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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Sunday, April 23, 2017

Humanity ashamed,not the people of India! Palash Biswas

Humanity ashamed,not the people of India!

Palash Biswas

Video:https://www.facebook.com/palashbiswaskl/videos/1692450647450004/?l=4428451761847766847


Not very long ago,India remained an agrarian society with agrarian economy.Socialism meant Green Revolution. Irrespective of caste, religion, race, language, region, celebration of life meant a common culture deeply rooted in rural India which was defined as Swraj!But we sacrificed the Agrarian India on the altar of free market economy only 25 years ago and agrarian growth rate reduced to near zero. nWe wanted a consumer market and a service oriented economy in which the state and the government elected by the people should be managers of the global corporate companies.The task had to accomplished with religious ritual of vedic racist sacrifice tradition of the caste,calss race hegemony ruling India.

Hence,the cashless digital India means ethnic cleansing of the agrarian communities ie SC,ST,OBC and minorities the majority rooted in rural India and mass nuclear destruction of rural India to make in an oversmart India with readjustment of demography with pure blood.

It is happening and the it is systematic strategic selling off the natural resources owned and defended by agrarian communities.

Thus,the ruling class and its policy making governance bodies never care to address the agrarian crisis created by themselves.

The agrarian crisis rather has become a magical wand with inherent inequality and injustice to sustain the hegemony rule.

We have seen prime ministers belonging to agrarian communities time and again,majority ministers in center and states,CMs and politicians speaking aloud about the wellness of peasantry who have been blasting the peasantry with their political might.

Earth day celebrated as the Nation has no sympathy with the peasantry!They represent the Earth under monopolistic racist fascist aggression unabated!Those naked peasants on Jantar Mantar and shameless political class and the intelligentsia speaking on earth and environment have not the courage to stand with those naked humanity who feed us with the growth of the soil.Democracy and justice witness ding urine by the helpless producers as the consumers captured everything with their purchasing capacity and the peasantry is subjected to ethnic cleansing!

It seems rather  like a magic show to attract the audience as the peasantry has no space to raise their voice.The Jantar Mantar show evented for the media representes the helplessness of the majoority Indian citizens belonging to Indian peasantry.

Earth might not sustain itself if the peasantry is killed by the Global oreder of ethnic cleansing!


From Wikipedia, the free encyclopedia:

In 2014, the National Crime Records Bureau of India reported 5,650 farmer suicides.[1] The highest number of farmer suicides were recorded in 2004 when 18,241 farmers committed suicide.[2] The farmers suicide rate in India has ranged between 1.4 and 1.8 per 100,000 total population, over a 10-year period through 2005.[3]

India is an agrarian country with around 70% of its people depending directly or indirectly upon agriculture. Farmer suicides account for 11.2% of all suicides in India.[1] Activists and scholars have offered a number of conflicting reasons for farmer suicides, such as monsoon failure, high debt burdens, government policies, public mental health, personal issues and family problems.[4][5][6] There are also accusation of states manipulating the data on farmer suicides.[7]


पेशे से पत्रकार आशुतोष मिश्रा ने किसानों के मूत्रपान करने की ख़बर शेयर करते हुए पूछा है, 'हिंदुओं के साथ इतना अन्याय! कहां गए धर्म के रक्षक जो गरीब हिंदू किसानों के लिए आगे नहीं आ रहे?'


जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने किसानों के मूत्र पीने की ख़बर को शेयर करते हुए ट्वीट किया, 'जिन्हें नाज़ है हिंद पर वे कहां हैं…

Raavenraj Sayam Koitoor जंतर मंतर पर किसानो ने मूत्र पिया।

आरक्षण और मेहनत से अफसर बने किसान पुत्र और किसान के दम भरने वाले नेताओं को सांप सूंघ गया।

आक्रोश की चिंगारी उठने लगी है

संभल जाओ वरना कुछ नहीं बचेगा।

तुम्हारे महल राख हो जाएगें।

धरती पुत्र है धरती जैसा दिल है किसानो का सब सहते है।भूकंप आया ना तो तुम्हारी ऊंची ऊँची हवेलियां मिट्टी में मिल जाएगी।



पिछले एक महीने से देश के राजधानी दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे तमिलनाडु के किसानों ने शनिवार को मांगें नहीं माने जाने पर नाराजगी जाहिर करते हुए मूत्र पिया। सूखे की मार झेल रहे तमिलनाडु के किसान केंद्र सरकार से कर्ज माफी की मांग कर रहे हैं। किसान 38 दिनों से केंद्र से कर्जमाफी और वित्तीय सहायता की मांग के साथ धरने पर हैं। सरकार और प्रशासन का ध्यान अपनी बदहाली की ओर खींचने के लिए गले में खोपड़ी पहनने से लेकर सड़क पर सांभर-चावल और मरे हुए सांप-चूहे खाने तक, इन किसानों ने कई सांकेतिक तरीकों का सहारा लिया। हालांकि सरकार ने किसानों के इस प्रदर्शन को लेकर आंख-कान बंद कर रखे हैं। सरकार की ओर से अभी उन्हें किसी तरह की मदद का आश्वासन नहीं दिया गया है।

