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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Sunday, March 14, 2010

अमेरिकी निगमों की उम्मीद बिल परमाणु क्षति जन दायित्व विधेयक! परमाणु क्षति विधेयक न लाये सरकार!दम तोड़ती जनता का लंगोट उतारती चुनावी कोरपोरेट राजनीति

अमेरिकी निगमों की उम्मीद बिल परमाणु क्षति जन दायित्व विधेयक! परमाणु क्षति विधेयक न लाये सरकार!दम तोड़ती जनता का लंगोट उतारती चुनावी कोरपोरेट राजनीति

पलाश विश्वास

मृत्यु उपत्यका है यह मेरा देश भारत वर्ष। बर्बर, रक्ताक्त समय है यह और चारों तरफ घूमते हत्यारे दस्ते खूंखार।

इतिहास के पन्ने पलटने पर पता चलेगा कि देश में आज जो अफरातफरी है उसके लिए केंद्र सरकार भी जिम्मेदार है।न्याय मिलने में सालोंसाल लग जाते हैं। यह न्याय न मिलने जैसा है। अदालतों में लगभग तीन करोड़ मामलें लंबित हैं। 15-15 साल तक निर्णय के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ जाती है। हत्या के कुछ मामलों में सुनवाई हुए एक दशक हो जाने पर भी निर्णय प्रतीक्षित है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 15 हजार सेवानिवृत्त जजों अथवा उन लोगों की नियुक्ति संबंधी एक योजना को मंजूरी दे दी है, जो लंबित मामलों को निपटा सकें। इसके बावजूद बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा कि फैसले कितने जल्दी आते हैं। उन हथकंडों में ही बहुत-सा समय व्यर्थ हो जाता है, जो कोई पक्ष निर्णय को लटकाने के लिए अपनाता है। निचली अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक एक लंबा कानूनी सिलसिला है। कुछ प्रक्रियाओं, बहसों, वार्ताओं और कागजी कार्यवाही में कटौती की जा सकती है ताकि फैसला जल्दी लिया जा सके। यह सब कुछ कानूनी मांगों पर बिना किसी समझौते या झुके हुए हो सकता है। न्याय में तीव्र गति के लिए न्यायिक सुधार जरूरी हैं। आजकल तो न्यायपालिका पारस्परिक संरक्षित समाज बनती जा रही है। फैसले जजों के बारे में बहुत कुछ कहते हैं, किंतु वर्षो के अनुभव से उन्होंने सीख लिया है कि अपनी कमियों को कैसे ढका जाए।

भारत आज छोटे परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के सबसे प्रतिस्पर्धी निर्माता हैपरमाणु दुर्घटना की स्थिति में मुआवजा के प्रावधान वाले महत्वपूर्ण जन दायित्व विधेयक के सोमवार को लोकसभा में पेश होने की पूरी संभावना है। ऐतिहासिक भारत- अमेरिका परमाणु करार के कार्यान्वयन में इस विधेयक की अहम भूमिका होगी। भाजपा और वाम दलों ने पहले ही परमाणु क्षति जन दायित्व विधेयक का विरोध करने का संकेत दे दिया है।पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने पीड़ितों को मुआवजा की सीमा पर अंकुश लगाने के प्रस्तावित प्रयास को मौलिक अधिकार का उल्लंघन करार दिया है। सोली सोराबजी ने कहा कि मुआवजा की सीमा तय करना सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन होगा और भारत के नागरिकों के हितों तथा उनके मौलिक अधिकारों के प्रतिकूल होगा।विधेयक के संबंध में जेटली ने संभवत: प्रश्नों की एक सूची सौंपी है लेकिन अब तक उन्हें कोई जवाब नहीं मिला है। केंद्रीय कैबिनेट ने पिछले साल 20 नवंबर को विधेयक को अनुमोदित कर दिया था।



विधेयक में हरेक परमाणु दुर्घटना की स्थिति में परमाणु संयंत्र के संचालक की ओर से 300 करोड़ रुपये की अधिकतम राशि की जिम्मेदारी की बात की गई है। हालांकि मसौदा विधेयक में प्रावधान किए गए हैं जिसके आधार पर सरकार किसी संचालक के लिए राशि में कमी या वृद्धि कर सकती है। भाजपा ने 300 करोड़ रुपये की सीमा को लेकर चिंता जताई है।


मसौदा विधेयक के प्रावधानों के अनुसार संयंत्र का संचालक वैसी स्थिति में उत्तरदायी नहीं होगा अगर घटना की वजह गंभीर राष्ट्रीय आपदा या असाधारण आपदा या सशस्त्र संघर्ष या आतंकी गतिविधि हो या व्यक्ति की निजी लापरवाही के कारण दुर्घटना होती हो।


परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष और भारत अमेरिका परमाणु करार में अहम भूमिका निभाने वाले अनिल काकोदकर का मानना है कि दायित्व सीमा अधिकतम है। उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि यह राशि कम नहीं रखी गई। मैं समझता हूं कि यह उचित और तर्कसंगत स्तर है। उन्होंने कहा कि यह संतुलित है और इसे मौजूदा स्वरूप में पारित करने की आवश्यकता है।

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विधेयक में परमाणु क्षति दावा आयोग के गठन का भी प्रावधान है। इसमें विशेष क्षेत्रों के लिए एक या अधिक दावा आयुक्त होंगे। दावा आयुक्तों के पास दीवानी अदालत का अधिकार होगा।


तीन सौ करोड़ रुपये की सीमा के बारे में पूछे जाने पर माकपा के सीताराम येचुरी ने कहा कि वहां सभी मुद्दे हैं और स्थाई समिति में हम उन सभी मुद्दों पर विचार विमर्श करेंगे। ऐसी खबरें हैं कि सरकार इस विधेयक को बजट सत्र में ही पारित कराने के पक्ष में है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने भाजपा नेता अरुण जेटली से भेंट कर उन्हें विधेयक से अवगत कराया था लेकिन मुख्य विपक्षी दल की चिंताओं पर उसे अब तक कोई जवाब नहीं मिला है। सरकार ने गुरुवार को बताया कि किसी असंभावित नाभकीय घटना के घटित होने की स्थिति में देश के लोगों के हितों की सुरक्षा के लिए संसद के चालू सत्र में एक विधेयक को पेश किए जाने की संभावना है।

भाजपा के रविशंकर प्रसाद और जद [यू] के शिवानंद तिवारी द्वारा पूछे गए प्रश्नों के लिखित उत्तर में विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा संसदीय कार्य राज्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने राज्यसभा को बताया कि नाभिकीय क्षति के लिए असैन्य दायित्व विधेयक, 2010 को संसद के चालू सत्र में पुन:स्थापित किए जाने की संभावना है।

उन्होंने कहा कि किसी असंभावित नाभिकीय घटना के घटित होने की स्थिति में देश के लोगों के हितों की सुरक्षा के लिए और देश में नाभिकीय उद्योग के विकास को आगे बढ़ाने के लिए इस प्रकार का विधान महत्वपूर्ण है।

चव्हाण ने बताया कि देश में 18 नाभिकीय विद्युत रिएक्टर प्रचालनरत हैं, इनमें से 4 रिएक्टरों में आयातित ईधन का इस्तेमाल किया जाता है और यह पूर्ण क्षमता पर काम कर रहे हैं। इन रिएक्टरों के लिए ईधन का आयात फ्रांस और रूस से किया गया है। अन्य रिएक्टर, स्वदेशी रूप से उत्पादित यूरेनियम की कमी के कारण अपनी क्षमता के अधिकतम 70 प्रतिशत पर काम कर रहे हैं।

उन्होंने बताया कि वर्ष 2020 तक 20,000 मेगावाट की कुल नाभिकीय विद्युत क्षमता पर पहुंचना संभव है।

उन्होंने बताया कि लगभग 20,000 मेगावाट की क्षमता के लिए स्वदेशी और आयातित यूरेनियम को मिलाकर ईधन के रूप में काम में लाया जाएगा। यद्यपि, दीर्घावधि ईधन आपूर्ति के करार अंतरराष्ट्रीय सहयोग के आधार पर स्थापित किए जाने वाले रिएक्टरों के लिए किए जाएंगे, तथापि, नई खानें खोलकर और अयस्क संसाधन सुविधाओं का आवर्धन करके स्वदेशी ईधन की आपूर्ति को बढ़ाने क प्रयास किए जा रहे हैं।

चव्हाण ने बताया कि देश में परमाणु ऊर्जा उत्पादन संयंत्रों की वर्तमान उत्पादन क्षमता 4,340 मेगावाट है।

उन्होंने बताया कि 4,340 मेगावाट की क्षमता में से 740 मेगावाट की क्षमता के लिए आयातित ईधन का इस्तेमाल किया जाता है और इसका प्रचालन पूर्ण क्षमता पर किया जा रहा है। शेष क्षमता के लिए स्वदेशी ईधन का इस्तेमाल किया जाता है जिसकी उपलब्धता कम है।

चव्हाण ने बताया कि नई अतिरिक्त क्षमता के कारण यूरेनियम की मांग में वृद्धि होने और नई खानें खोलने, अयस्क संसाधन मिलों के लिए अपेक्षाकृत अधिक समय की जरूरत होने तथा आवश्यकता और स्वदेशी यूरेनियम के उतपादन के बीच बेमेलता होने की वजह से परमाणु ऊर्जा उत्पादन में कमी आई है लेकिन स्थिति में उत्तरोत्तर सुधार हो रहा है।

चव्हाण ने बताया कि निर्माणाधीन परियोजनाओं को पूरा करके नाभिकीय विद्युत की 4340 मेगावाट की वर्तमान विद्युत क्षमता को क्रमिक रूप से बढ़ाकर मार्च 2012 तक 7,280 मेगावाट किया जाएगा। वर्ष 2009 में 2,800 मेगावाट की अतिरिक्त विद्युत के लिए अनुमोदन दिया गया है। 13वीं योजना के दौरान और अधिक परियोजनाएं निर्मित करने का भी विचार है।

उन्होंने बताया कि निर्माणाधीन परियोजनाएं पूरा होने के अंतिम चरण में हैं और इन परियोजनाओं के लिए अगले दो वर्षो [2010-11 और 2011-12] में अनुमानत: 3,619 करोड़ रुपये की धनराशि अपेक्षित होगी। यह राशि आंतरिक श्रोतों, बाजार से ऋण और बजटीय सहायता के संयोजन के जरिए पूरी की जाएगी।

उन्होंने बताया कि सरकार ने हरियाणा के फतेहबाद जिले में कुम्हारिया में 4 गुणा 700 मेगावाट क्षमता के दाबित भारी पानी रिएक्टर [पीएचडब्ल्युआर्ज] स्थपित करने के लिए अनुमोदन दे दिया है। भूमि का अधिग्रहण करने सहित परियोजना पूर्व के कार्यकलाप शुरू कर दिए गए हैं।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री ने कहा कि देश में परमाणु ऊर्जा संस्थापनाओं की हिफाजत के लिए पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था मौजूद है और उसे आवधिक रूप से अद्यतन किया जाता है।

उन्होंने बताया कि निजी क्षेत्र, परमाणु विद्युत संयंत्रों को स्थापित करने में एक कनिष्ठ इक्विटी भागीदार के रूप में भाग ले सकता है।

उन्होंने बताया कि भारत में निजी क्षेत्र, संघटकों, उपस्करों की आपूर्ति और कार्य संविदाओं के माध्यम से नाभिकीय विद्युत संयंत्रों को स्थापित करने में भाग लेने की स्थिति में है। वर्तमान में, नाभिकीय विद्युत उत्पादन परियोजनाओं में भारतीय निजी क्षेत्र की भागीदारी, परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 के मौजूदा प्रावधानों के अनुसार जारी रहेगी।







वाम दलों ने प्रस्तावित परमाणु क्षति नागरिक दायित्व विधेयक को असंवैधानिक और गैर कानूनी बताते हुए सभी राजनीतिक दलों से इसे खारिज करने की अपील की है। चारों वाम दलों मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी. माकपा. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी . भाकपा. रिवोल्युशनरी सोशलिस्ट पार्टी. आर एस पी और आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक ने आज एक वक्तव्य जारी कर इस विधेयक का कड़ा विरोध करते हुए इसे भारतीयों के हितों के खिलाफ बताया। आज जारी वक्तव्य में कहा गया है कि यह विधेयक अमरीका और उसके परमाणु उद्योग के हितों की पूर्ति करता है। इन दलों ने कहा है कि सरकार इस विधेयक के  जरिये अमरीका से गुपचुप की गई वचनबद्धता को पूरा करना चाहती है। वक्तव्य में कहा गया है कि विधेयक में उच्चतम न्यायालय के आदेशों को नजरअंदाज तो किया ही गया है उचित मुआवजे की मांग के लिए अदालत जाने के नागरिक के अधिकारों के साथ भी समझौता किया गया है। वाम दलों के अनुसार यदि यह विधेयक पारित हो जाता है तो किसी तरह की परमाणु दुर्घटना होने पर मुआवजे के मामले में अमरीकी कंपनी अपना पल्ला झाड़कर अलग हो जायेगी और  यह राशि करदाताओं से वसूली जायेगी और अमरीका की परमाणु कंपनी मुनाफा कमायेंगी। उन्होंने कहा कि इस विधेयक में आपूर्तिकर्ता को खुली छूट देते हुए आपरेटर पर पूरा दायित्व डाल दिया गया है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब इंग्लैंड हर मोर्चे पर पिछड़ रहा था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने मुख्य न्यायाधीश को लिखा था कि न्यायपालिका इंसाफ सुनिश्चित करे। आश्चर्यचकित मुख्य न्यायाधीश ने व्यग्र होकर चर्चिल से पूछा था कि जब उनका सारा ध्यान आगे बढ़ते आ रहे नाजियों को रोकने पर केंद्रित है तो फिर उन्होंने ऐसा भय क्यों व्यक्त किया? चर्चिल ने तत्काल उत्तर दिया कि जब तक लोगों को यह भरोसा रहेगा कि उन्हे न्याय मिलेगा वे अभावों के बीच भी देश के लिए संघर्ष करते रहेंगे। आज न्याय को लेकर भारतीयों के मन से भरोसा हिल रहा है। इसके दो कारण हैं। एक यह कि न्यायपालिका में भरोसा घटा है और दूसरा यह कि न्याय मिलने में देरी होती है। लगभग दो दशक पूर्व तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पीएन भगवती ने रिटायर होते हुए कहा था कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार 'छलांगें' मार रहा है। अभी बहुत अरसा नहीं हुआ सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश एसपी भरूचा ने भी आरोप लगाया था कि 15 प्रतिशत न्यायपालिका भ्रष्ट है। न्यायाधीशों और अन्य प्रकांड विद्वानों ने इस आरोप को बिना किसी झिझक के स्वीकार कर लिया, क्योंकि वे जानते थे कि यही आम धारणा है। प्रमुख वकीलों ने खुलकर कुछ न्यायाधीशों पर उंगली उठाई है। वे कई बार इस आशय के प्रस्ताव पारित कर चुके है। अब जन साधारण में यह धारणा है कि निष्पक्ष न्याय सुलभ नहीं है। मीडिया ने अनेक उदाहरण दिए है कि न्यायाधीशों में से अमुक-अमुक संदेह के घेरे में है। चाहे पंजाब हो, पश्चिम बंगाल हो अथवा कर्नाटक, न्यायाधीशों के भ्रष्टाचार के खिलाफ स्वर मुखर और तीव्र हुए हैं। उच्चतम न्यायालय तक पर आरोप लगे हैं, जिस कारण वह भी एक तरह से कठघरे में खड़ा है।

आज सवाल यह है कि किसे किस पर नजर रखनी चाहिए। स्पष्ट है कि कार्यपालिका ऐसा नहीं कर सकती। वैसे भी उसकी छवि उजली नहीं है। यदि संसद दखल दे तो न्यायपालिका सीधी हो जाएगी। संविधान उसे विधि निर्माण की कानूनी पड़ताल की अनुमति देता है ताकि संसद संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन न कर सके। प्रधानमंत्री तक के विरुद्ध भी आरोपों की जांच करने की व्यवस्था का प्रस्ताव है। पूर्ववर्ती सरकारे ऐसे प्राधिकरण के गठन का आश्वासन तो देती रहीं, किंतु इसे ठोस शक्ल नहीं दी गई। उन्हें डर था कि कोई स्वतंत्र प्राधिकरण उनके दोषों की जांच करने में समर्थ हो जाएगा। न्यायपालिका की कार्यप्रणाली गोपनीयता के आवरण में छिपी है। तब भी जब केंद्रीय सूचना आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि वह हाल में तीन न्यायाधीशों की नियुक्ति के बारे में संपूर्ण पत्र व्यवहार को उजागर करे और फाइल नोटिंग के बारे में भी जानकारी दे। इस पर उच्चतम न्यायालय ने सीआईसी के आदेश को ही स्थगित कर दिया। सूचना का अधिकार (आरटीआई) एक कानून है। लोकतांत्रिक प्रणाली के सुचारू ढंग से कार्य करने के लिए पारदर्शिता आवश्यक है। जब सर्वोच्च निकाय सुप्रीम कोर्ट अपने व्यवहार से संबद्ध एक केस को ही रोक दे तो शासन व्यवस्था बेबस नजर आती है। दरअसल, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में अनेक नियुक्तियों पर प्रश्नचिह्न लगे है। ये सब नियुक्तियां सर्वोच्च न्यायालय कोलेजियम ने की हैं, जो सर्वोच्च न्यायालय के तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों का एक निकाय है।

हम सब मिलकर इस देश को बदल सकते हैं और दुनिया पर प्रभाव डाल सकते हैं
- राहुल गांधी

(लोकसभा में 22 जुलाई, 2008 को विश्वास मत पर बहस के दौरान भाषण)

      माननीय अध्यक्ष महोदय, सरकार की ओर से मुझे आपने बोलने की इजाजत दी, इसके लिए आपको धन्यवाद। कल जब मैं यह सोच रहा था कि इस सदन में मैं क्या कहूंगा तो मैं एक सरल निष्कर्ष पर पहुंचा। मैंने यह तय किया कि इस मोड़ पर मुझे एक राजनीतिक दल के सदस्य के रूप में नहीं, बल्कि एक भारतीय के रूप में बोलना चाहिए। मैं यह भी कहना चाहूंगा कि आप भी एक भारतीय की तरह बोलें और मुझे उस पर कोई शक नहीं होगा। इसलिए मैंने तय किया कि मैं वह करुं जो हमारे अधिकतर राजनीतिज्ञ आम तौर पर नहीं करते।

      मैंने यह तय किया कि मैं अपने भाषण को एक केन्द्रीय धारणा पर आधारित करुं। धारणा यह है कि इस सदन का हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी दल का हो, चाहे वह भाजपा, शिवसेना, समाजवादी पार्टी अथवा बसपा का हो, राष्ट्रहित में बोले। इसलिए मैं यह कहना चाहूंगा कि इस धारणा की चर्चा मैं अपने भाषण में बार-बार करूंगा।

      कल मैंने यह सोचा कि हम लोग आज यहां क्यों मिल रहे हैं, क्या कारण है कि सदन की यह बैठक आज यहां हो रही है। मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि हम लोग इसलिए यह बैठक कर रहे हैं क्योंकि भारत में एक गंभीर समस्या कायम है और वह समस्या है हमारी ऊर्जा सुरक्षा को लेकर।

      गरीबी ऊर्जा सुरक्षा से सीधे रूप में जुड़ी हुई है और मैं यह बताऊंगा कि कैसे। अपने भाषण में मैं माननीय सदस्यों को बताऊंगा कि किस तरह गरीबी का ऊर्जा सुरक्षा से सीधा संबंध है। फिर मैं हरेक सदस्य से यह आग्रह करुंगा कि वे मुझे 10 मिनट का समय दें और उन 10 मिनटों तक मेरी बातें सुनें। मेरा यही आग्रह है।

      तीन दिन पहले मैं विदर्भ गया था और वहां एक युवती से मिला था जिसके तीन पुत्र हैं। शशिकला नाम की यह युवती भूमिहीन मजदूर है और रोजाना 60 रुपए की मजदूरी कर जीवन बसर करती है। उसका पति पास के एक खेत में काम करने जाता है और उसकी 90 रूपये की दैनिक कमाई है। इसी पूरी कमाई से वे अपने तीनों बच्चों को एक निजी स्कूल में पढ़ाते हैं। मैं एक घंटे तक उनके साथ था। वे एक झुग्गी-झोंपड़ी में रहते हैं। मैंने उन बच्चों से बात की तथा उनकी मां से भी बात की। सबसे बड़ा बेटा कलक्टर बनना चाहता है, बीच का लड़का इंजीनियर बनना चाहता है जबकि छोटा प्राइवेट नौकरी करना चाहता है। जब मैंने शशिकला से पूछा कि क्या वह सोचती हैं कि उनके बच्चे सफल होंगे या नहीं, उसने मेरी ओर देखा और कहा, ''बिल्कुल।''

      जब मैं घर से बाहर निकल रहा था तो मैंने देखा कि घर में बिजली नहीं है। मैंने बच्चों से कहा कि जब मैं छोटा था, मैं शाम में पढ़ा करता था। वे कैसे पढ़ते हैं। बच्चों ने एक छोटे से लैम्प की ओर इशारा किया, वहां एक पीतल का लैम्प था। उन्होंने कहा, ''हम लोग उसी लैम्प की रोशनी में पढ़ते हैं।'' ऊर्जा सुरक्षा की यह समस्या हम लोगों के साथ हर दिन देखने को मिलती है। यह समस्या गरीबों के बीच देखने को मिलती है, जैसी स्थिति शशिकला के यहां देखने को मिली। उद्योगों की भी यही स्थिति है। सारे भारतीयों की भी यही स्थिति है।

      ऊर्जा भारत को प्रभावित करती है, ऊर्जा भारत के विकास को प्रभावित करती है, ऊर्जा हमें 9 प्रतिशत की दर से विकास करने में मदद के लिए जिम्मेवार है और यही विकास गरीबों के लिए कार्यक्रम निर्धारित करने में मददगार साबित होता है, जैसा कि भाजपा की प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) से हुआ और जैसा कि कांग्रेस पार्टी के नरेगा तथा गारंटी वाली शिक्षा के कार्यक्रम से हुआ है।

      मैं यहां जिस बिन्दु पर जोर डालना चाहता हूं कि वह यह है कि यदि हम भविष्य में अपनी ऊर्जा आपूर्ति सुरक्षित नहीं करेंगे तो विकास रुकेगा और हम गरीबी की समस्या से जूझने में समर्थ नहीं हो सकते। यह ऐसा संघर्ष है जो इस सदन का हर एक सदस्य करना चाहता है।

      मैंने यह बताया है कि समस्या क्या है। मैं इसके समाधान के लिए फिर विदर्भ की चर्चा करना चाहूंगा। मैं फिर दूसरी युवती कलावती की चर्चा करना चाहता हूं जिसके नौ बच्चे हैं।

      मैं कलावती की चर्चा करुंगा। मुझे खुशी है कि यह आपको हास्यास्पद लगता है। परन्तु कलावती वह युवती है जिसके पति ने आत्महत्या कर ली है। इसलिए मैं आपसे आग्रह करुंगा कि आप भी उसका सम्मान करें। मैं आपको कलावती के घर ले जाऊंगा। वहां भी मैं तीन दिन पहले गया था। कलावती एक ऐसी महिला है जिसके नौ बच्चे हैं और जिसके पति ने तीन साल पहले आत्महत्या कर ली थी। उसके पति ने इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि वह एक फसल पर निर्भर था और वह फसल थी कपास। जब मैंने कलावती से पूछा कि उसके पति ने क्यों आत्महत्या की तो उसका जवाब था कि वह आमदनी के केवल एक ही स्रोत पर निर्भर थे।

      मैंने कलावती से पूछा कि फिर उसने क्या किया। कलावती ने मुझे जवाब दिया कि उसने खेती में विविधता पैदा की। जब मैंने उस विधवा से पूछा कि वह अपनी समस्या का समाधान कैसे निकालती है। उसने कहा कि एक फसल की जगह वह अब तीन फसलें बोती है। उसने मुझे बताया कि उसने दो भैंसे खरीदी जिससे दूध भी उसकी आमदनी का स्रोत बन गया है। उसने मुझे यह भी बताया, जो काफी महत्वपूर्ण है, कि उसने एक छोटा-सा तालाब बनवाया जिसे वह पानी से भर देती है और जब वर्षा नहीं होती है वह उसके लिए एक बीमा पॉलिसी जैसा लाभ देता है।

      मैंने दो गरीब परिवारों से बातचीत की है। उनमें से एक श्रीमती कला का परिवार है। श्रीमती कला ने बताया कि उसने अपनी आमदनी के स्रोतों में विविधता पैदा की है और उसकी मदद से अपने परिवार की स्थिति में स्थिरता कायम की है तथा अपने बच्चों का पालन पोषण किया है।

      महोदय, कम से कम परमाणु ऊर्जा श्रीमती कला के तालाब की तरह तो हमारे देश के लिए संकट की घड़ी में बीमा पॉलिसी जरूर साबित होगी। जहां तक इसके अधिकतम लाभ का सवाल है, परमाणु ऊर्जा श्रीमती कला की मुख्य फसल की तरह काम करेगी।

      इसलिए समस्या यह है कि आज हमारे परमाणु उद्योग की जो स्थिति है, वह कोई परिणाम नहीं दे पाएगा। ना तो वह बीमा पॉलिसी साबित होगा और न ही उसमें ऊर्जा का मूल स्रोत बनने की क्षमता है। इसका ऐसा न होने का कारण यह है कि हमारे वैज्ञानिकों के हाथ बंधे हैं, हमारी व्यवस्था के हाथ बंधें हैं। उनके हाथ इसलिए बंधे हुए हैं कि एक तरफ उनके पास ईंधन उपलब्ध नहीं हैं और दूसरी तरफ उनके पास निवेश एवं प्रौद्योगिकी का अभाव है।

      महोदय, मुझे यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि हमारे प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी ने दोनों - समस्या तथा उसके संभावित समाधान की पहचान कर ली है। परन्तु, यह स्वीकार न करना मेरे लिए अनुचित होगा श्री वाजपेयी ने भी समस्या ढूंढ़ निकाली थी और अपने कार्यकाल में ही उसका समाधान ढूंढ़ निकाला था। अब, जैसा कि मैंने कहा है और हम सभी जानते हैं कि इस देश में ऊर्जा सुरक्षा से संबंधित समस्या कायम है और हम सबको दीर्धकालिक संभावना के मद्देनजर इस पर विचार करने की आवश्यकता है। यह एक ऐसी समस्या है जिसका समाधान हम सबको मिलकर ढूंढने की जरूरत है।

      जैसाकि मैंने कहा है, वरिष्ठ नेताओं ने भी यह प्रमाणित कर दिया है कि भविष्य विविधता तथा ऊर्जा के एक से ज्यादा स्रोत, एक संतुलित व्यवस्था में निहित है जिसमें परमाणु, हाइड्रोकार्बन तथा पवन ऊर्जा शामिल है।

      परन्तु, महोदय, समस्या तथा समस्या के समाधान की संभावना का पता लगाना ही पर्याप्त न होगा। श्री मनमोहन सिंह जी जो जादू कर रहे हैं वह यह है कि उन्होंने समस्या के भीतर से ही एक ऐसा सुअवसर खोज निकाला है जो समस्या से भी विशाल है। हमारे प्रधानमंत्री ने जो सुअवसर खोज निकाला है वह एक सरल तथ्य पर आधारित है। वह इस तथ्य पर आधारित है कि अगले 30-40 साल के दौरान दो देश नये ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल करने जा रहे हैं। ये देश हैं चीन और भारत। इन दोनों देशों में ऐसे रास्ते तय करने की क्षमता है जिस पर विश्व ऊर्जा का विकास होगा।

