संसद भंग करने या मध्यावधि चुनीव से क्या बदल जायेगी खुली अर्थ व्यवस्था? खत्म हो जायेगा कारपोरेट राज?
जाहिर है कि हिंदुत्वावदी ताकतें गुजरात माडल के जरिये विकास के सपने बांटने में लगी हैं।यानी संसद भंग करके मद्यावधि चुनाव के जरिये देश को अविलंब उग्र हिंदू राष्ट्रवाद के हवाले कर दिया जाये! क्या गुजरात माडल से कारपोरेट राज खत्म हो जायेगा? तो मोदी अमेरिका और ब्रिटेन, जापान और इजराइल में महानयक कैसे बन गये? गुजरात माडल का कमाल है कि गुजरात निवेशकों की पहली पसंद है गुजरात के वीभत्स नरसंहार के बावजूद! कांग्रेस को हटाने के लिए हर्माद के बदले उन्माद को सत्तासीन करने का परिवर्तन चुनकर क्या देशव्यापी नरमेध यज्ञ को अंतिम आहुति दी जाने की तैयारी हो रही है? कहां हैं धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक साम्राज्यवाद विरोधी मोर्चे के वे तमाम वैचारिक चेहरे, देशहित के बजाय दलबद्ध निजी महात्वाकांक्षाओं की भूल भूलैय्या में जो कैद हैं?
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
सरकारे बदलती रही हैं। घनघोर राजनीतिक अस्थिरता के बीच अल्पमत सरकारें एक के बाद एक जनविरोधी फैसले लागू करती रही हैं। पिछले बीस साल से ऐसा हो रहा हो , ऐसा भी नहीं। उदारीकरण से पहले हमारे चुने हुए प्रतिनिधि सिर्फ हाथ उठाकर समर्थन देने का काम करते रहे हैं। बहुसंख्यक जनता का प्रतिनिधित्व ही नहीं हो पाता। वरना बायोमैट्रिक नागरिकता के गैरकानूनी बंदोबस्त को नागरिक व मानव अधिकारों के हनन का सर्वत्र लागू तंत्र में तब्दील किये जाने पर सर्वदलीय सहमति कैसे हो जाती? कैसे आदिवासियों, अल्पसंख्यकों,पिछड़ों और दलियों को जल जंगल जमीन से बेदखल करने के कानून आरक्षित सांसदों के समर्थन से पारित होते रहे? कैसे विचारधाराओं के रंग बिरंगे परचम उठाये तमाम राजनीतिक दल कारपोरेट के निर्देशानुसार सरकार प्रशासन चलाते रहे? नीति निर्धारण की निरंतराता में कोई व्यवधान क्यों नहीं आता? कैसे कलमाडी और
शशि थरूर का पुनर्वास हो जाता है? क्यों नैतिकता और धर्म की राह पर चलने की प्रतिबद्धता के बावजूद आरोपों के घेरे में होने के बावजूदनितिन गडकरी भाजपा अध्यक्ष बने हुए हैं? अगर संसद भंग कर दी जाये और नये चुनाव हो गये तो विकल्प क्या है? फिर सत्ता तो गडकरी जैसे लोगों से नियंत्रित, इस्तेमाल की जाती रहेगी! सलमान खुरशीद हो या चिदंबरम, घोटालों के आरोपों के मद्देनजर आज तक संसदीय हंगामों के बावजूद किसी एक मामले में किसी को सजा हुई है क्या? भाजपा हो या कांग्रेस प्राकृतिक संसाधनों के नियंत्रण वाले मंत्रालयों, वित्तमंत्रालय और पर्यावरण मंत्रालयों के चेहरे कारपोरेट लाबिइंग के मुताबिक बदलते रहते हैं। क्या यह परंपरा टूट जायेगी?
जाहिर है कि हिंदुत्वावदी ताकतें गुजरात माडल के जरिये विकास के सपने बांटने में लगी हैं।यानी संसद भंग करके मद्यावधि चुनाव के जरिये देश को अविलंब उग्र हिंदू राष्ट्रवाद के हवाले कर दिया जाये! क्या गुजरात माडल से कारपोरेट राज खत्म हो जायेगा? तो मोदी अमेरिका और ब्रिटेन, जापान और इजराइल में महानयक कैसे बन गये? गुजरात माडल का कमाल है कि गुजरात निवेशकों की पहली पसंद है गुजरात के वीभत्स नरसंहार के बावजूद! कांग्रेस को हटाने के लिए हर्माद के बदले उन्माद को सत्तासीन करने का परिवर्तन चुनकर क्या देशव्यापी नरमेध यज्ञ को अंतिम आहुति दी जाने की तैयारी हो रही है? कहां हैं धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक साम्राज्यवाद विरोधी मोर्चे के वे तमाम वैचारिक चेहरे, देशहित के बजाय दलबद्ध निजी महात्वाकांक्षाओं की भूल भूलैय्या में जो कैद हैं?
