की दिशा। वाम शासन के 35 सालों में जाने अनजाने बंगाल,केरल और त्रिपुरा की सरकारें बचाने की कवायद में जनांदोलनों से परहेज करते रहनो को अभ्यस्त हो गये हैं वामपंथी। सत्ता दल बतौर केंद्र की वंचना वामपंथियों का प्रिय मुद्दा रहा है और कर्मचारी,छात्र, महिला,युवा, किसान संगठन केंद्र के खिलाफ ही सड़कों पर उतरते रहे हैं। राज्य स्तर की और स्थानीय समस्याओं को वामपंथियों ने कभी तरजीह ही नही दी। साम्राज्यवाद सामंतवाद विरोधी प्रदर्शनों तक सीमित रह गया वामपंथी आंदोलन।खुद वामपंथी इस देश में जनांदोलन की विरासत से बेदखल होने के जिम्मेदार हैं और कोई नहीं। आज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की जो अजेय साख और छवि बनी है,लगातार दो दशक तक हर मुद्दे को लेकर उनके सिलसिलेवार आंदोलनों की पृष्ठभूमि है उसके पीछे। बंगाल और देशभर में भूमिआंदोलन की प्राचीन वामपंथी विरासत को अपनाने के कारण लोग उन्हें ही असली वामपंथी मानने लगे हैं। अब केंद्र विरोधी आंदोलन में जब दीदी लगातार आक्रामक होती जा रही हैं, विडंबना यह है कि इसके विपरीत वामपंथी बंगाल में सत्तासमीकरण के मद्देनजर फिर कांग्रेस के साथ गठजोड़ के फिराक में ज्वलंत मुद्दों पर बयानबाजी के अलावा किसी भी स्तर पर आंदोलन में नहीं हैं वामपंथी।
नेता नहीं हैं, नेतृत्व परिवर्तन कैसा
नेता एक दिन में बनता नहीं है। वामपंथी तमाम बुजुर्ग और दिवंगत नेता ममता बनर्जी से भी धारदार आंदोलनों की आग में झुलसकर तैयार हुआ। आंदोलन की आदत छूट जाने से परवर्ती पीढ़ियों में नेतृत्व की कोई लाइन ही नहीं बनी।अब वामपंथी तमाम नेता नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहे हैं।
माकपा में ज्यादा खलबली
रज्जाक अली मोल्ला ने चेहरे बदलने दलने की मांग की तो पुराने घिसे पिटे चेहरों की ही नुमाइश शुरु हो गयी। नेताओं को कबाड़खाने से निकालकर झाड़ पोंछकर नेतृत्व के लिए पेश करके सांगठनिक कवायद शुरु हो गयी। लेकिन ममता के मुकाबले जुझारु जननेता खोजने की माकपाइयों की बेसब्र तलाश इसीलिए पूरी हो ही नहीं रही है। जुझारु नेता बाजार में नहीं मिलते। लगभग चार दशक से नेता बनाने के वामपंथी कारखाने में तालाबंदी है।जब नेता हैं ही नहीं तो नेतृत्व परिवर्तन कैसा।बाकी वामपंथी दलों के मुकाबले माकपा ही खोये हुए जनाधार वापस हो न हो,सत्ता में वापसी के लिए बेचैन है। बिना संघर्ष का रास्ता अख्तियार किये माकपाई शार्ट कट से फिर सत्ता में लौटने की जुगत में पुरानी बेड पार्टनर कांग्रेस से प्रेम की पींगे बढ़ा रही हैं।
बुद्धदेव भी नेतृत्व के आलोचक
रज्जाक अली मोल्ला और बहिस्कृत नेता सोमनाथ चटर्जी के बाद पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य भी अब खुलकर नेतृत्व की आलोचना करने लगे हैं। फेल माकपाई सांगठनिक कवायद कवायद के दौरान चर्चा गर्म रही कि बुद्धदेव विमान बोस को राज्य सचिव के पद से हटाकर गौतम देव को उनकी कुर्सी पर बैठाना चाहते हैं। कोलकाता में पिछले रविवार को प्रमोद दासगुप्त भवन में पार्टी की बंद दरवाजा बैठक में विमान बोस की मौजूदगी में बुद्धदेव ने नेतृत्व की कड़ी आलोचना यह कहकर की कि ढेरों ज्वलंत मुद्दे गर्म होने के बावजूद पार्टी नेतृत्व आंदोलन छेड़ने में नाकाम है।पार्टी संगठन की भी उन्होंने जमकर खिंचाई की।बंगाल में निरंकुस आतंक राज के खिलाफ वे तुरंत जंगी आंदोलन चाहते हैं और शिकायत करे रहे हैं कि पार्टी संगठन आंदोलन चलाने काबिल ही नहीं है।राज्य कर्मचारियों के मंहगाई भत्ता का अड़तीस फीसद बकाया है लेकिन कर्मचारी संगठन खामोश हैं,ऐसी उनकी शिकायत है।उन्होंने गरीबों और असंगठित जनता के मधय जाकर छोटे छोटे आंदोलन तेज करने की फौरी जरुरत भी बतायी।
वोट बायकाट की आलोचना