      महोदय, मेरा यह सुझाव है कि ऊर्जा समस्या को एक समस्या मानने की जगह हमें अपने ऊर्जा उपयोग को एक सुअवसर मान कर चलने की शुरुआत करनी चाहिए। किसी भी बाजार में एक बड़े खरीददार की तरह हममें भी वह क्षमता है कि हम वैश्विक ऊर्जा उद्योग का स्वरूप निर्धारण कर सकें। ऊर्जा उद्योग विश्व के अन्य उद्योगों से भिन्न है। जैसा कि मैंने शुरु में ही कहा है, ऊर्जा का इस्तेमाल हर जगह, हर चीज में और आर्थिक एवं सामाजिक जीवन के हर पक्ष में होता है। ऊर्जा ने राष्ट्रों का विनाश किया है और राष्ट्रों का निर्माण भी किया है।

      हमारे पुराने प्रतिद्वन्द्वी ब्रिटिश शासकों को इसलिए प्रसिद्धि मिली क्योंकि उन्होंने कोयले पर नियंत्रण कायम कर लिया था। अमेरिका ने आज हाइड्रोकार्बन पर नियंत्रण कायम कर रखा है। उसका हाइड्रोकार्बन पर ज्यादा जोर है और हम जानते हैं कि वे कितने शक्तिशाली हैं। मेरा जो सुझाव है वह यह है कि हम एक बड़े देश की तरह, एक शक्तिशाली देश के रूप में सोचना शुरु कर दें। यह सोचने की बजाय कि दुनिया का हम पर किस तरह का प्रभाव पड़ेगा, हमें यह चिंता शुरु कर देनी चाहिए कि हम किस तरह दुनिया पर अपना प्रभाव डालेंगे।

      कई साल पहले देश ने जिस पथ को चुना था उसके प्रति अनेक लोगों को विश्वास ही नहीं था। हमने एक उद्योग विकसित किया था जो आईटी उद्योग एवं टेलीकाम इंडस्ट्री के नाम से जाना जाता है। उस समय बहुत कम लोगों को यह विश्वास था कि भारत इस उद्योग में एक बड़ी भूमिका निभाएगा। बहुत कम लोगों को विश्वास था कि कम्प्यूटर गरीब लोगों को शक्तिशाली बनाएगा और इस देश के काम करने के तरीके में बदलाव लाएगा। आज हम सब देखते हैं कि कम्प्यूटर का क्या प्रभाव पड़ा है। हम लोग देख रहे हैं कि आईटी और संचार उद्योगों का इस देश पर क्या प्रभाव पड़ा है। महत्वपूर्ण बात यह है कि हम लोग इस तथ्य को नहीं भूलें। यह महत्वपूर्ण है कि हम इसे न भूलें क्योंकि हम एक चौराहे पर खड़े हैं, उसी तरह के चौराहे पर जब आईटी के बारे में फैसला लिया जाने वाला था।

      फैसला तीन अथवा सात प्रतिशत ऊर्जा के बारे में लेने का नहीं है। यह भारत के परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल के बारे में फैसला लेने का मामला नहीं है। यदि हमें उस विशाल परिदृश्य को ध्यान में रखना है। यह उस तरह की ऊर्जा के इस्तेमाल के मामले में भारत के वैश्विक शक्ति बनने का सवाल है जो भविष्य में काफी महत्वपूर्ण साबित होने वाली है। हम सभी जानते हैं कि हाइड्रोकार्बन से किस तरह की समस्या पैदा होती है। हम सब प्रदूषण के बारे में भी जानते हैं।

      इससे पहले एक माननीय सदस्य ने मुझसे पूछा था कि ऊर्जा और गरीबी के बीच का क्या संबंध है। हम सभी जानते हैं कि आज भारत में हाईड्रो कार्बन तथा कीमतों के आधार पर हमारे बीच क्या कड़ी है।

      महोदय, जब हम बिजली के बारे में सोचते हैं, जब हम परमाणु बिजली के बारे में सोचते हैं, हमें देश के सर्वाधिक गरीबों के बारे में भी सोचना होगा। आमतौर पर अधिकतर लोग जो विश्वास करते हैं उसके विपरीत, जब हम देश में आईटी उद्योग के बारे में सोचते हैं, हम लोग देश के गरीबों के बारे में सोच रहे होते हैं। यह ऐसा मामला है जिसका पार पाना मुश्किल है क्योंकि यह सहज अनुभूत नहीं है। परन्तु, किसी को भी उद्योग, बिजली और गरीब के बीच के संबंधों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए।

      महोदय, मैंने काफी समय ले लिया है। इसलिए मैं बोलते रहना नहीं चाहता हूं। परन्तु मैं अंत में एक बात कहना चाहता हूं। मुझे इस बात की बड़ी खुशी हुई कि सदस्य अब मेरी बात सुन रहे हैं।

      एक शक्ति देश और जो शक्तिशाली देश नहीं है और जिसका विश्व मंच पर प्रभाव नहीं पड़ता है, उनके बीच अंतर यही है कि शक्तिशाली देश सोचता है कि वह दुनिया पर किसी तरह अपना प्रभाव डालेगा।

      महोदय, इसका महत्व नहीं है कि देश का संचालन कौन-सी सरकार कर रही है। भविष्य में अनेक सरकारें देश में आएंगी। परन्तु, इस बात का महत्व है कि हम दुनिया में अपनी स्थिति के बारे में किस तरह सोचते हैं। इस बात का महत्व है कि हम यह सोचना बंद कर दें कि दुनिया के देश हम पर किस तरह प्रभाव डालेंगे, हम इस बात से डरना बंद कर दें कि दुनिया हम पर किस तरह अपना प्रभाव डालेगी और हम उससे उबरेंगे और यह चिंता करना कि हम दुनिया पर किस तरह अपना प्रभाव डालेंगे।

      महोदय, जैसाकि मैंने पहले कहा है, आज मैं एक कांग्रेस जन अथवा एक कांग्रेसकर्मी के रूप में नहीं बोल रहा हूं बल्कि एक भारतीय के रूप में बोल रहा हूं। अपना भाषण खत्म करने से पहले मैं दो बातें कहना चाहूंगा। पहली बात यह है कि हम सब मिलकर इस देश का निर्माण कर रहे हैं। इस देश का किस प्रकार से निर्माण होना चाहिए, उसके बारे में हमारे अलग-अलग विचार हो सकते हैं। हमें क्या करना चाहिए, उसके बारे में हमारे अलग-अलग मत हो सकते हैं। हम लोग अनिवार्यवश इस कक्ष में इकट्ठा बैठते हैं और हमें इकट्ठे अपनी समस्याओं को हल करना है। यही वह बात है जो हमको एक-दूसरे से भिन्न बनाता है और यही बात है जो हमें वास्तविक अधिकार प्रदान करती है जिससे हमारी बात इस कक्ष में सुनी जा सकती है, कि कोई एक ध्वनि इस कक्ष की दूसरी ध्वनि में व्यवधान डाल सकती है। मैं इसके प्रति गंभीर हूं। यह मेरे लिए असहज स्थिति है। परन्तु मुझे इस बात का बड़ा गर्व है कि इस देश में हर बात सुनी जा सकती है।

      मैं दो बातें कहकर अपना भाषण खत्म करना चाहूंगा। पहली बात यह है कि हमें कभी नहीं डरना चाहिए और न डरकर कभी कोई काम करना चाहिए। हमें किसी अनजान शक्ति के डर से कोई फैसला नहीं करना चाहिए और यह कि हम ऐसा काम करेंगे तो क्या होगा। हमें एक ही नियम के अनुरूप कदम उठाना चाहिए और वह है साहस। दूसरी बात जो मैं कहना चाहूंगा वह यह है कि हमारा देश करोड़ों लोगों का है, हममें से 70 प्रतिशत युवा हैं। मैं इस देश के लिए पुराना हूं, मैं औसत उम्र से ऊपर हूं। यह महसूस करना महत्वपूर्ण है कि यह देश विश्वास से भरा हुआ है और इसे पूरा आत्म विश्वास है। एक अन्य बिन्दु, जिसे हमें देश के नेता के रूप में फैसला लेते समय कभी नहीं भूलना चाहिए, वह यह है कि उसमें हमारा विश्वास होना चाहिए, अपने लोगों में विश्वास कि हमारी क्या कुछ करने की क्षमता है। हमें वे क्या कर रहे हैं उसके प्रति विश्वास होना चाहिए।

      मेरे विचार में ये मार्गनिर्देश न सिर्फ कांग्रेस नेताओं के लिए हैं, ये निर्देश हर भारतीय नागरिक के लिए है कि आपको कब कदम उठाना है, चाहे आप जो भी हों, आपके जो भी विचार हों, आप साहस के साथ कदम उठाएं और विश्वास के साथ काम करें। इस विश्वास के साथ हम देश को बदल सकते हैं तथा दुनिया पर प्रभाव डाल सकते हैं।

      अपना भाषण समाप्त करते हुए मैं माननीय प्रधानमंत्री का समर्थन करना चाहूंगा तथा यह कहना चाहूंगा कि उन्होंने भारी साहस का परिचय दिया है और भारतीय लोगों में विश्वास प्रकट किया है और यह कहना चाहूंगा और मैं इस पार्टी के अथवा उस पार्टी के अथवा सभी दलों के युवा सदस्य के रूप में यह बात कहना चाहता हूं जिनके लिए इसका कोई मतलब नहीं कि आज यहां क्या हो रहा है। महत्व इस बात का है कि हम एकजुट होकर काम करना शुरु करें और हम सब मिलकर इस देश की समस्या का समाधान निकालें।

      मैं प्रधानमंत्री के प्रस्ताव का समर्थन करना चाहूंगा। धन्यवाद।


भारत अपना रास्ता तय करेगा

- प्रणव मुखर्जी

( 21 जुलाई, 2008 को लोकसभा में विश्वास मत पर बहस के दौरान भाषण)


     
माननीय अध्यक्ष, मैं प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह द्वारा पेश विश्वास मत का समर्थन करने के लिए खड़ा हुआ हूं। प्रस्ताव है कि उनके नेतृत्व वाली ''मंत्रिपरिषद के प्रति यह सदन विश्वास प्रकट करता है।'' मैं देख रहा हूं कि मेरे परम प्रिय दोस्त प्रो. मल्होत्रा भी यहां मौजूद हैं, हालांकि विपक्ष के नेता मेरी बात सुनने के लिए यहां नहीं हैं। जैसी कि मैं उम्मीद करूंगा, आपने सही ही इंगित किया है कि सिर्फ लोकसभा के सदस्य अथवा दूसरे सदन के सदस्य बहस को देख रहे हैं, बल्कि पूरा देश इस बहस को निहार रहा है। इसलिए मैं सदन के नेता के रूप में सारे संबंधित सदस्यों से आग्रह करता हूं कि हम में से प्रत्येक का अपना संदर्भ है और हमको अपने विचार प्रकट करने की पूरी आजादी होनी चाहिए, भले ही दूसरों को मान्य नहीं हो, परन्तु हरेक को अपनी पसंद के अपने तरीके से विचार प्रकट करने की कोशिश करनी चाहिए। इसलिए मैं प्रधानमंत्री द्वारा पेश प्रस्ताव का समर्थन करने और असैनिक परमाणु करार को सही परिप्रेक्ष्य में पेश करने के लिए खड़ा हुआ हूं।

      इस असैनिक परमाणु सहयोग करार को एक तरह का सौदा कहे जाने पर मुझे आपत्ति है। यह एक समझौता है। इस करार के माध्यम से हम अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पूरे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ असैनिक परमाणु सहयोग कायम करना चाहते हैं। यह सहयोग खासकर उन 45 देशों के साथ कायम होगा, जिनमें असैनिक परमाणु व्यापार शुरु करने की क्षमता है, जिन्होंने एनएसजी (न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप) गठित कर रखा है। इसलिए मैं सदन के माननीय सदस्यों के सामने अपने विचार प्रकट करना चाहता हूं। यह उन पर निर्भर है कि वे इसे माने या खारिज कर दें, अथवा आंशिक रूप से इसे स्वीकार करें अथवा आंशिक रूप से इसे खारिज कर दें, क्योंकि यह एक बुनियादी सिद्धांत की बात है। परन्तु कुछ खास तथ्यों को सही करने से पहले मैं यह कहना चाहूंगा कि यह किसी सिद्धांत की बात नहीं है, बल्कि कुछ खास तथ्यों का मामला है।

      विपक्ष के माननीय नेता ने उच्च नैतिक मंच पर यह मामला बनाने की कोशिश की है कि जैसे ही वामपंथी दलों ने अपना समर्थन वापस लिया, यह सरकार अल्प मत में गई है। माननीय अध्यक्ष, मैं यूपीए सरकार की शक्ति और 4 जुलाई, 2008 को इसके समर्थकों की संख्या के बारे में कुछ तथ्य एवं आंकड़े पेश करना चाहता हूं। यदि आप कहें तो मैं पूरी शक्ति का आंकड़ा दे सकता हूं। परन्तु मैं सदन का समय बचाने के लिए इसका सिर्फ दलवार आंकड़ा दे रहा हूं। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के कुल 234 सदस्य, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 10, आरएसपी 3, फारवर्ड ब्लॉक 3, केरल कांग्रेस 2, निर्दलीय 1 (कुल 61) तथा बसपा 17। कुछ लोगों का कहना है कि यह संख्या 19 है। यदि मैं 19 को ही सही मान लूं तब भी राष्ट्रीय लोकदल 3, असंबद्ध 2। कुल 22। कुल संख्या 317। बसपा काफी पहले अपना समर्थन वापस ले चुकी थी। इसका मतलब 317 में 17 कम यानि 300। वाम दलों के सभी 61 सदस्यों के समर्थन वापस लेने के बाद हमारी सदस्य संख्या घटकर 237 हो गई।

      उसी दिन समाजवादी पार्टी ने आधे घंटे बाद अपने 39 सदस्यों का समर्थन हमें प्रदान कर दिया। मेरा सहज अंकगणित यह कहता है कि 237 जोड़ 39 कुल 276 हुआ। लोकसभा की सही वर्तमान सदस्य संख्या के बारे में अपने सचिवालय से आप जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। अभी लोकसभा के मतदाताओं की कुल संख्या 541 है। यह हिसाब लगाना कोई बड़े अंकगणित का काम नहीं है कि साधारण बहुमत के लिए कितनी सदस्य संख्या की जरूरत है। परन्तु, विपक्ष के नेता बहुत आसानी से इस निष्कर्ष पर पहुंच गए कि यह सरकार बहुमत का समर्थन खो चुकी है। हमारा यह दावा तब हसी साबित होगा जब मतदान के बटन दबाए जाएंगे। कृपया खुदा के वास्ते तब तक धैर्य रखें। जब तक साबित नहीं हो जाता कि सरकार अल्पमत में नहीं है। यदि यह बात साबित हो जाएगी तभी साबित मानी जाएगी। यह मेरा पहला बिन्दु है।

      दूसराः विपक्षी नेता ने दूसरे नैतिक बिन्दु की चर्चा की है। हम लोग कभी गैर-भाजापाई अथवा विपक्षी दल की सरकार को अस्थिर करने की कभी कोशिश नहीं की। माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं पीछे की घटना की चर्चा करना नहीं चाहता जब 1977 में भाजपा भी सरकार का एक घटक था, केन्द्र सरकार ने कलम की एक ही नोक पर आठ राज्य सरकारों को इस आधार पर बर्खास्त कर दिया था कि जनता ने (कांग्रेस पार्टी के) विरोध में जनादेश दिया है। मैं उस तथ्य के विस्तार में नहीं जाना चाहता। मैं इस तथ्य की चर्चा करना चाहता हूं कि जब 1989 के चुनाव के बाद आपकी पार्टी के समर्थन से एक सरकार बनी, जबकि आपकी पार्टी पहली सबसे बड़ी पार्टी नहीं थी। उस समय सबसे बड़ी पहली पार्टी कांग्रेस पार्टी थी जिसकी सदस्य संख्या 197 या 198 थी। फिर भी इसने सरकार नहीं बनाई। हमारी अकेले सबसे बड़ी पार्टी थी। यदि मेरी याददाश्त सही है तो दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के पास 143 सदस्य थे जब श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने वामपंथी दलों तथा भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई थी, जिनके उस समय 89 या 90 सदस्य थे। उन्हें कुछ दूसरे दलों का भी समर्थन प्राप्त था। निश्चित ही, विपक्षी नेता यह नहीं भूले होंगे कि वह सरकार किस प्रकार धराशायी हो गई। उस समय हम लोग विपक्ष में थे। हमने सरकार का विरोध किया था और विपक्षी दल के नाते हमारा ख्याल था कि हमें सरकार को अलग-थलग करना चाहिए, उसका पर्दाफाश करना चाहिए और यदि संभव हो तो, उसे अपदस्थ करना चाहिए। यह विपक्षी दल का बुनियादी अधिकार है।

      इसलिए आप भी हमें अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं। हाल में किसने कर्नाटक की सरकार को अस्थिर किया? यदि आप कोई स्कोर बनाना चाहते हैं, आप स्कोर बनाइए, परन्तु माननीय विपक्ष के नेता ऐसा करने से पहले आप तथ्यों के बारे में आश्वस्त हो लीजिए। अति उत्साह में आप यहां तक कह गए कि दो प्रधानमंत्री - मोरारजी देसाई और पंडित जवाहरलाल नेहरू ने परमाणु हथियार की जरूरत नहीं समझी। अति उत्साह में आप यहां तक कह गए कि उन्होंने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर तक करने से इंकार कर दिया था। महोदय, मैं बड़े अदब के साथ कहना चाहता हूं कि पंडित नेहरू का निधन 1964 में ही हो गया था जबकि परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) 1970 में हुई थी। इसलिए कोई मृत व्यक्ति यह मत प्रकट नहीं कर सकता कि उसने एनपीटी पर दस्तख्त करने का फैसला किया कि नहीं। मैंने इन पक्षों पर गौर किया है। आपने खुद उनका श्रेय लिया है। हां, मैं जानता हूं कि आपकी पार्टी ने 1960 से ही परमाणु सशस्त्रीकरण की बात करनी शुरु कर दी थी। हमने नहीं। हमारा दृढ़ मत रहा है कि और अब भी है कि परमाणु हथियार ऐसा हथियार नहीं है जिससे लड़ाई जीती जाती है, परमाणु हथियार और कुछ नहीं, बल्कि सभ्यता का पूरी तरह से विनाश करनेवाला और व्यवधान डालने वाला है। यही कारण है कि मैं, अध्यक्ष महोदय, सम्मानपूर्वक यह कहना चाहूंगा कि इंदिराजी ने 1974 में पोखरण-प् परीक्षण किया था। 1989 में युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने निश्शस्त्रीकरण सम्मेलन में अपना भाषण दिया था। उन्होंने क्या कहा था?

      उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में जो भाषण दिया था वह काफी प्रभावशाली था। हाल में हम लोग एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में हिस्सा लेने गए थे। हम लोगों ने उस भाषण की प्रति वहां बांटी थी। वह एक श्रेष्ठ भाषण था। मैं उनमें से कुछ बातों का ही हवाला देना चाहूंगा। परमाणु हथियार प्राप्त देशों, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से उनका आखिरकार जो आग्रह था वह यही था कि जहां तक परमाणु हथियार प्राप्त देशों की तुलना में भारत की स्थिति का सवाल है, यह तो अभी अपनी पेचकश ही ठीक कर रहा है। हम लोग निश्शस्त्रीकरण करने में समर्थ एवं सक्षम हैं, परन्तु हम लोगों का कहना है कि हम लोग अपना विकल्प खुला रखेंगे। 1974 से 1998 तक भारतीय प्रधानमंत्रियों तथा विदेश मंत्रियों ने एक ही तरह का वाक्यांश का इस्तेमाल किया था। उन्होंने कहा था, ''हम लोग अपना विकल्प खुला रखेंगे।'' आपने उस विकल्प को बंद करना ठीक समझा और आपने ऐसा किया भी।

      क्या आपने कभी गंभीरतापूर्वक यह सोचा था कि दो महीने के भीतर क्या आप इतने सक्षम हो गए कि आप दूसरे परीक्षण के लिए तैयार हो गए जबकि सारी व्यवस्थाएं पूरी नहीं हुई थी? इसलिए इस चिंता की घड़ी में हमें तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने के लिए मजबूर करें। मुझे तथ्यों पर आधारित तर्क देने की इजाजत दें।

      दूसरा बिन्दु यह है। क्या वे पुनर्समझौता वार्ता कर सकते हैं और क्या वे समान शर्तों पर यह पुनर्समझौता वार्ता करेंगे या नहीं, मैं अटकलबाजी के इस पक्ष के बारे में कुछ नहीं कहूंगा, क्योंकि भविष्य में क्या होगा कोई नहीं जानता और जब ऐसा होता है तब हम लोगों जैसा साधारण व्यक्ति भी यह कह सकता है कि क्या हो रहा है, कि उस प्रतिबद्धता के बारे में जो हम करने जा रहे हैं। कभी-कभी हम ऐसा निष्कर्ष पिछली घटनाओं के आधार पर निकालते हैं, क्योंकि यह तथ्य रिकॉर्ड में दर्ज होता है।

      मेरे लिए भी एक रिकॉर्ड उपलब्ध है। द्वितीय पोखरण परीक्षण के बाद हमारे पास संयुक्त राष्ट्र की वृहत सभा में प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए भाषण का रिकॉर्ड उपलब्ध है। हमारे पास तत्कालीन विदेश मंत्री का एक प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय समाचार पत्र में उनके दस्तख्त से छपा लेख का रिकॉर्ड है। ये सारे तथ्य रिकॉर्ड में हैं। इन रिकॉर्डों से हमें पता लगता है कि हम लोग वस्तुतः सीटीबीटी पर दस्तख्त करने जा रहे हैं, उसे विधि सम्मत बनाने में समय लगेगा। इसलिए हम लोग उस बारे में पुनर्समझौता वार्ता करेंगे, हम सदन को यह आश्वासन देना चाहते हैं। ये रिकॉर्ड की बातें हैं - ऐसा विवरण जो छपा हुआ है। हमारे विदेश मंत्री के साथ अमेरिका की तरफ से मुख्य वार्ताकार स्ट्रोव तालबोट की बातचीत पर आधारित पुस्तक बाजार में उपलब्ध है। मेरे पास वह किताब उपलब्ध है जो मुझे श्री आनंद शर्मा ने दी है। यदि कोई देखना चाहे तो देख सकता है। सारी बातें रिकॉर्ड की हैं। पृष्ठ दर पृष्ठ इसका विवरण उपलब्ध है। जो कुछ हुआ वह रिकॉर्ड में हैं। इसलिए निश्चित रूप से लोग इसका फैसला करेंगे कि आपकी क्या उपलब्धियां रहीं, आपने क्या किया और आपने क्या किया।

      अध्यक्ष महोदय, ऐसा कहकर मैं तर्क के किसी पक्ष को घटाना बढ़ाना नहीं चाहता और ऐसा करके कोई स्कोर बनाना चाहता हूं। मेरा मकसद तो यह कहना है कि आप खुद फैसला कीजिए, प्रधानमंत्री ने आपको एक मौका दिया है, यहां मौजूद हरेक सदस्य को यह मौका दिया है, मैं पूरी तरह से आश्वसत हूं कि बहस के बाद जब मतदान के लिए कहा जाएगा वे अपने विवेक से काम लेंगे, वे अपने विवेक एवं अंतर्रात्मा के अनुसार अपने अधिकार का उपयोग करेंगे।

      उससे पहले दोनों पक्ष अपने-अपने तर्क रखेंगे तथा मैं भी ऐसा पूरी निष्ठा के साथ सारे तर्क पेश कर रहा हूं।

      आज से पहले बहुत से बातें कही जा चुकी हैं, मुझे इस सदन के पटल का सदस्य होने तथा सदन के माननीय सदस्यों के साथ विचार-विनियम का सौभाग्य नहीं रहा, परन्तु संसदीय परिसर के भीतर दूसरे सदन के सदस्य के रूप में करीब चार दशक बिताए हैं।

      अध्यक्ष महोदय, मुझे याद नहीं कि कभी किसी दूसरी विदेश नीति पर इतनी संजीदगी के साथ कोई बहस हुई हो जितनी विस्तृत असैनिक परमाणु सहयोग करार पर हुई है। प्रधानमंत्री 2005 में अमेरिकी दौरे पर गए थे। 18 जुलाई, 2005 को एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया था। इस पर यहां 25 जुलाई को बहस हुई थी। जब कभी कोई बड़ा घटनाक्रम हुआ है, यहां उस पर बहस हुई है। संयुक्त बयान पर भी बहस हुई है। पृथक्करण योजना पर फरवरी-मार्च, 2006 में बहस हुई है। अगस्त में दूसरे सदन में मैं उस सदन का नाम नहीं लूंगा, परन्तु हर सदस्य उसे जानता है - जब वामपंथी सदस्यों ने 1 से 9 तक के बिन्दुओं का सवाल उठाया था तो प्रधानमंत्री ने एक-एक बिन्दु का जवाब दिया था। प्रधानमंत्री ने सारे नौ बिन्दुओं पर उन्हें आश्वस्त किया था और संबंधित सदस्य ने खुद कहा था कि वह संतुष्ट हैं। मैं किसी अनुम की बातों में उलझना नहीं चाहता, यह राज्यसभा की कार्यवाही के मुद्रित संस्करणों के रिकॉर्ड में दर्ज है।

      हां, मैं आपकी इस बात को समझता हूं और उसके महत्व को स्वीकार करता हूं कि हाईड ऐक्ट पास होने के बाद क्या होगा। हाईड ऐक्ट पास होने के बाद हम लोगों ने कहा था कि लेखा-जोखा करूंगा। मैं उस मुद्दे की भी चर्चा करूंगा। मैं इसका विस्तृत विवरण दे रहा हूं। मैं कोई बात नहीं छिपाऊंगा और यही कारण हे कि मैंने माननीय अध्यक्ष महोदय से इसकी इजाजत मांगी है।

      माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं बड़े अदब के साथ यह कहना चाहूंगा कि उसके बाद कुछ नये घटनाक्रम हुए और हम लोगों ने अपने सहयोगियों के साथ उस पर बातचीत की। यूपीए चेयरपर्सन ने कुछ पहल की। हाईड ऐक्ट बनने के बाद संसद के शदरकालीन सत्र में दोनों सदनों में इस पर बहस हुई। इस सिलसिले में सात बार बहस हुई और अंतिम बार बहस 2007 के शरदकालीन सत्र में हुई है। जब हाईड ऐक्ट पास हुआ था उसी दिन मैंने यह कहकर प्रतिक्रिया व्यक्त की थी कि हाईड ऐक्ट के बारे में आदेशात्मक प्रावधान हैं जो इन पर लागू नहीं होंगे और हम उन्हें स्वीकार भी नहीं करेंगे। इसका क्या मतलब हुआ? इसका यह मतलब हुआ कि हम उसे स्वीकार नहीं करेंगे। इस मुद्दे पर जहां कहीं वे हाईड ऐक्ट की शर्तों को लागू करना चाहेंगे अथवा जहां कहीं वे अपने सहयोग को हाईड ऐक्ट के संदर्भ से जोड़ना चाहेंगे, वहीं हमारा उनसे जुदाई का आधार बन जाएगा। 123 समझौते में कहीं भी हाईड ऐक्ट शब्द की चर्चा मिली है?