केंद्रीय मंत्रिमंडल में रविवार को हुए व्यापक फेरबदल के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नई टीम ने सोमवार को कार्यभार सम्भाल लिया। हालांकि पेट्रोलियम मंत्रालय से हटाए गए एस. जयपाल रेड्डी को लेकर शुरू हुआ विवाद शाम में उनके नए मंत्रालय में कार्यभार सम्भलने के बाद भी खत्म नहीं हुआ।तेल मंत्रालय पिछले एक साल से एस. जयपाल रेड्डी के तहत जिस तरह काम कर रहा था, वह अपने आप में काफी साहसिक था। रेड्डी के कार्यकाल में टॉप रिलायंस एग्जेक्युटिव्स को अक्सर टॉप ब्यूरोक्रैट्स से अपॉइंटमेंट के लिए ही महीनों इंतजार करना पड़ जाता था। यहां तक कि जब मंत्रालय ने यह कह दिया कि कंपनी डी6 ब्लॉक से अपनी पूरी लागत भी नहीं वसूल कर पाएगी, तो कंपनी ने सरकार के खिलाफ पंचायत भी शुरू कर दी थी। मंत्रालय ने कहा था कि डी6 ब्लॉक में इन्फ्रास्ट्रक्चर बनवाने पर कंपनी ने बेतहाशा पैसा खर्च किया है, जबकि गैस का उत्पादन योजना से काफी कम हो रहा है। मंत्रालय ने रिलायंस के ऑपरेशन वाले डी6 ब्लॉक से गैस के उत्पादन में आ रही भारी गिरावट को देखते हुए कंपनी पर 1 अरब डॉलर का जुर्माना भी लगा दिया था।पूर्व मंत्री से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, रेड्डी के पास बचने का कोई विकल्प नहीं था बल्कि उन्हें तो सीएजी की ओर से उठाए गए इस मसले पर ध्यान देना ही था। सीएजी ने कहा था कि सरकार कॉन्ट्रैक्ट लागू करवाने में बहुत नरम रही है। रेड्डी के सपोर्टरों का यह भी कहना है कि उनके कार्यकाल में मंत्रालय ने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा फिर से पाई थी। वरना इसकी इमेज ऐसे मंत्रालय के रूप में बन चुकी थी जो हमेशा कॉरपोरेट हितों की ओर झुका रहता था। रेड्डी ने कई कड़े फैसले भी लिए, जिनमें डीजल कीमतों में बढ़ोतरी एक है। इससे नए मंत्री मोइली का काम कुछ तो आसान बन ही जाएगा। पर प्राइवेट कंपनियों के एग्जेक्युटिव संतुष्ट नहीं हैं। प्रमुख प्राइवेट कंपनी के एक एग्जेक्युटिव के मुताबिक, अगर सीएजी ही परेशानी थी तो मंत्रालय पॉजिटिव अप्रोच भी ले सकता था जिसमें समस्या का हल मिलकर निकाला जा सकता था। इससे तेल-गैस की खोज भी प्रभावित नहीं होती। फैसले इस तरह किए जाते कि वह ऑडिट के नियमों के खिलाफ न जाते।
एस जयपाल रेड्डी का पेट्रोलियम मंत्रालय से स्थानान्तरण और सलमान खुर्शीद की पदोन्नति के मुद्दे पर आज राजनीतिक दलों ने सरकार को घेरा। राजनीतिक दलों ने सरकार पर उद्योगपतियों के दबाव में काम करने और भ्रष्टाचार के आरोप झेलने वालों की पदोन्नति करने का आरोप लगाया। सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी ने कल हुए मंत्रिपरिषद विस्तार पर कड़ी टिप्पणियां करते हुए खुर्शीद को विदेश मंत्री बनाने और कोयला घोटाले में कथित रूप से शामिल मंत्री को पद पर बनाये रखने की आलोचना की। जयपाल रेड्डी से पेट्रोलियम मंत्रालय छीने जाने पर केजरीवाल ने कहा कि आखिर क्यों जयपाल रेड्डी से पेट्रोलियम मंत्रालय छीना गया है। क्या मोइली अब रिलाइंस के कहने पर काम करेंगे?केजरीवाल ने कहा है कि इस फेरबदल ने सरकार को बेनकाब कर दिया है। केजरीवाल के मुताबिक भ्रष्टाचार में लिप्त मंत्रियों को संरक्षण देने के साथ-साथ उन्हें पुरस्कृत किया गया है।केजरीवाल ने कहा कि कपिल सिब्बल, पी. चिदंबरम, श्रीप्रकाश जायसवाल पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। सिर्फ कुर्सी बदल गई है। इससे कुछ बदलनेवाला नहीं है। इस सरकार के लिए भ्रष्टाचार कभी कोई मुद्दा रहा ही नहीं है।
हिमाचल प्रदेश में गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी ने जनता को गुजरात के मॉडल के बारे में बताते हुए कहा कि यदि बीजेपी ही वापस सत्ता में आती है तो गुजरात की तरह हिमाचल में भी तरक्की होगी। वह बोले, बार-बार सरकारें बदलने से राज्य विकास की राह पर नहीं चल सकता है। क्योंकि, बदलाव के बाद दो-तीन वर्ष ऐसे ही बीत जाते हैं। उन्होंने लोगों से राज्य में राजनीतिक स्थिरता प्रदान करने की बात की।मोदी ने महंगाई के लिए केंद्र को जिम्मेदार ठहराया और कहा, उसे हिमाचल के लोगों की कोई चिंता नहीं है। मोदी बोले, सरकार के सीने में दिल नहीं है। मोदी ने पीएम मनमोहन को 'मौन'मोहन बताते हुए कहा कि सोनिया-पीएम से कोई पूछो कि एक महिला छह सिलेंडरों में किस प्रकार अपना घर चला सकती है।कैबिनेट फेरबदल पर भी नरेंद्र मोदी ने चुटकी ली। उन्होंने मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री शशि थरूर पर हमला बोला। रैली में मौजूद भीड़ से व्यंग्यात्मक लहजे में पूछा कि आपने देखी है 50 करोड़ रुपये की गर्लफ्रेंड!
