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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Wednesday, December 31, 2014

पीके फिल्म का विरोध, आखिर क्यों?डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

पीके फिल्म का विरोध, आखिर क्यों?

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

पीके फिल्म का विरोध, आखिर क्यों?

सुप्रसिद्ध फिल्मी नायक आमिर खान अभिनीत की "पीके" फिल्म से पाखंडी और ढोंगी धर्म के ठेकेदारों की दुकानों की नींव हिल रही  हैं। इस कारण ऐसे लोग पगला से गये हैं और उलजुलूल बयान जारी करके आमिर खान का विरोध करते हुए समाज में मुस्लिमों के प्रति नफरत पैदा कर रहे हैं।


इस दुश्चक्र में अनेक अनार्य और दलित-आदिवासी तथा पिछड़े वर्ग के लोग भी फंसते दिखाई दे रहे हैं। ऐसे सब लोगों के चिंतन के लिए बताना जरूरी है कि समाज में तरह-तरह की बातें, चर्चा और बहस सुनने को मिल रही हैं। उन्हीं सब बातों को आधार बनाकर कुछ सीधे सवाल और जवाब उन धूर्त, मक्कार और पाखंडी लोगों से जो फिल्म "पीके" के बाद आमिर खान को मुस्लिम कहकर गाली दे रहे हैं और धर्म के नाम पर देश के शांत माहोल को खराब करने की फिर से कोशिश कर रहे हैं।  


यदि फिल्मी परदे पर निभाई गयी भूमिका से ही किसी कलाकार की देश के प्रति निष्ठा, वफादारी या गद्दारी का आकलन किया जाना है तो यहाँ पर पूछा जाना जरूरी है कि-


आमिर खान ने जब अजय सिँह राठौड़ बनकर पाकिस्तानी आतँकवादी गुलफाम हसन को मारा था, क्या तब वह मुसलमान नहीं था। 


आमिर खान ने जब फुन्सुक वाँगड़ू (रैंचो) बनकर पढ़ने और जीने का तरीका सिखाया था, क्या तब वह मुसलमान नहीं था। 


आमिर खान ने जब भुवन बनकर ब्रिटिश सरकार से लड़कर अपने गाँव का लगान माफ कराया था, क्या तब वह मुसलमान नहीं था। 


आमिर खान ने जब मंगल पाण्डेय बनकर अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की थी, क्या तब वह मुसलमान नहीं था। 



आमिर खान ने जब टीचर बनकर बच्चों की प्रतिभा कैसे निखारी जाए सिखाया था, क्या तब वह मुसलमान नहीं था।

 

आमिर खान द्वारा निर्मित टी वी सीरियल सत्यमेव जयते, जिसको देख कर देश में उल्लेखनीय जागरूकता आई, क्या उसे बनाते वक्त वह मुसलमान नहीं था। 


इतना सब करने तक तो आमिर भारत का एक देशभक्त नागरिक, लोगों की आँखों का तारा और एक जिम्मेदार तथा वफादार भारतीय नागरिक था। लेकिन जैसे ही आमिर खान ने "पीके" फिल्म के मार्फ़त धर्म के नाम पर कट्टरपंथी धर्मांध और विशेषकर हिन्दुओं के ढोंगी धर्म गुरुओं के पाखण्ड और अंधविश्वास को उजागर करने का सराहनीय और साहसिक काम किया है। आमिर खान जो एक देशभक्त और मंझा हुआ हिन्दी फिल्मों का कलाकार है, अचानक सिर्फ और सिर्फ मुसलमान हो गया? वाह क्या कसौटी है-हमारी?


क्या यह कहना सच नहीं कि आमिर खान का मुसलमान के नाम पर विरोध केवल वही घटिया लोग कर रहे हैं जो पांच हजार से अधिक वर्षों से अपने ही धर्म के लोगों के जीवन को नरक बनाकर उनको गुलामों की भांति जीवन बसर करने को विवश करते रहे हैं? यही धूर्त लोग हैं जो चाहते है-उनका धर्म का धंधा अनादी काल तक बिना रोक टोक के चलता रहे। जबकि इसके ठीक विपरीत ओएमजी में भगवान पर मुक़दमा ठोकने वाले परेश रावल को तो उसी अंध विचारधारा के पोषक लोगों की पार्टी द्वारा माननीय सांसद बना दिया गया है।


सच तो यह है कि इन ढोंगी और पाखंडियों को डर लगता है कि यदि आमिर खान का विरोध नहीं किया तो धर्म के नाम पर जारी उनका ढोंग और पाखंड, खंड-खंड हो जायेगा। उनके कथित धर्म का ढांचा भरभरा कर ढह जायेगा। ऐसे ढोंग और पाखंड से पोषित धर्म के नाम पर संचालित व्यवस्था को तो जितना जल्दी संभव हो विनाश हो ही जाना चाहिए। "पीके" जैसे कथानक वाली कम से कम एक फिल्म हर महिने रिलीज होनी ही चाहिए। 

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