      ''इंडिया स्पिशिफिक सेफगार्ड एग्रीमेंट (आईएसएसए)'' भी वेब साइट पर उपलब्ध है। हमने यह दस्तावेज़ अपने वामपंथी सहयोगियों को क्यों दिया? यूपीए-लेफ्ट कमेटी की बैठक में भी मैं उन्हें इस बारे में स्पष्ट करता, भले ही बात में ऐसा होता। परन्तु अभी मैं जो बिन्दु उठाना चाहता हूं वह यह है कि हम लोग यह इस बात पर सहमत हैं कि हाईड ऐक्ट में आदेशात्मक प्रावधान हैं जो हर हालत में हमें मंजूर नहीं हैं।

      हम कभी अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को त्याग नहीं सकते। यह हमारी आंतरिक शक्ति है। यही कारण हे कि मैं अपने साथियों को यह बताने का कष्ट कर रहा हूं कि हमारा अब तक किसाने समर्थन किया है। खुद चेयरपर्सन तथा प्रधानमंत्री ने कहा है कि हमने पिछले चार साल में काफी अच्छे काम किए हैं। मैं जोरदार शब्दों में यह कहना चाहूंगा कि हमने काफी अच्छे काम किए हैं। यह 8 प्रतिशत से 9 प्रतिशत का मामला नहीं है। चार साल के दौरान सकल घरेलू उत्पाद 9 प्रतिशत से ज्यादा रहा। यह कम नहीं है। कई साल बाद इस साल कृषि क्षेत्र में हमने 4.5 प्रतिशत प्रगति दर्ज की है।

      माननीय अध्यक्ष महोदय, हम लोग यह कह रहे हैं कि हम लोग आदेशात्मक प्रावधानों को स्वीकार नहीं करेंगे। यही कारण है कि हम लोगों ने पूरी सावधानी के साथ दोनों दस्तावेज़ों को स्वीकार नहीं किया। अपने वार्ताकारों से भी कहा है कि कृपया पूरी तरह सावधान रहे॥ ये दस्तावेज़ वहां नहीं होना चाहिए।

      मैं उस तंत्र की चर्चा कर रहा था जो हमने निर्मित किया है। जब उन्होंने कहा कि वे चिंतित हैं जब यूपीए  की चेयरपर्सन तथा प्रधानमंत्री की पहल पर हम लोगों ने उनसे भेंट की। पहले हम लोग अपने आवास पर मिले। जब से हमारी गठबंधन सरकार बनी तब से लगातार मैं उनके संपर्क में रहा और सदन उन सबसे संपर्क बनाए रखा। सदन के नेता की हैसियत से यह मेरी जवाबदेही भी थी। हम लोग लगातार संपर्क में रहे। परस्पर संवाद में कभी कोई कमी नहीं रही और हर व्यक्ति ने खुलकर मेरे विचार पर अपने विचार व्यक्त किए। तब श्रीमती गांधी एवं प्रधानमंत्री ने हस्तक्षेप किया और कहा कि एक तंत्र कायम किया जाएगा। 30 अगस्त को हम लोगों ने घोषणा की कि एक तंत्र स्थापित किया जाएगा और एक कमेटी गठित की जाएगी। चेयरपर्सन कमेटी के सदस्य नामजद करेगी। उसके बाद हम लोग काम शुरु करेंगे। कमेटी का काम हाईड ऐक्ट 123 समझौते के प्रभाव और भारत की स्वतंत्र विदेश नीति हमारे तीन चरण वाले असैनिक परमाणु कार्यक्रम के बारे में वामपंथी दलों की चिंता का निवारण करना होगा, जिसे हमने काफी पहले स्वीकार किया था। वामपंथी दलों की इन चिंताओं पर यह कमेटी गौर करेगी। उसके बाद असैनिक परमाणु सहयोग के अमल में आने से पूर्व कमेटी के निष्कर्षों पर विचार किया जाएगा। कृपया याद कीजिए, इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल किया गया था। मसविदा मैंने खुद तथा एक महत्वपूर्ण वामपंथी नेता ने संयुक्त रूप से तैयार किया था। चूंकि वह भी दूसरे सदन के सदस्य हैं इसलिए यहां उनके नाम की चर्चा नहीं कर रहा हूं। हम दोनों ने संयुक्त रूप से इसे पढ़ा था। इसका कारगर अंश यह था कि कमेटी के निष्कर्षों को अंतिम रूप देने से पहले उन निष्कर्षों को यूपीए चेयरपर्सन को सौंप दिया जाएगा। इसी मकसद से यूपीए चेयरपर्सन द्वारा यह तंत्र कायम किया गया था। महोदय, यह कोई संसदीय समिति नहीं थी जो आप द्वारा मुकर्रर की जाती है।

      यह कोई सरकार कमेटी भी नहीं थी जिसे प्रधानमंत्री मुकर्रर करते है। यह एक राजनीतिक तंत्र था जिसे यूपीए चेयरपर्सन ने मुकर्रर किया था। इसलिए यह हम लोगों की जिम्मेवारी थी कि कमेटी के निष्कर्षों की रिपोर्ट यूपीए चेयरपर्सन को सुपुर्द करें और इसके बाद यह सरकार की जिम्मेवारी थी कि सहयोग संबंधी करार को लागू करने से पहले इस पर गौर करे।


भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम तथा अमरीका के साथ 123 करार




नागरिक परमाणु ऊर्जा सहयोग पर भारत और संयुक्त राज्य अमरीका के बीच हुई संधि पर इन दिनों जो गहन बहस की जा रही है उस बहस को राष्ट्र की जनता देख रही है। प्रधानमंत्री के अमरीका दौरे और 18 जुलाई, 2005 को जारी संयुक्त विज्ञप्ति ने करार की प्रक्रिया की शुरूआत की है।

आधी-अधूरी जानकारियों, दुराग्रहपूर्ण आलोचनाओं और दलगत राजनीति ने संसद में गम्भीर, परिपक्व और तथ्यपरक बहस नहीं होने दी। इसके परिणाम स्वरूप भारत की जनता को करार के बारे में मिलने वाली तथ्यात्मक जानकारी और उससे होने वाले लाभ से वंचित कर दिया गया।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस स्वतंत्रता आंदोलन की वाहक रही है और जिसके नेतृत्व ने स्वतंत्र भारत को विश्व के अग्रणी राष्ट्रों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है, देश हित में किये गये इस करार पर भी राष्ट्रव्यापी बहस का स्वागत करती है। कांग्रेस सच्ची जनतांत्रिक भावना के प्रति दृढ़ प्रतिज्ञ है। इसलिए इस करार पर तथा अन्य किसी भी राष्ट्रीय महत्व के विषय पर बहस के लिए सदैव तत्पर है।

परमाणु कार्यक्रमों में भारत की आत्मनिर्भरता एक चुनौतीपूर्ण और लम्बी यात्रा है। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए तथ्यपूर्ण बहस की जरूरत है। जवाहर लाल नेहरू के दूरदर्शी नेतृत्व ने पचास के शुरूआती दशक में परमाणु ऊर्जा के कार्यक्रम की आधारशिला रखी थी। उन्होंने भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक डॉ. होमी भाभा एवं उनकी विशिष्ट टीम को सभी आवश्यक मदद मुहैय्या करायी थी। शुरूआत से ही, नेहरू जी ने यह स्पष्ट कर दिया था कि भारत का परमाणु कार्यक्रम शान्तिपूर्ण तथा ऊर्जा सुरक्षा के लिए समर्पित होगा। इस बिन्दु पर यह कहना आवश्यक होगा कि अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग इस कार्यक्रम का एक अभिन्न हिस्सा है तथा पहला परमाणु ऊर्जा केंद्र अमरीकी सहयोग से वर्ष 1963 में तारापुर में स्थापित किया गया था। राजस्थान व तमिलनाडु के परमाणु रिएक्टर कनाडा के सहयोग से लगाये गये थे। इस दौरान भारत के रूस, फ्रांस व अन्य देशों के साथ सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए। इससे अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग में वृद्धि हुई।

अक्तूबर 1964 में चीन द्वारा किए गये परमाणु विस्फोट के कारण गम्भीर सुरक्षा चिन्तायें बढ़ी जिसकी वजह से परमाणु सोच में बुनियादी बदलाव आया था।

वर्ष 1968 में पांच परमाणविक अस्त्र वाले देश-संयुक्त राज्य अमरीका, सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्रांस तथा चीन ने एकजुट होकर नाभिकीय अप्रसार संधि (एन.पी.टी) पर दस्तखत किए। इन परमाणुविक अस्त्र सम्पन्न पांच देशों ने परमाणु मामले में अपने पास सारे अधिकार सुरक्षित कर लिए। दूसरे सभी देशों के लिए इन परमाणविक अस्त्र सम्पन्न पांच देशों ने यह व्यवस्था दे डाली कि परमाणु सहयोग अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा उपायों द्वारा नियंत्रित होंगे। फलस्वरूप सारा संसार 'परमाणु-युक्त एवं परमाणु-विहीन' क्षेत्र में बंट गया। भारत ने इस पक्षपातपूर्ण नाभिकीय अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। भारत के सुरक्षा हितों के मद्देनजर यह एक सैद्धान्तिक कदम था जिसने परिस्थितियों की मांग के अनुरूप हमारे परमाणु विकल्प को जीवित रखा।

मई, 1974 में भारत ने राजस्थान के पोखरण में एक शान्तिपूर्ण परमाणु परीक्षण किया। यह साहसी फैसला केवल श्रीमती इन्दिरा गांधी के नेतृत्व ने संभव बनाया था, जो भारत को आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने के लिए प्रतिबद्ध थी। दुर्भाग्यवश, विश्व ने एकतरफा कार्यवाही करते हुए परमाणु ऊर्जा सहयोग को अकस्मात्‌ बंद कर दिया। भारत अपने वैज्ञानिकों के साथ खड़ा रहा जिन्होंने देशी संसाधन और तकनीक के द्वारा स्वायत्त परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को जारी रखने की चुनौती को स्वीकार किया।

अमरीका की पहल पर 45 देशों का परमाणु आपूर्ति समूह बना, जो नाभिकीय कच्चा माल और तकनीक के अन्तर्राष्ट्रीय विनिमय पर नियंत्रण रखने लगा था। इसका विपरीत असर भारत जैसे देश के परमाणु कार्यक्रम पर पड़ा।

मई 1998 में भारत ने पोखरण में 5 परमाणु परीक्षण किए और दुनिया को बताया कि उसके पास परमाणु अस्त्र हैं। भारत ने अपने निकट पड़ोसियों के द्वारा सशस्त्रीकरण एवं परमाणु प्रसार से उत्पन्न रणनीतिक मजबूरियों की वजह से यह किया था। भारत को परमाणु सक्षम बनाने का श्रेय कांग्रेस सरकारों के समय किए गए निरंतर शोध व विकास को जाता है। यह उन वैज्ञानिकों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता भी था जिन्होंने तीन दशकों तक लगे कठोर प्रतिबंधों के बावजूद लगातार कड़ी मेहनत की और उस तकनीक को हासिल किया। पोखरण-2 परीक्षण के चलते भारत ने भविष्य के परमाणु परीक्षणों के संदर्भ में स्वैच्छिक एकतरफा रोक तथा 'पहले प्रयोग न करने' के परमाणु नीति की घोषणा करते हुए दुनिया को आश्वस्त कराया कि यह परीक्षण विश्वसनीय न्यूनतम निवारण एवं रक्षात्मक है तथा किसी विरोधी द्वारा परमाणु आक्रमण से स्वयं को सुरक्षित रखने के उद्‌देश्य से किया गया है।

कांग्रेस पार्टी की परमाणु मुद्दे पर सुविचारित तथा स्पष्ट राय रही है। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में जारी चुनाव घोषणा पत्र में इसे शब्दांकित किया गया था। कांग्रेस का स्पष्ट कहना है कि ''कांग्रेस एक विश्वसनीय परमाणु अस्त्र कार्यक्रम को जारी रखने के लिए वचनबद्ध है। जबकि इसके साथ-साथ परमाणु सम्पन्न पड़ोसी देशों के साथ परस्पर विश्वास निर्माण के प्रयासों को भी आगे बढ़ाने की प्रक्रिया को गतिशील बनाएगी। कांग्रेस अंतर्राष्ट्रीय परमाणु निशस्त्रीकरण और परमाणु अस्त्रों से मुक्त विश्व व्यवस्था को विकसित करने में नेतृत्वकारी भूमिका अदा करेगी''। साथ ही कांग्रेस पार्टी ने भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता को उजागर किया है, जिसमें ऊर्जा के सभी महत्वपूर्ण स्रोत-जल, कोयला, तेल, परमाणु तथा नवीकरणीय ऊर्जा की महत्वपूर्ण भूमिका है।

भारत अमरीका के बीच हुए नागरिक परमाणु ऊर्जा करार को इसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिये। इसका प्राथमिक उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय मुख्यधारा से भारत के एकाकीपन को समाप्त करना तथा देश को इस योग्य बनाना है कि वह परमाणु शोध एवं प्रौद्योगिकी के अंतरराष्ट्रीय सहयोग में पूरी भागीदारी निभा सके। 'परमाणु आपूर्ति समूह' के द्वार खोलने के लिए तथा सभी देशों विशेषकर अमरीका, फ्रांस, कनाडा, ब्राजील तथा दक्षिण अफ्रीका आदि से परमाणु ईंधन व प्रौद्योगिकी हेतु सम्बन्धों में वृद्धि के लिए भी इस प्रकार की सोच आवश्यक थी। परमाणु ऊर्जा के द्वारा ही वर्ष 2020 तक 20,000 मेगावाट ऊर्जा सृजित करने के लिए अधिक परमाणु रिएक्टर स्थापित करने के भारत के प्रयास को गति प्राप्त हो सकती है। यह भारत के कुल ऊर्जा उत्पादन का 10 फीसदी तक हो सकता है। भारत की ऊर्जा आवश्यकता, उसकी बढ़ती जनसंख्या व उसकी आर्थिक व औद्योगिक वृद्धि को देखते हुए बहुत अधिक है। इसलिए भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह ऊर्जा सुरक्षा के लिए एक समग्र व दूरगामी दृष्टि के साथ काम करे। आज समूचा विश्व 'ग्लोबल वार्मिंग' और जलवायु परिवर्तन के दौर से जूझ रहा है। ऐसे में परमाणु ऊर्जा का अधिकाधिक महत्व है क्योकि वह स्वच्छ होती है। निःसन्देह, जब से ाारत में थोरियम का संसार में सबसे बड़ा भंडार मिला है तब से भारत में परमाणु ऊर्जा का महत्व अधिकाधिक बढ़ गया है। इसके तीन चरणों के परमाणु कार्यक्रम का अन्ततः उद्देश्य भी थोरियम ईंधन को परमाणु ऊर्जा सृजन के लिए उपयोग में लाना है। यह जानना आवश्यक है कि उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत को अधिक यूरेनियम ईंधन रएक्टरों की जरूरत है। हालांकि भारत में यूरेनियम की खानें हैं, पर यह भी सच है कि भारत के अपने भंडार सीमित ही हैं।

नागरिक परमाणु ऊर्जा करार भारत को विशेष महत्व देते हुए एक खास श्रेणी में रखता है। एक ऐसी श्रेणी जहां पर एक राष्ट्र के पास अमरीका की तरह परमाणु तकनीक उपलब्ध है और जहां दोनों साझेदारों का बराबर का लाभ व हित है। यह परमाणु भेदभाव समाप्त करने का शुरूआती कदम है जिसने हमारे परमाणु शोध एवं विकास को तथा हमारी आर्थिक समृद्धि के लिए आवश्यक ऊर्जा सृजन की ख्वाहिश को जंजीरों में जकड़ा हुआ था। हमारे किसानों को पम्पसेट के द्वारा खेत सींचने के लिए बिजली की जरूरत है। हमें यह भी याद रखना है कि देश के अधिकांश ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के घरों और उनकी जिन्दगी को भी रोशन करना है। इसलिए एक जिम्मेदार सरकार ने अपनी जनता की उचित आवश्यकताओं को देखते हुए एक कारगर एवं सही कदम उठाया है।

यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि यह करार दो संप्रभु राष्ट्र अमरीका तथा भारत के बीच हुआ है। भारत बराबर का साझीदार है। सरकार ने बातचीत को अभूतपूर्व ढंग से पारदर्शी बनाया है जिसे संसद के दोनों सदनों में तीन चर्चाओं द्वारा रेखांकित किया गया। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने सहयोगी दलों तथा विपक्ष द्वारा व्यक्त आशंकाओं को ध्यान में लेते हुए बिन्दुवार प्रत्येक आक्षेप का स्पष्टीकरण दिया। सरकार ने स्पष्ट रूप से विश्वास दिलाया कि करार परिभाषित मापदंडों के दायरे में है। यह, प्रक्रिया को पुनारम्भ करने, सामरिक महत्व के ऊर्जा भंडार सृजित करने तथा अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सहयोग की, भारत को पूरी गारण्टी देता है। किसी भी बात पर भारत पीछे नहीं हटा है तथा सभी बातों का पूरा-पूरा ध्यान रखा गया है।

वर्तमान करार हमारे रणनीतिक परमाणु कार्यक्रम, हमारे त्रिस्तरीय स्वदेशी परमाणु कार्यक्रम तथा हमारी शोध व विकास की स्वायत्तता की कीमत पर नहीं किया गया है।

यह दस्तावेज उन तमाम आशंकाओं का निराकरण करता है जो करार के सिलसिले में उठायी जा रही है तथा वर्तमान सरकार के खिलाफ अनर्गल आरोप जड़े जा रहे है।

हम, इस बात को जानते हैं और इसका पूरा सम्मान करते हैं कि लोकतंत्र में हमेशा अलग-अलग नजरिये और दृष्टिकोण होते हैं। मतभिन्नता लोकतंत्र की पहचान है।

कांग्रेस पार्टी ने राष्ट्रीय सुरक्षा तथा विदेशनीति के सवाल पर हमेशा सर्वानुमति पर भरोसा जताया है, भारत की सार्वभौमिकता एवं अखण्डता की हिफाजत की है तथा वह अंतरराष्ट्रीय सवालों पर आत्मनिर्भरतापूर्ण एवं स्वविवेक से निर्णय लेने की पक्षधर रही है। यहां पर यह स्मरण करना उपयुक्त होगा कि कांग्रेसाध्यक्ष ने जून, 2003 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री को प्रतिवाद-पत्र भेजा था। इस पत्र का ही नतीजा था कि भाजपानीत राजग सरकार ने भारतीय सेना को इराक भेजे जाने से रोका था। कौन नहीं जानता कि भाजपानीत राजग शासनकाल में शर्मनाक कंधार कांड हुआ था जिसमें भारत के विदेश मंत्री स्वयं दुर्दान्त आतंकवादियों को दिसम्बर, 1999 में कंधार छोड़ने गये थे। राजग शासनकाल में विदेश मंत्री, अमरीकी उपसचिव स्ट्रोव टालबोट से बिना संसद को या देश को विश्वास में लिए लम्बी बातचीत करने में लगे रहे थे।

लोगों को याद दिलाने के लिए यह कुछ ऐसे तथ्य हैं कि उन लोगों द्वारा विदेशनीति को कैसे संचालित किया गया था जो आज संप्रग सरकार द्वारा किये गये राष्ट्रीय समझौते पर सवालिया निशान खड़े कर रहे हैं।

भारत की स्वतंत्र विदेश नीति के प्रधान शिल्पी पंडित जवाहर लाल नेहरू और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस रही है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत के राष्ट्रीय हितों को हमेशा दलगत राजनीति से ऊपर रखा है। राष्ट्र के रणनीतिक एवं प्रभुसत्ता से जुड़े हितों के साथ समझौते करने का कोई भी आरोप न केवल निराधार बल्कि सत्यता से परे है। कांग्रेस पार्टी भारत की स्वतंत्रता तथा उसके सर्वोच्च राष्ट्रीय हितों के लिए हमेशा दृढ़ प्रतिज्ञ रही है और दृढ़ प्रतिज्ञ रहेगी।

1. ऊर्जा की बढ़ती मांग

भारत जैसे एक विकासशील देश की आर्थिक प्रगति के मार्ग में ऊर्जा की कमी सबसे बड़ी अड़चन है, क्योंकि हमारे देश में अधिकांश आबादी को बिजली उपलब्ध नहीं है, इसलिए बिजली की खपत बहुत कम है। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था का विकास होगा और हमारी आमदनी बढ़ेगी, वैसे-वैसे बिजली और ऊर्जा के दूसरे साधनों की मांग भी बढ़ेगी।

हमारे किसान जानते हैं कि पिछले वर्षों में उनकी बिजली की मांग बढ़ी है। किसानों को अपने खेतों की सिंचाई हेतु पम्पसेट चलाने के लिए, बिजली की जरूरत है। अब खेती के बहुत से कामों में मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसके लिए बिजली की जरूरत होती है। गांवों में भी घरेलू इस्तेमाल की चीजों के लिए बिजली की जरूरत है। सरकार भारत निर्माण तथा राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना के तहत देश भर में संपूर्ण रूप से बिजली पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है।

परन्तु दुर्भाग्य से हम इस बढ़ती हुई मांग को पूरा करने में असमर्थ हैं। हमारे देश के अधिकांश लोग अभी भी ऐसे गांवों में रह रहे हैं जहां नियमित और भरोसेमंद बिजली आपूर्ति नहीं हो पा रही है।

हमारे शहरी इलाके भी बिजली की समस्या से त्रस्त हैं। अधिकांश झुग्गी झोपड़ियों में बिजली की आपूर्ति है ही नहीं। यहां तक कि जहां बिजली के कनेक्शन हैं भी वहां भी लोग बिजली की कटौती तथा लोड शेडिंग से परेशान हैं।

इसलिए हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हम देश में बिजली की आपूर्ति बढ़ायें। इससे हमारे सभी घरों में उजाला होगा, इससे हमारे बच्चे अच्छी रोशनी में घर पर और स्कूल में पढ़ाई कर पाएंगे। इससे हमारे किसान, दस्तकार तथा मजदूर उत्पादन के साधन के रूप में बिजली का प्रयोग कर सकेंगे। इससे हम सब लोग बिजली के उपकरणों का उपयोग कर जीवन को आरामदायक बना पाएंगे, इससे औद्योगिक विकास होगा और बुनियादी ढांचा बेहतर बनेगा तथा सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था कारगर बनेगी।

2. बिजली आपूर्ति बढ़ाने की रणनीति

हमारी सरकार देश में बिजली की आपूर्ति को पूरा करने के लिए जोर शोर से प्रयास करती रही है। ऊर्जा आपूर्ति के बहुत स्रोत हैं। बिजली पैदा करने के मुख्य साधनों में हम कोयला जलाना (ताप विद्युत), नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को काम में लाना (जल विद्युत) तथा प्राकृतिक गैस और पेट्रोलियम का इस्तेमाल कर रहे हैं। कोयला, गैस तथा तेल सभी अक्षय ऊर्जा संसाधन है। इसके अलावा कोयला
तथा तेल जलाकर बिजली पैदा करने से पर्यावरण पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इससे प्रदूषण पैदा होता है और उसके फलस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग होती है। हांलाकि जल विद्युत से प्रदूषण नहीं होता परन्तु यह पर्यावरण के अनुकूल नहीं है क्योंकि बड़े-बड़े बांध हमारी प्राकृतिक सम्पदाओं को नष्ट कर सकते हैं तथा लोगों को विस्थापित कर सकते हैं।

आधुनिक विज्ञान से हमें पवन, बायोगैस तथा सौर ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा के प्राकृतिक संसाधनों से बिजली का उत्पादन करने में मदद मिली है। फिर भी ये संसाधन अपने दायरों तथा क्षमताओं की दृष्टि से सीमित हैं। हमें आशा है कि भविष्य में हम इन स्रोतों से अधिक बिजली पैदा कर सकेंगे। ऊर्जा के इन स्रोतों का उपयोग करने के लिए नयी और सस्ती तकनीकियां विकसित करने तथा नयी स्वच्छ कोयला तकनीकियों के विकास के लिए हमें अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में अधिक निवेश करना होगा तथा अन्तरराष्ट्रीय सहयोग के रास्ते तलाशने होंगे।

3. परमाणु ऊर्जा का महत्व

आधुनिक विज्ञान ने भी स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा के नये स्रोत तलाशने में हमारी मदद की है। यह है-परमाणु ऊर्जा। हमारे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने प्रारंभ में ही यह समझ लिया था कि आर्थिक विकास के लिए परमाणु तकनीक में अपार क्षमताएं हैं। खास तौर पर एक विकसित देश के लिए जो कि वर्षों तक गुलाम रहने के कारण तकनीक के क्षेत्र में पिछड़ जाने के बाद अब विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ने के लिए तत्पर है। भारत का स्वदेशी परमाणु कार्यक्रम ऊर्जा सुरक्षा की चुनौतियों का मुकाबला करने और आत्मनिर्भर बनने तथा तकनीकी तौर पर आत्मनिर्भर बनने के लिए किया गया था।

4. परमाणु ऊर्जा स्वच्छ ऊर्जा भी है

अधिकांश वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि प्रदूषण के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन हो रहा है। इससे कृषि उत्पादन प्रभावित हो सकता है और हमारी धरती के सभी जीवित प्राणियों को नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए, हमें प्रदूषण, जिसके कारण ग्लोबल वार्मिंग हो रही है, को कम करना होगा। इसके लिए पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा स्रोतों-स्वच्छ और हरित ऊर्जा की जरूरत है।

जिस किसी भी जरिए से बिजली पैदा की जाए, उससे कुछ कचरा पैदा होता है और उससे पर्यावरणीय अवरोध उत्पन्न होते हैं। इस लिहाज से परमाणु उद्योग अलग है क्योंकि यह बिजली पैदा करने वाला ऐसा एकमात्र उद्योग है जिसने अपने समस्त अवशेषों का निपटान करने की पूरी जिम्मेदारी ले रखी है और जो इस पर आने वाली पूरी लागत को वहन करता है। परमाणु ऊर्जा से ग्लोबल वार्मिंग भी नहीं होती है।

इसके अलावा, एक परमाणु बिजली घर की ईंधन की लागत, इसके बराबर के कोयले से चलने वाले बिजली घर की ईंधन की लागत से काफी कम होती है। कई क्षेत्रों में परमाणु संयत्रों से उत्पादित बिजली, कोयले से उत्पादित बिजली से अपेक्षाकृत सस्ती पड़ती है, जबकि रेडियोधर्मी अपशिष्टों के प्रबंधन और निपटान और परमाणु संयंत्रों को बंद करने की भी इसमें व्यवस्था होती है। इसलिए, परमाणु ऊर्जा स्वच्छ और सस्ता ऊर्जा स्रोत होगा।

इस समय, परमाणु स्रोतों से भारत की केवल 3 प्रतिशत ऊर्जा जरूरतें ही पूरी हो पाती हैं। भारत की सन्‌ 2020 तक परमाणु क्षेत्र से 20,000 मेगावाट बिजली के उत्पादन की योजना है जो इस समय 3,700 मेगावाट के अपने सबसे निचले स्तर पर है।

