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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Monday, August 7, 2017

अमीरों को बैंक कर्ज माफ,सब्सिडी खत्म,जनता के बचत खातों में सूद में कटौती और मेहनकश जनता को सजा ए मौत! किसानों को कर्ज माफी के नाटक की आड़ में सरकारी बैंकों का कत्लेआम और अमीरों के हवाले अर्थव्यवस्था।

अमीरों को बैंक कर्ज माफ,सब्सिडी खत्म,जनता के बचत खातों में सूद में कटौती और मेहनकश जनता को सजा ए मौत!

किसानों को कर्ज माफी के नाटक की आड़ में सरकारी बैंकों का कत्लेआम और अमीरों के हवाले अर्थव्यवस्था।
पलाश विश्वास
अल्प बचत योजनाओं पर ब्याज घटा दिया गया है।भविष्य निधि का ब्याज 14 प्रतिशत से आठ प्रतिशत तक आ गया है और एक करोड़ तक के बचत खातों में जमा पर ब्याज दर घटते घटते 3.5 फर्तिशत हो गया है।बैंकिंग से आम जनता का भला इस तरह हो रहा है जबकि अमीरों को हर साल लाखों करोड़ का कर्ज माफ किया जा रहा है।

सुनहले दिनों की सरकार ने सरकारी बैंकों से अमीरो को दिया डूबा कर्ज माफ कर दिया है और इसको जायज बताने के लिए किसानों को कर्ज माफी का नाटक किया जा रहा है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने पिछले वित्तीय वर्ष में 81,683 करोड़ का डूबा हुआ कर्ज माफ कर दिया है जो वित्तीय वर्ष 2015-16 से 41 प्रतिशत अधिक है।

सब्सिडी खत्म करने का असल मकसद का पर्दाफाश हो रहा है।तो यह भी सिरे से साफ हो गया है कि आधार का मतलब आम जनता के खातों में सब्सिडी सीधे पहुंचाना नहीं है क्योंकि सब्सिडी तेजी से खत्म की जा रही है।जीएसटी और आधार की डिजिटल इंडिया खेती और कारोबार से आम जनता की बेधखली का खेल है।
बुनियादी जरुरतें और सेवाएं बाजार के हवाले करके रोजगार और नौकरिया छीनने वाली मुक्त बाजार की सत्ता के साथ देशी विदेशी कंपनियां राष्ट्रवाद और धर्म का दुरुपयोग करके एकाधिकार वर्चस्व कायम करके खेती और कारोबार से आम जनता को बेदखल कर रही है और राष्ट्रीय संसाधनों के साथ साथ देश की स्वतंत्रता और संप्रभुता भी कारपोरेट कंपनियों के हवाले कर रही है।

डिजिटल इंडिया का सच यही हैःअमीरों को बैंक कर्ज माफ,सब्सिडी खत्म और मेहनकश जनता को सजा ए मौत।

हजारों आर्थिक सुधार और धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद का मतलब अमीरों के लिए सुनहले दिन हैं।

कुछेक हजार के कर्ज के लिए थोक के भाव में किसान खुदकशी कर रहे हैं तो सब्सिडी के भुगतान की सुविधा के मद्देनजर आधार के जरिये सीधे सब्सिडी पहंचाने के मद्देनजर डिजिटल इंडिया में नागरिकों की गोपनीयता और निजता,उनकी आजादी की सरकारी निगरानी के साथ उनकी सारी जानकारी देशी विदेशी कारपोरेट कंपनियों को सौंपकर इस देश के बहुसंख्य आम लोगों की जान माल को जोखिम में डाल दिया गया है।

किसानों मजदूरों की कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है,लेकिन अमीरों को टैक्स में लाखों करोड़ की छूट देने वाली बिजनेस फ्रेंडली सरकार सरकारी बैंकों का डूबा हुआ कर्ज माफ करके सारे से सारे सरकारी बैंकों का दिवालिया निकालने की तैयारी में हैं।

निजीकरण और विनिवेश और आटोमेशन से बैंक कर्मचारी भी आईटी सेक्टर की तरह छंटनी की तलवार से जूझ रहे हैं और अब अमीरों का कर्ज माफी का सारा हिसाब उन लोगों की छंटनी और लेआफ से पूरा किया जा रहा है।