शनिवार को किसानों द्वारा प्रदर्शन के दौरान मूत्र पीने की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है। जिसके बाद सोशल मीडिया पर लोग इनके समर्थन में खड़े हो गए हैं। वहीं, कई यूजर्स ने किसानों की मदद न करने पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार को फटकारा है तो कुछ लोगों ने पीएम मोदी से इनकी मदद करने की अपील की है। कुछ यूजर्स ने सरकार और पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए शर्म करने को कहा है।

आंदोलन की अगुआई कर रही नेशनल साउथ-इंडियन रिवर्स लिंकिंग फार्मर्स असोसिएशन के स्टेट प्रेजिडेंट पी.अयाकन्नू ने कहा था कि हमें पीने के लिए तमिलनाडु में पानी नहीं मिल रहा है और पीएम नरेंद्र मोदी इसकी अनदेखी कर रहे हैं, तो हमें अब अपने मूत्र से ही प्यास बुझानी पड़ेगी। प्रदर्शन कर रहे किसानों का कहना है, 'हम लोगों को नजरअंदाज करके मोदी ने बता दिया कि वह हम लोगों को दिल्ली से भगाना चाहते हैं, कभी-कभी तो हमें लगता है कि इससे अच्छा तो हम लोगों को गिरफ्तार कर लिया जाए।' इसके साथ ही किसानों ने शनिवार को मूत्र पीने के साथ ही कहा कि सरकार ने हमारी मांग पर ध्यान नहीं दिया तो रविवार को अपना मल खाएंगे।

इस सिलसिले में स्त्री काल के संपादक संजीव चंदन का मंतव्य गौरतलब हैः

अब किसानों को न्याय मिल जायेगा क्योंकि अब साहित्यकर भी 41वें दिन संवेदित हो गये हैं।

आखिरकार स्कूल की लड़ाई लड़ते, हिंदी के साहित्यकारों के प्रिय पत्रकार , श्री रवीश कुमार ने किसानों के संघर्ष पर प्राइम टाइम कर दिया । बस साहित्यकार भी संवेदित हो गए। उसके पहले रवीश जी जब स्कूलों को ठीक करने में लगे थे, तो बीच-बीच में दूसरे चैनलों पर कटाक्ष भी करते जा रहे थे कि वे गाय, हिन्दू-मुसलमान या मंदिर-मस्जिद कर रहे होंगे।

वैसे तमिलनाडु वाले किसान, पाठ्यपुस्तकों वाले निरीह किसान नहीं हैं। कभी भाजपा के तमिलनाडु में कार्यकर्ता रहे इन किसानों के नेतृत्व को यह पता है कि मीडिया तमाशा पसन्द है, तमाशा के बाद ही वे कवरेज देते हैं। योगी-मोदी में लगे मीडिया को अपने जरूरी मुद्दों के प्रति आकर्षित करने के लिए उन्हें 40 दिन से तरह-तरह के इवेंट करने पड़ रहे हैं। क्योंकि सरकार मीडिया में हंगामे के बाद ही सुनती है। इंडियन एयरलाइंस में हंगामा करने वाले शिवसैनिक सांसद को सरकार ने सबक सिखवा दिया और सहारनपुर में बड़े पुलिस अधिकारी के घर तोड़-फोड़ करने वाले भाजपा सांसद पर चुप्पी साध ली।

दिल्ली में अजीबोगरीब इवेंट के साथ आंदोलन करते किसान मीडिया को कमोवेश अपनी ओर खींच ही ले रहे-अब जब किसान कपड़े उतार देगा रायसीना पर, अपना ही पेशाब पीने लगेगा जंतर-मंतर पर तो झक मारकर कवरेज करियेगा ही, हजारो किसान की मौत संवेदित न करती हो तो भी। इस तरह के इवेंटमय आंदोलन किसान विदर्भ में कई बार करते रहे हैं।

कुछ साल पहले उन किसानों के घर और उन गांवों में जाना हुआ था , जहां क्रमशः सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मनमोहन सिंह के जाने के बाद बड़ा मीडिया इवेंट बना था। जहां सोनिया गईं, जिस किसान विधवा को एक लाख का चेक दिया था, उसकी समस्या ज्यों की त्यों थी, उसके खेत गांव के नाले में डूबते थे, फसल नष्ट होता था, यथावत रहा सबकुछ । राहुल की पोस्टर वुमन विधवा किसान कलावती के एक और किसान दामाद ने आत्महत्या कर ली थी। और मनमोहन सिंह के जाने के पहले तक , जिस वायफड़ गाँव मे एक भी किसान ने आत्महत्या नहीं की थी , वहां दो-दो किसानों ने आत्महत्या कर ली ।

