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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Sunday, July 20, 2014

एफडीआई केसरिया स्वदेशीकरण का गुप्तमंत्र,इसीसे प्रतिरक्षा का स्वदेशीकरण भगवा

एफडीआई केसरिया स्वदेशीकरण का गुप्तमंत्र,इसीसे प्रतिरक्षा का स्वदेशीकरण भगवा

पलाश विश्वास

राष्ट्र का सैन्यीकरण का सिलसिला और तेज हो गया है।


तीसरी दुनिया के देशों का भूगोल इस वक्त मुक्तबाजार का भूगोल है और इस मुक्तबाजार में सर्वत्र सत्ता वर्ग को सैन्य राष्ट्र के मार्फत अर्थ व्यवस्था के बाहर क्रयशक्तिविहीन जनसमूहों के जनविद्रोहों का समाना करना पड़ता है और सैन्य राष्ट्र उसका अभेद्य सुरक्षाकवच है।


धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के देशभक्ति पृष्ठभूम में राष्ट्र के सैन्यीकरण पर चर्चा निषिद्ध है।



स्विस बैंक में जो कालाधन है,उसका सबसे बड़ा हिस्सा रक्षा सौदों का कमीशन है।तमाम उजले चेहरों में रक्षा घोटालों की कालिख लगी है।हो हंगामा के बावजूद इन घोटालों की जांच कभी पूरी होती नहीं है और अपराधी सर्वोच्च शिखर तक पहुंचकर कानून के राज के दायरे से बाहर हो जाता है।


राष्ट्र का सैन्यीकरण सबसे बड़ा और सबसे पवित्र कारोबार है।देशी पूंजी का कारोबार और विदेशी पूंजी का कारोबार भी।बजटघाटे में लेकिन रक्षा प्रतिरक्षा और जनगण के खिलाफ अविरत होने वाले राजस्वव्यय का कोई आंकड़ा होता नहीं है।


गौरतलब है कि संसद में पेश आर्थिक समीक्षा 2013-14 में सुझाव दिया गया कि सुस्त औद्योगिक वृद्धि में तेजी लाने के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड), राष्ट्रीय निवेश एवं विनिर्माण क्षेत्रों (एनआईएमजेड) और रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी के माध्यम से निजी क्षेत्र के निवेश को आकर्षित करना बेहद जरूरी है। समीक्षा से संकेत मिलता है कि औद्योगिक वृद्धि में सुस्ती से सरकार को सुधार के एजेंडे को बढ़ाने के लिए उपयुक्त अवसर मिला है, इसीलिए बुनियादी ढांचा क्षेत्र की बाधाओं को दूर किया जा रहा है।एफडीआई बिना उत्पादन प्रणाली के उत्पादन वृद्धि और विकासदर बढ़ाने का अचूक रामवाण है,जाहिर है।


स्वयंभू राष्ट्रभक्तों की सरकार अब सत्ता में है और हमेशा की तरह राष्ट्भक्ति का अभूतपूर्व रिकार्ड कायम करते हुए इस सरकार ने रक्षा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 49 प्रतिशत तक कर देने की घोषणा की है।गौरतलब है कि किसी विदेशी कंपनी द्वारा भारत स्थित किसी कंपनी में अपनी शाखा, प्रतिनिधि कार्यालय या सहायक कंपनी द्वारा निवेश करने को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) कहते हैं।फिलहाल रक्षा साजोसामान के उत्पादन में स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने की अपनी नीति पर जोर देते हुए केंद्र सरकार ने 21,000 करोड़ रुपए के रक्षा खरीद प्रस्तावों को मंजूरी दी है। सरकार ने साथ ही परिवहन विमानों के निर्माण की एक परियोजना को मंजूरी दी जिसमें केवल निजी क्षेत्र की भारतीय कंपनियां हिस्सा ले सकती हैं।


वित्त प्रतिरक्षा मंत्री जेटली ने सच ही कहा होगा  कि रक्षा क्षेत्र को एफडीआई के लिये पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी सरकार के समय खोला गया था तब क्षेत्र में 26 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति दी गई थी। इसके बाद ही इसमें टाटा, महिन्द्रा और अन्य समूहों ने प्रवेश किया। उन्होंने कहा कि संप्रग सरकार की ऑफसेट पालिसी जिसमें विदेशी कंपनियों को उन्हें मिले 300 करोड़ रुपये से अधिक अनुबंध में कम से कम 30 प्रतिशत वापस भारतीय बाजार में निवेश करना होता है, उससे क्षेत्र को बढ़ावा मिला है।रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) की सीमा बढ़ाने की जोरदार वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि अभी देश का 70 फीसद रक्षा साजो समान विदेश से आता है। उन्होंने कहा कि इसका मकसद भारत का नियंत्रण बनाए रखते हुए देश में सर्वोत्तम तकनीक लाना है।