राजकोषीय स्थिति सुदृढ करने की आज एक पंचवर्षीय वृहद योजना में विजय केलकर समिति की सिफारिशों को अपनाया गया है जिसमें समिति ने सुझाव दिया है कि सरकार को सुधार की पहल करनी चाहिए, विनिवेश कार्यक्रम को आगे बढ़ाना चाहिए और सब्सिडी घटानी चाहिए जिसके बगैर राजकोषीय घाटा 2012.13 में बढ़कर 6.1 प्रतिशत पर पहुंच सकता है।जबकि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मौद्रिक नीति समीक्षा से एक दिन पहले सोमवार को कहा कि महंगाई के ऊपरी स्तर पर रहने की सम्भावना बनी हुई है, जिससे उम्मीद की जा रही है कि वह दरों में कोई कटौती फिलहाल नहीं करने जा रहा है। आरबीआई ने थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर का अनुमान 7.3 फीसदी से बढ़ाकर 7.7 फीसदी कर दिया। इसके साथ ही उसने मौजूदा कारोबारी साल में देश की विकास दर का पूर्वानुमान घटाकर 5.7 फीसदी कर दिया, जिसे उसने पहले 6.5 फीसदी पर रखा था। चिदंबरम ने कहा कि सरकार चालू खाता घाटा और राजकोषीय घाटा की दोहरी चुनौतियों से मुकाबला करने के लिए संकल्पबद्ध है।उन्होंने कहा कि चालू खाता घाटा चालू वित्त वर्ष में घटकर 70.3 अरब डालर या जीडीपी के 3.7 प्रतिशत पर लाए जाने की संभावना है जो वित्त वर्ष 2011.12 में 78.2 अरब डालर या जीडीपी का 4.2 प्रतिशत था।वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि सरकार अर्थव्यवस्था में तेजी लौटाने के लिए काम कर रही है।पी चिदंबरम के मुताबिक केलकर कमेटी ने विकास सुस्त पड़ने के बारे में सचेत किया है। टैक्स मामले में केलकर समिति ने जीएसटी लागू करने की सिफारिश की है।इसके अलावा केलकर समिति ने विनिवेश में तेजी लाने की सिफारिश है। पी चिदंबरम का कहना है कि समिति की सिफारिशों पर काम शुरु हो गया है और सरकार बजट में तय विनिवेश का लक्ष्य हासिल कर लेगी।पी चिदंबरम का कहना है कि सरकारी जमीन को बेचने पर फिलहाल कोई फैसला नहीं लिया गया है। वहीं, जीएसटी पर चर्चा करने के लिए 8 नवंबर को राज्यों के वित्त मंत्रियों के साथ बैठक होने वाली है।जीएएआर की समीक्षा जारी है और सरकार जल्द ही अंतिम फैसला लेगी। डीटीसी की भी समीक्षा जारी है और बिल को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा।पी चिदंबरम के मुताबिक फिलहाल सरकार का एसयूयूटीआई के शेयर बेचने का इरादा नहीं है। कैबिनेट ने नाल्को, सेल, बीएचईएल और ऑयल इंडिया में विनिवेश को मंजूरी दी है।चिदंबरम ने कहा, ' सरकार को भरोसा है कि पूंजी प्रवाह बढ़ने से चालू खाता घाटा का लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा और इसका एक अहम हिस्सा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, एफआईआई और ईसीबी के जरिए आने की संभावना है।'' प्रत्यक्ष कर संहिता के बारे में पूछे जाने पर चिदंबरम ने कहा कि इसकी समीक्षा की जा रही है और संसद की स्थायी समिति की सिफारिशों पर गौर करने के बाद इसे संसद में पेश किया जाएगा।उंचे बजट घाटे को लेकर चिंतित वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने राजकोषीय स्थिति सुदृढ करने की आज एक पंचवर्षीय वृहद योजना प्रस्तुत की। उम्मीद है कि इससे निवेश को बढावा मिलने, मुद्रास्फीति अंकुश और आर्थिक वृद्धि दर तेज करने में मदद मिलेगी। चिदंबरम ने कहा कि इस योजना के तहत 2016.17 तक राजकोषीय घटे को 3 प्रतिशत पर लाने का प्रयास करेगी। वित्त मंत्री को उम्मीद है कि चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा सकले घरेलू उत्पाद के 5.3 प्रतिशत के अंदर रहेगा। 2011.12 में यह 5.8 प्रतिशत था।उन्होंने कहा, ' राजकोषीय स्थिति मजबूत होने से निवेशकों का भरोसा बढ़ता है। ऐसी उम्मीद है कि इससे अर्थव्यवस्था तेज निवेश, उंची वृद्धि दर, नरम मुद्रास्फीति और दीर्घकालीन टिकाउपन के रास्ते पर लौटेगी।'उल्लेखनीय है कि 2011-12 में आर्थिक वृद्धि दर घटकर नौ साल के निचले स्तर 6.5 प्रतिशत पर आ गई एवं इसमें और गिरावट आने की संभावना है।वर्ष 2012.13 में राजकोषीय स्थिति मजबूत करने के संदर्भ में चिदंबरम ने भरोसा जताया कि सरकार विनिवेश से 30,000 करोड़ रुपये और स्पेक्ट्रम की बिक्री से 40,000 करोड़ रुपये जुटाने में समर्थ होगी।