इसी बीच खबर है कि केंद्र सरकार 3-4 ग्लोबल लेवल के बड़े बैंक तैयार करने के लिए कंसॉलिडेशन (एकीकरण) के एजेंडे पर तेजी से काम कर रही है और वह सरकारी बैंकों की संख्या घटाकर करीब 12 करेगी। मध्यम अवधि में 21 सरकारी बैंकों को कंसॉलिडेट करके 10-12 बैंक बनाए जाएंगे। थ्री-टियर ढांचे के हिस्से के तहत स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के साइज के 3-4 बड़े बैंक होंगे।बैंक कर्मचारियों का क्या होने वाला है,समझ लीजिये।

जीएसटी से बाहर रखकर गैस और तेल की चहेती कंपनियों का न्यारा वारा हो रहा है और देश के सारे संसाधन उन्हीं के हवाले हैं।तो अब खिसानों की दी जाने वाली सारी सब्सिडी भी खत्म करने की तैयारी है।गरीबों को मिलने वाला किरासन तेल की सब्सिडी भी खत्म की जाने वाली है।

इस बीच सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम एचुरी ने वित्त मंत्री अरूण जेटली पर तंज कसते हुए कहा कि यदि केरल में उन्होंने छुट्टियां बिता लीं हो तो इस विषय पर टिप्पणी करें।

खबरों के मुताबिक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक फंसे की वास्तविक राशि को कम करके दिखा रहे हैं। करीब दर्जन भर सरकारी बैंक ऐसे हैं जिन्होंने अपने फंसे कर्ज की राशि रिजर्व बैंक के अनुमान की तुलना में 15 प्रतिशत तक कम बतायी है। 

हकीकत यह है कि सरकारी बैंक फंसे कर्ज की राशि को वसूलने से ज्यादा माफ कर रहे हैं। बैंकों की स्थिति के बारे में यह चौंकाने वाला तथ्य नियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की ऑडिट रिपोर्ट में सामने आया है जिसे वित्त राज्य मंत्री अजरुन राम मेघवाल ने शुक्रवार को लोकसभा में पेश किया।

कैग ने यह रिपोर्ट 'सरकारी क्षेत्र के बैंकों के पूंजीकरण' का ऑडिट करने के बाद तैयार की है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया किया गया है कि बैंक अपने बलबूते बाजार से पूंजी जुटाने में नाकाम रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को वर्ष 2018-19 तक 1,10,000 करोड़ रुपये बाजार से जुटाने का लक्ष्य दिया था। हालांकि इस लक्ष्य के मुकाबले बैंक जनवरी 2015 से मार्च 2017 के दौरान मात्र 7,726 करोड़ रुपये ही बाजार से जुटा पाए। कैग ने 2019 तक बाकी एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की पूंजी बाजार से जुटाने की बैंकों की क्षमता पर आशंका भी जतायी है।

कैग रिपोर्ट में सबसे अहम बात जो सामने आयी है, वह यह है कि सरकारी बैंक फंसे कर्ज की वसूली करने की तुलना में इसे माफ अधिक कर रहे हैं। सरकारी बैंकों ने वर्ष 2011-15 के दौरान भारी भरकम 1,47,527 करोड़ रुपये के फंसे कर्ज माफ किये जबकि सिर्फ 1,26,160 करोड़ रुपये की वसूली होनी थी।

रिपोर्ट से पता चलता है कि सरकारी बैंकों के फंसे कर्ज की राशि तीन साल में बढ़कर तीन गुना हो गयी। मार्च 2014 में बैंकों का सकल एनपीए 2.27 लाख करोड़ रुपये था जो मार्च 2017 में बढ़कर 6.83 लाख करोड़ रुपये हो गया। हालांकि इससे चौंकाने वाली बात यह है कि कई सरकारी बैंक अपनी एनपीए की वास्तविक राशि नहीं दिखा रहे हैं। सरकारी बैंक एनपीए की राशि को कम करके दिखा रहे हैं। कैग रिपोर्ट के अनुसार दर्जन भर सरकारी बैंकों ने अपना जितना एनपीए बताया, वह आरबीआइ के अनुमान से 15 प्रतिशत कम था।

कैग ने सरकार की ओर से बैंकों को दी गयी पूंजी की प्रक्रिया में भी कई तरह की खामियां उजागर की हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार बैंकों को जो पूंजी दे रही है, उसका उपयुक्त इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी निगरानी तंत्र होना चाहिए।


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