जाहिर है कि स्वदेशीकरण की सर्वोत्तम विधि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश है।

जाहिर है कि इसी स्वदेशी एजंडा के तहत राष्ट्रभक्तों की केसरिया कारपोरेट सरकार ने वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट 2014 के दौरान रक्षा और इंश्योरेंस सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को बढ़ा दिया है जो संजोग से अमेरिकी मांग के मुताबिक है। संजोग से भारत दुनियाभर में रक्षाउत्पादों का सबसे बड़ा खरीदार हैलेकिन भारतीय रक्षा आंतरिक सुरक्षा बाजार में भारतअमेरिकी परमाणु संधि के बावजूद अमेरिकी उपस्थिति बेहद कम है और भारत की पूर्ववर्ती सरकार के खिलाफ अमेरिकी महाभियोग की अंतर्कथा यही है।राष्ट्रभक्तों की सरकार ने रक्षा एफडीआई स्वेदेशीकरण के बहाने भारत अमेरिकी परमाणु संधि का सही मायने में कार्यान्वन करते हुए भारतीय रक्षा बाजार के लिए अमेरिकी कंपनियों के प्रवेश हेतु सभा दरवाजे और खिड़कियां खोल दिये हैं।

इसी सिलसिले में गौरतलब है कि अमेरिका-भारत व्यापार परिषद [यूएसआईबीसी] ने भारत सरकार द्वारा पेश आम बजट 14-15 की सराहना की है। साथ हीं बीमा और रक्षा दो प्रमुख क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का स्वागत किया है, जो कि अमेरिकी व्यापार समुदाय की लंबे समय से मांग थी। इसके साथ ही इसे भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार की उम्मीद वाला बजट बताया है।


संजोग है कि तेल गैस के निजीकरण से अंबानी समूह सबसे फायदे में है।तीन चार साल में बैंकों के निजीकरण से किसे फायदा होगा,यह वक्त ही बतायेगा।अब रक्षा क्षेत्र में विनिवेश का सबसे फायदा भी संजोग से टाटा समूह को हो रहा है।समाचार क्रांति का फायदा बटोरने में संजोगसे दोनों कंपनियां अग्रणी हैं।निर्माण विनिर्माण रेलवे विमानन बंदरगाह ऊर्जा शिक्षा चिकित्सा के निजीकरण से भी अलग अलग कंपनियों को फायदा हो रहा है।




देश को कितना फायदा होता है,यह मालूम नहीं है।मुक्त बाजार में उपभोक्ता हैसियत वाले नागरिकों पर दिनोंदिन बोझ जरुर बढ़ जाता है।


इन सुधारों को गरीबी उन्मूलन से जोड़ा गया है और रोजगार से भी। लेकिन निवेशकों की अटल आस्था फिर वही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और निजीकरण की रफ्तार में ही है।


रोजगार सृजन के लिए विदेशी निवेश और निजीकरण,उत्पादन के बदले सेवाक्षेत्र को प्राथमिकता देकर कृषि को खत्म कर देने के आक्रामक कार्यक्रम से रजगार,विकास और गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य हासिल हो सकते हैं,ऐसा उत्तर आधुनिक मुक्तबाजारी अर्थसास्त्र और एटीएम राजनीति है।


विनिवेश और रोजगार से रोजगार किस तेजी से बढ़ रहे हैं ,उत्पादन के आंकड़ों,विश्वबैंक आईएमएफ की रपटों,बदलती हुई परिभाषाओं और विदेशी एजंसियों की रेटिंग के साथ शेयर बाजार की सांढ़ संस्कृति से  ही इसका हिसाब किताब बनता है,जिसका हकीकत से कोई नाता होता नहीं है।


कल कारखानों,खेतों,चायबागानों,पहाड़ों, समुंदर और नदियों के किनारे,वनक्षेत्रों से निकलने वाले मृत्युजुलूसों को देखने की उपभोक्ता आंखें जाहिर है कि नहीं होती और औद्योगीकरण के बहाने अंधाधुंध महानगर,नगर और उपनगर,जो कि दरअसल मुक्तबाजार के मुक्त निरंकुश आखेटगाह हैं, के निर्माण के आइने में न चीखें गूंजती हैं और न विलाप और शोकगाथा के लिए वहां कोई स्पेस है।


विनियंत्रित विनियमित बाजार अब रक्षा क्षेत्र भी है और इसका स्वदेशीकरण हो रहा है।इस पर तुर्रा यह कि रक्षा एवं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज इन धारणाओं को गलत बताया कि रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा 26 से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पैदा होगा।


