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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Sunday, January 5, 2014

मंत्री बदल जाने से बदल नहीं रहा बंगाल का औद्योगिक परिदृश्य

मंत्री बदल जाने से बदल नहीं रहा बंगाल का औद्योगिक परिदृश्य


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास



उद्योग मंत्रालय से पार्थ चटर्जी की विदाई के बाद सरकार और पार्टी में भले ही समीकरण बदले हों, लेकिन ताजा स्थित अब भी वही है कि दीदी लाख कोशिश कर रही हैं, लेकिन बंगाल में उद्योग और कारोबार का माहौल बिल्कुल नहीं सुधर रहा है।आंकड़ों के अलावा औद्योगीकरण कहीं हो नहीं रहा है। खास बात तो यह है कि एकदम शुरु से पश्चिम बंगाल के उद्योगपति चाहते हैं कि राज्य में जारी चुनाव के बाद निर्वाचित सरकार राजनीति को कारोबार से अलगे रखे। उनका मानना है कि विभिन्न मुद्दों पर राजनीतिक मतभेदों के कारण राज्य की समृद्धि और विकास पर नकारात्मक असर पड़ा है। प्रशासन को ऐसे उपाय करने चाहिए जिससे राज्य में व्यापार बिना किसी राजनीति दल के प्रभाव के फल-फूल सके। विकास को राजनीतिक विचारों से अलग रखा जाना चाहिए।लेकिन औद्योगीकरण पर राजनीतिक संरक्षण से चल रहे सिंडिकेट गिरोहों का साया अभी खत्म नहीं हुआ। निवेश के लिए जमीन के अलावा कानून का राज भी जरुरी है,जो राजनीतिक हस्तक्षेप की वजह से लगभग अनुपस्थित है और इसमें कोई सुधार की संभावना है भी नहीं। इस पर तुर्रा यह कि वाम जमाने में जिन परियोजनाओं पर निवेश हुा,करीब करीब सबके सब खटाई में हैं।यानी राजनीतिक परिवर्तन से बंगाल में निवश पूरी तरह से डूबजाने का जोखिम भी है।


मंत्री बदल गये हैं,लेकिन बंगाल में अर्थव्यवस्था को अपने बूते पटरी पर लाने के लिए उद्योग और कारोबार, निवेश के माहौल को  सुधारने के लिए कोई दूसरी संभावना फिलहाल नहीं है। वजह आगामी लोकसभा के मद्देनजर सत्तादल तृणमूल कांग्रेस की सर्वोच्च प्राथमिकता तमाम तरह के लोकलुभावन तौर तरीके आजमा कर बंगाल की सभी सीटें जीतने और उसके जरिये वामदलों के साथ कांग्रेस का सफाया करना है। निवेश का माहौल सुधारन के लिए जमीन की गुत्थी सुलझाना सबसे जरुरी है। ददी कम से कम जमीन के मामले में अभी सिंगुर नंदीग्राम आंदोलनों के समय में जी रही है। पहली जनवरी से नया भूमि अधिग्रहण कानून लागू हो जाने से मुआवजा की रकम में इजाफा हो गया है। जमीन पर निवेशकों को भारी निवेश करना होगा, लेकिन पहले से अधिग्रहित जमीन पर भूमि विवादों की वजह से परियोजनाएं लटक जाने के अनुभव के मद्देनजर निवेशकों के लिए जोखिम उठाना मुश्किल है।कम से कम लोकसभा चुनाव निपटने से पहले इस दिशा में पहल हो पाना मुश्किल है।जाहिर है कि तृणमूल महासचिव पार्थ चटर्जी को उद्योग मंत्रालय से हटाकर वित्त मंत्री अमित मित्र को औद्योगीकरण का जिम्मा जो दिया गया,जल्दी उसके नतीजे आने के आसार कम है।


उद्योगपतियों ौर निवेशकों को पटाने की कोशिश पार्थ बाबू ने कोई कम की हो,ऐसा भी नहीं हैं।लेकिन कुल मिलाकर फच्चर वहीं फंसा है, जिसकी वजह से पहले तो टाटासमूह का नैनो कारखाना गुजरात के सानंद स्थानांतरित हो गया और फिर अदालत के बाहर समझौते करके टाटा की वापसी की जो संभावना बन रही थी,उसपर भी राज्य सरकार ने नजर ही नहीं डाला।ऐसे में पार्थ बाबू की तरह अमित बाबू भी निवेशकों और उद्योगपतियों को सम्मलनों के जरिये निवेश के लिए प्रोत्साहित करने के अलावा फिलहाल कुछ नहीं कर सकते।


उद्योग और कारोबार जगत ने जिस गर्मजोशी से बंगाल में परिवर्तन का स्वागत किया था,करीब आधा कार्यकाल बीतने के बावजूद उनकी अपेक्षाओं के मुताबिक माहौल बदला नहीं है। यहां तक कि मुकेश अंबानी से दीदी की मुंबई में ङुई मुलाकात के बाद भी। नये सिरे से निवेश के प्रयास बतौर मध्यपूर्व में बसे प्रवासी बंगालियों का एक सम्मेलन अमित बाबू बंगाल चैंबर्स की पहल पर अगले 9 और 0 जनवरी को आयोजित कर रहे हैं।


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