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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Wednesday, November 25, 2009

गांधी दर्शन का मौलिक सूत्र

पहला पन्ना
 

 
 बहस : बात पते की 

नक्सलवाद: समस्या बनाम आंदोलन
किसी ज़माने में मनमोहन सिंह को नक्सली बता कर गिरफ्तार करने के लिए पंजाब पुलिस बेहद सक्रिय थी. नक्सलियों पर मनमोहन सिंह को अपना साथी बताने का दबाव बनाया जा रहा था. आज वही मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री हैं और उनकी राय में नक्सलवाद देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है. नक्सलवाद को समस्या और आंदोलन के रूप में देखने का नजरिया कैसे बदलता है, यह दिलचस्प है.
पत्रकार अनिल चमड़िया का विश्लेषण
 
 मिसाल बेमिसाल : झारखंड 

एक मास्टर, जो गुरु भी है गोविंद भी...
झारखंड के पिपराडीह में आदिवासी बिरहोर बच्चे पढ़ाई के नाम से ही बिदकते थे. जो बच्चे केवल खेलने में लगे रहते थे और नेवले-खरगोश की तलाश में या फिर लकड़ी वगैरह इकट्ठा करने के लिए जंगलों में दिन-दिन भर भटका करते थे, उन्हें सुबह से शाम तक पढ़ने के लिए बिठा पाना आसान काम नहीं था. लेकिन एक गुरु ने तय किया कि इन बच्चों को पढ़ा-लिखा कर ही दम लेंगे.
गिरिडीह, झारखंड से लौटकर संदीप कुमार की रिपोर्ट
     
 बहस : बात पते की 

ग्लेशियरों के नहीं पिघलने का झूठ
एक तरफ जब सारी दुनिया में ग्लेशियर के पिघलने पर चिंता जताई जा रही हो, तब भारत के पर्यावरण और वन मंत्री जयराम रमेश द्वारा जारी की गई रिपोर्ट हिमालयन ग्लेशियर्स इससे इंकार कर रही है. खाद्य एवं कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का विश्लेषण
 
 बहस : बात पते की 

वंदे मातरम् क्यों कहना होगा ?
स्वतंत्रता के पहले वंदे मातरम् समाज के एक हिस्से में लोकप्रिय था परन्तु मुस्लिम लीग को तब भी इस पर सख्त आपत्ति थी. एक बार फिर वंदे मातरम् पर बहस शुरु हो गयी है. सांप्रदायिकता विरोधी चिंतक राम पुनियानी का विश्लेषण
     
 मुद्दा : समाज 

शिक्षा को बाजारू मत बनाइए
भारत सरकार उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी निवेश के अलावा निजी-सार्वजनिक भागीदारी के माध्यम से पूंजी निवेश की योजना बना रही है. दरअसल वह शिक्षा को भी अर्थव्यवस्था के एक क्षेत्र की तरह देख रही है. सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडे का विश्लेषण.
 
 मुद्दा : बात पते की 

भगत सिंह के बारे में कुछ अनदेखे तथ्य
भगतसिंह की उम्र का कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति, क्या भारतीय राजनीति का धूमकेतु बन पाया? महात्मा गांधी भी नहीं, विवेकानन्द भी नहीं. लेकिन भगतसिंह का यही चेहरा सबसे अप्रचारित है. इस पर वे भी ध्यान नहीं देते जो सरस्वती के गोत्र के हैं. गांधीवादी चिंतक कनक तिवारी का विश्लेषण
 
     
 

खबरें और भी हैं

  रांची: पहले चरण का मतदान जारी
  नई दिल्ली: परमाणु हथियारों की सुरक्षा महत्वपूर्ण: एंटनी
  इस्लामाबाद: पाकिस्तान को सुबूतों का सांतवां दस्तावेज
  नई दिल्ली: संदिग्ध पाकिस्तानी जासूस गिरफ्तार
  गया: भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद
  मुंबई: चक्रवात फयान का खतरा टला
  नई दिल्ली: उपचुनावों में कांग्रेस, सपा और तृणमूल जीते
  वॉशिंगटन: अफगानिस्तान भारत के प्रभाव में: मुशर्रफ
 
     
 

 
     
   
         
 हिंद स्वराज : सौ साल 

गांधी दर्शन का मौलिक सूत्र
हिन्द स्वराज गांधीजी के जीवन दर्शन का मौलिक सूत्र है और अन्तिम समय तक गांधीजी उसे ऐसा ही मानते रहे. वे देख रहे थे कि इन दिनों मानव सभ्यता एक आंतरिक क्रूरता की दिशा में बढ़ रही है और उसकी आंतरिक कोमलता की कुर्बानी देकर तथाकथित सभ्यता का ठाठ रचा जा रहा है. इसलिए गांधीजी ने यह बार-बार कहा कि-मानव परिवार को आंतरिक कोमलता का बलिदान नहीं करना चाहिए.
रामेश्वर मिश्र पंकज के विचार
 