गौरतलब है कि सरकार ने 2014-15 के आम बजट में रक्षा जगत में एफडीआई की सीमा बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने की घोषणा की है। इस पर पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने आशंका जाहिर की थी कि सरकार के इस कदम से राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। एंटनी रक्षा मंत्री के तौर पर अपने पूरे कार्यकाल के दौरान एफडीआई सीमा बढ़ाने के खिलाफ खड़े रहे थे।


गौरतलब है कि सेना के आधुनिकीकरण के अभियान के तहत मौजूदा वित्त वर्ष में आम बजट में रक्षा आवंटन पिछले साल की तुलना में करीब 12.5 फीसदी बढ़ाकर 2,29,000 करोड़ रुपये किया गया है। इसके साथ ही सरकार ने रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत कर दी गयी है।


गौरतलब है कि अब तक तमाम रक्षा घोटाले सेना के आधुनिकीकरण के बहाने ही हुए।


गौरतलब है कि बजट घोषणा चाहे कुछ हो दरअसल सरकारी फैसला रक्षा जगत में एफडीआई की सीमा बढ़ाकर शत प्रतिशत करने की है ,जिसे सार्वजनिक उपक्रमों के स्ट्रेटेजिक सेलआउट की आजमायी विधि के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता अमेरिका को सेल आफ करना है।लेकिन भरोसा रखें क्योंकि राममंदिर बनाने की घोषणा की तर्ज पर राष्ट्र की सुरक्षा की गारंटी भी दी जा रही है।


पूरी युवापीढ़ी तकनीक दक्ष अतिदक्ष सेल्स एजंट और तकनीशियन हैं।कंपयूटर केंद्रित इस तकनीक का अब रोबोटिक रूपांतरण भी तेज है,जिसका मकसद अधिकतम आटोमेशन है जो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनिवार्य शर्त है।इस सिलसिले में कुछ ही समय पहले हमने सबसे तेज विकसित आईटी सेक्टर की छानबीन की है।अब उसे दोहराने की जरुरत नहीं है।


रक्षा क्षेत्र के इस प्रत्यक्ष विनिवेश से राष्ट्र की एकता और अखंडता के क्या हश्र संभव है,आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी युद्ध के नतीजतन रोज दुनिया के बदल रहे,लहूलुहान हो रहे भूगोल और इतिहास से जग जाहिर है।यूरोप,मध्य एशिया और अफ्रीका से जाहिर है कि हम राष्ट्रवादी कोई सबक सीखने को तैयार नहीं हैं।


प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सबसे बड़ा और सबसे गरीब भूगोल अफ्रीका महादेश है। इससे भी जाहिर है कि हमारा कोई लेना देना नहीं है।


बुनियादी सवाल लेकिन यह है कि राष्ट्र के अंधाधुंध सैन्यीकरण अविराम छायायुद्ध जारी रहने के मध्य दरअसल किसे होता है।


बुनियादी सवाल लेकिन यह है कि राष्ट्र के अंधाधुंध सैन्यीकरण किस शत्रू के खिलाफ है।


बुनियादी सवाल लेकिन यह है कि राष्ट्र के अंधाधुंध सैन्यीकरण के मध्य,आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका के युद्ध में साझेदारी और भारत अमेरिकी परमाणु सधि का फायदा दरअसल किसे हो रहा है।


फायदा चाहे जिस किसीको हो हकीकत तो यह है कि बहुसंख्य जनता के उत्थान के लिए,उनकी क्रयशक्ति में बढ़ोतरी के जरिये मुक्त बाजार में उनके वजूद के लिए कोई फायदा पिछले तेईस सालों में नही हुआ है।


फायदा चाहे जिस किसीको हो हकीकत तो यह है कि स्वतंत्रतता के बाद जिस समूहों पर रक्षा सौदों में घोटाला और भ्रष्टाचार का आरोप है,जनादेश हमेशा उन्हींके पक्ष में बनता है और सत्ता में चाहे कोई हो,उस समूह के निरंकुश वर्चस्व पर किसी किस्म का अंकुश नहीं लगता।


बहुसंख्य जनता के उत्थान के लिए,उनकी क्रयशक्ति में बढ़ोतरी के जरिये मुक्त बाजार में उनके वजूद के लिए कोई फायदा पिछले तेईस सालों में नही हुआ है।लेकिन इसके विपरीत लोकतंत्र का हाल यह हो गया है कि पंचायत से लेकर संसद तक मालामाल लाटरी खुल गयी है राजनीतिक तबक के लिए।


जनप्रतिनिधि तमाम या तो अरबपति है या कमसकम करोड़पति।


चुनावों में लाखों करोड़ रुपये के न्यय़रा वारा का स्रोत पिछले सात दशकों की स्वतंत्रता की सबसे बड़ी उपलब्धि है और गरीबी हटाओ के नारे लग जाने के बाद 1969 से अब तक गरीबों के सफाये के अलावा कुछ हुआ नहीं है।