भारत में विभिन्न स्रोतों से पैदा की जा रही बिजली में परमाणु बिजली की हिस्सेदारी बढ़ने से जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटेगी और भारत से कार्बन उत्सर्जन कम होगा।

कई देश सक्रियता के साथ परमाणु बिजली विकसित कर रहे हैं। यह विशेष रूप से चीन तथा भारत के हित में है जो बड़ी आबादी वाले देश हैं और जहां की अर्थव्यवस्थाएं तेजी से विकसित हो रही हैं। कोई भी देश नहीं चाहेगा कि वह एक ही ऊर्जा स्रोत पर निर्भर रहे।

इसलिए, यह केवल कोयला, हाइड्रो (जल) अथवा परमाणु बिजली का सवाल नहीं है, बल्कि हमें आने वाले वर्षों में अपनी ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ाने हेतु नवीन स्रोतों की जरूरत है।

भारतीय परमाणु वैज्ञानिक विश्व अनुसंधान परियोजनाओं में भी हिस्सा लेना चाहते हैं ताकि हमारे विज्ञान और प्रोद्योगिकी का विकास हो। परमाणु विज्ञान और प्रोद्योगिकी औषधि के क्षेत्र में, इरेडिएशन में और खाद्य भंडारण में बहुत काम आती है।

परमाणु ऊर्जा से हम ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरण बचाव की दोहरी चुनौतियों से निपटने में समर्थ होंगे। इससे हमारे सार्वजनिक और निजी उद्योगों के विकास को बहुत ज्यादा बढ़ावा भी मिलेगा।

भारत और अमरीका के बीच 123 करार से भारत के खिलाफ लगे तकनीकी प्रदान न करने के उन प्रतिबंधों का अंत होगा जो उस पर तीन दशकों से लगे हुए हैं। इसके साथ ही, इससे भारत को परमाणु बिरादरी से अलग-थलग रखने की व्यवस्था का भी अंत होगा। इसके अलावा, इस करार से भारत के लिए अमरीका तथा शेष विश्व के साथ बराबर के भागीदार के रूप में नागरिक परमाणु सहयोग करने के दरवाजे खुलेंगे।

5. द्विपक्षीय नागरिक परमाणु सहयोग पर भारत-अमरीका करार

भारत को परमाणु ऊर्जा पैदा करने की अपनी क्षमता में तेजी से विस्तार करने के लिए आयातित यूरेनियम की जरूरत है।

जुलाई, 2005 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अमरीका यात्रा के दौरान दोनों देशों भारत और अमरीका ने नागरिक परमाणु सहयोग फिर से शुरू करने के बारे में चल रही वार्ता को आगे बढ़ाया। यह वार्ता पंडित जवाहरलाल नेहरू के जमाने में शुरू की गई थी लेकिन 1974 में यह पूरी तरह ठप पड़ गई जब भारत ने शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट किया था।

राष्ट्रपति जार्ज बुश ने प्रधानमंत्री को बताया था कि वे भारत के साथ पूर्ण नागरिक परमाणु ऊर्जा सहयोग को अंजाम देने के लिए काम करेंगे क्योंकि भारत परमाणु बिजली को बढ़ावा देने और ऊर्जा सुरक्षा हासिल करने के अपने लक्ष्यों को समझता है।

राष्ट्रपति बुश अमरीकी कानूनों और नीतियों में समायोजन करने के लिए अमरीकी कांग्रेस से सहमति प्राप्त करेंगे तथा अन्तरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं के समायोजन के लिए अमरीका अपने मित्रों और सहयोगियों के साथ काम करेगा ताकि भारत के साथ पूर्ण नागरिक परमाणु ऊर्जा सहयोग तथा व्यापार को अंजाम दिया जा सके।

जहां तक हमारा संबंध है, हमारी सरकार भी परस्पर आदान-प्रदान के सिद्धांत पर अमरीका जैसे उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकी सम्पन्न अग्रणी राष्ट्रों की तरह समान जिम्मेदारियां उठाने और कार्य करने तथा समान लाभ और सुविधाएं प्राप्त करने के लिए सहमत हुई। इसी सिद्धांत पर भारत यह आश्वासन देने पर भी सहमत हुआ कि नागरिक जरूरतों के लिए इस्तेमाल होने वाली परमाणु आपूर्तियों को रणनीतिक कार्यक्रम के लिए इस्तेमाल में नहीं लाया जाएगा।

इसी संकल्पना के आधार पर मार्च, 2006 में राष्ट्रपति बुश की भारत यात्रा के दौरान दोनों पक्ष पृथक्करण योजना पर सहमत हुए, जिसके अनुसार भारत सन्‌ 2006 से 2014 तक चरणबद्ध रूप से अपने 22 थर्मल पावर रिएक्टरों में से 14 को चिन्हित करने और उन्हें अन्तरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की सुरक्षा निगरानी के तहत रखने के लिए सहमत हुआ।

भारत के साथ इस प्रकार का सहयोग करने के लिए अमरीकी प्रशासन ने अमरीकी कांग्रेस से 1954 के अमरीकी परमाणु ऊर्जा अधिनियम की धारा 123 में उल्लिखित शर्त से कानूनी छूट दिलाने का अनुरोध किया और उसे प्राप्त किया जिसके लिए नागरिक परमाणु सहयोग की एक शर्त के रूप में पूर्ण सुरक्षा निगरानी जरूरी है।

हाइड एक्ट के नाम से एक कानून दिसम्बर, 2006 में अमरीकी कांग्रेस में पारित किया गया था ताकि अमरीकी सरकार भारत के साथ सहयोग कर सके। हाइड एक्ट केवल एक अमरीकी कानून है। यह भारत के लिए बाध्यकारी नहीं है। हमने अमरीका के साथ केवल एक द्विपक्षीय करार किया है जिसे ''परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल से संबंधित भारत सरकार और अमरीकी सरकार के बीच सहयोग का करार'' कहा जाता है।

यह करार (i) हमारे रणनीतिक परमाणु कार्यक्रमों की स्वायत्तता, (ii) हमारे स्वदेशी त्रि-स्तरीय परमाणु कार्यक्रम, और (iii) हमारे अनुसंधान एवं विकास कार्यकलापों की कीमत पर नहीं है। हमारी सरकार इन सभी के प्रति वचनबद्ध है।

6. करार 123 की मुख्य विशेषताएं

1. यह करार हमारी ऊर्जा सुरक्षा में काफी योगदान दे सकता है। भारत के लिए यह बहुत जरूरी है कि यदि हमें गरीबी हटाने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है तो हमें अपनी 8 से 10 प्रतिशत वार्षिक की मौजूदा आर्थिक विकास दर को बनाए रखना होगा। भारत की विकास दर को तेजी से आगे बढ़ाने में ऊर्जा आपूर्ति की कमी प्रमुख बाधाओं में से एक है। हम सभी तरह के ऊर्जा उत्पादनों को इस तरह से बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं कि पर्यावरण संबंधी हमारी चिंताओं का भी ध्यान रखा जा सके। इस संदर्भ में परमाणु ऊर्जा एक तार्किक विकल्प है और यह हमारी समग्र ऊर्जा जरूरत में काफी योगदान दे सकता है। इस समय इसका योगदान केवल 3 प्रतिशत के आस पास ही है। हमारे पास अपनी परमाणु ऊर्जा उत्पादन की क्षमता को सन्‌ 2020 तक 20,000 मेगावाट विद्युत उत्पादन करने और सन्‌ 2030 तक इसे दोगुना कर देने के लिए एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है। एक तरफ जहां हमारे यूरेनियम संसाधनों के इस्तेमाल से हमारा घरेलू त्रि-स्तरीय कार्यक्रम जारी है, वहीं दूसरी ओर यह करार हमारी क्षमता में तेजी से अतिरिक्त क्षमता जोड़कर हमें जल्दी ही अपने उस लक्ष्य तक पहुंचने में मददगार साबित होगा।

2. यह करार अन्य देशों के साथ नागरिक परमाणु ऊर्जा में सहयोग के लिए भी द्वार खोलता है। हम नागरिक परमाणु ऊर्जा के बारे में इसी तरह के द्विपक्षीय सहयोग करारों के लिए फ्रांस और रूस के साथ भी बातचीत में लगे हैं। परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों के समूह के द्वारा अपने दिशानिर्देशों में छूट दिए जाने के साथ ही हमें उम्मीद है कि ये सभी करार अमल में आ जाएंगे।

3. यह करार भारत को अमरीका की ही तरह ''उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकी सम्पन्न राष्ट्र'' की विशेष श्रेणी में रखता है जिसमें दोनों पक्षों को ''समान लाभ और हित होंगे''।

4. करार में पूर्ण नागरिक परमाणु ऊर्जा सहयोग की व्यवस्था है जिसमें परमाणु संयंत्र और संशोधन तथा प्रसंस्करण सहित परमाणु ईंधन चक्र से जुड़े पहलू शामिल हैं।

5. करार में परमाणु व्यापार, परमाणु सामग्री का अंतरण, उपकरण, पुर्जों और संबंधित प्रौद्योगिकी के हस्तातंरण तथा परमाणु ईंधन चक्र की गतिविधियों में सहयोग की व्यवस्था है।

6. करार में 2 मार्च, 2006 के आपूर्ति के आश्वासनों का तथा लगातार सुरक्षा निगरानी से इसके संबंध एवं ईंधन आपूर्ति के बाधित होने की स्थिति में सुधारात्मक उपाय करने के प्रावधान का पूरा ब्यौरा दिया गया है।

7. करार में भारत के परमाणु संयंत्रों के जीवन-काल के दौरान ईंधन की आपूर्ति बाधित होने से बचने के लिए परमाणु ईंधन का एक सामरिक भंडार विकसित करने की व्यवस्था है।

8. करार में हस्तांतरित सामग्री और उपकरणों पर अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की सुरक्षा निगरानी लागू होने की व्यवस्था है। इसमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसमें हमारे परमाणु हथियार कार्यक्रम अथवा सुरक्षा निगरानी से इतर किसी परमाणु सुविधा की जांच आवश्यक हो।

9. करार में यह स्पष्ट रूप से उल्लिखित है कि इससे किसी भी पक्ष की सुरक्षा निगरानी से इतर सुविधाओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा और इसका कार्यान्वयन इस प्रकार किया जाएगा कि उससे किसी सैन्य परमाणु सुविधा अथवा इस करार से बाहर उत्पादित, अर्जित या विकसित परमाणु सामग्री के रास्ते में कोई बाधा नहीं आएगी अथवा किसी तरह का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।

10.यह करार परमाणु सामग्री के फिर से इस्तेमाल, परमाणु सामग्री और उसके उत्पादों के हस्तातंरण की पूर्व सहमति देता है। इसे अमल में लाने के लिए भारत सुरक्षा निगरानी में रखी गई परमाणु सामग्री का फिर से इस्तेमाल करने के लिए एक राष्ट्रीय पुर्नउपयोग सुविधा (नेशनल रिप्रोसेसिंग फैसिलिटी) स्थापित करेगा। किसी भी पक्ष के अनुरोध पर छः महीने के अंदर व्यवस्थाओं और प्रक्रियाओं पर चर्चाएं शुरू की जाएंगी और इन्हें एक वर्ष के भीतर पूरा कर लिया जाएगा।

11. करार 123 से परमाणु परीक्षण करने के भारत के अधिकार पर किसी भी तरह से असर नहीं पड़ेगा।

7. करार 123 से हमारे परमाणु हथियार कार्यक्रम को कोई नुकसान नहीं होगा।

भारत के परमाणु प्रतिष्ठानों को अभी तक सैन्य और नागरिक कार्यक्रमों में अलग-अलग नहीं किया गया है। इसलिए, 1974 में जब परमाणु परीक्षण किया गया तो इस धारणा के कारण भारत के खिलाफ प्रतिबंध लगाए गए कि इन विस्फोटों में भारत को नागरिक परमाणु ऊर्जा के लिए दिए गए ईंधन का इस्तेमाल किया गया। इसके परिणामस्वरूप, हमारे परमाणु कार्यक्रम के लिए तकनीकी व विखण्डनीय सामग्री एवं उससे संबंधित सहयोग पर रोक लगा दी गई। तारापुर स्थित हमारा प्रथम परमाणु बिजली संयंत्र, जो अमरीकी मदद से बनाया गया था और अमरीकी यूरेनियम की आपूर्ति पर आधारित था, यूरेनियम की आपूर्ति के बगैर पंगु हो गया। यह हमारे त्रि-स्तरीय कार्यक्रम के लिए एक बड़ा झटका था क्योंकि इसने उच्च तकनीकी उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया। अमरीका और अन्य देशों से यूरेनियम प्राप्त करने पर रोक लगा दी, परमाणु तकनीक, रिएक्टर्स, रिप्रोसेसिंग आदि के हस्तांतरण पर रोक लगा दी। अमरीका, जापान और कुछ अन्य देशों ने आर्थिक और वित्तीय प्रतिबंध लगा दिए, द्विपक्षीय सहायता से हाथ खींच लिया और विश्व बैंक तथा अंतरराष्ट्रीय वित्तीय कोष जैसी बहुपक्षीय वित्तीय एजेंसियों से सहायता पर प्रतिबंध लगा दिया।

हमारी परमाणु नीति की यह विशेषता रही है कि वह संयमपूर्ण और पारदर्शितायुक्त है। परमाणु अप्रसार संधि और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में शामिल न होने के बावजूद भारत ने परमाणु सामग्री और उससे संबंधित तकनीक पर कारगर निर्यात नियंत्रण बनाए रखा है। भारत अप्रसार तथा कड़े निर्यात नियंत्रण बनाए रखने के प्रति प्रतिबद्ध है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हमारे देश में ही विकसित जानकारी और तकनीक अनावृत (लीक) न हो सके। वस्तुतः इस संबंध में भारत का प्रदर्शन परमाणु अप्रसार संधि में शामिल कुछ देशों से भी अच्छा रहा है। भारत ने किसी भी अंतरराष्ट्रीय करार का उल्लंघन नहीं किया है और अप्रसार के मामले में इसकी साफ छवि रही है।

1998 के परमाणु परीक्षण के बाद, सरकार ने अमरीका जैसे देशों के साथ फिर से बातचीत शुरू करने की दिशा में कार्य किया ताकि भारत को परमाणु बिरादरी से अलग-थलग रखने की व्यवस्था का अंत हो सके। उन्नत परमाणु तकनीक से संपन्न राष्ट्र के रूप में भारत अधिकार के साथ अपने आप को सामने ला सके और उच्च तकनीकी क्षेत्रों में व्यापक अंतरराष्ट्रीय सहयोग की दिशा में कार्य कर सके तथा तकनीकी प्रतिबंधों को खत्म करने के उपाय शुरू कर सके। करार 123 का महत्व यह है कि यह हमारे रणनीतिक परमाणु हथियार कार्यक्रम पर बगैर किसी बाधा के हमारे नागरिक परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को विकसित करने की अनुमति देता है। करार 123 भारत को उसके रणनीतिक परमाणु कार्यक्रम, जो पृथक रहेगा, उसके स्वदेशी त्रि-स्तरीय कार्यक्रम और स्वतंत्र परमाणु अनुसंधान और विकास कार्यक्रम को आगे बढ़ने से नहीं रोकता है।

8. नागरिक परमाणु सहयोग पर भारत-अमरीकी करार के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्नः क्या करार 123 हमारी स्वतंत्र विदेश नीति के संचालन की क्षमता को प्रभावित करता है?
उत्तरः हमारे प्रधानमंत्री जी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि हमारी विदेश नीति केवल हमारे राष्ट्रीय हितों के आधार पर तैयार की जाती है और भारत के किसी भी विदेशी कानून से बंधे होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है। सरकार उस स्वतंत्र विदेश नीति के अनुसरण के लिए प्रतिबद्ध है जो कि हमारे राष्ट्रीय आंदोलन की धरोहर है।

हमारी विदेश नीति पूरी तरह से हमारे राष्ट्रीय हित के अनुसार ही संचालित की जाएगी और यह करार किसी भी तरह से हमारी स्वतंत्र विदेश नीति के संचालन की हमारी क्षमता को प्रभावित नहीं करता है। करार 123 दो बराबर के साझेदारों के बीच स्वेच्छा से किया गया एक करार है। इसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि भारत और अमरीका दोनों ही देश एक दूसरे की सार्वभौमिकता के प्रति परस्पर सम्मान के आधार पर एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप किए बिना नागरिक परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाना चाहते हैं। दरअसल, यह करार भारत की ऊर्जा सुरक्षा में योगदान करके हमारी स्वतंत्र विदेश नीति और हमारी आत्मनिर्भरता को जारी रखने की हमारी क्षमता को बढ़ाएगा।

प्रश्नः क्या करार 123 भारत के रणनीतिक कार्यक्रम को प्रभावित करेगा?
उत्तरः जी, नहीं। जैसा कि प्रधानमंत्री जी ने 13 अगस्त, 2007 को संसद में बताया है, यह करार नागरिक परमाणु सहयोग के बारे में है। करार में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो भारत को भावी परमाणु सुविधाएं, चाहे वे नागरिक सुविधाएं हों अथवा सैन्य सुविधाएं, बढ़ाने के उसके अधिकार को सीमित करे। दूसरी तरफ इस करार में एक अनुच्छेद यह भी शामिल है जिसमें स्पष्ट रूप से यह सुनिश्चित किया गया है कि यह करार किसी भी ऐसे तरीके से न तो परिभाषित अथवा कार्यान्वित किया जाएगा जो हमारे स्वतंत्र और सैन्य परमाणु कार्यकलापों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले। इस तरह यह करार भारत की मौजूदा और भावी रणनीतिक जरूरतों के लिए विखण्डनीय सामग्री का उत्पादन करने और उसका इस्तेमाल करने की भारत की क्षमता को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करता है।

प्रश्नः क्या यह करार परमाणु विस्फोट परीक्षण करने के हमारे अधिकार को प्रभावित करता है?
उत्तरः जी, नहीं। प्रधानमंत्री जी ने 13 अगस्त को संसद में बताया है कि यह करार भावी परमाणु परीक्षण को, यदि ऐसा करना भारत के राष्ट्रीय हित में आवश्यक हो तो, करने के भारत के अधिकार को किसी भी तरह प्रभावित नहीं करता है। भावी परमाणु परीक्षण करने का निर्णय हमारा सम्प्रभु निर्णय होगा जो कि पूरी तरह से उस समय की सरकार के अधिकार में होगा। इस करार में ऐसा कुछ नहीं है जो भविष्य की सरकार के हाथ बांध दे अथवा भारत की सुरक्षा और रक्षा जरूरतों को सुरक्षित रखने के उसके विकल्पों को कानूनी तौर पर सीमित कर दे।

प्रश्नः क्या यह करार हमारे स्वदेशी त्रिस्तरीय परमाणु कार्यक्रम पर किसी तरह से प्रतिकूल प्रभाव डालेगा?
उत्तरः हमारे त्रिस्तरीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम जारी रखने के अधिकार पूरी तरह से सुरक्षित हैं। यह करार हमारे अपने उद्देश्यों के लिए हमारी स्वतंत्र और देश में विकसित परमाणु सुविधाओं के इस्तेमाल के हमारे अधिकार को पूरी तरह सुरक्षित रखता है। इस करार के अनुसार हम अपने कार्यकलापों, जिनमें हमारी अपनी जरूरतों के लिए परमाणु सामग्री, गैर-परमाणु सामग्री, संयंत्रों संगटकों, सूचना अथवा प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल तथा देश में ही निर्मित, अधिगृहीत अथवा विकसित सैन्य परमाणु सुविधाओं का इस्तेमाल शामिल है, को निर्बाध रूप से बिना किसी हस्तक्षेप के जारी रख सकते हैं।

हमारे त्रिस्तरीय परमाणु कार्यक्रम में भविष्य के लिए अनंत संभावनाएं हैं। तथापि थोरियम आधारित तकनीक, जो कि तीसरे चरण का आधार होगी, के त्वरित कार्यान्वयन के बाद, समय के साथ यह आर्थिक रूप से व्यावहारिक बन जाएगी। चूंकि हमारी यूरेनियम आपूर्तियां काफी कम हैं इसलिए हमें इसे अन्यत्र से हासिल करने की जरूरत है। हालांकि हमारे यूरेनियम संसाधनों के इस्तेमाल से चल रहा हमारा त्रिस्तरीय कार्यक्रम जारी है तथापि यह करार हमारे लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग के द्वार खोलता है इससे हमें परमाणु ऊर्जा का अंश बढ़ाने में सहायता मिलेगी। स्वदेशी सुविधाओं को आयातित सुविधाओं से अलग करके हमारे कार्यक्रम आगे बढ़ते रहेंगे।

प्रश्नः क्या यह करार सुरक्षा निगरानी वाले रिएक्टरों के लिए ईंधन आपूर्ति का आश्वासन देता है?
उत्तरः इस करार में भारत के रिएक्टरों के पूरे जीवन काल के लिए आपूर्ति में किसी भी व्यवधान के विरूद्ध सुरक्षा के लिए परमाणु ईंधन के एक रणनीतिक भंडार विकसित करने के भारत के प्रयास के लिए अमरीकी सहयोग का प्रावधान है। यह मार्च 2006 के पृथक्करण योजना के प्रावधानों के अनुसार है। अमरीका इस बात पर भी सहमत है कि यदि कभी ईंधन आपूर्ति में व्यवधान उत्पन्न होता है तो वह रूस, फ्रांस और ब्रिटेन को साथ लेकर हमारे साथ मित्र आपूर्तिकर्ता देशों का एक समूह बनाएगा जो ऐसे उपाय करेगा जिससे कि भारत के लिए ईंधन आपूर्ति बहाल हो सके। विदेशी परमाणु ईंधन की आपूर्ति में व्यवधान आने की स्थिति में भारत के पास सुधारात्मक उपाय करने का उसका अधिकार सुरक्षित है।

प्रश्नः इस करार में यह कहा गया है कि इसे दोनों पक्षों द्वारा अपने-अपने राष्ट्रीय कानूनों और विनियमों के अनुसार लागू किया जाएगा। हाइड ;भ्लकमद्ध अधिनियम उन कानूनों में से एक है जिनका अनुपालन करने की जरूरत अमरीका को इस करार को लागू करने में पड़ेगी। फिर वह अपने आश्वासनों को कैसे पूरा करेगा?
उत्तरः जहां तक भारत का संबंध है, हम केवल करार 123 की शतोर्ं और विनियमों के प्रति वचनबद्ध हैं। करार 123 में कहीं भी हाइड ;भ्लकमद्ध अधिनियम का उल्लेख नहीं है। करार 123 में उस हाइड ;भ्लकमद्ध अधिनियम का कोई प्रावधान नहीं है जो हमारे दृष्टिकोण से अवांछित है। हाइड एक्ट वह सामर्थ्य प्रदान करने वाला विधान है जो अमरीकी प्रशासन को भारत के साथ द्विपक्षीय परमाणु सहयोग करार पर बातचीत करने की अनुमति देता है। इसमें अमरीकी और भारतीय विदेश नीति पर कतिपय भिन्न प्रावधान और प्रतिबद्धताएं निहित हैं जिस पर हमारे विदेश मंत्री ने 12 दिसंबर, 2006 को संसद में दिए गए अपने वक्तव्य में टिप्पणी की थी ''हमने हमेशा यह ध्यान रखा है कि विदेश नीति संचालन का निर्धारण पूरी तरह से अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर करना हमारा अपना अधिकार है। हमने यह भी साफ कर दिया है कि हमारे रणनीतिक कार्यक्रम इन वार्तालापों की परिधि के बाहर रहेंगे। हम रणनीतिक कार्यक्रम में बाहरी जांच अथवा हस्तक्षेप की अनुमति नहीं देंगे।''

अमरीकी प्रशासन ने स्पष्ट रूप से यह आश्वासन दिया है कि हाइड एक्ट उसे 18 जुलाई और 2 मार्च के वक्तव्यों में भारत के प्रति की गई सभी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में सक्षम बनाता है। राष्ट्रपति बुश ने भी 18 दिसंबर, 2006 को इस अधिनियम पर हस्ताक्षर करते वक्त यह स्पष्ट कर दिया है कि वह हाइड एक्ट के कतिपय प्रावधानों को केवल परामर्शी समझेंगे।

प्रश्नः इस करार को संसद के अनुमोदन की आवश्यकता क्यों नहीं है?
उत्तरः भारत हमारे संविधान में उल्लिखित संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली पर चलता है जिसमें संधि करने की शक्ति कार्यपालिका के पास होती है। विगत में भी किसी भी द्विपक्षीय संधि और करार का अनुमोदन संसद द्वारा कभी नहीं किया गया है। उदाहरण के लिए, एनडीए सरकार ने जनवरी, 2004 में अमरीका के साथ ''रणनीतिक साझेदारी में अगले कदम'' नामक एक करार किया था लेकिन इसे कभी भी सार्वजनिक नहीं किया गया। यहां तक 1971 भारत-सोवियत संघ मैत्री संधि जैसी बड़ी संधि संसद के समक्ष नहीं लाई गई। इसके बावजूद, यह सरकार अमरीका के साथ हमारे वार्तालाप के विभिन्न चरणों की पूरी जानकारी संसद को देती आई है।

प्रश्नः क्या इसका अर्थ यह है कि भारत को व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सी.टी.बी.टी.) अथवा विखण्डनीय सामग्री कटौती संधि (एफ.एम.सी.टी.) पर हस्ताक्षर करने ही होंगे?
उत्तरः यह करार भारत को सी.टी.बी.टी./एफ.एम.सी.टी. पर हस्ताक्षर करने को बाध्य नहीं करता है। तथापि, हम परमाणु परीक्षण पर एक स्वैच्छिक, एकतरफा रोक के प्रति वचनबद्ध है। हम निःशस्त्रीकरण सम्मेलन में एफ.एम.सी.टी. के लिए बातचीत करने के प्रति भी प्रतिबद्ध हैं। भारत केवल एक भेदभाव रहित, बहुपक्षीय बातचीत द्वारा तय की गई और अंतरराष्ट्रीय रूप से सत्यापित एफ.एम.टी.सी. में शामिल होने की इच्छा रखता है, बशर्ते यह हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के अनुकूल हो।

प्रश्न-: ईरान के प्रति भारत का क्या रूख रहेगा?
उत्तरः यह 123 करार परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग हेतु सहयोग के संबंध में है। किसी भी भिन्न विषय अथवा अन्य देशों के साथ भारत के संबंध से इसका कोई लेना देना नहीं है।

प्रश्नः क्या किसी अन्य मुद्दे जैसे कि भारत द्वारा विमानों की खरीद से इसका संबंध है?
उत्तरः भारत की किसी भी भिन्न प्रतिबद्धता अथवा दायित्व से इस करार का कोई संबंध नहीं है।

प्रश्नः क्या संसद के प्रति प्रधानमंत्री जी की प्रतिबद्धता पूरी की गई है?
उत्तरः 17 अगस्त, 2006 को राज्य सभा में दिए गए वक्तव्य सहित प्रधानमंत्री द्वारा संसद के प्रति की गई प्रतिबद्धताओं का पूरी तरह से पालन किया गया है।

प्रश्नः हमारे स्वतंत्र त्रिस्तरीय परमाणु शक्ति कार्यक्रम का क्या होगा?
उत्तरः भारत का स्वदेशी त्रिस्तरीय परमाणु कार्यक्रम इस करार से प्रभावित नहीं होगा। इसकी पूर्ण स्वायत्तता सुरक्षित की गई है।

प्रश्नः क्या इस करार का अर्थ यह है कि भारत को अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम को छोड़ देना होगा?
उत्तरः यह करार भारत के परमाणु हथियार कार्यक्रम को किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं करता है। एक जिम्मेदार परमाणु सम्पन्न राष्ट्र के रूप मे, भारत परमाणु परीक्षण पर अपनी स्वैच्छिक एकतरफा रोक, विश्वसनीय न्यूनतम निवारण और पहले प्रयोग न करने की अपनी नीतियों पर चलता रहेगा। ये नीतियां तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की एनडीए सरकार द्वारा घोषित की गई थीं।


घोषणापत्र

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

12वीं लोक सभा का चुनाव 1998



प्रस्तावना :

घोषणापत्र किसी भी राजनीतिक दल को अपनी उदात्त आशाओं तथा महान आकांक्षाओं को समय पर व्यक्त करने का अवसर देता है।

लेकिन, कांग्रेस के लिए तो यह उससे भी कहीं अधिक है।

यह अवसर अपनी उपलब्धियों को रेखांकित करने और संपन्न किये गये कार्यों को बताने का भी है।

यह अवसर इस तथ्य को जतलाने का भी है कि कांग्रेस ऐसा अकेला संगठन है जिसके पास अनुभव और महारत दोनों हैं।

घोषणापत्र एक ऐसा अवसर है जब हम अपनी जनता के समक्ष अपने चिंतन की नवीनता, संकल्प की निर्भीकता और उद्देश्य की स्पष्टता प्रदर्शित करते हैं।

लेकिन यह एक संजीदा अवसर भी है।

क्योंकि, घोषणापत्र वह पवित्र प्रतिज्ञा है जो कोई भी राजनीतिक दल अपने वायदों को पूरा करने और अपने वचनों को निभाने के लिए करते हैं।

कांग्रेस अपनी संपूर्ण मनोभावना से राष्ट्र को यह घोषणापत्र समर्पित करती है। यह घोषणापत्र भारत और प्रत्येक भारतवासी को 21वीं शताब्दी-भारतीय सभ्यता की छठी सहस्त्राब्दि- के उजाले में सम्मान और गरिमा के साथ ले जाने की तैयारी है।

चुनाव इस समय क्यों?