जानकारी मिली है कि बाकी कंपनियों का विनिवेश शुरू होने के बाद ही सरकारी तेल कंपनियों का हिस्सा बेचा जाएगा। विनिवेश की प्रक्रिया शुरू होने के बाद ही ऑयल इंडिया का हिस्सा बिकेगा।सूत्रों के मुताबिक पेट्रोलियम मंत्रालय ने ऑयल इंडिया के विनिवेश के लिए मर्चेंट बैंकर्स की ही नियुक्ति को मंजूरी दी है। बाकी कंपनियों का हिस्सा बेचने की योजना सफल होने पर ही मंत्रालय ऑयल इंडिया के विनिवेश को हरी झंडी दिखाएगा।ओएनजीसी का हिस्सा बेचने में असफलता को ध्यान में रखते हुए पेट्रोलियम मंत्रालय सतर्कता अपनाना चाहता है। ऑयल इंडिया के अलावा ईआईएल के भी विनिवेश के लिए वक्त लग सकता है।रविवार को मनमोहन सिंह सरकार की कैबिनेट में अहम बदलाव किए गए। कई नए मंत्रियों को शामिल किया गया और कुछ अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी नए मंत्रियों को सौपी गई। जानकारों का मानना है कि इन बदलावों का बाजार पर अच्छा असर होगा और बाजार में तेजी आ सकती है।
कैपिटल मार्केट को लेकर कॉरपोरेट और इंडिविजुअल इनवेस्टर्स की दिलचस्पी बढ़ने से उत्साहित सेबी चीफ यू. के. सिन्हा ने कहा है कि हाल में उठाए गए कदमों के बाद आईपीओ में गड़बड़ियों की शिकायतें लगभग समाप्त हो गई हैं। सिन्हा ने कहा, 'हमने इकनॉमी और मार्केट को लेकर एक नया उत्साह देखा है। मुझे लगता है कि जो कॉरपोरेट इनवेस्टमेंट नहीं कर रहे थे उन्होंने वे अब फिर से इनवेस्टमेंट करने पर विचार कर रहे हैं। इस वर्ष आईपीओ मार्केट काफी फीका रहा है लेकिन पिछले चार सप्ताह में हमने फिर से इसमें रुचि देखी है और हमें लगता है कि लोग आशावादी हैं और वे इनवेस्टमेंट करेंगे।'
केंद्र सरकार भारतीय रेल को निजीकरण की राह पर ले जा रही है लेकिन सफलता नहीं मिल रही है।तृणमूल कांग्रेस के यूपीएस सरकार से बाहर जाने और रेल मंत्रालय में नए मंत्री के आने से किरायों में बढ़ोतरी की पूरी पूरी संभावना है। सालों बाद रेल मंत्रालय पूरी तरह कांग्रेस के हाथ में आया है और सालों बाद ही रेल किराये में वृद्धि की तैयारी होने लगी है। कल ही रेल राज्यमंत्री बने पश्चिम बंगाल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि रेल किराया बढ़ाना जरूरी है। मतलब ये कि महंगाई की मार झेल रही जनता को एक और झटका लग सकता है। माना जा रहा है कि रेल बजट से पहले ही रेल किराये में वृद्धि की घोषणा हो सकती है।चौधरी से जब पूछा गया कि क्या रेलवे के नुकसान की भरपाई के लिए किराया बढ़ाना ही एकमात्र विकल्प है तो उन्होंने कहा कि रेलवे का किराया बढ़ाना चाहिए। चारों तरफ महंगाई बढ़ रही है ऐसे में रेलवे के नुकसान की भरपाई के लिए रेल का किराया बढ़ाना ही चाहिए। यात्रियों को बेहतर सुविधाएं देने के लिए भी रेलवे का किराया बढ़ाना जरूरी है।नए रेल मंत्री पवन कुमार बंसल ने भी कहा कि सरकार ने यात्री किराया बढ़ाने का विकल्प खुला रखा है। सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए ऐसा किया जा सकता है न कि लाभ कमाने के लिए। बंसल ने मंत्रालय का कार्यभार सम्भालने के कुछ ही देर बाद कहा कि यदि सेवाएं बेहतर करने के लिए यात्री किराए पर पुनर्विचार की आवश्यकता हुई तो हम ऐसा करेंगे. इसका उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है।उन्होंने कहा कि वह मंगलवार को रेलवे बोर्ड के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे और फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चर्चा के नतीजों से अवगत कराएंगे। हम बाधारहित वित्तीय सिद्धांतों के साथ रेलवे को चलाना चाहते हैं।नियमित रूप से रेल सेवाओं का इस्तेमाल करने वाले बंसल ने बताया कि वह अक्सर अपने गृह नगर चंडीगढ़ जाने के लिए शताब्दी एक्सप्रेस को चुनते हैं। कई बार लोगों ने मुझसे कहा है कि यदि सरकार सेवाएं बेहतर बनाने के लिए सरकारी किराए में बढ़ोत्तरी करती है तो उन्हें इसमें कोई परेशानी नहीं होगी।
अब महंगाई बढ़ने के साथ ही यूरिया के दाम भी बढ़ जाएंगे। सीएनबीसी आवाज को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक सरकार ने यूरिया की कीमत तय करने का ये नया फॉर्मूला बनाया है जिससे सब्सिडी में कटौती और फर्टिलाइजर कंपनियों की माली हालत सुधारने में मदद मिलेगी।सूत्रों का कहना है कि सरकार की यूरिया की कीमत को महंगाई दर से जोड़ने की योजना है जिससे महंगाई दर बढ़ने के साथ यूरिया के दाम बढ़ जाएंगे। यूरिया की कीमत में तय लागत का हिस्सा महंगाई दर से जोड़ दिया जाएगा। अभी यूरिया की कीमत में तय लागत 1,000 रुपये प्रति टन है।दरअसल केलकर कमिटी ने यूरिया के दाम महंगाई दर से जोड़ने की सिफारिश की थी। सरकार जल्द ही यूरिया की कीमत को महंगाई दर से जोड़ने का प्रस्ताव कैबिनेट को भेजने वाली है।