बंगाल माकपा नेतृत्व पालिका चुनाव के दौरान बर्दमान और चाकदह में अपने सारे उम्मीदवार वापस ले लेने के लिए कटघरे में है।मुकाबले के बजाय कायराने ढंग से ममता बनर्जी के आगे आत्मसमर्पण करने की इस ऐतिहासिक भूल की दिल्ली में बैठे जड़ जमीन से अलग थलग पार्टी पोलित ब्यूरो ने भी आलोचना की है। अब पूर्व मुख्यमंत्री भी इसके लिए सीधे राज्य नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराने लगे हैं। उन्होंने कहा कि माकपा में जनता की आस्था लौटने लगी है लेकिन बिना मुकाबला मैदान छोड़कर राज्य नेतृत्व ने जनता के प्रति ही अनास्था जताकर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को एकतरफा जीत दिला दी है।नगरपालिका चुनाव में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने आठ और कांग्रेस ने दो पद जीते। जबकि वाम मोर्चा ने सिर्फ एक नगरपालिका जीती।
सोमनाथ की युक्ति को बल मिला
बुद्धदेव बाबू अपने मुख्यमंत्रित्व के दौर में परमामु संधि के मुद्दे पर केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेने के खिलाफ थे। पूरा राज्य नेतृत्व इसके खिलाफ था।बुद्धदेव खासतौर पर इसी मुद्दे पर सोमनाथ चटर्जी के बहिस्कार के सख्त खिलाफ रहे हैं। बाद में लगातार बुद्धदेव की अगुवाई में सोमनाथ को पार्टी में वापस लने की मुहिम चलती रही है।इस सिलसिले में ध्यान देने योग्य बात यह है कि बुद्ध बाबू नेतृत्व परिवर्तन के मामले में सोमनाथ के सुर में सुर मिला रहे हैं। गौरतलब है कि पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने बुधवार को कहा कि पश्चिम बंगाल में वाम दलों को नेतृत्व बदलने पर विचार करना चाहिए। उन्होंने उदारण देते हुए कहा कि टीम के खराब प्रदर्शन पर कोच को बर्खास्त कर दिया जाता है। उन्होंने कहा कि राज्य में वामपंथी राजनीति कमजोर पड़ गई है। मेरा वामदलों से आग्रह है कि सत्ता के भविष्य के लिए एक समीक्षा करें।चटर्जी ने कहा कि प्रत्येक स्तर पर जीत जनरल, कप्तान और नेता पर निर्भर करती है। मैंने खेल में देखा है कि अगर टीम अच्छा प्रदर्शन करने में असफल होती है तो कोच को जूते पड़ते हैं। कुछ ऐसा ही किए जाने की जरूरत है। मार्क्स वादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के पूर्व नेता चटर्जी राज्य में स्थानीय निकाय चुनावों में वाम मोर्चा के पिटने के एक दिन बाद यह बात कही।
सही वाम राजनीति की सबसे ज्यादा जरुरत
गौरतलब है कि साल 2008 में पार्टी से निष्कासित किए जाने से पूर्व चटर्जी कई दशकों तक माकपा के शीर्ष नेता रहे। बुधवार को एक कार्यक्रम के मौके पर मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि हितों की रक्षा के लिए हमें वास्तविक वाम राजनीति की जरूरत है। लेकिन यह राजनीति कमजोर हो गई है। उसके बाद रविवार को संयोग से बुद्धदेव भी उसी लाइन का अनुसरण करके बोले।
विमान बोस के लिए मुश्किल
समझा जा रहा था कि राज्य नेतृत्व में विमान बोस को राज्य सचिव और वाममोर्चा चेयरमैन बनाये रखने पर कमोबेस सहमति होगी। पीठ पीछे जो चल रहा था,वह अलग मुद्दा है। लेकिन विमानदा की मौजूदगी में कोई और नहीं खुद बुद्धदेव की ओर से राज्य नेतृत्व पर धुआंधार बमबारी के बाद अब इन पदों पर विमान बोस के बने रहने के औचित्य पर सवालिया निशान तो लग ही गया है बल्कि उनकी कुर्सी को लेकर छीनाझपटी हो जाने की आशंका पैदा हो गयी है।
अब दीदी दिल्ली में केंद्र के खिलाफ धरने पर बैठेंगी
केंद्र के खिलाफ जिहादी तेवर के अलावा केंद्र को चुनौती पेश करने में ममता वामपंथियों से कहीं आगे हो गयी हैं। खुदरा कारोबार में एफडीआई के खिलाफ केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेकर कांग्रेस के साथ कोई नरमी नहीं दिखा रही हैं दीदी।आर्थिक सुधारों के खिलाफ देशभर में मात्र वे ही बोल रही हैं।वाम स्वर कहीं सुनायी ही नहीं पड़ रहा है। चारा घोटाले में लालू को जल पर दीदी ने साफ कह दिया कि लालच बुरी बला है। रेल राज्यमंत्री को उन्हेंने लाइन पर लगा दिया है। वामपंथी इस मामले में भी स्टैंड लेने से पीछे रहे।तेल कीमतों में लगातार वृद्धि की दीदी लगातार विरोध कर रही हैं। पर वामपंथी आंदोलन नही कर सकें। अब रघुराजन पैनल के मुताबिक विकास इंडेक्स के आधार पर बंगाल और दूसरे राज्यों के साथ भेदभाव के खिलाफ पपेसबुकिया विरोध के बाद अब केंद्र की वंचना के खिलाप दिल्ली में धरने पर बैठेंगी दीदी। क्या करेंगे वामपंथी,लाख टकेका सवाल है।
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