पृष्ठभूमि -

राष्ट्रपति द्वारा 11वीं लोक सभा भंग कर दी गई है। ग्यारहवीं लोक सभा का जीवनकाल मात्र अट्ठारह महीने रहा। मई 1996 में हुए चुनावों में इसे जो जनादेश मिला था उसी में इसका अल्पजीवी होना निश्चित हो गया था।

साठ करोड़ से अधिक भारतीयों को बारहवीं लोक सभा के लिए अपने प्रतिनिधि चुनने का आह्‌वान किया गया है।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारतीय जनता से अनुरोध करती है कि वह कांग्रेस को वोट दे।

भारतीय जनता पार्टी के तेरह दिवसीय अ-शासन और संयुक्त मोर्चे की दो सरकारों के 17 महीनों के प्रयोग से ग़ैर-कांग्रेसी प्रशासन के खतरे और मिलीजुली सरकारों की जर्जरता स्पष्ट हो गई है।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने विगत पचास वर्षों में से 45 वर्ष इस देश को स्थायी, अर्थपूर्ण और सोद्देश्य सरकारें दी हैं।

प्रत्येक कांग्रेस सरकार ने पांच प्रधान मंत्रियों के अधीन पांच वर्षों की अपनी पूरी अवधि तक सरकार चलाई।

बहरहाल, जब-जब कांग्रेस पार्टी के शासन करने का जनादेश नहीं मिला तब-तब गैर-कांग्रेसी पार्टियों की मिली-जुली सरकारें बनायी गयीं।

इनमें से कोई भी सरकार आपसी झगड़ों और अंतर्विरोधों के कारण पांच वर्ष के अपने कार्यकाल को पूरा नहीं कर सकी।

श्री वी. पी. सिंह के नेतृत्व और वाम दलों तथा भारतीय जनता पार्टी द्वारा समर्थित राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार दिसम्बर 1981 से नवम्बर 1990 के बीच मात्र ग्यारह माह जीवित रही तथा श्री चंद्रशेखर के नेतृत्व में अलग हुए दल की सरकार का कार्यकाल तो छः माह से अधिक नहीं चल सका।

जब 1996 में ग्यारहवीं लोक सभा के चुनाव में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिल सका तो उसके बाद देश को 16 मई, 1996 से 28 नवम्बर, 1997 के बीच लगातार तीन सरकारों को 17 माह तक झेलना पड़ा।

किस्सा-कोताह यह कि जहां 45 वर्षों के कार्यकाल में कांग्रेस ने देश को पांच प्रधान मंत्री दिये वहीं गैर-कांग्रेस पार्टियों ने पांच वर्षों में सात प्रधान मंत्री दिये।

पहले की गैर-कांग्रेस सरकारों के पास सदस्यों की पर्याप्त संख्या थी। जनता पार्टी सरकार को तो लोक सभा में लगभग दो-तिहाई बहुमत प्राप्त था। श्री वी.पी. सिंह की सरकार को लगभग 300 सांसदों का समर्थन मिला था।

संख्यात्मक बहुमत के बावजूद गैर-कांग्रेसी सरकारें अधिक दिन नहीं टिक सकीं, क्योंकि वे किसी विकास संबंधी सिद्धांत और सामाजिक प्रतिबद्धता पर आधारित संयोजनशील नीति की नीव पर नहीं टिकी थीं।

सत्ता हथियाने के संकुचित उद्देश्य से कांग्रेसवाद- विरोध की अंधी दौड़ में ग़ैर-कांग्रेसी पार्टियां एक सीमित अवधि के लिए एकजुट हो गई थीं।

किंतु हमारे अनुभव ने हमें यह दिखा दिया है कि न तो सत्ता हथियाने के उनके लालच और न मात्र नाम के लिए सरकार बनाने के उनके संकीर्ण उद्देश्य हमारी राजनीतिक प्रणाली को स्थायित्व प्रदान कर सकेंगे।

ग़ैर-कांग्रेस पार्टियों में दूर दृष्टि का अभाव है अतः वे अवसर आने पर उसके योग्य सिद्ध नहीं हो सकीं। ऐसे अवसरवादी गठजोड़ों में प्रेम की थोड़े दिनों की दीवानगी के बाद दरारें आना तो अवश्यम्भावी है।

अतएव, इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि 17 महीनों के अ-शासन के बाद संयुक्त मोर्चे की सरकार ढझ

1996 का जनादेश -

मई 1996 में सरकार बनाने संबंधी भारतीय जनता पार्टी का प्रयास एक स्मरणीय धोखा और सत्ता हथियाने का एक कारूणिक प्रयत्न था जिसे वह सांसदों को खरीद कर और दल-बदल करवा कर टिकाये रखना चाहती थी।

इसे सरकार बनाना तो नहीं कहते। यह और कुछ नहीं शुद्ध रूप से राजनीतिक तिकड़मबाज+ी है।

सन् 1996 में 80 प्रतिशत भारतीयों ने ग़ैर-साम्प्रदायिक पार्टियों को वोट दिये थे। कांग्रेस ने 12 मई, 1996 को अपनी कार्यसमिति की बैठक में एक संकल्प पारित करके धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को केंद्र में सरकार बनाने के उनके प्रयास को समर्थन देने का फैसला किया।

कांग्रेस यद्यपि प्राप्त वोटों की प्रति शतता की दृष्टि से अकेली सबसे बड़ी पार्टी थी, और जीती हुई सीटों में दूसरी सबसे बड़ी थी, फिर भी उसने सरकार बनाने के प्रश्न पर विचार तक नहीं किया।

यह उसने उस समय जनता की इच्छा को ध्यान में रखकर किया था।

तेरह असम और विषम राजनीतिक दलों, जो अधिकतर प्रादेशिक पार्टियां ही थीं, से युक्त संयुक्त मोर्चे ने जून 1996 में कांग्रेस की सहायता से सरकार बनाई।

यदि इस समय कांग्रेस ने समर्थन न दिया होता तो मई 1996 के चुनावों के कुछ ही सप्ताहों के बाद नये चुनाव कराने पड़ सकते थे।

ऐसे में कांग्रेस के लक्ष्य एकदम स्पष्ट थे।

पहला तो यह कि ग्याहरवें आम चुनाव के तुरंत बाद इतनी जल्दी एक और चुनाव को टालना।

दूसरा, धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एकजुट करके सिद्धांतवादी राजनीति का मुखौटा लगाये साम्प्रदायिक विचारधारा को फैलाने से रोकना।

कांग्रेस को आशा थी कि संयुक्त मोर्चा और कांग्रेस मिलकर काम करते हुए देश को एक प्रभावशाली शासन देने में समर्थ होंगे।

कांग्रेस को यह भी आशा थी कि व्यापक राष्ट्रीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए संयुक्त मोर्चे के जो घटक अपने स्वभाव से ही ग़ैर-कांग्रेसवादी रहे हैं वे कुछ नियंत्रण में रहना सीख लेंगे।

लेकिन दुःख है कि कांग्रेस की ये सभी आशायें धूलधूसरित हो गयीं।

संयुक्त मोर्चा अपने ही साझा न्यूनतम कार्यक्रम पर टिका नहीं रह सका।

यह बहुत भद्दी स्थिति थी।

किंतु इससे भी अधिक बुरी बात तो यह रही कि कांग्रेस का समर्थन लेकर सत्ता में बने रहते हुए उसने अपनी ओर से कांग्रेस को क्षति पहुंचाने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी।

उत्तर प्रदेश में असफलता -

धर्मनिरपेक्षता के प्रति संयुक्त मोर्चे की प्रतिबद्धता का इम्तहान सबसे पहले उत्तर प्रदेश विधान सभा के 1996 में हुए चुनावों के समय हुआ था जब साम्प्रदायिक शक्तियों को अलग-थलग करने और उनसे मुकाबले की बात आई थी।

इन चुनावों में उत्तर प्रदेश की जनता ने भारतीय जनता पार्टी को सामान्य बहुमत नहीं दिया। किंतु जनता की इच्छाओं का आदर करने के लिए लखनऊ में जब एक धर्मनिरपेक्ष और ग़ैर-भाजपाई सरकार बनाने का मौका आया तो संयुक्त मोर्चे ने सहायता नहीं दी।

कांग्रेस ने सुझाव दिया था कि संयुक्त मोर्चे, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन कर दिया जाये। किंतु उसकी बात नहीं मानी गई।

कांग्रेस अध्यक्ष ने अपूर्व कदम उठाते हुए संयुक्त मोर्चे की आंतरिक बैठकों में भाग लेकर अनुरोध किया कि मायावती के मुख्य मंत्रित्व में एक गैर-भाजपाई गठजोड़ करके उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई जाये।

लेकिन उनकी दलील को नजरअंदाज कर दिया गया।

यह गत्यवरोध लंबे समय तक चलता रहा और अंततः भाजपा-बी.एस.पी. सरकार बनायी गई।

साम्प्रदायिक ताकतों की बढ़त को रोकने की दिशा में संयुक्त मोर्चे इस इम्तहान में फेल रहा।

उत्तर प्रदेश में भाजपा-बी.एस.पी. गठबंधन नहीं चल सका। वस्तुतः यह गठबंधन तो था ही नहीं, यह एक तमाशा था, ठेके पर बनी दिहाड़ी-मजदूरी पर चलने वाली सरकार थी। कांग्रेस के पूर्वानुमान के अनुसार यह गठबंधन छः महीने में ही टूट कर अलग हो गया।

एक स्पष्ट विकास कार्यक्रम के साथ उत्तर प्रदेश की 12 करोड़ जनता को एक वास्तविक धर्मनिरपेक्ष सरकार देने का एक बार फिर मौक़ा आया।

इस बार फिर कांग्रेस ने संयुक्त मोर्चे से आग्रह किया।

एक बार फिर संयुक्त मोर्चा व्यक्तित्वों को सिद्धान्तों से अलग नहीं कर सका।

एक बार फिर भारत के सबसे अधिक जनसंख्याबहुल राज्य की जनता पर एक साम्प्रदायिक सरकार थोप दी गई।

ग़ैर-कांग्रेसवाद की तलाश में संयुक्त मोर्चे के अनेक घटक अतीत में भारतीय जनता पार्टी का साथ देते रहे हैं।

शायद यह उम्मीद करना व्यर्थ था कि जो पार्टियां अतीत में भारतीय जनता पार्टी के साथ सांठगांठ करती रही थीं वे उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिकता के विरूद्ध मोर्चे में कांग्रेस का साथ देंगी।

कांग्रेस के भरसक प्रयासों के बावजूद इन पार्टियों ने उत्तर प्रदेश को सबसे कठिन समय में निराश किया।

संयुक्त मोर्चा अपने गैर-कांग्रेसवाद को इस हद तक ले जाने में नहीं हिचकिचाया जब वे कांग्रेस को अकेले सम्प्रदायवाद से लड़ते देख रहे थे और स्वयं कांग्रेस की सहायता से सत्ता का सुख भोग रहे थे।

इस प्रकार की वाहियात और बेतुकी स्थिति को कोई भी स्वाभिमानी पार्टी स्वीकार नहीं कर सकती।

जून 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार को समर्थन देना कांग्रेस के लिए आसान नहीं था।

पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, उड़ीसा, असम और बिहार जैसे राज्यों में कांग्रेस सीधे-सीधे संयुक्त मोर्चे के कुछेक घटकों के विरूद्ध आमने-सामने है।

फिर भी, राष्ट्रीय परिदृश्य और देश की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए पूरी संज्ञानता में कांग्रेस ने राज्य-स्तर के विरोध को राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग के मार्ग में आड़े नहीं आने दिया। ऐसे उदाहरण कम ही मिलेंगे।

कांग्रेस को तोड़ने के प्रयास -

अप्रैल 1996 में कांग्रेस ने संयुक्त मोर्चे से अपने नेतृत्व में परिवर्तन करने के लिए कहा क्योंकि उसके पास इस आशय के पक्के सबूत थे कि सरकार की एजेंसियों की खुले तौर पर कांग्रेस को तोड़ने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था।

संयुक्त मोर्चे ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया।

संयुक्त मोर्चे के कुछ घटक आये दिन कांग्रेस पर कोई न कोई दोष मढ़ते रहते थे।

फिर भी कांग्रेस हमेशा चुप ही रही।

दुःख की बात तो यह है कि संयुक्त मोर्चे ने कांग्रेस से कभी भी सहयोग और परामर्श करने का प्रयास नहीं किया जबकि संयुक्त मोर्चे के अस्तित्व के लिए कांग्रेस का समर्थन बहुत महत्वपूर्ण था।

राजीव गांधी की हत्या और जैन आयोग -

जैन आयोग की स्थापना 1991 में दो विषयों की जांच करने के लिए हुई थी। पहला यह कि उन परिस्थितियों और घटनाओं की जांच की जाये जिनके फलस्वरूप श्री राजीव गांधी की हत्या हुई थी। दूसरा यह कि उनकी हत्या के षड़यंत्र में शामिल लोगों और उनके व्यापक संबंधों का पता लगाया जाये। जैन आयोग की रिपोर्ट उसकी जांच के दो विषयों में से प्रथम पर 28 अगस्त, 1997 को पेश की गयी। इसके बाद इसे संसद के दोनों सदनों के सभापटल पर 20 नवंबर 1997 को रखा गया।

इस रिपोर्ट में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के एक हिस्से और श्री करूणानिधि के नेतृत्व वाली तमिलनाडु की तत्कालीन सरकार की एल.टी.टी.ई. संगठन को सहायता देने और उसे उत्प्रेरित करने की भूमिका पर विस्तार से विचार किया गया है। ज्ञातव्य है कि 1987 में भारत-श्रीलंका समझौते पर हस्ताक्षर हो जाने के बाद यह स्पष्ट हो गया था कि एल.टी.टी.ई. ने भारत-विरोधी और राजीव गांधी-विरोधी रूख अपना लिया है।

द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के एक हिस्से और एल.टी.टी.ई. के बीच सहमति-समझौते की स्थिति से कांग्रेस अवगत थी। कांग्रेस इससे भी अवगत थी कि द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के एक हिस्से में एल.टी.टी.ई. के प्रति समर्थन की भावना का एल.टी.टी.ई. ने किस प्रकार अपने लाभ के लिए उपयोग किया।

ये सभी तथ्य सुविदित हैं किंतु यह पहला मौका है जब इस पर विस्तार से एक जांच आयोग की रिपोर्ट में चर्चा की गयी है।

श्री राजीव गांधी की हत्या में एल.टी.टी.ई. का जिस हद तक हाथ था इस बारे में कानूनी व्याख्या संबंधी कुछ मतभेद हो सकते हैं किंतु इसमें तो बिल्कुल कोई संदेह नहीं है कि मई 1991 में एल.टी.टी.ई. ने ही श्री राजीव गांधी की हत्या की थी।

किसी भी कांग्रेस कार्यकर्ता के सामने जो बुनियादी प्रश्न उपस्थित होता है वह स्पष्ट है।

कांग्रेस से यह कैसे आशा की जा सकती थी कि वह उस संयुक्त मोर्चा सरकार का समर्थन करती रहे जिसके एक घटक को एक जांच आयोग द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष, एक भूतपूर्व कांग्रेस प्रधान मंत्री और एक भावी कांग्रेस प्रधानमंत्री की हत्या करने वाली एजेन्सी का उत्प्रेरक ठहराया गया है?

एक ओर जहां प्रधानमंत्री, श्री इंदर कुमार गुजराल, पत्रों के माध्यम से और ज+बानी भी यह विचार व्यक्त करते रहे कि हत्या के कारणों की परिस्थितियों और उससे संबंधित षड़यंत्र की जांच करायी जायेगी और दोषी व्यक्तियों को उजागर किया जायेगा, किंतु सच्चाई तो यह है कि उनकी सरकार ने आयोग को वे दस्तावेज ही नहीं दिये जिनकी सहायता से आयोग षड़यंत्र के पहलू का पता लगा सकता।

द्रविड़ मुनेत्र कड़गम जिस सरकार की एक अंग थी उस सरकार से अपना समर्थन वापस लेकर कांग्रेस अपनी व्यग्रता और उद्वेग ज+ाहिर कर रही थी जिससे प्रधानमंत्री और सरकार के प्रधान जैसे व्यक्ति स्वयं उद्विग्न थे।

आखिर कांग्रेस पार्टी अपने उस नेता के प्रति- किस प्रकार अपना सम्मान व्यक्त करती जिसने अपनी पार्टी के लिए प्रचार करते हुए अपना जीवन तक बलिदान कर दिया?

छः वर्षों की श्रमसाध्य पड़ताल के बाद प्राप्त जांच आयोग के निष्कर्मों पर कांग्रेस ने यदि समुचित तर्कसंगत कार्रवाई न की होती तो उसे लोगों का समर्थन मांगने और उनके हितों की रक्षा करने का दावा करने का क्या नैतिक अधिकार होता?

जैन आयोग मात्र एक न्यायिक प्रश्न नहीं है।

यह उससे भी कहीं अधिक है।

यह एक भावनात्मक प्रश्न है।

यह एक ऐसा प्रश्न है जिसकी यों ही उपेक्षा नहीं की जा सकती। यह कांग्रेस को उसके मर्म तक प्रभावित करती है।

कांग्रेस यह क़तई नहीं कहती कि एल.टी.टी.ई. को सभी तमिलों ने आश्रय और समर्थन दिया।

कांग्रेस तो केवल यह कहती है कि जांच आयोग ने डी.एम.के. प्रबंधित शासन के एक हिस्से तथा डी.एम.के. पार्टी नेतृवर्ग के एक हिस्से को एल.टी.टी.ई. का समर्थन करने का दोषी पाया है और वह भी उस समय जब यह स्पष्ट हो चुका था कि एल.टी.टी.ई. भारत विरोधी हो चुका है।

यह आपत्ति 1987 के बाद की अवधि के समर्थन की है।

स्वतंत्रता आंदोलन में तमिल व्यक्तियों की सेवा को भुलाया नहीं जा सकता।

कौन भुला सकता है सुब्रह्‌मण्यम भारती को और उनकी राष्ट्रीय भावनाओं को जिसने पूरे देश को उद्वेलित कर दिया था?

राजा जी को कौन भूल सकता है जिन्हें गांधी जी अपना प्रेरणा स्रोत मानते थे?

कोई भी कांग्रेस कार्यकर्ता सत्यमूर्ति को कैसे भूल सकता है?

अपने विशिष्टतम अध्यक्षों में से एक कामराज को कांग्रेस क्यों नहीं याद रखेगी?

कौन भूल सकता है पेरियार को जिन्होंने समाज सुधार का जो आंदोलन शुरू किया था वह पूरे देश के लिए एक मिसाल है।

प्रारंभ में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम ने अलगाव का प्रचार किया था, किंतु अंततः अन्नादुरै राष्ट्रीय एकता और अखंडता के प्रबल समर्थक बन गये थे।

श्रीलंका के तमिलों का हितचिंतन 1950 और 1960 के दशकों से ही कांग्रेस सरकारें बराबर करती रहीं है। श्रीलंका में हमारे तमिल बंधुओं के बुनियादी मानव अधिकारों की रक्षा के लिए पंडित नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी ने अनेक समझौते किये थे।

श्रीलंका के तमिलों के प्रति राजीव गांधी की भावनायें भी बहुत गहन थीं।

किंतु उनकी मान्यता थी कि श्रीलंका में तमिल-समस्या का कोई भी समाधान श्रीलंका के संविधान के ढ रखा सुरक्षित अखण्डता एकता श्रीलंका ताकि चाहिए जानाझ

एल.टी.टी.ई. को भारत का समर्थन 1989 में यह स्पष्ट हो जाने पर समाप्त हो गया कि एल.टी.टी.ई. का उद्देश्य श्रीलंका को खण्डित करना है।

इसी पृष्ठभूमि में कांग्रेस ने 13 दलों के गठबंधन में से एक के प्रतिनिधियों को सरकार से हटा देने की मांग की थी।

कांग्रेस ने संयुक्त मोर्चे से एक सीधा सा अनुरोध किया थाः मंत्री परिषद् से डी.एम.के. के तीन मंत्रियों को हटा दें। संयुक्त मोर्चे ने इंकार कर दिया।

कांग्रेस ने अनौपचारिक तौर पर यह भी सुझाव दिया था कि डी.एम.के. के तीन मंत्रियों को अस्थाई तौर पर सरकार से अलग कर दें और इस बीच डी.एम.के. की भूमिका के बारे में जैन आयोग के निष्कर्षों पर निष्पक्ष जांच करा ली जाये कि ये कहां तक उचित हैं।

लेकिन संयुक्त मोर्चे ने इसे भी अस्वीकार कर दिया।

कांग्रेस यह बात राष्ट्र के समक्ष स्पष्ट कर देना चाहती है कि किसी भी परिस्थिति में वह अपने नेता राजीव गांधी की हत्या के प्रश्न पर समझौता नहीं कर सकती।

कांग्रेस इसे अपना धर्म मानती है कि इस घृणित कार्य के लिए जो षड़यंत्र किया गया था उसकी जांच कराने में वह कोई कसर न छोड़े।

कांग्रेस षड़यंत्रकारियों को बेनकाब करने के किसी भी प्रयास से पीछे नहीं हटेगी और दोषी व्यक्तियों को कानून सम्मत परिणामों से गुज+रने के लिए बाध्य करेगी।

संयुक्त मोर्चा और कांग्रेस जब कोई रास्ता निकालने की बात कर रहे थे तब भारतीय जनता पार्टी क्या कर रही थी?