 हिंद स्वराज : सौ साल 

दस्तक देता दस्तावेज
गांधीजी ने स्वयं ही कहा है कि उनके विचार उनके अपने हैं भी और नहीं भी. यह तो सही बात है कि विचार के क्षेत्र में विचार से ज्यादा वैचारिक दृष्टि का महत्व होता है. कहीं यह नहीं लगता कि गांधीजी ने केवल विरोध के लिए विरोध किया हो, न तर्क के लिए तर्क. आज हमें गांधीजी के संदर्भ में प्रचलित सफलता या असफलता जैसी कसौटी और परिभाषा को भी छोड़ना होगा.
नरेश मेहता के विचार
 
 हिंद स्वराज : सौ साल 

हिन्द स्वराजः कार्य योजना और नैतिक चेतना
यह एक विचित्र बात है कि संविधान सभा में गांधी जी का उल्लेख नहीं था. न ही उन्होंने किसी प्रकार का उसमें भाग लिया, जिस तरह की संवैधानिकता पर वर्तमान भारतीय व्यवस्था टिकी हुई है. प्रश्न उठता है कि ऐसी स्थिति में गांधीजी के विचारों का क्या संकलन हो सकता है? यह अपेक्षा कि एक कार्य योजना प्रस्तुत की जानी चाहिए, वास्तव में नितांत आधुनिक अवधारणा है.
गोविन्दचंद्र पांडे के विचार
         
 बात निकलेगी तो... : समाज 

जसवंत, जिन्ना और विभाजन का जिन्न
जब भाजपा हिन्दू राष्ट्र की बात करती थी, तब क्या जसवंत सिंह उसी पार्टी के एक महत्वपूर्ण नेता नहीं थे? क्या जसवंत सिंह की मुसलमानों के प्रति चिंता, घड़ियाली आंसू से अधिक कुछ हैं? सांप्रदायिकता विरोधी चिंतक राम पुनियानी के विचार
 
 बात निकलेगी तो... : बात पते की 

जिन्ना ज़िम्मेदार
जिन्ना के चक्रव्यूह में कांग्रेस तो कांग्रेस, ब्रिटिश हुक्मरानों को भी फंसा हुआ देखकर इतिहास हैरान होता रहता है और सोचता है कि कैसे अंगरेजों ने पूरी दुनिया में अपना साम्राज्य स्थापित किया होगा. गांधीवादी चिंतक कनक तिवारी के विचार
 
 बात निकलेगी तो... : समाज 

जिन्ना को हीरो मत बनाइये
जिस दिन मोहम्मद अली जिन्ना मुस्लिम लीग के नेता बने, उसी दिन उनका धर्मनिरपेक्ष चरित्र समाप्त हो गया. एक ऐसा व्यक्ति, जो एक धर्म विशेष को मानने वालों के दल में शामिल हो, भला सेक्युलर कैसे हो सकता है? भोपाल से एल एस हरदेनिया का विश्लेषण
             
 बहस : बात पते की 

प्रेम गली अति सांकरी
प्रेम भ्रामक शब्द है और वस्तुतः सेक्स पर टिका हुआ है. प्रेम में देखना और चाहना मात्र वासना है. प्रेम में आदर्श और अशरीरी जैसी स्थिति की जो लोग वकालत करते हैं, वह केवल लाचारी है. कथाकार कृष्ण बिहारी का विश्लेषण.
 
 साहित्य : कविता 

गजानन माधव मुक्तिबोध की अप्रकाशित कविता
गजानन माधव मुक्तिबोध को गुजरे 45 साल हो गये. लेकिन उनका लिखा काल को इस तरह थामता है, जैसे यह कल की ही रचना हो. 11 सितंबर 2009 को उनकी स्मृति में रायपुर में उनके परिवारजनों ने एक आत्मीय आयोजन किया, जिसमें मुक्तिबोध स्मृति नामक एक लघु पुस्तिका भी जारी की गयी.
 
 मुद्दा : बात पते की 

अब हलफ़नामा दर्ज करना ज़रूरी
प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के कार्यक्रम में प्रगतिशील लेखकों के शामिल होने को लेकर खड़े हुये विवाद पर छत्तीसगढ़ के डीजीपी व संस्थान के संयोजक विश्वरंजन की टिप्पणी.
 
 साहित्य : भाषांतर 

कैथरीन मैन्सफ़ील्ड
न्यूजीलैंड की चर्चित साहित्यकार कैथरीन मैन्सफ़ील्ड की कविताओं की निजता अधिकांशतः किसी इकाई की तरह नहीं हैं. वह समूची मनुष्य जाति के एकांत का आलाप लगती हैं.
             
 

मानुष

हकु शाह. वार्तालेख-पीयूष दईया

नंदीग्राम डायरी

पुष्पराज

कला बाज़ार

अभिज्ञात

मैत्री

तेजी ग्रोवर

दूर देखती आंखें

विश्व कविता से एक चयन

 

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