भूमि अधिग्रहण विधेयक के मसौदे में ताजा बदलाव किये गए हैं जिसके तहत निजी उद्देश्य से भूमि अधिग्रहण करने के लिए भूस्वामियों की सहमति को संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी की ओर से मिले एक सुझाव के बाद और कड़ा किया गया है। प्रस्तावित विधेयक में निजी उद्देश्य के लिए अधिग्रहण की जाने वाली भूमि के लिये 80 प्रतिशत भूस्वामियों की सहमति जरूरी करने का प्रावधान किया जा रहा है जबकि पहले 67 प्रतिशत की सहमति की बात कही गयी थी।
भूमि अधिग्रहण विधेयक पर गठित मंत्रिसमूह के प्रमुख कृषि मंत्री शरद पवार ने प्रस्तावित विधेयक में परिवर्तनों का खुलासा करते हुए कहा कि सार्वजनिक उद्देश्य के लिए भूमि अधिग्रहण करने के वास्ते भूस्वामियों की सहमति आवश्यक नहीं है।
पवार ने इस मुद्दे पर ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश से मुलाकात करने के बाद संवाददाताओं से कहा कि प्रस्तावित बदलावों को मंत्रिसमूह के 14 सदस्यों के बीच जल्द ही वितरित किया जाएगा ताकि उनके विचार और सहमति प्राप्त की जा सके। उन्होंने कहा, मंत्रिसमूह की गत बैठक के दौरान विस्तृत चर्चा की गई थी। कुछ लोगों ने बदलाव सुझाये थे जिन पर आज चर्चा के बाद अंतिम रूप प्रदान किया गया।
प्रमुख बदलावों में भूस्वामियों की सहमति 80 प्रतिशत किया जाना शामिल है यदि सरकार भूमि का अधिग्रहण निजी उद्देश्य के लिए कर रही है। विधेयक के मसौदे में बदलाव सोनिया की सिफारिशों की पृष्ठभूमि में आये हैं जिसमें उन्होंने सुझाव दिया था कि निजी उद्देश्य के लिए भूमि अधिग्रहण के लिए भूस्वामियों की सहमति के स्तर में बढ़ोतरी की जाए।
मंत्रिसमूह की गत 16 अक्तूबर को आयोजित पिछली बैठक में निजी उद्देश्य के लिए भूमि अधिग्रहण करने के लिए भूस्वामियों की दो तिहाई (67 प्रतिशत) करने के एक प्रावधान को मंजूरी दी गई थी। यह पूछे जाने पर कि भूस्वामियों की सहमति का प्रतिशत बढ़ाये जाने से निजी उद्योग नाराज होगा, पवार ने कहा, यदि ऐसी बात है तो उद्योग निजी तौर पर खरीद कर सकते हैं।
पुनर्वास के मुद्दे पर मंत्री ने कहा यदि भूमि का अधिग्रहण सार्वजनिक निजी साझेदारी (पीपीपी) आधार पर किया जाता है कि उसे अनिवार्य बनाया जाएगा जबकि यदि कोई निजी व्यक्ति भूमि की खरीद निजी प्रयोग के लिए करता है तो ऐसे मामले में निर्णय राज्य सरकार करेगी। उन्होंने कहा कि पीपीपी के तहत सार्वजनिक उद्देश्य के लिए भूमि अधिग्रहण करने के लिए कुछ रियायतें दी जाएंगी। रियायतों का निर्णय राज्य सरकार की ओर से किया जाएगा।
पवार ने कहा कि यदि भूमि का अधिग्रहण विशेष आर्थिक क्षेत्र :सेज: के लिए किया जाता है तो इस मुद्दे पर निर्णय राज्य सरकारें करेंगी। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित विधेयक में कोई भी पूर्वप्रभावी धारा नहीं होगी। उन्होंने कहा, उसमें (प्रस्तावित विधेयक) उसी दिन से लागू होगा जब संसद उसे पारित करेगी। ऐसे कुछ मामले हैं जिनमें भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और भुगतान नहीं किया गया है वहां हमने राज्य सरकारों से मशविरा करने का कहा है।
एक परियोजना के लिए अधिग्रहित भूमि का दूसरे में इस्तेमाल करने पर पवार ने कहा, ''मुझे देखना होगा कि इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय का फैसला इस पर लागू होता है या नहीं। हम इस मुद्दे पर कानून मंत्रालय से विचार मशविरा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि किसी परियोजना के लिए अधिग्रहित भूमि में से बची भूमि को फिर से बिक्री नहीं की जा सकती और उसकी नीलामी होनी चाहिए।
यह पूछे जाने पर कि क्या मंत्रिसमूह की फिर बैठक होगी, पवार ने कहा, मैं बदलावों को सभी सदस्यों को कल भेज दूंगा और अनुरोध करूंगा कि वे अपने विचार एक सप्ताह में भेज दें। मान लीजिये कि कुछ मुद्दें हैं तो मुझे फिर से मंत्रिसमूह की बैठक बुलानी होगी। मैं उम्मीद करता हूं कि ऐसी स्थिति नहीं होगी और मैं इसे कैबिनेट में ले जाउंगा। मंत्रिमंडल की मंजूरी मिलने के बाद प्रस्तावित विधेयक को संभवत: संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा।