जय जवान जय किसान नारा अब दरअसल मरो जवान मरो किसान है और रक्षाक्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का यही स्वदेशीकरण है।



रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) सीमा बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने की आलोचना को खारिज करते हुए वित्त एवं रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने आज कहा कि घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए यह कदम जरूरी है, क्योंकि सेना के लिए 70 प्रतिशत साजो-सामान का आज भी आयात किया जाता है।

गौरतलब है कि रक्षा क्षेत्र में एफडीआई सीमा को मौजूदा 26 से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने को सही ठहराते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि देश रक्षा जरूरतों के लिए काफी कुछ विदेशों पर निर्भर है और ऐसे में लड़ाई होने की स्थिति में यह देश कभी भी आपूर्ति रोक सकते हैं।

विदेशी कंपनियों को रक्षाक्षेत्र छोड़ देने से घरेलू उद्योगों के विकास के  साथ साथ रोजगार का सृजन होगा,ऐसा उनका कहना है।

संजोग से अमेरिकी अर्थव्यवस्था का अभिमुख भी यही है जो कि सारी दुनिया जानती है कि मुकम्मल युद्धक अर्थव्यवस्था है।अमेरिकी कंपनियां दुनियाभर में युद्ध और गृहयुद्ध का कारोबार करती हैं।जाहिर है कि इसका नतीजा भी सामने है।2008 की महामंदी इराक और अफगानिस्तान में अमेरिकी सेनाओं के फंस जाने सकी वजह से अमेरिका का वजूद ही मिटाने चली थी और युद्धक अर्थव्यवस्था के इस अमेरिका संकट को वैश्विक वित्तीय संस्थानों के जरिये अमेरिका ने समूची दुनिया पर थोंप दिया था।


खास बात तो यह है कि अमेरिकी युद्धक अर्थव्यवस्था की जमानत के लिए ही इराक में मानवताविरोधी युद्धअपराधी अचानक भारतप्रेमी हो गये और उनक इस भारत प्रेम की वजह से भारत अमेरिकी सैन्य संधि हो गयी,जिसके बदले में भारत को अमेरिका और इजरािस की अगुवाई में आतंक के विरुद्ध अमेरिका के युद्ध में साझेदार भी बनान पड़ा।नतीजतन भारतीय राजनय और विदेश नीति इतनी गूंगी हो चुकी है कि गाजा पर इजरायली हमले के विरुद्ध एक शब्द तक कहने की हैसियत भी नहीं है।अमेरिका से भारत इसतरह नत्थी हो गया कि अमेरिकी हित भारत के हित हो गये।हर भारतीय नागरिक की मुकम्मल निगरानी के सबूत मिलने पर भी यूरोप और लातिन अमेरिक संप्रभु देशों की तरह भारत प्रतिवाद भी नहीं कर सका।संप्रभुता के विसर्जन के बाद अब डिजिटल देश बन रहा है,जहा नागरिकता बायोमेट्रिक है,जैसा अमेरिका,इंग्लैंड और जर्मनी में भी नहीं है।


भारतीय जनता भारत अमेरिकी परमाणु संधि का जनादेश दिया नहीं था,न नमो सुनामी के लिए सत्तादल के चुनाव घोषणापत्र में देश को एफडीआई हिंदू राष्ट्र बनाने की कोई घोषणा हुई थी।

सब  को मालूम है कि रक्षा,बीमा और खुदरा कारोबार में अमेरिकी कंपनियों का सबसे ज्यादा दांव है। लेकिन एकमुश्त वित्त प्रतिरक्षा मंत्री कारपोरेट वकील जेटली ने लोकसभा में बजट पर चर्चा का उत्तर देते हुए कहा, 'हम आज भी 70 प्रतिशत रक्षा सामान विदेशों से आयात कर रहे हैं। सवाल यह उठता है कि जो लोग रक्षा क्षेत्र में 49 प्रतिशत एफडीआई का विरोध कर रहे हैं, आप विदेशों से 100 प्रतिशत तैयार सामान खरीद सकते हैं लेकिन अपने देश में बनने पर इसका विरोध करेंगे। मेरा मानना है कि 49 प्रतिशत सीमा रखना देश के व्यापक हित में है।'

सवाल है कि कौन ये हथियार बनायेगा और उन कंपनियों का ब्यौरा किसी ने संसद में अभीतक पूचा नहीं है।मीडिया में टाटा समूह के फायदे की चर्चा तो फिरभी होने लगी है लेकिन उन अमेरिकी कंपनियों के बारे में सन्नाटा है,जिनके नाम मालामाल लाटरी है।

