कोलकाता के मुखातिब शमशुल इस्लाम
जाति व्यवस्था खत्म तो हिंदुत्व का राष्ट्रवाद भी खत्म।
हिंदू राष्ट्रवाद दरअसल बहुजनों के खिलाफ, मुसलमानों के नहीं
संघ परिवार के निशाने पर इस्लाम नहीं, बौद्धधर्म है क्योंकि गौतम बुद्ध ने ब्राह्मणयुग का अवसान ही नहीं किया बल्कि भारत में पहली और आखिरी बार समता और न्याय पर आधारित जातिविहीन वर्गविहीन समाज की स्थापना की।
पलाश विश्वास
कोलकाता में कल शाम तीन दशक बाद फिर शमशुल इस्लाम से मुलाकात हो गयी।मेरठ में हाशिमपुरा और मलियाना नरसंहार के बाद मेरठ नगरपालिका सफाई कर्मचारी यूनियन के पुराना शहर में दंगों में फूंक दिये गये निगार सिनेमा के सामने हुए विरोध प्रदर्शन में अपनी रंगकर्मी टीम के साथ हाजिर हुए थे शमशुल और आज भी हमारी जेहन में उनकी वह रंगकर्मी छवि बनी हुई थी।
एक अतिगंभीर विचारक,लेखक और शोधार्थी के बजाय वे हमारे लिए हमेशा रंगकर्मी ज्यादा रहे हैं।इन तीन दशकों में हमने उन्हें लगातार पढ़ा है।उन्होंने ही कोलकाता में आने की सूचना दी थी और हम उसी रंगकर्मी को देखने समझने मध्य कोलकाता के धर्मतल्ला के पास गणेशचंद्र एवेन्यू के सुवर्ण वनिक हाल पहुंचे थे।
भारत विभाजन मुसलमान नहीं चाहते थे,उनकी ताजा किताब पढ़ने के बाद मेरे लिए यह खास दिलचस्पी का मामला है कि वह तेजी से केसरिया हो रहे कोलकाता को कैसे संबोधित कर पाते हैं,जिसे संबोधित करने की हम रोजाना नाकाम कोशिशें करते रहते हैं।क्योंकि भारत विभाजन और स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में बंगाल में मुसलमानों को खलनायक ही समझा जाता है।यहां तक कि बंगाल से संविधान सभा में चुने गये बाबा साहेब अंबेडकर के बारे में भी बंगाल की धारणा बहुत सही नहीं है।
यह बांग्ला लघु पत्रिका परिचय और समाज विज्ञान चेतना मंच का साझा आयोजन था।परिचय की तरफ से तीसरा वार्षिक संवाद।
पिछली दफा हमारे आदरणीय मित्र आनंद तेलतुंबड़े जैसे विद्वान को वक्ता बतौर आमंत्रित किया गया था और उन्होने भारत में जाति व्यवस्था के अभिशाप पर अपना व्याख्यान दिया था।
इस बार संवाद का विषय था।हिंदुत्ववादियों का विश्वासघात और स्वतंत्रता संग्राम में मुसलमानों की भूमिका।इससे पहले मध्य कोलकाता के भारत सभा हाल में रोहित वेमुला के साथियों ने जाति उन्मूलन सम्मेलन को संबोधित किया था।सुवर्ण वनिक हाल में भी अच्छी खासी संख्या में विश्वविद्यालयों के छात्र मौजूद थे।
आनंद तेलतुंबड़े लेखक जितने बढ़िया हैं,उस हिसाब से वक्ता उतने अच्छे नहीं हैं।उनका व्याख्यान अमूमन श्रोताओं के सर के ऊपर से गुजर जाता है।खासकर बहुजनों को उनकी बातें कतई समझ में नहीं आती और अक्सर वे आनंद को न पढ़ते हैं और न लिखते हैं।हमारी दिलचस्प इस बात में ज्यादा थी कि शमशुल जैसा लिखते हैं,वैसा बोल भी पाते हैं या नहीं।क्योंकि विषय ऐसा था,जिसपर संवाद की कोलकाता में कोई खास परंपरा नहीं है।संवाद है तो वह बहुत ही सीमित है।
आनंद भी अकादमिक पद्धति और विधि के मुताबिक बोलते और लिखते हैं और उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिक है।शमशुल का अध्ययन और शोध अकादमिक है।विधि और पद्धति में वे भी बेजोड़ हैं।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में हिंदुओं और मुसलमानों की साझेदारी को उन्होंने गजट और सैन्य खुफिया डायरियों के प्राइमरी स्रोतों के हवाले से ग्राफिकल ब्यौरे के साथ पेश किया।इससे पहले राष्ट्र और राष्ट्रवाद के सवाल पर चर्चा उन्होंने की।राष्ट्रवाद के इतिहास के बारे में चर्चा की।
उनका मूल वक्तव्य यह था कि भारतीय स्वतंत्रतता संग्राम को राष्ट्रवादी कहना गलत है क्योंकि भारत में कभी राष्ट्रकी अवधारणा नहीं रही है।
शमसुल के मुताबिक सामंती उत्पादन व्यवस्था के अंत के साथ पूंजीवादी उत्थान के साथ समाज का वर्गीकरण हो जाने के बाद वंचित सर्वहारा जनता के दमन उत्पीड़न के लिए सत्तावर्ग द्वारा प्रतिपादित यह राष्ट्रवाद है।