एक बनावटी बहुमत बनाने के लिए भाजपा के नेतागण विभिन्न पार्टियों के सांसदों को खरीदने के शर्मनाक और निर्लज्ज प्रयास कर रहे थे। भाजपा के वरिष्ठ और सम्मानित नेताओं ने इस आश्रय की अपीलें की थीं।

सत्ता प्राप्त करने के लालच ने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को अपनी समस्त नैतिकता को तिलांजलि देने के लिए बाध्य कर दिया था। उन्होंने सांसदों को धन का लालच दिया। मंत्रिपद देने की पेशकश की। उन्होंने उत्तर प्रदेश में जो कुछ किया था उसे दिल्ली में भी दोहराने को तैयार थे।

उन्होंने नयी शब्दावली गढ़ी।

दलबदल को अब ताकतों का पुनर्संगठन कहा जाने लगा।

राजनीति के अपराधिकरण को जनादेश का नाम देकर सम्मानजनक बना दिया गया।

किंतु भारतीय जनता पार्टी बहुत बुरी तरह असफल रही।

संयुक्त मोर्चे के जिद्दी रुख और भारतीय जनता पार्टी की महत्वाकांक्षा और दुःसाहसी कारनामों ने यह मध्यावधि चुनाव देश पर थोपा है।

प्रतिनिधिक लोकतंत्र में जनता की इच्छा जानने का एकमात्र साधन चुनाव है।

यदि 12वीं लोकसभा का चुनाव कराने का फैसला न किया गया होता तो सरकार बनाने के लिए अपावन और मलिन संयोजन तथा बनावटी गठबधंन उभरते जो भारतीय लोकतंत्र को तोड़ कर रख देते।

बारहवीं लोकसभा चुनाव कराने का फैसला न किया गया होता तो सरकार बनाने के लिए अपावन और मलिन संयोजन तथा बनावटी गठबंधन उभरते जो भारतीय लोकतंत्र को तोड़ कर रख देते।

बारहवीं लोकसभा के चुनाव

आने वाले चुनाव मात्र सीटें जीतने और सरकार बनाने की लड़ाई नहीं है।

ये चुनाव, मूलतया, समस्त भारतीय जनता को बेहतर जीवन प्रदान करने के लिए प्रतिस्पर्द्धात्मक दृष्टिकोणों के बीच संघर्ष और इस होड़ में शामिल साधनों की आपसी लड़ाई है।

इन चुनावों में भाग ले रहे तीन मुख्य पक्ष हैं: कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दल तथा संयुक्त मोर्चा।

यह मुकाबला एक राष्ट्रीय पार्टी, ग्यारह पार्टियों के एक अवसरवादी गठबंधन तथा चौदह पार्टियों वाले एक अन्य गठबंधन के बीच है।

संयुक्त मोर्चा
(क) क्षेत्रीय दल

संयुक्त मोर्चा भानुमती का एक कुनबा है जिसमें चौदह प्रादेशिक और राज्य स्तर की पार्टियां शामिल हैं जिनकी सैद्धांतिक विचारधारा में कोई मेल नहीं है।

संयुक्त मोर्चा ने एक नयी थीसिस का प्रतिपादन किया है। इसका विश्वास है कि केंद्र में अब बहुमत प्राप्त एक-दलीय सरकार के शासन के दिन लद चुके हैं तथा अब हम गठबंधन के युग में प्रवेश कर चुके हैं।

इसने तो यहां तक कहा है कि प्रादेशिक पार्टियों के गठबंधन की सरकार ही हमारे संघीय स्वरूप का वास्तविक प्रतिबिम्ब हो सकती है।

कांग्रेस का यह मानना है कि यह खोखला, बेबुनियाद और खतरनाक प्रतिपादन है।

भारतीय संघवाद को हमारे संविधान में जिस प्रकार परिकल्पित किया गया है वह समय की कसौटी पर खरा उतरा है। अब तक इसने राष्ट्र की भलीभांति सेवा की है।

राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति क्षेत्रीय दलों का दृष्टिकोण एक सा नहीं हो सकता।

संकुचित स्वरूप के कारण प्रादेशिक पार्टियों के दृष्टिकोण में राष्ट्रीय-सोच का अभाव रहता है, और वे स्थानीय मुद्दों से ऊपर नहीं उठ सकतीं।

ये पार्टियां सत्ता में आने के लिए सस्ती लोकप्रियता का सहारा लेती हैं। संकुचित भाषागत और जातिगत भावनाओं को उकसाती हैं। जल्दी ही, इनके एजेण्डा के कारण आर्थिक विनाश और सामाजिक बिखराव होने लगता है।

आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी, असम में असम गण परिषद्, और पंजाब में शिरोमणि अकाली दल राष्ट्रीय राजनीति में कोई सार्थक या महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा सकते।

राष्ट्रीय और क्षेत्रीय या स्थानीय हितों के बीच टकराव की स्थिति में क्षेत्रीय पार्टियां क्षेत्रीय अथवा स्थानीय हितों का ध्यान देंगी जो देश के हित में नहीं होगा, जबकि हम राष्ट्रीय दल उसी दिशा में सोचते हैं।

अधिकतर प्रादेशिक पार्टियां एक मुद्दे या एक व्यक्ति के नेतृत्व पर टिकी होती हैं। ये रोज+ पैदा होती हैं और उतनी ही जल्दी मिट जाती हैं।

आज ज+रूरत राष्ट्रीय उद्देश्य और राष्ट्रीय प्रयास की है जिनमें स्थानीय मुद्दों और चिन्ताओं को समझा जाए और उनके समाधान पर विचार किया जाए।

(ख) वामपंथी दल

जहां तक वामपंथी दलों की बात है, भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी और मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी 70 वर्ष बाद भी अपने को राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल नहीं कर सकी हैं। उनकी राष्ट्रीय प्राथमिकताएं डगमग होती रही हैं और उनकी उपस्थिति भी तीन राज्यों- पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा- तक ही सीमित रही है।

पिछले बीस वर्षों से वामपंथी दल पश्चिम बंगाल में सत्ता में हैं हालांकि राज्य में कांग्रेस को 40 प्रतिशत जनमत मिलता रहा है।

पश्चिम बंगाल 1977 के पहले देश का प्रमुख औद्योगिक राज्य था, लेकिन वाममोर्चे ने उसका सत्यानाश करके रख दिया। अधिकांश उद्योग या तो घाटे में चल रहे हैं या टेक्नॉलोजी की दृष्टि से पिछड़ गए हैं। नया पूंजीनिवेश न के बराबर है।

दोहरी या दोगली बात करना उनकी विशेषता है। सांसद में बैठकर हर सही और उचित नीति का विरोध करना वे अपना फजर्+ मानती हैं। परंतु राज्य में उनकी सरकार देश के अन्य भागों से और विदेशों से भी नया कारोबार आकर्षित करने के प्रयास करती है।

इन तीन राज्यों में बुनियादी े कांग्रेस-विरोधी रुख अपनाते हैं जो कई बार उजागर हो चुका है। 1989 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ संघर्ष के चलते भारतीय जनता पार्टी को बहुत आदर सम्मान दिया था। 1984 में भाजपा को लोकसभा की सिर्फ दो सीटें मिली थीं और वह एकदम अलग-थलग पड़ गयी थी, लेकिन मार्क्सवादी पार्टी ने उसे राष्ट्रीय राजनीति में मान्यता दे दी।

(ग) जनता दल

जनता दल की स्थापना 1989 में कांग्रेस विरोधी आक्रोश के फलस्वरूप ही हुई थी। यह निराशा और घमंडी लोगों का जमावड़ा है जो अपनी "मैं" से बंधे हैं। इसे राजनीतिक दल कहना ही सही नहीं होगा। एमीबा कीड़े की तरह छोटे और उससे भी छोटे टुकड़े होते रहने पर भी यह जीवित है। सामाजिक न्याय का इसका नारा एकदम खोखला है और जातिवाद के नाम पर वोट खींचने की चाल है जिसका अब पर्दाफाश हो चुका है। संयुक्त मोर्चे में जनता दल के दो प्रधान मंत्रियों का नेतृत्व विनाशकारी सिद्ध हुआ। उससे अर्थव्यवस्था नष्ट हो गई। कोई सरकारी तन्त्र नहीं रहा। सभी मामले टाले जाते रहे हैं, कोई भी फैसला नहीं लिया गया।

यह सोचना कि एकदलीय सरकार बनाने के दिन लद गए, बड़ी भूल है बल्कि मूर्खता है। ग्यारह में से आठ चुनावों में एक ही दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ था।

कांग्रेस एक मज+बूत राष्ट्रीय पार्टी है जिसका क्षेत्रीय, राज्य-स्तर और स्थानीय स्तर पर सुव्यवस्थित संगठन है। केवल कांग्रेस ही क्षेत्रीय भावनाओं को रचनात्मक ढ दिला सामाजिक समाहित विकास उभारकरझ

भारतीय जनता पार्टी

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला ा सिद्धांतों के आधार पर नहीं बनाये गये हैं। इनकी साझेदारी तो चुनाव के दृष्टि में रखकर की गयी है।

भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार के भद्दे और फ़ासिस्ट चेहरे को अभी पर्याप्त रूप से पहचाना और बेनकाब नहीं किया गया है।

इस महान और स्वतंत्रता-प्रेमी जनता को हम सतर्क कर देना चाहते हैं कि फासिस्ट ताकतें प्रारम्भ में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से ही सत्ता पर काबिज+ होती हैं।

ऐसी ताकतें शुरू में तो अपना मासूम चेहरा ही लेकर पेश होती हैं। फिर जल्दी ही उनका वास्तविक चेहरा बेनकाब हो जाता है।

हिटलर के नेतृत्व में 1920 और 30 के दशकों में नाजि+यों ने जिस प्रकार सत्ता हथियाई थी वह इस बात का पुरातन उदाहरण है कि वे अपने लक्ष्य पर पहुंचने के लिए लोकतंत्र को जिस प्रकार तोड़ते-मरोड़ते हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय अध्यक्ष, श्री एम.एस. गोलवलकर नागरिकता की नस्लवादी व्याख्या (हिंदुत्व और हिंदूवाद) तथा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद (भारत) तथा राज्यक्षेत्रीय राष्ट्रवाद (इंडिया) के बीच भेद व्यक्त करने के लिए नाज+ी जर्मनी को अपना आदर्श मानते थे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक-नियंत्रित और विश्व हिंदू परिषद्-चालित भारतीय जनता पार्टी बिल्कुल यही कुछ कर रही है-- लोकतंत्र को तोड़-मरोड़कर अन्ततः उसे मिटाने के लिए।

भाजपा के प्रारंभिक रूप भारतीय जन संघ के संस्थापक, डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा, जिन्हें 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद गैरकानूनी करार देकर प्रतिबंधित कर दिया गया था, को मुक्त कर देने के लिए सरदार पटेल से अनुरोध किया था।

इसके उत्तर में सरदार पटेल ने लिखा था "...इन संगठनों, विशेषतया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, की गतिविधियों ने देश में इस प्रकार का वातावरण बनाया जिससे इस तरह की जघन्य और हिंसात्म त्रासदी हो गई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियां सरकार और राज्य के लिए खतरनाक हैं"।

सरदार पटेल ने 11 सितंबर, 1948 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक, श्री एम.एस. गोलवलकर, को लिखा था "... हिंदुओं को संगठित करना और उनकी सहायता करना एक चीज+ है किंतु निर्दोष और असहाय नर, नारियों और बच्चों को उत्साहित करने के लिए विषाक्त वातावरण बनाना कतई आवश्यक नहीं था"।

सरदार पटेल के ये शब्द आज भी उतने ही सच हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी राजनीति में घृणा के प्रतीक हैं। वे अलगाववादी राजनीति को साकार करते हैं।

आज के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-भारतीय जनता पार्टी तथा 1930 दशक में नाजि+यों की समानतायें आघाती और भयोत्पादक हैं। इनके प्रचार-आंदोलन के तरीके भी वैसे ही हैं। शिक्षित लोगों का समर्थन प्राप्त करने के लिए उन तक पहुंचने के इनके साधन भी वैसे ही हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कारगुजारियां हमेशा से व्यक्तियों के प्रतिष्ठापित नेतृत्व के विरूद्ध घृणा का आंदोलन चलाना और बाद में इस तरह का वातावरण बनाना रहा है जिससे वे पार्टियां और व्यक्ति जो उनके विरूद्ध हैं मिट जायें। अधिकतर तो उनका शारीरिक विलोपन ही वे करते हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी का चेहरा कैसा है यह 6 दिसंबर, 1992 की घटना ने बेनकाब कर दिया है।

भारतीय जनता पार्टी ने उच्चतम न्यायालय, संसद और राष्ट्रीय एकता परिषद् को निष्ठापूर्वक यह वचन दिया था कि बाबरी मस्जिद की रक्षा की जायेगी।

केंद्र में कांग्रेस सरकार ने विश्वास कर लिया कि इन आश्वासनों का अक्षरशः पालन किया जायेगा और इसकी भावनाओं का सम्मान होगा।

उसे धोखा दिया गया।

फिर भी वह भारत की जनता से बिना शर्त क्षमा याचना करती है कि 6 दिसम्बर, 1992 की दुःखद घटना को वह रोक नहीं सकी। कांग्रेस निष्ठापूर्वक यह वचन देती है कि ऐसी घटनायें भविष्य में नहीं होने पायेंगी।

ज+ाहिर है कि ऐसे वचन केवल छलावा, एक झूठ का परदा साबित हुए। मस्जिद गिराने वालों ने बड़े गर्व से कहा कि "आस्था के मामले कानून और संविधान से बंधे नहीं रहते"।

भारतीय जनता पार्टी को इसका कोई अफसोस नहीं है। वह तो काशी और मथुरा में भी अयोध्या को दोहराना चाहती है। निस्सन्देह, इसके बाद अन्य स्थानों की बारी आयेगी।

भारतीय जनता पार्टी द्वारा शासित राज्यों में साम्प्रदायिक दंगे कम हो गये लगते है। ज+ाहिर है कि कम तो होंगे ही, क्योंकि जो दंगे कराया करते थे वे अब शासक है। किंतु यह शांति एक छलावा है।

भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में जब लोकतंत्र का हरण किया तो उसने 1992 को 1997 में दोहरा दिया। भाजपा का इस बारे में यह कहना था कि "असाधारण परिस्थितियों में असाधारण समाधानों की जरूरत होती है"।

किंतु यह औचित्य क्या बड़े पैमाने के दलबदल, प्रलोभन, भारी-भरकम मंत्रिमंडल और विधान सभा के अंदर शर्मनाक हुल्लड़बाजी और तोड़-फोड़ के लिए है?

भारतीय जनता पार्टी का सार्वजनिक चेहरा उसका वास्तविक चेहरा नहीं है यह दिन-ब-दिन स्पष्ट होता जा रहा है।

भ्रामक और भारी मीडिया प्रचार भी इस पर मुलम्मा नहीं चढ़ा सकता।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक सिद्धांतवादी ने बिना लाग लपेट के यह स्वीकार किया है कि भारतीय जनता पार्टी तो केवल एक मुखौटा ही पेश कर रहा है।

भाजपा और उसके गठबंधन के दलों में हिंदुत्व, धारा 370, आदि पर मतभेद बढ़ रहा है।

चुनावों को जनता की कीमत पर लोकप्रियता के लिए प्रतियोगिता का रूप देकर उसके महत्व को घटाया नहीं जा सकता।

हमारा एक संसदीय लोकतंत्र है। लोकतंत्र का यही एक रूप है जो भारत का पूर्णरूपेण प्रतिनिधित्व और इसकी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है। लोकतंत्र का यही एक प्रकार है जो भारती की अनेकता को प्रतिबिम्बित कर सकता है।

राजनीतिक दल चुनाव लड़ते हैं। निस्सन्देह, व्यक्ति विशेष का भी इसमें महत्व होता है, लेकिन हमारी राष्ट्रपतीन प्रणाली नहीं है। हमारे बुद्धिमान संविधान संस्थापकों ने कुछ तर्कपूर्ण कारणों से ही इस प्रणाली को अस्वीकार किया था।

कांग्रेस ने भारत को संसदीय प्रकार का लोकतंत्र दिया है।

और, यही अकेली पार्टी है जो इसके प्रति प्रतिबद्ध है।

यह समय प्रयोग करने का नहीं है।

यह समय अनुभवी लोगों को लाने का है।

यह समय कांग्रेस को सत्तारूढ़ करने का है।

कांग्रेस एक खुला और पारदर्शी संगठन है। यह किसी रिमोट कंट्रोल, किसी गोपनीय संघ, किसी धर्मोन्मत्त परिषद्, अविचारी और दुःसाहसी दल या खतरनाक सेना के इशारों पर नहीं चलता है।

कांग्रेस को सब देख सकते हैं। इसमें कोई मुखौटा नहीं है।

स्थायित्व

स्थायित्व के संबंध में कांग्रेस की परिकल्पना विचारों, नीतियों और कार्यक्रमों के स्थायित्व की है।

स्थायित्व का अर्थ कांग्रेस के लिए व्यक्तियों का स्थायित्व नहीं है। व्यक्ति तो आते-जाते रहते हैं किंतु कांग्रेस की विचारधारा चलती रहती है।

कांग्रेस के लिए स्थायित्व लक्ष्य नहीं है, बल्कि लक्ष्य प्राप्ति का एक साधन है- और वह लक्ष्य है वर्द्धन और उत्पादन, मानव विकास तथा सामाजिक सामंजस्य।

कांग्रेस के लिए स्थायित्व कोई विश्राम स्थल नहीं है। स्थायित्व को वह परिवर्तन लाने का स्प्रिंगबोर्ड मानती है ताकि समस्त भारतीयों का जीवन सुखमय बन सके।

स्थायित्व को थोपा नहीं जा सकता और न उसे कृत्रिम रूप से बनाया जा सकता है। फिर भी भारतीय जनता पार्टी ऐसा ही करने की कोशिश कर रही है।

अब तक किसी भी राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी है।

भाजपा को 1995 में गुजरात विधान सभा चुनापव में दो-तिहाई बहुमत मिला था। फिर भी दो वर्षों से कम समय में ही भाजपा सत्ता खो बैठी।

पिछले सात वर्षों में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में तीन सरकारें बनाई। किंतु विकास की दृष्टि से उसका रिकार्ड शून्य है। लगातार चली आ रहा राजनीतिक स्थायित्व और कांग्रेस की सात वर्षों की अनुपस्थिति ने उत्तर प्रदेश में विकास को रोक दिया है।

भाजपा राज्य सरकारों से विकास की एक भी सार्थक पहल अब तक देखने को नहीं मिली है।

यदि अपने नियंत्रण के राज्यों में वे कोई परिवर्तन नहीं कर सके तो राष्ट्रीय स्तर पर कैसे करेंगे?

स्थायित्व तो सरकार चलाने के ज्ञान से पैदा होती है।

स्थायित्व तो एक स्पष्ट एजेण्डा से उत्पन्न होता है, ऐसा एजेण्डा जो रिमोट कंट्रोल से नहीं बनाया जाता बल्कि इस समझ से उत्पन्न होता है कि जनता क्या चाहती है और उसे क्या मिलना चाहिए।

स्थायित्व मात्र संख्या से नहीं हो सकता।

कांग्रेस जब 1970 और 1991 में सत्ता में आई तो उसके पास पूर्ण बहुमत नहीं था। किंतु इसने एक स्थायी सरकार देश को दी जिससे क्रांतिकारी आर्थिक और सामाजिक परिवर्तनों का प्रादुर्भाव हुआ।

यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि कांग्रेस यह जानती थी कि क्या करना है और यह किस प्रकार कराया जा सकता है।

ग़ैर-कांग्रेसी सरकार कहीं भी स्थायी नहीं रहीं।

पहली ग़ैर-कांग्रेसी सरकार केन्द्र में 1977 में बनी थी जिसमें जनसंघ शामिल था। इसके पास संख्या का बल था। फिर भी यह 24 महीनों में ही ढझ

दूसरी ग़ैर-कांग्रेसी सरकार 1989 में आई जिसे भारतीय जनता पार्टी ने बाहर से समर्थन दिया। फिर भी यह गिर गयी, और ग्यारह महीनों में ही, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने इससे अपना समर्ािन वापस ले लिया।

स्थायित्व के बारे में कांग्रेस की परिकल्पना नीतियों और कार्यक्रमों का स्थायित्व है, व्यक्तित्वों का नहीं। स्थायित्व कोई स्थिति को यथापूर्व बनाये रखने या सतर्कता सावधानी की नीति को उचित ठहराने का बहाना नहीं है। इसका तात्पर्य है परिवर्तन जिससे सबके रहन-सहन के स्तर में सुधार हो सके। कांग्रेस के लिए स्थायित्व का तात्पर्य सुनम्यता और इरादों-संकल्पों की दृढ़ता है।

धर्मनिरपेक्षता

सच्चे कांग्रेसी के लिए धर्मनिरपेक्षता कोई आदर्श वाक्य भर नहीं है। इसे वह अपने धर्म की तरह मानता है, यह उसकी जीवन शैली है।

कांग्रेस यह नहीं मानती कि धर्म निरपेक्षता का अर्थ मज+हब के विरूद्ध होना है, या धर्म को अस्वीकार करना है। इसका अर्थ है सर्व धर्म समभाव।

धर्मनिरपेक्षता का तात्पर्य है राजनीतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए धर्म को इस्तेमाल न करना, लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़का कर उन्हें एकजुट करने को कांग्रेस गलत मानती है।

कांग्रेस ने सदा यह विश्वास किया है कि भारत यदि धर्मनिरपेक्ष नहीं रहेगा तो वह जीवित नहीं रह सकता।

जो समाज धर्मनिरपेक्ष नहीं है उसमें लोकतंत्र और सामाजिक मेल-मिलाप कभी नहीं पनप सकते।

अपनी धर्मनिरपेक्ष परम्परा के ही कारण भारतीय सभ्यता 5000, बल्कि इससे भी अधिक वर्षों से पनपती रही है, जीवित रही है।

हमारा समाज संसार का प्राचीनतम और विशालतम अनेकवादी या बहुवादी समाज है।
हमारी इस विरासत पर, इस परम्परा पर, अब हमले हो रहे हैं।

अनेकवाद पर हमले का अर्थ है लोकतंत्र पर हमला।

संघ परिवार के जिन बर्बर कार्यकर्ताओं ने बाबरी मस्जिद को विध्वंस किया उन्होंने भारत की केवल मिश्रित संस्कृति को नहीं बल्कि भारतीय लोकतंत्र को नष्ट किया।

लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काने के प्रयास हो रहे हैं, उन्हें धर्म के नाम पर एकजुट करने के प्रयास किये जा रहे हैं।

भारत का प्रमाणचिन्ह, उसकी पहचान, सदा से उसकी इच्छा-आकांक्षा के साथ विभिन्न तत्वों को जोड़ने की उसकी क्षमता रही है।

अब एकरूपता या "सांस्कृतिक राष्ट्रवाद" के नाम पर, जो कुछ भी मतलब हो इसका, के नाम पर इसे ठुकराने के अभियान चलाने के प्रयास किये जा रहे हैं।

कांग्रेस सभी नागरिकों को समान मानती है।

फिर भी वह अनेक प्रकार के अल्पसंख्यकों को मान्यता देती है क्योंकि वे अनेक प्रकार के लाभों से वंचित रहे हैं जिसके लिए उन्हें विशेष प्रकार की सहायता की जरूरत है। यह इतिहास का भार है।

यह तुष्टिकरण, अपीज+मेण्ट, नहीं है।

यह सीधे-सीधे भारतीय संविधान के आदेशों का पालन करना है।

कांग्रेस सभी प्रकार की साम्प्रदायिकता को, किसी भी स्रोत से उभरी साम्प्रदायिकता को ठुकराती है।

कांग्रेस और उसके साथ देश यह कभी नहीं भुला सकता कि धर्मनिरपेक्षता की वेदी पर हम दो अत्यधिक मूल्यावान हस्तियों को खो चुके हैं: महात्मा गांधी और इंदिरा गांधी।

अपनी स्थापना के समय से ही कांग्रेस हर प्रकार की साम्प्रदायिक ताकतों से लड़ती रही है।

धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करने वाले वामपंथी मोर्चे ने 1989 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को सम्मान दिया और राष्ट्रीय मोर्चा सरकार को समर्थन देने में भाजपा के साथ रहा।

राजनीतिक दलों में कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी है जिसने भारतीय जनता पार्टी से कभी कोई समझौता नहीं किया और न वह कभी करेगी।

कांग्रेस के उद्देश्य
विकास

कांग्रेस एकमात्र ऐसी राजनीतिक पार्टी है जिसका िवकास के बारे में स्पष्ट कार्यक्रम है। यह इसने अनुभव, अभिनव परिवर्तनों और उदाहरण देकर यह दिखा भी दिया है।

हमारी कार्यसूची गरीबी हटाने की है जो सदियों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है। वह कार्यसूची शिक्षा को सामाजिक अधिकार प्राप्त करने का माध्यम बनाने की है। इसका यह एजेण्डा प्रत्येक भारतीय का जीवन-स्तर सुधारने का है।

केंद्र में 1979 के बीच आई पहली गैर-कांग्रेस सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था।

कांग्रेस 1980 से 1984 की अवधि में अर्थव्यवस्था को फिर पटरी पर ले आई। 1984 से 1989 के बीच अर्थव्यवस्था का विकास हुआ और वह आगे बढ़ी।

किसानों में खुशहाली आई।

उद्योगों का विस्तार हुआ।

गरीबी उन्मूलन और रोजगार जुटाने के नये कार्यक्रम आरंभ किये गये।

दूसरी बार 1990 में गैर-कांग्रेस सरकार ने केंद्र में सत्ता संभाली लेकिन कुछ महीनों में ही उसने कांग्रेस के सभी प्रयासों को उलट कर रख दिया।

कांग्रेस जब 1991 में सत्ता में आई तो अर्थव्यवस्था एकदम खस्ता हालत में थी।

उधार लेने के लिए देश का सोना विदेशी बैंकों के पास गिरवी रख दिया गया था।

देश के पास सिर्फ इतनी विदेशी मुद्रा बची थी जिससे सिर्फ दस दिन के इस्तेमाल लायक मिट्टी का तेल, उर्वरक, खाद्य तेल, इस्पात, मशीनरी और अन्य उपभोक्ता वस्तुएं आयात की जा सकती थीं।

मुद्रास्फीति की दर 17 प्रतिशत हो गयी थी।

आठवीं पंचवर्षीय योजना रोक दी गयी थी।

ग़रीबी उन्मूलन, रोजगार जुटाने और सामाजिक विकास के कार्यक्रम एकदम थम से गए थे।

वह घड़ी शर्मसार होने की थी। हालत वैसी ही रहती तो दुःख की घड़ी भी आ जाती।

पर कांग्रेस ने हमें विनाश से बचा लिया।

उसने संकट को भी अवसर में बदल डाला।

उस अल्पावधि चुनौती को कांग्रेस ने देश की अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के दीर्घावधि एजेंडा का रूप दे दिया।

कृषि क्षेत्र में जितनी प्रगति 1991 के 1996 के बीच हुई उतनी पांच वर्ष की किसी भी अवधि में पहले कभी नहीं हुई थी।

किसानों की आय बढ़ी। व्यापार-शर्तें कृषि के पक्ष में हो गईं।

कृषि-मजदूरी बढ़ी।

उद्योगों में जबर्दस्त प्रगति हुई।

अधिकांश उपभोक्ता वस्तुओं और जन उपभोग की वस्तुओं की कमी दूर हो गई और उनकी कालाबाजारी खत्म हो गई।

निर्यात में रिकार्ड-दर से वृद्धि हुई।

कपड़ा, जवाहरात और आभूषण, चमड़ा जैसे उद्योगों और कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़े।

भारत में पूंजीनिवेश के प्रति इतना विश्वास पहले कभी नहीं था। भारतीय और विदेशी, दोनों ही, व्यापारियों ने बड़ी संख्या में नयी परियोजनाएं बनाकर उन्हें क्रियान्वित किया।

उद्योगपतियों, व्यापारियों, निर्यातकों, आयातकों और ट्रेडरों को उतनी आज+ादी पहले कभी नहीं मिली थी। पुराने पड़ गए नियंत्रण हटा लिए गये थे।

आठवीं पंचवर्षीय योजना भौतिक और सामाजिक बुनियादी ढ दी आरंभ संकल्प देने बल निर्माणझ

कांग्रेस का मानना है कि विकास लोगों के लिए होता है। विकास का मजबूत सामाजिक आधार होना चाहिए।

इसीलिए कांग्रेस सरकार ने सामाजिक क्षेत्र में कई नयी योजनाएं शुरू कीं।

ह्ढउसने अक्सर सूखे की चपेट में आने वाले क्षेत्रों, रेगिस्तानी इलाकों और पर्वतीय तथा आदिवासी क्षेत्रों में राशन की दुकानों की संख्या बढ़ाने और राशन-व्यवस्था मजबूत करने की योजना शुरू की।
उसने ग़रीबी की रेखा से नीचे रह रहे परिवारों के मुखिया या कमाने वाले सदस्य की मृत्यु होने पर एक मुश्त सहायता देने की राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना भी चलाई।
ह्ढग़रीबी रेखा से नीचे के परिवारों की गर्भवती महिलाओं की सहायता के लिए उसने राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना चलाई।
ह्ढपहली से चौथी कक्षा तक के 11 करोड़ बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से और उन्हें पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने के लिए उसने दोपहर का भोजन देने की नयी योजना आरम्भ की।
ह्ढदेश के सर्वाधिक पिछड़े 120 जि+लों में पक्के तौर पर रोज़गार उपलब्ध कराने की दृष्टि से उसने नयी रोज़गार गारंटी योजना शुरू की।
ह्ढकामकाजी महिलाओं और महिला उद्यमियों को आर्थिक सहायता मुहैया कराने के लिए उसने राष्ट्रीय महिला कोष की स्थापना की और महिलाओं के लाभ के लिए महिला समृद्धि योजना की शुरूआत की ताकि समाज की रीढ़ समझी जाने वाली इन महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़े और इनकी आर्थिक स्थिति सुधरे।

ग्रामीण विकास और गरीबी-उन्मूलन कार्यक्रमों पर 1991-96 में 34,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए जो इससे पहले के पांच वर्षों की अवधि में हुए खर्च का तीन गुना है।

ऐसा 1991 और 1992 में आर्थिक नीति में किये गए परिवर्तनों से सम्भव हो सका।

कांग्रेस ने 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार को मजबूत और प्रगतिशील अर्थव्यवस्था सौंपी।

संयुक्त मोर्चा कांग्रेस से मिली सुदृढ़ अर्थव्यवस्था को बरकरार नहीं रख सका।

सकल घरेलू उत्पाद में 1997-98 की अवधि में वृद्धि 6 प्रतिशत से ज्+यादा होने उम्मीद नहीं है, जबकि 1994-95 और 1995-96 में यह वृद्धि 7 प्रतिशत थी।

इसी तरह 1993 से 1996 के बीच निर्यातों में औसतन 20 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि रिकार्ड की गई थी जो अब तेजी से घटकर सिर्फ 4 प्रतिशत रह गई है।

