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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Tuesday, March 1, 2016

कविता - हमारे शासक / ~मंगलेश डबराल

कविता - हमारे शासक / ~मंगलेश डबराल
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हमारे शासक ग़रीबी के बारे में चुप रहते हैं
शोषण के बारे में कुछ नहीं बोलते
अन्याय को देखते ही वे मुंह फेर लेते हैं
हमारे शासक ख़ुश होते हैं जब कोई उनकी पीठ पर हाथ रखता है
वे नाराज़ हो जाते हैं जब कोई उनके पैरों में गिर पड़ता है
दुर्बल प्रजा उन्हें अच्छी नही लगती
हमारे शासक ग़रीबों के बारे में कहते हैं कि वे हमारी समस्या हैं
समस्या दूर करने के लिए हमारे शासक
अमीरों को गले लगाते रहते हैं
जो लखपति रातोंरात करोड़पति जो करोड़पति रातोंरात
अरबपति बन जाते हैं उनका वे और भी सम्मान करते हैं
हमारे शासक हर व़क़्त देश की आय बढ़ाना चाहते हैं
और इसके लिए वे देश की भी परवाह नहीं करते हैं
जो देश से बाहर जाकर विदेश में संपति बनाते हैं
उन्हें हमारे शासक और भी चाहते हैं
हमारे शासक सोचते हैं अगर पूरा देश ही इस योग्य हो जाये
कि संपति बनाने के लिए बाहर चला जाये
तो देश की आय काफ़ी बढ़ जाये
हमारे शासक अक्सर ताक़तवरों की अगवानी करने जाते हैं
वे अक्सर आधुनिक भगवानों के चरणों में झुके हुए रहते हैं
हमारे शासक आदिवासियों की ज़मीनों पर निगाह गड़ाये रहते हैं
उनकी मुर्गियों पर उनकी कलाकृतियों पर उनकी औरतों पर
उनकी मिट्टी के नीचे दबी हुई बहुत सी चमकती हुई चीज़ों पर
हमारे शासक अक्सर हवाई जहाज़ों पर चढ़ते और उनसे उतरते हैं
हमारे शासक पगड़ी पहने रहते हैं
अक्सर कोट कभी-कभी टाई कभी लुंगी
अक्सर कुर्ता-पाजामा कभी बरमूडा टी-शर्ट अलग-अलग मौक़ों पर
हमारे शासक अक्सर कहते हैं हमें अपने देश पर गर्व है।
(साभार -નિમિશ પંડ્યા)
Gopal Rathi's photo.

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