गौरतलब है कि दुनियाभर में तेलक्षेत्र पर कब्जा कर लेने वाले युद्धक अर्थव्यवस्था के डालर वर्चस्व के लिए देश को अमेरिका बनाने और भारतीय कंपनियों को अमेरिकी युद्धक कंपनियां बनाने का कार्यक्रम सर्जिकल प्रिसिजन और कंप्लीट  धर्मोन्मादी मांइड कंट्रोल के मार्फत लागू कर रही  है देशभक्तों की यह केसरिया कारपोरेट सरकार।

एक सदस्य के सुझाव पर जवाब देते हुये वित्त एवं रक्षा मंत्री ने कहा कि रक्षा क्षेत्र में एफडीआई सीमा को बढ़ाकर यदि 49 प्रतिशत किया जा सकता है तो यह 51 प्रतिशत तक भी बढ़ सकती है। उन्होंने कहा कि इसे 49 प्रतिशत इसलिये रखा गया है ताकि ऐसी कंपनियों का नियंत्रण भारतीय हाथों में रहे।



अब रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा है  कि बड़े प्रस्ताव जिन्हें मंजूरी मिली उनमें नौसेना के लिए पांच बेड़ा सहायक पोतों की खरीद के लिए 9,000 करोड़ रुपए की एक निविदा भी शामिल है जिसके लिए सभी सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की गोदियों को अनुरोध प्रस्ताव (आरएफपी) जारी किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि इस बार रक्षा खरीद के लिए जिन प्रस्तावों को मंजूरी मिली है, उनमें ज्यादातर में केवल सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की भारतीय कंपनियां शामिल होंगी और इनका उद्देश्य सैन्य सामानों का स्वदेशीकरण बढ़ाना है।


रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) की पहली बैठक की अध्यक्षता करते हुए रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि रक्षा बलों के लिए कई प्रस्ताव विचाराधीन हैं और हमने उनमें से कुछ में तेजी लाने की कोशिश की है। अधिकारियों ने कहा कि इसलिए तटरक्षक बल और नौसेना को एचएएल (हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड) द्वारा

निर्मित 32 उन्नत हल्के हेलिकॉप्टर ध्रुव की आपूर्ति के लिए 7,000 करोड़ रुपए के प्रस्ताव को भी मंजूर दे दी गई। प्रस्ताव के तहत सरकारी कंपनी एचएएल तटरक्षक बल और नौसेना दोनों को 16-16 हेलिकॉप्टरों की आपूर्ति करेगी और साथ ही इनके रखरखाव की सेवा भी उपलब्ध कराएगी ताकि 'सबसे अच्छे स्तर का संचालन रखरखाव और कुशलता' सुनिश्चित की जा सके।


जेटली ने कहा कि रक्षा अधिग्रहण परिषद ने साथ ही वायुसेना के एवरो विमान के बेड़े की जगह लेने के लिए निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा 56 परिवहन विमानों के निर्माण की निविदा जारी करने के लिए वायुसेना के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी। उन्होंने इस निविदा को लेकर कहा कि यह एक महत्त्वपूर्ण परियोजना होगी जिसमें निजी क्षेत्र एकमात्र हिस्सेदार होगा और निजी क्षेत्र के क्षमता निर्माण को बढ़ावा मिलेगा। प्रस्ताव के तहत टाटा और महिंद्रा जैसी रक्षा क्षेत्र की निजी भारतीय कंपनियों को निविदा जारी की जाएगी और वे विदेशी कंपनियों के साथ भागीदारी में विमानों का निर्माण करेंगी।

From Jeep scandal to helicopter deal: A brief history of defence scams


New Delhi: From time to time a new case of kickbacks in defence deals come to light. Some of the defence deals have led to major changes in the political environment and former prime minister Rajiv Gandhi-led Congress lost the 1989 Lok Sabha elections government after the 1987 Bofors scam.

Here is a list of the famous cases of corruption in defence deals that have taken place in India after Independence.

Jeeps scam, 1948: After Independence the Indian government signed a deal with a company in England to supply 200 Jeeps. The contract was worth Rs 80 lakh but only 155 Jeeps were delivered. The then India's high commissioner to England VK Krishna Menon was embroiled in the controversy. But the case was closed in 1955 and later Menon went on to become former prime minister Jawahar Lal Nehru's trusted aide and India's defence minister.

A brief history of defence scams in India

Here is a list of the famous cases of corruption in defence deals that have taken place in India after Independence.

Bofors scam, 1987: Former Prime Minister Rajiv Gandhi was at the centre of the Bofors scandal after allegations that Rs 64 crore was paid to middlemen to facilitate the deal for the 155mm howitzers from the Swedish firm Bofors. The allegations were first made by the Swedish radio. It was alleged that Ottavio Quattrocchi, who was close to the family of Rajiv Gandhi, acted as a middleman in the deal and received kickbacks. The deal for 400 Bofors guns was worth $1.3 billion.