बहरहाल नए अंदाज और नए तेवर में नजर आ रही टीम अन्ना ने केंद्र की संप्रग सरकार पर जोरदार हमला बोलते हुए संसद को तुरंत भंग किए जाने की मांग की और कहा कि लोकतंत्र के दोनों स्तंभ संविधान की भावना के मुताबिक काम नहीं कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ नए आंदोलन की शुरुआत का ऐलान करते हुए अन्ना हजारे और पूर्व थलसेना अध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने संप्रग सरकार को 'असंवैधानिक' करार दिया और बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की इजाजत देने जैसे उसके फैसलों की आलोचना की।मुंबई में जनरल [सेवानिवृत्त] वीके सिंह ने समाजसेवी अन्ना हजारे की मौजूदगी में मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि सरकार प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रही है। निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाया जा रहा है और आदिवासियों को बेदखल किया जा रहा है। अंग्रेजों ने जितना देश को नहीं लूटा उतना अपने देश के नेताओं ने 65 साल में लूट लिया। सांसदों ने मुद्दों को उठाना बंद कर दिया है। चाहे वह सत्तारूढ़ पार्टी के हों या फिर विपक्ष के। ऐसे में जरूरी है कि इस संसद को भंग किया जाए और नए सिरे से चुनाव कराया जाए ताकि लोग यह तय कर सकें कि देश में लोक कल्याणकारी सरकार की जरूरत है या नवउदारवादी सरकार की।पूर्व थल सेना अध्यक्ष ने काला धन, महंगाई, रिटेल में एफडीआइ, डीजल और एलपीजी के दामों में वृद्धि पर भी सरकार को जमकर कोसा। उन्होंने कहा कि दुनिया के बहुत से देश अपने कालेधन को वापस लाने के लिए प्रयासरत हैं लेकिन भारत सरकार इस मामले में उदासीन बनी हुई है। अगर हमारे देश का काला धन वापस आ जाए तो बहुत सारी समस्याएं सुलझ सकती हैं।वीके सिंह ने दावा किया कि केंद्र सरकार अल्पमत में हैं। ऐसे में वह रिटेल में एफडीआई को मंजूरी कैसे दे सकती है। सरकार इस समय अलग-थलग पड़ चुकी है। सहयोगी दलों ने सरकार का साथ छोड़ दिया है। इसलिए इस सरकार को कुर्सी पर बने रहने का अधिकार नहीं है।इस मौके पर अन्ना हजारे ने कहा कि देश में अमीर और गरीब के बीच फासला बढ़ता जा रहा है। कहीं लोग क्या-क्या खाऊं इसके लिए जी रहे हैं और कहीं लोग क्या खाएं इसी चिंता में लगे हैं। इस व्यवस्था को बदलनी होगी।उन्होंने कहा कि संविधान का पालन नहीं हो रहा है। नदियों का निजीकरण हो रहा है। 12 महीने बहने वाली नदिया सूख रही हैं। अन्ना हजारे ने ये भी कहा कि संसद को भंग कर वो कोई रिमोट कंट्रोल नहीं करना चाहते। हम बाहर रहकर लोगों को जगाएंगे। 30 जनवरी तक सरकार को बताएंगे और 30 जनवरी से एक साल तक देश में घूमेंगे। देश की सेवा करने के लिए घूमेंगे। अन्ना ने कहा कि देश को बर्बाद करने वाले दुश्मन हमारे देश में ही छुपे हैं उनके खिलाफ लड़ाई लड़ने की जरूरत है।
अन्ना हजारे और पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी. के. सिंह के संयुक्त संवाददाता सम्मेलन से झलक मिल रही है कि सिंह ने पुरानी टीम अन्ना के अरविन्द केजरीवाल का स्थान ले लिया है। सम्मेलन के दौरान सिंह ने अन्ना से पूछे गए कई सवालों का जवाब दिया और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की नयी नीतियों के बारे में बताया। वह अन्ना हजारे से पूछे जा रहे टेढ़े सवालों का स्वयं जवाब दे रहे थे और खुद अपनी ओर से सफाई दे रहे थे। हजारे भी सेना में रहे हैं और पूरे देश की यात्रा करने की योजना की घोषणा के वक्त जनरल के लिए उनका सम्मान देखा जा सकता था।
दूसरी ओर भ्रष्टाचार व कालाधन विरोधी अपनी मुहिम के तहत गुजरात पहुंचे योगगुरु बाबा रामदेव ने कांग्रेस को भ्रष्टाचार की जननी बताया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का बोफोर्स घोटाले से शुरू हुआ सफर जीजाजी के घोटाले तक पहुंच गया है। महगाई, बेरोजगारी व गरीबी कांग्रेस की देन है, जिसके कारण दुनिया के सामने भारत की छवि धूमिल हुई है।तो क्या भाजपा दूध की धुली है? रामदेव ने अपने इस अभियान के जरिये मुख्यमंत्री मोदी का प्रचार करने के आरोपों पर कहा कि उन्होंने किसी को चिट्ठी लिखकर नहीं दी है कि वह मोदी या भाजपा के लिए प्रचार कर रहे है। मीडिया में खुद के संस्थान की ओबी वैन नमो चैनल को देने संबंधी खबरों पर रामदेव ने तिलमिलाते हुए कहा कि यह सब झूठ है। उनके तथा पतंजली योगपीठ के संबंध में खबरे छापने से पहले उनका भी पक्ष लिया जाए।माना कि वे चुनाव प्रचार नहीं कर रहे हैं तो गुजरात में चुनावों के मौके पर कांग्रेस पर प्रहार करके वे किसका पक्ष ले रहे हैं? अभीतक उनकी पार्टी तो कोई बनी नही है।