इसी के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन स्थापित होने के बाद लगातार हुए किसान आदिवासी विद्रोह के सिलसिले पर उन्होंने ब्यौरेवार तथ्य देते हुए साबित किया कि ये सारे विद्रोह आम जनता के शासकों के दमन उत्पीड़न के सात साथ सत्ता वर्ग के विभिन्न तबकों के रंगबिरंगे उत्पीड़न और दमने के प्रतिरोध बतौर थे।
रंगकर्मी होने की वजह से तथ्यों को पेश करने और संवाद का तानाबाना बनाने में उन्हे कोई ज्यादा दिक्कत नहीं हुई।इसी सिलसिले में भारत में हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक के जन्म और उत्थान और हिंदू राष्ट्र और इस्लामी राष्ट्र के द्वंद्व का इतिहास रखकर उन्होने साबित किया कि हिंदू राष्ट्र या इस्लामी राष्ट्र का आम जनता से कोई सरोकार नहीं है।
शमसुळ ने साफ साफ कहा कि भारत में हिंदुत्ववादी जो कर रहे हैं,वही बांग्लादेश और पाकिस्तान में इस्लामी राष्ट्र के झंडेवरदार कर रहे हैं।उन्होंने 1857 की क्रांति के सिलसिले में देश भर में हिंदू मुस्लिम साझा प्रतिरोध और जनविद्रहो के दस्तावेजी सबूत पेश किये और उनका विश्लेषण करते हुए सामाजिक और उत्पादन संबंधों का तानाबाना और उनके विकास के बारे में बताया।
बीच में एक अंतराल के बाद हिंदुत्ववादियों के विश्वासघात के तमाम सबूत उन्होंने रख दिये बंगाल के परिदृश्य में।विवेकानंद,रवींद्रनाथ,बंकिम से लेकर राजनारायण बसु और राजा राममोहन राय की भूमिका को पोस्टमार्टम किया और स्वतंत्रता संग्राम में सावरकर और श्यामाप्रसाद की भूमिका संबंधी दस्तावेज भी पेश किये।
बंगाल में हम सारे लोग जानते हैं कि बंगाल की पहली अंतरिम सरकार कृषक प्रजा समाज पार्टी के नेता फजलुल हक की थी और चूंकि इस सरकार में उपप्रधानमंत्री श्यामाप्रसाद मुखर्जी थे,इस सरकार को श्यामा हक मंत्रिमडल भी कहते हैं।
हमारी जानकारी के मुताबिक जमींदारों के प्रतिनिधि मुखर्जी ने ही प्रजा कृषक पार्टी के बूमि सुधार एजंडा को लोगू होने नहीं दिया।जिसके फलस्वरुप बंगाल में मुसलमान प्रजाजन जो हिंदू प्रजाजनों के सात मिलकार सदियों से शासकों के खिलाफ जनविद्रोह में बराबर के हिस्सेदार थे,वे अचानक मुस्लिम लीग के समर्थक हो गये।
शमसुल ने इसके विपरीत सावरकर का लिखा पेश करते हुए साबित किया कि फजलुल हक की सरकार मुस्लिम लीग की सरकार थी जिसमें हिंदू महासभा अपने एडजंडे के मुताबिक शामिल थी जैसे हिंदू महासभा नार्थ ईस्ट फ्रंटियर में भी इसी योजना के तहत मुस्लिम लीग की सरकार में शामिल थी।
श्रोताओं की तरफ से इस सावरकर उद्धरण की सत्यता को चुनौती देने के बावजूद शमसुल यहा साबित करते रहे कि फजलुल दरअसल मुस्लिम लीग के ही प्रधानमंत्री थे और इसी सिलसिले में उन्होंने कहा कि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से निबटने की जिम्मेदारी फजलुल ने श्यामाप्रसाद मुखर्जी को दिया था,जिसके तहत मुखर्जी ने ब्रिटिश हुकूमत की मदद की थी।
इस संवाद का फोकस हिंदू राष्ट्रवाद रहा है।जिसमें शमसुल ने तमाम बुनियादी तथ्यों और स्रोतों के हवाले से साबित किया कि हिंदुत्व राष्ट्रवाद दरअसल मुसलमानों के विरोध में नहीं है जबकि उसका संगठन और आंदोलन मुसलमानों के खिलाफ घृणा अभियान है।
बाकायदा संघ परिवार के दस्तावेजों से लेकर मनुस्मृति तक का सिलसिलेवार हवाला देते हुए शमसुल ने कहा कि आजाद भारत में भारतीय संविधान के बदले संघ परिवार मनुस्मृति शासन लागू करना चाहता है और उसका हिंदुत्व एजंडा जाति व्यवस्था पर आधारित है।
जाति व्यवस्था खत्म तो हिंदुत्व का राष्ट्रवाद भी खत्म।
संघ परिवार के निशाने पर इस्लाम नहीं,बौद्धधर्म है क्योंकि गौतम बुद्ध ने ब्राह्मणयुग का अवसान ही नहीं किया बल्कि भारत में पहली और आखिरी बार समता और न्याय पर आधारित जातिविहीन वर्गविहीन समाज की स्थापना की।
संचालन कर रहे थे परिचय टीम के कनिष्क,जिन्होंने पूरे संवाद को सार संक्षेप में यथावत बांग्ला में पेश किया।बंगाल में इस तरह का प्रयोग नया है।
संवाद के दौरान शमसुल ने जनगीत भी गाये।
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