Barak missile scam: India had planned to purchase Barak missile from Israel. But former president APJ Abdul Kalam, who was the scientific adviser to the Prime Minster when the Barak missile deal was being negotiated, had opposed the weapons system. India had bought seven Barak missile systems costing Rs 1,150 crore from Israel. The CBI had registered an FIR in the case in 2006. Former treasurer of the Samata Party RK Jain was arrested in the case. The CBI had questioned why the system was purchased even after the DRDO had raised its objections. According to the CBI the missile system was purchased at a much higher rate than that initially quoted by Israel. It was also alleged that the then defence minister George Fernandes had ignored the objections raised by the scientific adviser.

Coffin scam, 1999: During the 1999 Kargil war coffins were purchased top sent the bodies of martyred soldiers to their families. The CBI had registered a case against a US contractor and some senior Army officers. Then Defence Minister George Fernandes was also accused of being involved in the case.

Tehelka scam,1999: Tehelka.com, an online news portal revealed how army officers and political leaders were involved in taking bribes during arms deals. The sting showed that bribes were paid in at least 15 deals including the Barak missile case. In this sting which was code named Operation West End two Tehelka journalists posed as arms dealers and met several politicians and defence officers. Former BJP president Bangaru Laxam was shown taking a bribe of Rs 1 lakh in the sting. Then Samata Party chief George Fernandes's close friend Jaya Jaitley was also seen speaking to the Tehelka journalists. The government had also acted against one one Major General and four other senior army officers after their name cropped up the in sting operation. Fernandes, who was the defence minister then, resigned after the tapes were made public, but he was reinstated later.

Sudipta Ghosh case, 2009: In 2009 the former Ordnance Factory Board director general Sudipta Ghosh was arrested by the CBI. Ghosh had allegedly taken bribes from two Indian and four foreign companies which had been blacklisted by Defence Minister AK Antony.

Tatra trucks scam, 2012: Former Army Chief General VK Singh alleged that he was offered Rs 14 crore as bribe to clear a the purchase of Tatra trucks. Questions were also raised about the quality of the trucks.

http://ibnlive.in.com/news/from-jeep-scandal-to-helicopter-deal-a-brief-history-of-defence-scams/372801-3.html





ul 20 2014 : The Times of India (Ahmedabad)

Pvt sector flies into military transport aircraft project





To Tie Up With Foreigns Cos For 56 Planes

Signalling the end of defence PSU Hindustan Aeronautics' virtual monopoly in the domestic aerospace arena, the Modi government on Saturday gave the formal nod for the Indian private sector to tie up with a foreign collaborator to supply 56 transport aircraft to the IAF.

TOI on Wednesday reported that the defence acquisitions council (DAC), chaired by defence minister Arun Jaitley , would clear the proposed Rs 13,000 crore project in its meeting on Saturday .

The project had been put on hold by the previous UPA regime after the then heavy industries & public enterprises minister Praful Patel and the strong PSU lobby in October 2013 had vehemently opposed the move to keep state-run units like HAL and BEML out of the mega programme. But brushing this aside, Jaitley on Saturday said the "significant" project, under which the selected foreign aviation company will partner with an Indian Production Agency (IPA), would help domestic private sector to become "a player" in aircraft-manufacturing and lead to "capacity-building" in the country.

The sluggish performance by DRDO and its 50 labs, five defence PSUs, four shipyards and 39 ordnance factories have ensured that India still imports over 65% of its military requirements, earning the dubious distinction of being the world's largest arms importer.

Experts feel the domestic private sector has to be encouraged to enter into defence production in major way if the country wants a robust defence-industrial base, and

the transport aircraft project is a step in the right direction.

The DAC, attended by the three Service chiefs, defence secretary, DRDO chief and others, on Saturday also cleared other military proposals worth over Rs 21,000 crore.

This included five fleet support ships for Navy (Rs 9,000 crore), five offshore patrol vessels (Rs 2,000 crore) and five fast patrol vessels (Rs 360 crore) for Coast Guard, all of which will be constructed in domestic shipyards.

The meeting also cleared acquisition of 32 indigenous Dhruv advanced light helicopters for the Navy and Coast Guard from HAL at a cost of Rs 7,000 crore, which will also include maintenance, as well as search-and-rescue equipment worth Rs 900 crore for the armed forces.

But the clear takeaway was the transport aircraft project. Under it, the first 16 aircraft will be bought from the foreign OEM (original equipment manufacturer), while the rest 40 will be manufactured by the IPA to replace the ageing Avro fleet of IAF.

All 56 aircraft are to be delivered within eight years after the contract is inked.

Jul 20 2014 : The Economic Times (Kolkata)

Top Gun

Suman Layak






Why 14 companies, 4 foreign joint ventures, 6 non-equity alliances plus the new 49% FDI limit in defence equal a sound launch pad for the Tatas

The Marine One choppers used by the US president often escape the halo of glamour enjoyed by his aircraft fleet Air Force One. The Marine One fleet, which is the preferred alterna tive for presidential motorcades for safety reasons, are always a group of identical choppers, one of which carries the president with the others serving as decoys.