भारत स्वाभिमान आदोलन के तहत दस दिवसीय गुजरात यात्रा पर आए योगगुरु ने एलान किया है कि देश को गर्त में ले जाने वाली कांग्रेस का सफाया जरूरी है। बाबा ने गुजरात के लोगों से भी आह्वान किया कि कांग्रेस को छोड़कर अन्य किसी भी दल के साफ सुथरी छवि के लोगों को वोट दें। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की नीतिया ठीक होती व भ्रष्टाचार नहीं होता तो आज देश तरक्की की राह पर होता। विदेशी मीडिया भी आज प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की काबिलियत पर सवाल उठा रहा है, जिसके कारण देश की छवि को धक्का लगा है। बाबा हालांकि भाजपा अथवा मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ खुलकर नहीं आए तथा भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के सवालों को टालते हुए कहा कि वह उनके एजेंट नहीं है। बाबा ने कहा गडकरी पर लग रहे आरोप तकनीकी गड़बड़ियों के हैं लेकिन कांग्रेस नेताओं ने सीधे-सीधे देश का धन लूटा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को उसके पांच एम मनमोहन सिंह, मायावती, मुलायम, ममता और एम करुणानिधि ही डुबा देंगे। योग गुरु रामदेव का कहना है कि केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी क्योंकि उसकी हालत उस मरीज जैसी है जो वेंटिलेटर के सहारे जिंदा है।रामदेव ने संवाददाता सम्मेलन में आरोप लगाया कि संप्रग सरकार के सत्ता में रहते काले धन का भंडार सारी हदें पार कर गया। रामदेव ने कहा कि संप्रग सरकार ने काले धन पर संसद में जो श्वेत पत्र पेश किया वह 'सफेद झूठों का पुलिंदा' है।योग गुरु ने सवाल किया कि सरकार उन राजनीतिज्ञों के नाम का खुलासा करने से क्यों घबरा रही है, जिन्होंने विदेशी बैंकों में काला धन जमा किया है। बाबा रामदेव ने कहा कि केंद्र सरकार की अंत्येष्टि का समय नजदीक आ गया है। देश का नेतृत्व भ्रष्ट और कमजोर है। उससे देश के कल्याण की कोई अपेक्षा नहीं की जा सकती। वर्ष 2013 में सरकार की तेरहवीं हो जाएगी।
उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह ने सोमवार को कहा कि देश में मध्यावधि चुनाव कभी भी हो सकता है इसलिए पार्टी के कार्यकर्ता इसके लिए हमेशा तैयार रहें। पार्टी कार्यालय में कार्यकर्ताओं से बातचीत करते हुए मुलायम ने कहा, 'देश में मध्यावधि चुनाव की सम्भावना दिख रही है। आम चुनाव किसी भी वक्त हो सकता है, इसके लिए हमेशा तैयार रहिए।' मुलायम ने कार्यकर्ताओं से अपील की कि अगले लोकसभा चुनाव में पार्टी को अधिक से अधिक सीटें जिताने के लिए वे जमकर मेहनत करें।
हिमाचल प्रदेश में बीजेपी को फिर से काबिज करवाने के लिए पार्टी ने अपना स्टार नेता वहां प्रचार के लिए भेजा। गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी मंडी की सभा में रैली करने पहुंचे। सभा में उन्होंने पीएम मनमोहन सिंह पर व्यंग्य कसा और उन्हें 'मौन'मोहन पुकारते हुए कहा कि उन्होंने यहीं आकर अपना मौन तोड़ा। उन्होंने यह भी कहा कि गुजरात में हमारा मुकाबला कांग्रेस से नहीं बल्कि सीबीआई से है। कैबिनेट फेरबदल पर भी नरेंद्र मोदी ने चुटकी ली। उन्होंने मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री शशि थरूर पर हमला बोला। रैली में मौजूद भीड़ से व्यंग्यात्मक लहजे में पूछा कि आपने कभी देखी है 50 करोड़ रुपये की गर्लफ्रेंड!
मोदी करीब आधे घंटे के भाषण में केंद्र पर जमकर बरसे। उन्होंने कहा, गुजरात में कांग्रेस तो चुनाव मैदान में है ही नहीं, बल्कि राज्य में सीबीआई चुनाव लड़ रही है। मोदी ने कहा कि एक-दो लोग भ्रष्ट हों तो उन्हें ठीक किया जा सकता है लेकिन यहां तो केंद्र सरकार भ्रष्टाचारियों से भरी पड़ी है। उन्होंने कांग्रेस पर भ्रष्टाचार को शिष्टाचार बनाने का आरोप लगाया।
मोदी के मुताबिक, कांग्रेस सरकार ने सीबीआई का भी दुरुपयोग किया है। मोदी ने जनता से अपील की कि वह अपना कीमती वोट कांग्रेस को न दें क्योंकि हिमाचल एक पवित्र जगह है और यहां दिल्ली के पापियों को नहीं आने दिया जाना चाहिए।
तेल मंत्रालय में फेरबदल कॉरपोरेट 'खेल'?
सोमवार, 29 अक्तूबर, 2012 को 18:15 IST तक के समाचार
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/10/121029_jaipalreddy_portfolio_ac.shtml
क्या कॉरपोरेट दबाव का शिकार हुए हैं जयपाल रेड्डी? रविवार को किए गए केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार और फेरबदल में जयपाल रेड्डी को तेल मंत्रालय से हटाकर विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री बनाया गया है जिस पर कई सवाल उठ रहे हैं.