तो हे संवेदित मित्रों , जब तक कृषि मजदूरों को स्कीलड श्रमिक का दर्जा नहीं मिलेगा, जब तक उनके फसल का उचित दाम नहीं मिलेगा, जिसके लिए कुछ आपको भी योगदान करने होंगे, यानी खाद्य पदार्थों के लिए अधिक भुगतान करना होगा, जबतक समग्र नीति नहीं बनेगी, तबतक आपको किसान बेचारे अपने इवेंट से संवेदित करते रहेंगे, क्योंकि उनके मरने से वैसी संवेदना कहां जाग पाती है!

Peasants committing suicides are cowards and criminals — said BJP minister

हाल में नई दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की रैली में भी एक किसान की खुदकशी पर हंगामा बरपा था।फ्लैश बैक में इसे भी सोशल मीडिया के सौजन्य से देख सकते हैंः

Gajendra Singh, a farmer from Rajasthan, his crops ruined by rains, hanged himself from a tree at an AAP rally here on 22 April just before Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal addressed thousands against the controversial land ordinance. The unfortunate event was captured live by the electronic media. It took place at Jantar Mantar in the heart of the city where thousands from Delhi and other states had turned up to denounce the land bill at a mass meeting called by the AAP. A suicide note in Hindi found at the spot said the man was taking his life because untimely rains had destroyed his crops and ruined him. Immediately after the incident, political blame game ensued with the leaders of various ruling parties slinging mud at each other for the heart-rending incident.

But the most 'startling" comment came from O P Dhankar, BJP agriculture minister of Haryana. He described the peasants who commit suicide as cowards and criminals not worthy of help from the government. Playing a second fiddle to such politicians devoid of conscience are the self-styled economists in the pay roll of the ruling monopolists. Swaminathan A Aiyer wrote in his column in the Times of India dated 10 May 2015 that "Everybody loves farm suicides" because "Many states now compensate suicide-hit families, delighting moneylenders who had lent to these families and can now use muscle to claw back their dues from the compensation money." He further added that "presenting farm suicides as a single mass tragedy can win awards for journalists, TRPs for TV anchors, donations for NGOs opposing commercial crops and globalization, slogans for leftists attributing everything to class war, and votes for opposition parties." So the media, according to him, is highlighting farm suicides. This "erudite" person has then made a comment that would make even a donkey laugh. "The overwhelming cause of suicide is mental stress, not financial stress. Many suicides (notably in Andhra Pradesh) were of farmers who borrowed heavily to drill tubewells that quickly ran dry. Free electricity in many states (including AP) has greatly lowered water tables, ruining tubewells. Thus ''free electricity causes suicide", observes this 'celebrated economist-columnist'. The government might think of awarding a higher "Padma" award to him for such path-breaking discoveries.

On the other hand, Dhankar who earlier headed the BJP's Kisan Cell, and is on record to have condemned the previous UPA government for not doing enough for farmers, denied that any farmer had committed suicide due to crop damage. But the fact is that after scores of debt-ridden farmers saw their winter crops damaged by unseasonal hailstorms and rains in states such as Rajasthan, Uttar Pradesh, Haryana and Punjab, there were reports of a string of suicides. The governments irrespective of hues whose brazenly anti-peasant policies have pushed the poverty-stricken hapless peasants to take recourse to such extreme steps are unfazed. On top of it, politicians like Dhankar who have ridden to power with the backing of the exploitative monopolists and are committed to serve their sinister class interest as their faithful subservient and in exchange are allowed to enjoy pelf and power do not feel even a fig ashamed for making such most atrocious remarks.

As per the latest report, one peasant commits suicide in every 38 minutes, 47 in a day. The overall number of peasants' suicide has crossed 3 lakhs. And power-greedy anti-people bourgeois politicians like Dhankar have gone to the extent of even shunning the typical hoodwinking practice of the hypocrites to shed crocodile tears for public consumption and instead have been showing audacity to pass such derogatory remarks against the wretched impoverished pauperized peasants who being unable to secure any help or assistance from the power that be are ending their lives en masse. Time has come when the destitute peasants must understand that committing suicide would allow these heartless spineless politicians to thrive and prosper at their cost. They must close their ranks and unleash a massive organized movement to force the autocratic government yield to their righteous demand to live and dislodge persons like Dhankar from the public offices



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