After the 9/11 terrori st at tacks, it was decided that the Marine One helicopter fleet's communication, transportation and security systems needed to be upgraded. By 2002, the department of defence flagged off the VXX programme for this endeavour, only for it to be dust-binned seven years later because of massive cost overruns. The Marine Corps restarted the programme soon after; by May 2014, the US Navy awarded Sikorsky Aircraft a $1.24-billion contract to build six presidential helicopters, and by 2023, the Stratford, Connecticut-headquartered company will deliver a replacement fleet of 21 aircraft.

That's doubtless a prestigious order for Sikorsky -as well as for one Indian aerospace and defence company that will be busy building the main body, or fuselage, of the new fleet at its Hyderabad factory in a joint venture with the American aircraft maker. Tata Advanced Systems Ltd (TASL), a wholly owned subsidiary of Tata Sons, has an agreement to produce helicopter cabins in India; and for good measure a joint venture in which Sikorsky has a 26% stake makes roughly 5,000 detailed aerospace components in India.

In the Cross Hairs The TASL-Sikorsky venture is one of four JVs that the Tatas have in the aerospace and defence sectors (see The Foreign Partners...), with the foreign partners holding 26% and the Indian conglomerate the rest. Then, there are another half a dozen technology transfer agreements that TASL has signed up for making a range of aerospace and defence equipment, from air-to-air refuelling to combat management for ships.

Armed with 14 companies with interests in defence, the Tata group would seem to have a ready launch pad for the impending action in the sector, with an order book of `8,000 crore and collective revenues of `2,500 crore for 2013-14. Know-how built over the years and indeed decades -whilst TASL was set up in 2007 by Ratan Tata, another company Tata Motors Defence Solutions has been selling buses and trucks to the army since 1956 -puts the group in an enviable position to step up the pace and make everything from complete radar systems and aircraft to future infantry combat vehicles (FICV) and replacements for Bofors guns.

With its comprehensive defence portfolio, the Tatas are all set to grab the opportunity that arises from the increase in the limit on foreign direct investment (FDI) to 49%, which is perhaps just the first step to further liberalization for key defence technologies. It's also placed well to play a key role in the Narendra Modi government's vision to bolster India's defence competencies and preparedness.

Sikorsky for sure will be looking on keenly.

The Indian defence establishment and the subsidiary of United Technologies (which also owns brands like Otis, Carrier and aeroengines maker Pratt & Whitney) are no strangers. The first choppers ever inducted by the Indian army in the 1950s were made by Sikorsky. The US order that Sikorsky has bagged will replace its ageing fleet of S-92 helicopters that now serve President Barack Obama. The current lot had been delivered back in 1974. Since then Sikorsky as a com pany and the manufacturing industry itself have evolved and India has emerged as the sole sourcing base for S-92 helicopter fuselages for Sikorsky.

This feather in the cap for India and the Tata Group's defence foray is not a flash in the pan. TASL also builds aircraft tails or empennages in a joint venture with Lockheed Martin, also in Hyderabad for Lockheed's C-130J Super Hercules aircraft. From 2015, TASL will be the sole supplier for this, too.

TASL has `4,500 crore of the total Tata group defence order book of `8,000 crore, which will be executed over the next four years. Around `500 crore has been invested in the past five years.

TASL had declared its serious intent when in 2010 it had picked up the first Tata acquisition in defence -a 74% stake in HBL Elta Electronics, which makes night-vision equipment. The partner Elta is from Israel.

Sukaran Singh, vice-president in the chairman's office at Tata Industries and director of TASL, has been around since Ratan Tata had laid out the defence roadmap in 2007.

He now works closely with current chairman Cyrus Mistry.

Singh is also the key interlocutor between other Tata companies that have relationships with the Indian defence industry like Tata Motors and Tata Power. Both have their own stories in India's private sector defence industry. Singh says: "We are now ready to bid for tenders for full aircraft manufacturing and complete radar systems. These are two diverse areas that can be done in India today separately by two PSUs -Bharat Electronics Ltd (BEL) and Hindustan Aeronautics Ltd (HAL). This shows you where private sector capacities in India have reached."

Bring Out the Big Guns If images of trucks, buses and cars are your first recall of Tata Motors, consider too that the automaker accounted for 40% of Tata's defence revenues in 2013-14. At the last Defence Expo in February 2014, Tata Motors showcased two armoured vehicles codenamed the LamV and the Kestrel. The Kestrel is an amphibious vehicle with a gun turret sitting on top. The company has been testing it at the reservoirs of the Central Water Research Institute in Pune. Within a month it will hand over a couple of prototypes to the Defence Research & Develop ment Organisation (DRDO) for their own set of tests for its amphibious mobil ity and manoeuvrability on mud, muck, deep waters, steps and across trenches. Ballis tic testing for its ability to withstand attacks will commence in a few more months. The protective moulded bodies are being made by a sister company Tata Advanced Materials Ltd.