माना जाता है कि खुद जयपाल रेड्डी भी इस फैसले से खुश नहीं हैं. लेकिन सोमवार शाम को अपना कार्यभार संभालने के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए रेड्डी ने कहा, ''प्रधानमंत्री ने यह बदलाव करने से पहले मुझसे बात की थी. यह मेरे लिए काफी है.''
उन्होंने कहा, ''मैं अपने पिछले कार्यभार पर कोई टिप्पणी नहीं करता. मुझे किसी राजनीतिक प्रभाव की जानकारी नहीं है.''
ये पूछे जाने पर कि क्या वो इस फैसले से खुश हैं, उन्होंने कहा, ''यह मंत्रालय मिलने के समय भी मैं खुश नहीं था. इसी तरह मैं अब भी दुखी नहीं हूँ.''
विपक्ष ने भी इस फैसले पर सरकार की आलोचना की है और कई सवाल उठाए हैं. लेकिन सरकार का कहना है कि मंत्रालय में फेरबदल प्रधानमंत्री की मर्ज़ी अनुसार होता है.
भाजपा के नेता वेंकैया नायडू ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, ''एक औद्योगिक ग्रुप ने प्रधानमंत्री पर दबाव बनाया क्योंकि वो एक ग्रुप के हित में काम नहीं कर रहे थे. सरकार पर यह आरोप लग रहा है. सरकार और कांग्रेस को लोगों को जबाव देना चाहिए.''
अरविंद केजरीवाल की 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' ने तो उनके मंत्रालय बदले जाने पर सरकार पर निशाना साधा और कहा, ''जयपाल रेड्डी बहुत ईमानदार मंत्री माने जाते हैं. उन्हें हटा दिया गया...सरकार शायद यह संदेश देना चाहती है कि जो जितना भ्रष्टाचार करेगा, उसकी उतनी ही तरक्की होगी. और अगर ईमानदारी से चलोगे तो तुम्हारी खैर नहीं है.''
रेड्डी से समस्या
"कॉन्ट्रैक्ट की परिभाषा को लेकर सरकार और उद्योग में अंतर आ गया था. यह सेक्टर के लिए बहुत अच्छा नहीं था. अगर अनावश्यक कानूनी अड़चने हर चीज़ में आने लगती हैं तो समस्या आती है."
ऑबज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक संजय जोशी
ऐसा माना जाता है कि रेड्डी के कार्यकाल के दौरान किए गए कई फैसले रिलायंस सहित कुछ तेल कंपनियों के हित में नहीं थे.
हालांकि रिलायंस सहित कई कंपनियों के थिंक-टैंक माने जाने वाले ऑबज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक संजय जोशी ने बीबीसी से बातचीत में कहा, ''सिर्फ रिलायंस ही इस क्षेत्र में खिलाड़ी नहीं है. कई और भी हैं जिनके साथ समस्याएं आई हैं.''
उन्होंने कहा, ''कॉन्ट्रैक्ट की परिभाषा को लेकर सरकार और उद्योग में अंतर आ गया था. यह सेक्टर के लिए बहुत अच्छा नहीं था. अगर अनावश्यक कानूनी अड़चने हर चीज़ में आने लगती हैं तो समस्या आती है.''
उधर कांग्रेस पार्टी और सरकार ने ऐसी अटकलों को खारिज किया है और कहा कि मंत्रालय में बदलाव प्रधानमंत्री की इच्छा से होता है.
अपना नया कार्यभार संभालने के बाद वीरप्पा मोइली ने कहा, ''जयपाल रेड्डी ने बड़ा अच्छा काम किया है. मंत्रालय तो बदलते रहते हैं. मेरा यह तीसरा मंत्रालय है. सरकार किसी विशेष संगठन के अनुसार काम नहीं करती.''
फैसले
"यह मंत्रालय मिलने के समय भी मैं खुश नहीं था. इस तरह मैं अब भी दुखी नहीं हूँ."
जयपाल रेड्डी
जनवरी 2011 में रेड्डी ने पेट्रोलियम मंत्रालय का कार्यभार संभाला था. अपने कार्यकाल के दौरान रेड्डी ने कई सख्त फैसले लिए थे, माना जाता है कि इससे कई कंपनियाँ नाराज़ थी.
एक फैसले में उन्होंने रिलायंस और ब्रिटेन की एक कंपनी की 7.2 अरब डॉलर की डील को मंजूरी नहीं दी. उन्होंने उसे कैबिनेट में भेज दिया था जिसे उनके आलोचक अनावश्यक कहते हैं.
रेड्डी ने रिलायंस पर केजी-डी6 में लक्ष्य से कम उत्पादन करने के लिए 7,000 करोड़ रुपए का जुर्माना भी लगाया.
रेड्डी वो तेल मंत्री थे, जो लगातार पेट्रोल और डीज़ल के दामों में वृद्धि का विरोध करते रहे.
This Blog is all about Black Untouchables,Indigenous, Aboriginal People worldwide, Refugees, Persecuted nationalities, Minorities and golbal RESISTANCE. The style is autobiographical full of Experiences with Academic Indepth Investigation. It is all against Brahminical Zionist White Postmodern Galaxy MANUSMRITI APARTEID order, ILLUMINITY worldwide and HEGEMONIES Worldwide to ensure LIBERATION of our Peoeple Enslaved and Persecuted, Displaced and Kiled.
Monday, October 29, 2012
संसद भंग करने या मध्यावधि चुनीव से क्या बदल जायेगी खुली अर्थ व्यवस्था? खत्म हो जायेगा कारपोरेट राज?
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