औद्योगिक विकास दर भी 12 प्रतिशत से घटकर 6 प्रतिशत रह गई है।

उद्योग और व्यापार के लिए बैंकों से मिलने वाले ऋण कम हुए हैं। बैंकर ऋण देने में हिचकिचाने लगे हैं, जो और भी बुरा है।

कर-राजस्व बढ़ नहीं रहा है जिसका अर्थ है कि विकास संबंधी खर्च कम हो जाएगा।

अब अर्थव्यवस्था को फिर संभालने-संवारने की सख्त जरूरत है।

व्यापारियों, उद्योगपतियों, निर्यातकों, निवेशकों और शेयर बाज+ार में विश्वास जमाना भी बहुत ही जरूरी है।

अब यह निहायत ज+रूरी हो गया है कि प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषाहार और रोज़गार के अवसर जुटाने पर विशेष बल देकर सामाजिक विकास के लिए कांग्रेस के परम्परागत कार्यक्रमों और योजनाओं को फिर लागू किया जाए।

विश्व में भारत की प्रतिष्ठा फिर स्थापित करनी होगी।

संक्षेप में यह कि एक बार फिर इतिहास बनाने का वक्त आ गया है।

यह कांग्रेस के ही बूते की बात है।

लोकनीति

कांग्रेस एक मज+बूत केंद्र के पक्ष में है, उसकी मान्यता है कि राज्य मज+बूत होने चाहिए, पंचायतें और नगरपालिकाएं भी मज+बूत होनी चाहिए।

ये तीनों एक-दूसरे पर आधारित भी हैं और एक दूसरे को बल भी देती हैं।

इन तीनों के बीच नाजुक संतुलन होता है।

इस संतुलन को बनाए रखना वर्षों के प्रशासनिक अनुभव से आता है और इसके लिए व्यापक एवं समग्र दृष्टिकोण चाहिए, यह शक्ति केवल कांग्रेस में हैं।

पंचायतें और नगरपालिकाएं विकास का तीसरा चरण नहीं हैं, बल्कि लोकतंत्र का पहला चरण हैं।

केवल राजीव गांधी ने पंचायतों और नगरपालिकाओं को संवैधानिक अधिकार देने की आवश्यकता को समझा था। उन्होंने यह संघर्ष 1987 में शुरू किया था। उनका स्वप्न 1993 में साकार हुआ जब संविधान में संशोधन किया गया।

देश के गांवों और कस्बों में चुपचाप एक क्रांति आ रही है।

इसका पूरा प्रभाव कुछ वर्षों बाद दिखाई देगा।

देश की 15 करोड़ की जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करीब 4,500 सांसद और विधायक करते हैं।

पंचायतों और नगरपालिकाओं के प्रभावी हो जाने से अब ग्राम स्तर पर 30 लाख जन प्रतिनिधि हो जाएंगे, जिनमें से 10 लाख महिलाएं होंगी। इन संस्थाओं को यह अधिकार कांग्रेस ने दिलाया है।

विभिन्नता में एकता

भारतीय सभ्यता कम से कम 5000 वर्ष पुरानी है।

भारत को स्वाधीन हुए अभी 50 वर्ष हुए हैं।

नये भारत का निर्माण 15 अगस्त, 1947 को हुआ था। आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से इसका जनमानस तो हमेशा से एक रहा था, अब राजनीतिक दृष्टि से भी इसे एकजुट करने तथा इस एकता को स्थायी रखने की आवश्यकता है। यह एक उदात्त और पावन प्रयोग था।

कल का भारतवर्ष और हमारे इतिहास का जम्बूद्वीप हमारा आज का भारत है।

विश्वभर में बहुनस्ली समाज तनाव में हैं।

कुछ देश तो सैन्य शक्ति सम्पन्न होने के बावजूद मिट गए।

भारत की एकता को भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

परन्तु कांग्रेस की संसदीय लोकतंत्र और संघवाद के प्रति निष्ठा से ही राष्ट्र एक सूत्र में बंधा हुआ है।

देश के जिन भागों में आतंकवाद था वहां शांति और लोकतंत्र की स्थापना हो गई है।

असम, मिज+ोरम, त्रिपुरा और नागालैंड में जहां कल तक आंदोलनकारी सक्रिय थे अब वे देश की मुख्यधारा से जुड़ गये है।

पंजाब में विघटन का खतरा समाप्त हो चुका हैं। पंजाब में स्थिति सामान्य है।

कांग्रेस ने स्वेच्छा से असम और पंजाब जैसे राज्यों में सत्ता छोड़ दी ताकि अन्य राजनीतिक धड़े भी अपने अरमान पूरे कर सकें।

किसी सक्रिय राजनीतिक दल के राजनीति से अस्थायी रूप से सन्यास लेने का उदाहरण अन्यत्र नहीं मिलेगा।

जम्मू-कश्मीर में धीरे-धीरे शांति होती जा रही है। राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने, जिसमें भारतीय जनता पार्टी शामिल थी, अपनी अनुभवहीनता और लोगों तथा घटनाओं को संभालने की अकुशलता के कारण 1990 में जम्मू-कश्मीर में संकट पैदा कर दिया था।

तभी से कांग्रेस सरकार ने आतंकवाद को दबाने में सख्ती अपनाई और साथ ही लोगों तथा घटनाओं को संभालने की अकुशलता के कारण 1990 में जम्मू-कश्मीर में संकट पैदा कर दिया था।

तभी से कांग्रेस सरकार ने आतंकवाद को दबाने में सख्ती अपनाई और साथ ही लोगों में विश्वास जमाया। जम्मू-कश्मीर की जनता ने सरकारी प्रयासों में शानदार सहयोग दिया है।

भारत एक है और अनेक भी।

इस एकता को बनाए रखना और इसे अधिक मजबूत करना है।

साथ ही विविध वर्गों को मान्यता देकर विकसित होने का तथा उसे अभिव्यक्ति का अवसर देना है।

हमारा अस्तित्व इसीलिए बरकरार है कि हर प्रकार की विविधता को पनपने दिया गया।

कांग्रेस ही एकमात्र पार्टी है जो अपने इतिहास, अपने मूल स्वरूप और वर्षों के अपने अनुभव से इन महत्वपूर्ण बातों को समझ और संभाल सकती है।

ग़रीब का राज

आज हमारे समाज का एक बड़ा वर्ग पृथ्वी पर स्वर्ग ही नहीं चाहता, अपना 'स्वर' भी उठाना चाहता है ताकि शासन तंत्र में उसका भी प्रतिनिधित्व हो और उसे सामाजिक मान्यता तथा राजनीतिक अधिकार प्राप्त हो सके।

यह इच्छा किसी परोपकार के लिए नहीं है यह भागीदारी के लिए है, सामाजिक न्याय के लिए है।

कांग्रेस इन मुद्दों के प्रति सदा से संवेदनशील रही है। उसने हमेशा समान अवसर देने की बात की है। वह बराबर मानती आ रही है कि सभी को शिक्षा और स्वास्थ्य की श्रेष्ठा सुविधाएं उपलब्ध कराना सच्चे समानतावादी समाज की नींव है।

लेकिन सदियों से चली आ रही उपेक्षा की भरपाई केवल शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं से नहीं हो सकती। आरक्षण की भी आवश्यकता है। कांग्रेस ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था संविधान में ही कर दी।

पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने का विचार भी कांग्रेस का ही था। पंडित नेहरू ने 1952 में ही इसे संविधान का सिद्धांत बना दिया था।

तभी से कांग्रेस सरकारों ने कांग्रेस-शासित अनेक राज्यों में पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने की व्यवस्था सफलतापूर्वक लागू की है।

राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार ने 1990 में अपने उद्धत और अवसरवादी दृष्टिकोण से मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कराने के नाम पर देश के अनेक भागों में जाति संघर्ष भड़का दिया।

कांग्रेस ने 1991 से 1993 के बीच जाति संघर्ष समाप्त करने और मंडल आयोग की रिपोर्ट पर सहमति बनाने की शुरूआत की।

केंद्र सरकार की नौकरियों और सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में अन्य पिछड़े वर्गों के लोग भी आ रहे हैं। कोई हिंसा नहीं हुई, कोई रुकावट नहीं आई। यही तो कांग्रेस की विशेषता है।

कांग्रेस ने ही राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग को 1994 में संवैधानिक दर्जा दिलाया।

कांग्रेस सरकारों ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण और रियायतें जारी रखने के लिए कई बार संविधान में संशोधन कराये।

कांग्रेस ने ही डॉक्टर आम्बेडकर प्रतिष्ठान की स्थापना की थी और लखनऊ के डॉक्टर आम्बेडकर विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दजर्+ा दिया था।

बेहद ग़रीबी में रह रहे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति परिवारों को मुफ्त आवास उपलब्ध कराने की इन्दिरा आवास योजना कांग्रेस ने ही चलाई थी।

अनुसूचित जातियों और जनजातियों के किसानों को सिंचाई सुविधाएं मुहैया कराने के उद्देश्य से कांग्रेस ने दस लाख कुओं की योजना शुरू की थी।

दलितों, पिछड़ों और अन्य वंचित लोगों की समूची नयी पीढ़ी उभर रही है।

यह पीढ़ी दान या भीख नहीं लेना चाहती।

यह समानता की राजनीति चाहती है। यही गरीबों का राज है जो कांग्रेस ला रही है।

आर्थिक स्वराज

स्वतंत्रता आंदोलन में कांग्रेस ने स्वदेशी को अपनाया था जब हमारा शत्रु विदेशी था।

भारतीयता का गौरव जमाने और आत्मविश्वास तथा नैतिक बल बढ़ाने के लिए स्वदेशी को अपनाया गया था।

स्वतंत्रता प्राप्ति के फौरन बाद के वर्षों में पंडितजी ने हमें आत्मनिर्भरता का लक्ष्य दिया।

यह ज+रूरी था कि हम अपना औद्योगिक आधार विकसित करें, अपने वैज्ञानिकों और तकनीकी विशेषज्ञों को प्रोत्साहित करें तथा विकास परियोजनाओं के लिए अपने ही साधन जुटाएं।

स्वदेशी और आत्मनिर्भरता हमारे लिए बहुत उपयोगी रहे हैं। इनके सहारे भारत विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।

परंतु, अब स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की परिभाषा बदलने और उसे वर्तमान संदर्भ के अनुरूप नया अर्थ देना जरूरी हो गया है।

आज हमारे दुश्मन हैं गरीबी और बेरोजगारी।

आज हमारे दुश्मन हैं कम पूंजीनिवेश और कमजोर बुनियादी ढज्ञ।च्ज्ञ।ढ ेचंदझ

आज चुनौती है देश के सभी राज्यों में रोज़गारपरक विकास कार्यक्रमों में तेजी लाने की।

हमारी समस्याओं का एक ही समाधान है प्रगति, और ज्+यादा प्रगति, विकास और ज्+यादा विकास-कृषि में विकास, उद्योगों और सेवाओं का विकास तथा ज्+यादा से ज्+यादा सामाजिक न्याय की व्यवस्था और पर्यावरण संरक्षण के समुचित उपाय।

उच्च विकास दर तभी सम्भव होगी जब सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों की कार्यकुशलता सुध्ारेगी और उनका लाभ बढ़ेगा।

उच्च विकास दर तभी सम्भव होगी जब हम निर्यात और आयात बढ़ाएंगे तथा अपनी अर्थव्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा में टिके रहने योग्य बनाएंगे।

उच्च विकास दर तभी सम्भव होगी जब हम बचत दर बढ़ाएंगे, खासकर सार्वजनिक बचत।

उच्च विकास दर तभी सम्भव होगी जब विदेशी पूंजीनिवेश की वर्तमान दर कम से कम दो या तीन गुनी होगी।

उच्च विकास दर बनाए रखने के लिए सरकार के खर्चे और उसके राजस्व में संतुलन बनाना जरूरी है।

हमें दुनिया से डरने की कोई ज+रूरत नहीं है।

हम विश्वासपूर्वक खड़े होकर संसार का मुकाबला कर सकते हैं। हमारे व्यापारी, उद्यमी, इंजीनियर, वैज्ञानिक, प्रबंधक और श्रमिक दुनिया में किसी से कम नहीं हैं।

विश्व में लगातार बढ़ रही परस्पर निर्भरता का हमें भरपूर लाभ उठाना चाहिए। दुनिया से अलग होकर रहने वाले देशों की अर्थव्यवस्था समाप्त हो गई है।

विश्व के निर्धन देश आत्मनिर्भर नहीं हैं। धनी देश आत्मनिर्भर हैं।

असली आत्मनिर्भरता क्या है? आर्थिक समाज क्या है?

हम सही अर्थों में आत्मनिर्भर तभी होंगे जब अगले पांच वर्षों में विश्व-व्यापार में अपनी भागीदारी कम से कम दोगुनी कर लेंगे।

हम सही अर्थों में आत्मनिर्भर तभी होंगे जब हम और अधिक उदार व्यापार-नीति अपनाएंगे ताकि भारतीय व्यापारी और भारतीय सामान विश्व के सभी देशों में छा जाए और हम अपने घरेलू बाजार में भी विदेशी स्पर्धा का बखूबी सामना कर सकें।

हम सही अर्थों में आत्मनिर्भर तभी होंगे जब हम शिक्षा पर, स्वास्थ्य पर, जल-पूर्ति और सफाई पर, सिंचाई पर, सड़कों पर, बिजली पर और अन्य बुनियादी ज+रूरतों पर निवेश बढ़ा सकेंगे।

यह तभी सम्भव है जब हम सभी स्तरों पर सरकार की भूमिका में आवश्यक बदलाव लाएं और सरकार की व्यय-प्रक्रिया नये सिरे से निर्धारित करें।

हम सही अर्थों में आत्मनिर्भर तभी होंगे जब घरेलू और विदेशी ऋणों पर अंकुश रखकर उन्हें पूरी तरह अपने नियंत्रण में करेंगे।

हम सही अर्थों में आत्मनिर्भर तभी होंगे जब हम अपना वित्तीय संतुलन बनाए रख सकेंगे, खासकर राजस्व के मामले में।

हमारा शत्रु हमारे भीतर ही है।

खुद को राष्ट्रहित का ठेकेदार समझने वाले कुछेक लोग इस सच को भी झुठलाने-दबाने में लगे हैं।

पर इन लोगों का फ़रेब ज्यादा चलने वाला नहीं है।

उन्होंने काफी स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि वे वोट लेने की मजबूरी में स्वदेशी की बात कर रहे हैं जबकि विदेशी पूंजीनिवेश और उदारीकरण राष्ट्रीय आवश्यकता है।

यह पाखण्ड की पराकाष्ठा है।

भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों ने 1996 में कसम ली थी कि अगर वे सत्ता में आये तो एनरॉन को अरब सागर में फेंक देंगे। लेकिन केंद्र में सिर्फ 13 दिन सत्ता में रही भारतीय जनता पार्टी सरकार ने एक ही फैसला किया और वह था एनरॉन बिजली परियोजना को मंजूरी देना।

कांग्रेस एकदम स्पष्ट है। आत्मनिर्भरता या 'आर्थिक स्वराज' की बात करते समय उसका कोई छिपा हुआ या दोहरा अर्थ नहीं है।

कांग्रेस का व्यापक एजेण्डा

कांग्रेस की कार्यसूची के मोटे तौर पर तीन भाग हैं :

आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक।

आर्थिक एजेंडा तीखा है।

पार्टी को अर्थव्यवस्था का चक्का उसी तरह फिर घुमाना है जैसा 1985-89 तथा फिर 1992-96 के बीच उसे करना पड़ था, साथ ही किसानों, मजदूरों और उद्यमियों में विश्वास भी पैदा करना है।

उसे कृषि तथा ग्रामीण बुनियादी ढ संपन्नता तेजी क्षेत्रष्मेंष् कृघि होगा बनाना फिर प्रणालियों ऋण विस्तार ान, अनुसं ब

उसे बिजली, सड़क, बन्दरगाह, कोयला, तेल और गैस, खनन और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में घरेलू और विदेशी, सार्वजनिक और निजी पूंजी निवेश बढ़ाना होगा।

उसे पूंजी बाज+ार में फिर से उत्साह का संचार करना होगा ताकि करोड़ों भारतीय अपनी बचत को लाभदायक और नये क्षेत्रों में लगाने को प्रेरित हों।

रोज़गारपरक आर्थिक गतिविधियों को नीति का विषय बनाकर उस पर विशेष और तुरंत ध्यान दिया जाएगा और पूंजीनिवेश भी दृषि में रखा जायेगा। इनमें निर्यात, कृषि और कृषि प्रसंस्करण, पशुधन और पशुपालन, सूचना टेक्नॉलोजी, आवास और निर्माण, वनीकरण छोटे और ग्रामीण उद्योग, कपड़ा तथा पर्यटन आदि उद्योग शामिल है।

कार्यभार संभालते ही कांग्रेस-सरकार बजट पेश करेगी और रोज़गार के अवसर बढ़ाने पर विशेष ध्यान देते हुए अपनी अल्पावधि कार्यक्रम की रूपरेखा घोषित करेगी।

सत्ता संभालने के तीन महीने के भीतर कांग्रेस सरकार नौवीं पंचवर्षीय योजना को अन्तिम रूप देकर देश के सामने रख देगी, इसमें कार्ययोजना के बारे में विस्तृत जानकारी भी रहेगी।

कांग्रेस विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू टी ओ) जैसे अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के हितों के लिए लड+ती रहेगी। साथ ही, सभी अन्तर्राष्ट्रीय वायदों का सम्मान करेगी और पूरी जि+म्मेदारी से उन्हें पूरा करेगी।

राजनीतिक एजेंडा नुकीला है।

कांग्रेस प्रशासन-व्यवस्था बहाल करेगी और एक बार फिर सरकारी कामकाज राष्ट्रीय दायित्व और सहमति की भावना पैदा करेगी।

सीधे-सरल शब्दों में कहें तो सरकार का काम शासन चलाना है। कांग्रेस दृढ़ निश्चय के साथ पूरी कुशलता से इस दायित्व को निभायगी ताकि संस्थागत नवीकरण की प्रक्रिया शुरू हो।

कांग्रेस स्थानीय निकायों को मजबूत करेगी। दो-तीन वर्षों की भीतर सभी ग्रामीण विकास कोष, जो इस समय करीब 8000 करोड़ रुपये प्रति वर्ष है, सीधे जि+ला परिषदों और अन्य पंचायत संस्थाओं को स्थानांतरित कर दिए जाएंगे।

कांग्रेस लोकपाल प्रणाली स्थापित करेगी और प्रधानमंत्री तथा मुख्यमंत्री सहित सभी राजनीतिक पदों को उसकी परिधि में लायेगी।

भ्रष्टाचार को जन्म देने वाले सभी नियंत्रण समाप्त कर दिये जायेंगे। भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने वाली सी.बी.आई. जैसी एजेंसियों को पूर्ण स्वायत्तता दी जायेगी और उनकी कार्यप्रणाली को अधिक पारदर्शी बनाया जायेगा।

कानून और व्यवस्था तंत्र को अधिक प्रभावित, फिर भी सहृदय, अधिक शक्तिशाली फिर भी अधिक संवेदनशील, बनाने के लिए कांग्रेस उसमें आमूल-चूल परिवर्तन करेगी।

कांग्रेस के सभी निर्वाचित प्रतिनिधि कार्यभार संभालते ही अपनी संपत्ति की घोषणा कर देंगे। ऐसी ही घोषणा वे कार्यभार से मुक्त होने पर भी करेंगे।

महिलाओं को अधिक राजनीतिक अधिकार से संबंधित अपने वायदे को पूरा करने के लिए कांग्रेस ने स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षण कि व्यवस्था की थी ताकि पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व एक-तिहाई हो जाये। अब वो समय आ गया है कि इसे और आगे बढ़ाया जाये। कांग्रेस संविधान में इस आशा के संशोधन करेगी जिससे लोक सभा, राज्य सभा और विधान सभाओं में भी महिलाओं का एक-तिहाई आरक्षण हो जाये।

गोपनीयता की संस्कृति को समाप्त करने और प्रशासन में खुलेपन को सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेस एक सूचना स्वतंत्रता कानून बनायेगी। इसके मंत्रियों ने अपने विवेकशील अधिकारों का किस प्रकार उपयोग किया है इसे सार्वजनिक संवीक्षण या छानबीन के लिए खुला कर दिया जायेगा।

पंचायतों और नगरपालिकाओं को मज+बूत करने के उद्देश्य से कांग्रेस ने संविधान में संशोधन किया था। ऐसा ही सांविधानिक संशोधन सहकारी समितियों को मज+बूती देने, लोकतांत्रिक और व्यावसायिक बनाने के लिए किया जायेगा।

सामाजिक एजेण्डा उद्देश्यपरक है।

देश की शिक्षा प्रणाली में स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी- सभी स्तरों पर सुधार की ज+रूरत है जो एक बड़ी चुनौती है। राजीव गांधी ने दस वर्ष पहले ऐसे सुधार शुरू किये थे। अब और बड़ी शुरूआत करनी होगी।

चौदह वर्ष तक की अवस्था के बच्चों के लिए निःशुल्क बुनियादी शिक्षा को मूलभूत अधिकार बनाने के लिए कांग्रेस संविधान में संशोधन कराएगी।

कांग्रेस प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने के पक्ष में है। लेकिन यह अनिवार्यता केवल माता-पिता की ही नहीं वरन्‌ सरकार की भी होगी कि वह सबके लिए बुनियादी शिक्षा उपलब्ध कराने की सभी आवश्यक सुविधाएं जुटाये। इसके साधन खोजने होंगे और खोजे जायेंगे। विश्वविद्यालयों को राजनीति से मुक्त करना होगा और उन्हें शिक्षण संस्थान ही रखना होगा।

देश में प्राथमिक शिक्षा के विस्तार और प्रचार-प्रसार के लिए पंचायतों द्वारा चलाई जा रही दोपहर के भोजन की योजना ओर नयी शिक्षा गारंटी योजना हमारे मुख्य कार्यक्रम होंगे।

किसी भी विश्वविद्यालय में भर्ती होने वाले अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति विद्यार्थियों को ट्यूशन फीस और गुजारा भत्ते देने की छः वर्ष की गारंटी दी जाएगी।

देश की 15 करोड़ की आबादी में करीब 1.5 करोड़ देशवासियों को ही पेंशन सुविधा प्राप्त है और 20 लाख भारतीयों ने स्वास्थ्य बीमा कर रखा है। कांग्रेस स्वास्थ्य बीमा और पेंशन व्यवस्था का नये सिरे से पुनर्गठन करेगी ताकि ज्+यादा से ज्+यादा देशवासी लाभ उठा सकें।

भारत में अधिकतर ख़तरनाक रोग अस्वस्थ्यकर पानी और सफाई की घटिया आदतों और सुविधाओं से उत्पन्न होते हैं। इसके लिए कई योजनायें शुरू की जा चुकी हैं किंतु वे बेअसर नहीं, सफाई के संबंध में तो विशेष रूप से वे सफल नहीं हो सकी। शुद्ध पेयजल और कारगर सिवरेज के लिए एक समयबद्ध कार्यक्रम प्रारम्भ किया जायेगा। कांग्रेस पार्टी द्वारा सामुदायिक स्वच्छता (हाईजीन) के लिए एक सामाजिक आंदोलन भी प्रारंभ किया जायेगा।

कांग्रेस की दृष्टि में महिलाएं इन कार्यक्रमों से लाभ प्राप्त करने वाली ही नहीं हैं बल्कि वे विकास-लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक महत्वपूर्ण एजेण्ट भी हैं। पार्टी महिलाओं के पूर्ण क़ानूनी, आर्थिक और राजनीतिक अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष जारी रखेगी। शिक्षा और रोजगार में लिंगभेद समाप्त कर दिया जाएगा। महिला मृत्युदर कम करने की दृष्टि से विशेष योजनाएं शुरू की जायेंगी। सती प्रथा, दहेजप्रथा, महिलाभ्रूण हत्या और बालविवाह जैसी कुप्रथाओं के विरूद्ध समाज-सुधार आंदोलन में कांग्रेस सदैव आगे रहेगी।

राष्ट्र के युवाजन में कांग्रेस की हमेशा से आस्था रही है। मतदान की उम्र को 21 वर्ष से घटा कर राजीव गांधी ने ही पहल की थी। राष्ट्र के निर्माण को आगे बढ़ाने के लिए युवा जन की शक्ति और उत्साह का उपयोग करने की दृष्टि से एक नई योजना, देश के लिए- एक साल प्रारम्भ करेगी। साक्षरता, वनीकरण योजना, परिवार नियोजन कार्यक्रम, समाज सुधार आंदोलन, कानूनी अधिकारों की जानकारी जैसे आंदोलन चलाने के लिए शिक्षित युवा जन को संगठित किया जायेगा और इन कार्यों में काम करने के लिए उन्हें उचित पारिश्रमिक दिया जायेगा। स्कूल या कॉलेज में शिक्षा समाप्त करने के बाद इस कार्यक्रम में युवा जन अपनी इच्छानुसार भाग ले सकेंगे।

कांग्रेस राजस्व तंत्र को आधुनिक और सुदृढ़ बनाएगी क्योंकि यह ग्रामीण क्षेत्रों के करोड़ों देशवासियों के जीवन को प्रभावित करता है।

न्याय में विलम्ब का अर्थ है न्याय से वंचित करना। उच्चतम न्यायालय में तो न्याय मिलने में अब विलम्ब नहीं होता, किन्तु भारतीय न्याय प्रणाली अब इस प्रकार की बनी हुई है कि उस में बहुत अधिक विलम्ब होता है जिससे देश के लाखों सामान्य जन को कष्ट होता है। न्याय पालिका से सहयोग लेकर कांग्रेस न्याय प्रणाली में कुछ मूलभूत सुधार करेंगी और इसके साथ ही कानून तथा उसके कार्यान्वयन में भी सुधार किये जायेंगे।

समय के साथ ही सरकार का कार्यक्षेत्र भी बढ़ गया है। अब हर स्तर पर सरकार की भूमिका, उसके आकार और कार्यक्षेत्र फिर से परिभाषित करने का समय आ गया है। इसके लिए नया प्रशासनिक सुधार आयोग गठित किया जाएगा। मुख्य मंत्रालयों और विभागों का पुनर्गठन होगा। यह सुधार कार्यों और प्रक्रिया के संबंध में होंगे।

सरकारी तन्त्र और गतिशील तथा लोगों की ज+रूरतों को भली प्रकार समझने वाला होना चाहिये और उसका दृष्टिकोण समस्याओं को हल करने का होना चाहिये। लोगों को बेवजह होने वाली परेशानी खत्म होनी चाहिए। जनता का अधिकार है कि वह सार्वजनिक सुविधाओं और एजेंसियों से बेहतर क्वालिटी की सेवाओं की मांग और उपेक्षा करें। कांग्रेस इस मुद्दे को अच्छी तरह समझती है।

भारत में एक नयी कार्यसंस्कृति लानी होगी जिसमें कार्यकुशलता मुख्य तथा एकमात्र मानदण्ड रहेगी, इस बात को नहीं देखा जाएगा कि कौन किसका आदमी है; उत्पादकता का महत्व होगा, तामझाम का नहीं। कांग्रेस अपनी कार्यप्रणाली ऐसी बनाकर इस बदलाव को लायेगी, ज+ोर-ज+बर्दस्ती से नहीं।

कांग्रेस ही क्यों?