VS Noronha, vice-president for defence and government business at Tata Motors, says the company has been selling to the Indian armed forces since 1956, mainly buses and trucks for troop movement. They have sold more than 1.2 lakh vehicles to Indian armed forces till date. "Now we want to consciously move on from logistics to armoured vehicles that will have the ability to engage the enemy." The LamV is a reconnaissance vehicle with a passenger compartment that can eject, like the pilot seat of a fighter airplane.

Noronha sees an export opportunity, too.







Jul 20 2014 : The Economic Times (Kolkata)

Why FDI is the Best Defence

Rajiv Bhargava






Foreign investment can help bring about a disruptive change in India's nascent defence industry

As our country fights its losing battle of achieving self-sufficiency in defence pro duction, the renowned doha by Kabir, "Kas turi kundal base, mrig dhunde ban mahi" (Fragrance lies within, but the deer searches the entire forest) probably has a deep mean ing for us.

India has been struggling to get its de fence production going, but has lagged.

While we do have quality weapons for our soldiers, they are mostly purchased from the global market. To maintain the availabil ity of the said weapon with the same quality when it is needed most has been a crucial battle that we have lost so far.

Fight Over FDI Today, there is a raging debate on the issue of FDI in defence. The critics are vociferous in their claim that FDI in defence would wipe out the nascent Indian defence indus try and will result in dumping of obsolete technology on Indian shores. They also state that 100% FDI means handing over the con trol of manufacturing critical defence equip ment in our country to a foreign entity.

On the other hand, those advocating FDI assert that we need it precisely because the domestic industry is nascent. There is a drought of technology and the current state will get us nowhere. They claim that FDI with transfer of technology would be like the rising tide that raises all the domestic boats. They also argue that with a majority of the weapons being procured abroad off the shelf, where is the proverbial security even now? On the contrary, manufacturing of high-quality weapons in the country by foreign original equipment manufacturers (OEMs) would not only instil some sense of security but also save the revenue spent on imports and indirectly benefit the economy through a multiplier effect.

A long-term integrated procurement plan released by the government gives out the planned procurement right up to 2027. To meet this requirement internally, the industry needs a capex of more than `50,000 crore in the next three years. The defence public sector units are in no position to make this investment and the Indian private industry is too risk-averse to make such investments with a high probability of sunk costs. To add to the woes, Indian defence market is a distorted one; with exports being minuscule, it is an oligopoly with the government being the sole client.

Surely but Steadily So how does one break this logjam? While the demand is on the increase, the domestic supply continues to stagnate, forcing the agonizing recourse to buying even more off the shelf. The solution is right in front of us: share R&D and production risks with global OEMs. We are the biggest buyers in a buyer's market; with the global defence market on a steady decline, the Indian spike commands such respect that we can dictate terms. We need to embrace realpolitik, junk antiquated ideologies and use FDI to a strategic advantage. FDI can ensure purchase of latest technology through direct government to government interactions; it can consolidate national security by ensuring the technology is utilized to manufacture weapons on our own shores and lastly, by leveraging defence offsets, it can obtain state-of-the-art technology that is not available in the open market.

Considering the India advantage, it is felt that FDI is the best option to revitalize domestic defence production. A few points for consideration: Permit 100% FDI, but be selective about the percentage; the more advanced the technology, higher the percentage of FDI. This will ensure adequate control in Indian hands while at the same time encourage the OEMs to make commitments.

Be hardnosed in enforcing our buyer's power while writing contracts. Ensure that intellectual property rights of the designs developed through FDI by the joint venture are retained within the country.

Bring out clear parameters that define `state-of-the-art technology'.

Leverage defence offsets to obtain technology not available off the shelf.

Permit export of defence equipment.

This will help reduce distortion in the Indian defence market and incentivize R&D in private sector.

Modify the defence procurement procedures for indigenous innovations in hightechnology products by start-ups.

Use influx from defence offsets to set up a fund for product development, indigenization of technology and R&D. Incentivize the 6,000-odd small and medium enterprises and they can bring out a disruptive change in Indian defence production.

One understands that FDI is no magic wand and embracing it will not get all the technology we need. But in the current scenario it is our best option. In Budget 2014, the government has already taken the initial step of enhancing FDI limit in defence to 49%, but this should be taken exactly as what it is -an initial step. Effectively, the limitations with 49% remain the same as those with 26%. We need to be practical and maintain this momentum by raising FDI to 51% and beyond, but with hawk-like monitoring. The cautious tread of this horse should convert into a big leap in the jumping lane, but without letting go of the reins.


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