कांग्रेस एक व्यापक और विशाल संगठन है जिसमें सभी को जगह मिल जाती है चाहे वे समाज के किसी भी वर्ग से हों।

कांग्रेस ही एकमात्र अखिल भारतीय (राष्ट्रीय) पार्टी है जिसका हर गांव, शहर, कस्बा, नगर और राज्य में व्यापक संगठन मौजूद है।

कांग्रेस ही एकमात्र पार्टी है जो भारत की विविधता को प्रतिबिम्बित करती है।

कांग्रेस ही एकमात्र पार्टी है जो देश की विविधता या अनेकता को परिलक्षित करती है।

कांग्रेस एकमात्र पार्टी है जो भारतीय समाज की विषमता वाली संस्कृति का सम्मान करती है और उससे आनन्दित होती है।

अपने 112 वर्ष के इतिहास में कांग्रेस ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। परंतु इसका मूल ग़ैर-साम्प्रदायिक स्वरूप ज+रा भी नहीं बदला है।

कांग्रेस में किसी एक ग्रुप, समुदाय, जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र के ही लोग नहीं हैं। इसमें तो हर समूह, समुदाय, जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के लोग शामिल हैं।

कांग्रेस भारतीय समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाला व्यापक मंच है।

वास्तव में कांग्रेस विभिन्न हितों का समन्वय है। इसी कारण कांग्रेस का सिद्धांत समायोजक और तालमेल का रहा है, वह जिओ और जीने दो के सिद्धांत को मानती है और हर स्तर पर सहमति से काम करती है।

कांग्रेस में मतभेद दबाए या कुचले नहीं जाते, बल्कि उन पर खुली बहस और विस्तृत चर्चा होती है। कांग्रेस के मध्यवर्गीय मार्ग और सहनशीलता अपनाने के सिद्धांत भारतीय संस्कृति को सही प्रकार से प्रतिबिम्बित करते हैं।

कांग्रेस का मिला-जुला स्वरूप हमारी प्राचीन संस्कृति के मिले जुले स्वरूप का ही प्रतिरूप है।

इसलिए कांग्रेस को वोट देने का मतलब है

ह्ढसमाज के बहुजनीय स्वरूप को और मजबूत बनाना; और
ह्ढअपनी संस्कृति की विविधता को स्वीकार करना

अतः कांग्रेस को वोट देने का अर्थ है

ह्ढस्थायित्व
ह्ढअनुभव
ह्ढविकास और प्रगति

कांग्रेस की कार्ययोजना

कृषि

कृषि को उद्योग का दर्जा दिया जाएगा। किसानों की आमदनी बढ़ाने के रास्ते की बाधा बनने वाले सभी लाइसेंसों, नियंत्रणों और नियमों की समीक्षा की जाएगी और ज+रूरी हुआ तो उन्हें समाप्त कर दिया जाएगा।

कृषि ऋण प्रणाली मज+बूत बनाई जाएगी ताकि किसानों को सहकारी बैंकों, भूमि विकास बैंकों, वाणिज्यिक बैंकों और नाबार्ड जैसी एजेंसियों से सरलतापूर्वक अधिक ऋण मिल सके।

समूह ऋण योजना को बढ़ावा दिया जाएगा। चुने हुए सहकारी बैंकों और ग्रामीण पुनर्निर्माण बैंकों को अधिक पूंजी देकर कार्यशील बनाया जाएगा।

पड़वा खेती (परती भूमि पर खेती) के लिए विशेष कार्यक्रम चलाया जाएगा। इसमें अनुसंधान, विस्तार और ऋण-समर्थन शामिल होंगे।

सभी सार्वजनिक नलकूपों की हालत सुधारने और उन्हें चालू करने का समयबद्ध कार्यक्रम शुरू किया जाएगा। सिंचाई के लिए नये कुएं बनाने का काम तेज किया जाएगा, खासकर देश के पिछड़े और गरीब जिलों में ह योजना चलाई जाएगी।

गांवों में बुनियादी ढ प्राथमिकता विकसित नेटवर्क सम्पर्क-सड़कों भंडार) (घीत स्टोरेज कोल्ड ााएं, सुवि भंडारन गोदाम, इसका कोघ

कृषि प्रसंस्करण उद्योग और पशुपालन, मछलीपालन, बाग़बानी, रेशम पालन और डेयरी विकास जैसी गतिविधियों के लिए आधुनिक टेक्नॉलाजी उपलब्ध कराके इनमें पूंजी निवेश बढ़ाया जाएगा।

कांग्रेस काश्तकारों के लिए पट्टेदारी की व्यवस्था, जमीन की चकबंदी और फालतू जमीन के वितरण की व्यवस्था और भूमि के रिकार्ड रखने की बेहतर और सही व्यवस्था पर ज+ोर देती रहेगी। कांग्रेस पार्टी एक बार फिर भूमि सुधारों का अभियान शुरू करेगी जैसा उसने 1947 के पहले और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के आरम्भिक वर्षों में किया था।

कांग्रेस प्रत्येक राज्य का अलग राजस्व कोड निर्धारित करेगी जिसमें उस राज्य के सभी राजस्व और भूमि कानून शामिल रहेंगे।

लवणता या क्षारीयता के कारण बंजर हो गई ज+मीन को फिर उत्पादक बनाने के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जाएंगे।

परती भूमि विकास और वनीकरण पर और अधिक बल दिया जाएगा। बर्बाद किए गए वनक्षेत्र को फिर विकसित करने के लिए स्थानीय लोगों का सहयोग और उद्योगों की मदद ली जाएगी।

विकसित कृषि गरीबी से लड़ने का मजबूत और प्रभावी अस्त्र है। कृषि विकास जारी रखने के लिए पूंजीनिवेश जारी रखना जरूरी है। कृषि विकास सिर्फ सरकारी सबसिडी (सहायता) के दम पर नहीं चलता, क्योंकि यह तो कुछेक छोटै किसानों की मदद के लिए दी जाती है।

रोजगार

रोजगार पर आधारित विकास कांग्रेस की हमेशा से सर्वोच्च प्राथमिकता रहा है। कांग्रेस को ऐसा विकास नहीं चाहिये जिससे रोजगार के अवसरों में वृद्धि न हो। इसके साथ कांग्रेस का यह भी मानना है सिर्फ रोजगार में वृद्धि करने से कोई लाभ नहीं होगा, रोजगार को विकास से जुड़ा हुआ होना चाहिये।

भारत में रोजगार की चुनौती अत्यंत गंभीर है। देश में हर वर्ष करीब एक करोड़ रोजगार के नये अवसर पैदा करने की जरूरत है। वर्ष 1991 से 1996 के बीच कांग्रेस के शासनकाल के दौरान हर साल रोजगार के लगभग 70 लाख नये अवसर पैदा किये गये। इस दिशा में और तेजी लाने की जरूरत है हालांकि 1994-95 और 1995-96 में 7 प्रतिशत की विकास दर बनी रहने से रोजगार के अवसर स्वतः बढ़ेंगे।

कांग्रेस का यह मानना है कि कृषि विकास की दर में लगातार वृद्धि करके देश में रोजगार के लाखों नये अवसर पैदा किये जा सकते हैं। यह बात देश के गरीब और पिछड़े परंतु संसाधनों की दृष्टि से सम्पन्न क्षेत्रों के संदर्भ में विशेष रूप से कही जा सकती है। ऐसे क्षेत्रों में कृषि कार्य में श्रमिकों को रोज़गार देने की क्षमता अत्यंत प्रबल है। कांग्रेस देश के पूर्वी और मध्य क्षेत्रों में कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए एक विशेष कार्यक्रम शुरू करेगी।

बागवानी, एक्वाकल्वर, पशुपालन, वानिकी और खाद्य प्रसंस्करण से संबंधित गतिविधियों में रोज़गार के नये अवसर पैदा करने की प्रबल संभावनाएं हैं। इन गतिविधियों में नयी प्रौद्योगिकी, विपणन पद्धतियों और ऋण संबंधी प्रबंधों के प्रावधान किये जाने की जरूरत है।

निर्यात को प्रोत्साहन देकर भी रोज़गार के नये अवसर पैदा किये जा सकते हैं। रत्न और आभूषण, वस्त्र, चर्म, सॉफ्टवेयर, इंजीनियरिंग और उपभोक्ता वस्तुओं से जुड़े उद्योगों में निर्यात के ज+रिये रोज़गार उपलब्ध कराने की क्षमता है। कांग्रेस इन उद्योगों के साथ कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने की नीतियां अपनाएगी और जरूरी कार्यक्रम भी चलाएगी।

आवास और निर्माण के क्षेत्र में भी विशाल परियोजना चलाकर रोज़गार के नये अवसरों की जबरदस्त संभावनाएं हैं। कांग्रेस आवास और निर्माण के साथ भूमि के विकास कार्य में बाधा डालने वाले कानूनों को हटाने के लिए अपने प्रयास तेज+ करेगी और वित्तीय संस्थाओं के ज+रिये मदद भी मुहैया कराएगी। कांग्रेस का यह प्रयास होगा कि इस क्षेत्र में इस समय उपलब्ध वित्तीय सहायता के स्तर में दोगुनी बढ़ोतरी कर दी जाए।

लघु उद्योगों को और अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाया जाएगा और काम के लिए जरूरी धन से जुड़ी समस्याओं के हल के लिए कारगर कदम उठाए जाएंगे। लघु उद्योगों को प्रौद्योगिकी, वित्त और विपणन के क्षेत्र में नयी पहल करने की जरूरत है।

कांग्रेस केवीआइसी को एक नया रूप देगी। खादी और ग्राम उद्योगों में ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में रोजगार मुहैया कराने की अपार संभावनाएं है। केवीआइसी को एक गतिशील, आधुनिक, प्रौद्योगिकी-उन्मुख, शोध-आधारित और उपभोक्ता पर केंद्रित संगठन के रूप में परिवर्तित किया जाएगा।

सेवा और स्वरोजगार क्षेत्र का वित्तीय सहायता और कानून एवं नियमों में सुधार कार्यक्रमों के ज+रिये और अधिक विस्तार किया जाएगा।

विकास से हालांकि रोजगार के नये अवसर सामने आएंगे, परंतु इससे रोजगार मुहैया कराने के लिए चलाए जा रहे विशेष कार्यक्रमों का महत्व खत्म नहीं होगा। आज कई तरह के विशेष रोजगार कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इन सभी कार्यक्रमों को ग्रामीण क्षेत्र में एकीकृत करके उन्हें जवाहर रोजगार योजना के अन्तर्गत लाया जाएगा। इसी तरह शहरी क्षेत्रों में चलाए जाने वाले रोजगार कार्यक्रमों को एकीकृत करके उन्हें नगरपालिकाओं द्वारा क्रियान्वित की जाने वाली एक योजना के अन्तर्गत लाया जाएगा।

कांग्रेस देश में हर तरह की तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा का आधुनिकीकरण करेगी। इस काम में निजी उद्योगों की विशेष रूप से मदद ली जाएगी। रोजगार कार्यालय द्वारा चलाई जाने वाली रोजगार योजनाओं का बड़े पैमाने पर विस्तार किया जाएगा और उनके कामकाज को बेहतर बनाया जाएगा।

शिक्षित बेरोजगारों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगा। वर्तमान अप्रेंटिसशिप योजनाओं की समीक्षा की जाएगी और उनका विस्तार करने के साथ उन्हें और अधिक प्रभावी बनाया जाएगा। एक नयी राष्ट्रीय सेवा योजना शुरू की जाएगी जो नये स्नातकों का राष्ट्रनिर्माण से जुड़ी प्रमुख गतिविधियों, जैसे साक्षरता, ग्रामीण विकास आदि के काम में उपयोग करेगी। उद्यमशीलता के विकास से जुड़े प्रयासों को और अधिक तेज+ किया जाएगा।

विकास का सही पैमाना रोजगार ही हैं। आप रोजगार के संबंध में सूचना प्रणाली अत्यंत अव्यावहारिक हो चली है। मुश्किल से पांच सालों में एक बार रोजगारों के बारे में जानकारी मिल पाती है। इस समस्या से निबटने के लिए हर साल एक रोजगार सर्वेक्षण किया जाएगा और उसके नतीजों को सार्वजनिक किया जाएगा।

कांग्रेस वर्तमान सभी श्रमिक कानूनों की उद्योग और व्यापार संघों के साथ मिलकर समीक्षा करेगी, ताकि उन बाधाओं को दूर किया जा सके जो व्यापार के क्षेत्र में अधिक श्रमिक संसाधनों का उपयोग नहीं करने देती।

ग्रामीण विकास

एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (आइ आर डी पी) साधनों के निर्माण का अकेला ग्रामीण विकास कार्यक्रम होगा। इसी तरह जवाहर रोजगार योजना (जे आर वाई) भत्ते पर आधारित रोजगार उपलब्ध करने वाली अकेली योजना होगी। सभी वर्तमान कार्यक्रमों का आई आर डी पी अथवा जे आर वाई में विलय कर दिया जायेगा।

आई आर डी पी और जेआरवाई के फंड को जिला परिषदों और पंचायत संस्थाओं को हस्तांतरित कर दिया जायेगा। जेआरवाई के अन्तर्गत रोजगार को सुनिश्चित करने की एक ऐसी योजना शुरू की जायेगी जो देश के सभी खण्डों, यानी ब्लॉक्स, में लोगों को रोजगार मुहैया करायेगी।

खादी और ग्रामोद्योग आयोग की गतिविधियों की विपणन, शोध और प्रौद्योगिकी के लिए और अधिक सहयोग दिया जायेगा।

सिंचाई

सभी वर्तमान सिंचाई परियोजनाओं और उनकी वितरण प्रणालियों को पर्याप्त धन उपलब्ध कराकर उन्हें एक निश्चित समय-सीमा के भीतर पूरा किया जायेगा।

जल प्रबंधन, 'कमाण्ड एरिया' विकास और जल की निकासी के संबंध में एक व्यापक नीति एवं कार्यक्रम का विकास और उसका कार्यान्वयन किया जायेगा।

राज्यों के बीच नदी जल के बंटवारे के संबंध में कांग्रेस एक राष्ट्रीय सहमति को विकसित करेगी। सभी अन्तर्राज्यीय जल विवादों का स्थायी समाधान किया जायेगा। देश के अनेक भागों, जैसे उड़ीसा, उत्तर विहार, एवं असम समयत्र पर बाढ़ से तबाह होते रहते हैं। ऐसे क्षेत्रों में लाखों लोगों को बाढ़ के संकट से राहत दिलाने के लिए भरोसेमंद बाढ़ नियंत्रण उपाय किये जायेंगे।

अल्पसंख्यक

अल्पसंख्यकों के लिए इन्दिराजी का पंद्रहसूत्री कार्यक्रम कांग्रेस की नीति का मुख्य आधार बना रहेगा। इस कार्यक्रम के सभी पहलुओं को पहले से कहीं अधिक उत्साह के साथ क्रियान्वित किया जायेगा।

कांग्रेस अल्पसंख्यकों और मानवाधिकारों के लिए एक नया मंत्रालय गठित करेगी, ताकि इन दोनों के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित किया जा सके। एक उच्चस्तरीय आयोग का गठन किया जायेगा जो सरकारी सेवाओं में अल्पसंख्यकों को और अधिक प्रतिनिधित्व देने के संबंध में अपनी सिफ़ारिशें पेश करेगा।

संविधान में संशोधन करके कांग्रेस अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक आयोग स्थापित करेगी और अल्पसंख्यक पेशेवर संस्थाओं को केंद्रीय विश्वविद्यालयों से सीधे समबद्ध करने का प्रावधान करेगी।

हस्तशिल्पियों और बुनकरों के लिए मध्यम दर्जे के नये तकनीकी संस्थानों को शुरू किया जायेगा।

कांग्रेस मौलाना आज+ाद ऐजुकेशनल फाउण्डेशन के कॉरपस की धनराशि को एक व्यापक स्तर तक बढ़ाकर अल्पसंख्यक समुदायों के बीच शिक्षा एवं साक्षरता का विस्तार करेगी।

सन् 1996 में कांग्रेस ने पहल करके हैदराबाद में मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। यह विश्वविद्यालय उर्दू माध्यम से उच्च शिक्षा देगा। यह व्यवस्था विशेषतौर पर व्यवासायिक और तकनीकी विषयों के लिये होगी जिससे महिलाओं को विशेष लाभ होगा। कांग्रेस यह सुनिश्चित करेगी कि यह विश्वविद्यालय एक उत्कृष्ट शिक्षा केंद्र के रूप में व्यवस्थित हो।

कांग्रेस सरकार ने उत्तर प्रदेश और बिहार में उर्दू को द्वितीय आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया था। तथापि, आगे आने वाली सरकारों ने इसे लागू करने में कोई रूचि नहीं दिखायी। कांग्रेस उर्दू को उसका उचित स्थान दिलायेगी।

कांग्रेस सभी समुदायों के निजी कानूनों का आदर करती है और सभी भारतीयों के लिए समान निजी कानून बनाने के विचार को नहीं मानती। यह तो भारतीय सभ्यता के स्वभाव के ही प्रतिकूल है। किसी भी समुदाय द्वारा स्वयं अनुरोध किये जाने पर ही निजी कानूनों में सुधार पर विचार किया जायेगा।

कांग्रेस ने 1991 में पूजा स्थलों के संरक्षण के संबंध में जो कानून लागू किया था उससे सभी पूजा स्थलों की 15 अगस्त 1947 के आधार पर यथास्थिति बनी रहेगी। इस कानून को सख्ती से लागू किया जायेगा।

अयोध्या के संबंध में कांग्रेस सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का सम्मान करेगी। वह न्यायालय के बाहर हुए किसी भी अन्य समाधान को नहीं मानेगी।

कांग्रेस अल्पसंख्यक वर्गों के सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण की सुविधायें देने के साथ अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों को दी जाने वाली विशेष सुविधाओं का भी लाभ देगी।

बुनकरों और हथकरघा कर्मियों, मछुआरों, ताड़ी कार्मिकों, चर्मकारों और वृक्षारोपण का काम करने वालों के लिए विशेष सुरक्षा एवं बीमा-योजनायें शुरू करेगी।

पुलिस, अर्द्धसैनिक बलों और सशस्त्र सेनाओं में अल्पसंख्यकों की भर्ती के लिए एक विशेष अभियान चलाया जायेगा। साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील समझे जाने वाले जिलों एवं राज्यों की विशेष रूप से निगरानी की जायेगी।

अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां

कांग्रेस यह सुनिश्चित करेगी कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए नौकरी और शिक्षा में आरक्षण की वर्तमान नीति को पूरी तरह क्रियान्वित किया जाये। पदोन्नतियों सहित आरक्षण संबंधी सभी कोटों को एक निश्चित समय-सीमा के भीतर पूरा किया जायेगा। आरक्षणों को वैधानिक रूप देकर उन्हें संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किया जायेगा।

अनुसूचित जाति तथा जनजाति के विद्यार्थियों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमों का और अधिक विस्तार किया जायेगा। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों में लड़कियों को प्रत्येक स्तर पर निःशुल्क शिक्षा दी जायेगी।

देश के सभी आदिवासी क्षेत्रों में विशेष न्यायालयों को स्थापित किया जायेगा जो आदिवासियों के हितों की रक्षा करने के साथ उनके अपने कानूनों और परम्पराओं को सुरक्षित रखेंगे।

एक नयी नीति तैयार की जायेगी जो वन भूमि के प्रबंधन के साथ वनों पर आधारित आदिवासी समुदायों के हितों का ध्यान रखेगी।

कांग्रेस की पिछली सरकारों द्वारा सरकारी और वाणिज्यिक बैंकों द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के किसानों के लिए शुरू की गयी सौ करोड़ रुपये की विशेष ऋण व्यवस्था की राशि को दुगुना कर दिया जायेगा।

इसके अतिरिक्त अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों लघु, कुटीर एवं गांव में उद्योगों को स्थापित करने के लिए एक विशेष ऋण योजना शुरू की जायेगी।

जहां अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को जमीनें दी गई हैं वहां उन्हें मालिकाना हक दिये जायेंगे।

अनुसूचित जनजातियों के लिए अलग राष्ट्रीय आयोग गठित किया जायेगा और उसे संवैधानिक दर्जा दिया जायेगा।

श्रमिक

कांग्रेस बीमार कंपनियों की हालत सुधारने के लिए कर्मचारियों के संगठनों को सक्रिय रूप से प्रोत्साहन और समर्थन देगी।

कामकाज और बोर्ड के स्तर पर प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी को बढ़ाने के लिए विभिन्न विकल्पों की जांच के साथ विशेष उपाय किये जायेंगे।

औद्योगिकी और वित्तीय पुनर्निमार्ण बोर्ड (बी आइ एफ आर) को इस तरह पुनर्गठित किया जायेगा कि वह प्रौद्योकिी के पुनर्जागरण का एक प्रभावी संस्थान बन जाये।

सभी वर्तमान औद्योगिक प्रशिक्षित और व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों और पॉलीटेक्निकों में उपलब्ध सुविधाओं को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का बनाया जायेगा। इन संस्थाओं के संचालन में निजी उद्योग की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जायेगा।

असंगठित क्षेत्रों में कर्मियों, विशेष रूप से महिलाओं के लिए, सामाजिक सुरक्षा और बीमा योजनाओं को सुदृढ़ किया जायेगा एवं उसका विस्तार किया जायेगा।

कांग्रेस औद्योगिकी संबंधों से जुड़े मुद्दों, जैसे उत्पादकता और भत्ता, गुप्त मतदान, कर्मचारी संघों और नेतृत्व की बहुलता पर सक्रिय रूप से एक राष्ट्रीय सहमति बनाने का प्रयास करेगी।

उचित नीति परिवर्तनों के लिए उद्योगों में कर्मचारियों की हिस्सेदारी को प्रोत्साहित किया जायेगा।

कांग्रेस यह सुनिश्चित करेगी कि सरकारी और निजी क्षेत्र की कंपनियों की भीतर कर्मचारियों के सभी वैधानिक भुगतानों की एक निश्चित समय-सीमा के भीतर अदायगी कर दी जाये।

प्रतिरक्षा और भूतपूर्व सैनिक

हमारी सीमाओं और संवेदनशील राज्यों में आतंक विरोधी कार्यवाहियों सशस्त्र बलों कि वीरतापूर्ण भूमिका की कांग्रेस हार्दिक प्रशंसा करती है। कांग्रेस इस तथ्य से अवगत है कि हमारी सैनायें अपना कार्य अत्यधिक कठिनाईयों में सम्पन्न करते हैं। कांग्रेस उनकी समस्याओं पर प्राथमिकता से विचार करेगी।

कांग्रेस रक्षा सेनाओं के मनोबल के स्तर में आ रही गिरावट को रोकने के लिए तुरंत कार्रवाई करेगी।

कांग्रेस आर्थिक और विदेश नीति के सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर रक्षा-व्यवस्था में आवश्यक सुधार लागू करने के उद्देश्य से उच्चाधिकार प्राप्त आयोग नियुक्त करेगी। पार्टी एक समयबद्ध कार्यक्रम के तहत आयोग की सिफारिशों को लागू करेगी।

कांग्रेस का यह विश्वास है कि भूतपूर्व सैनिक समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और उनकी क्षमताओं को न सिर्फ पहचाना जाना चाहिए, बल्कि उनका रचनात्मक ढ उपयोगझ

भूतपूर्व सैनिकों के पुनर्वास के लिए नये कार्यक्रम शुरू किये जायेंगे और उनके संगठनों का विशेष कार्यक्रमों जैसे साक्षरता, वानिकीकरण में उपयोग किया जायेगा।

महिलाएं

कांग्रेस शिक्षा, सबलता और कानूनी अधिकारों के ज+रिये महिलाओं और लड़कियों के विरूद्ध भेद-भाव को समाप्त करने के लिए एक राजनीतिक अभियान शुरू करेगी।

आवास स्थलों और भूमि जैसे साधनों की संयुक्त रूप से अथवा निजी स्तर पर वितरण संबंधी योजनाओं में महिलाओं को स्वामित्वदिया जायेगा।

आइ आर डी पी जैसे गरीबी-उन्मूलन कार्यक्रमों में महिलाओं पर विशेष ध्यान दिया जायेगा। वाटरशेड विकास और वानिकी परियोजनाओं में महिलाओं की मुख्य भूमिका रहेगी।

सती और दहेज+ हत्याओं जैसे महिलाओं पर अत्याचारों और बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई से निपटने के लिए कांग्रेस एक अभियान छेड़ेगी।

युवाजन और बच्चे

कांग्रेस सभी स्कूलों में एन.सी.सी. को अनिवार्य कर देगी। इससे युवाजन में प्रारंभ से ही अनुशासन की भावना पैदा होगी।

एकीकृत बाल विकास कार्यक्रम का देश के सभी विकास खण्डों (ब्लॉक्स) में विस्तार किया जायेगा और पोषण संबंधी उचित सहायता देने के लिए सभी आवश्यक प्रबंध किये जायेंगे।

कांग्रेस 1994 में शुरू किए गए राष्ट्रीय मध्याह्‌न भोज कार्यक्रम को और सुदृढ़ बनाकर उसका देश के सभी प्राथमिक स्कूलों में विस्तार करेगी। इस संदर्भ में निर्धन राज्यों पर विशेष ध्यान दिया जायेगा।

बाल-श्रम के संबंध में बने कानूनों को सख्ती से लागू किया जायेगा। ऐसे क्षेत्रों में जहां बाल-श्रमिक अधिक संख्या में हैं, विशेष शिक्षा सुविधाओं को मुहैया कराया जायेगा।

कांग्रेस बेघर बच्चों के कल्याण के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं और गैर-सरकारी संस्थाओं के ज+रिये एक विशेष योजना शुरू करेगी। कांग्रेस का यह मानना है कि बेघर बच्चों को आवास की सुविधा के साथ भोजन एवं शिक्षा मिलनी चाहिये।

बालिकाओं के संरक्षण के लिए कड़े उपाय किए जायेंगे। समाज के कमज+ोर वर्गों के लोगों में बालिकाओं के सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को शुरू किया जायेगा। गर्भ के दौरान और जन्म के बाद कन्याओं को हत्या समस्या से निपटने के लिए कड़े दण्डों को प्रावधान किया जायेगा।

उत्तर-पूर्व

इस क्षेत्र में आतंकवाद और हिंसात्मक कार्यवाईयों की समस्या को प्रभाविक ौते के आधार पर इस पूरी समस्या का समाधान किया जायेगा।

कांग्रेस यह सुनिश्चित करेगी कि उत्तर-पूर्व परिषद को उचित विशेषज्ञता, धनराशि और अधिक वित्तीय अधिकार दिये जायें।

विभिन्न वस्तुओं के बोर्डों का दर्जा बढ़ाकर उन्हें और अधिक वित्तीय अधिकार दिये जायेंगे। चाय बोर्ड के मुख्यालय को गुवाहाटी में स्थानांतरित किया जायेगा।

ब्रह्‌मपुत्र बोर्ड को सक्रिय करके उसे योजनाओं के अध्ययन मॉडल परियोजनाओं और वास्तविक योजनाओं के लिए उचित वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराये जायेंगे।

अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर कुछ विशेष स्थानों पर सीमा व्यापार मार्गों को विकसित किया जायेगा।

गुवाहाटी में हवाई अड्डे का स्तर अन्तर्राष्ट्रीय किया जायेगा और उत्तर-पूर्व और पूर्व एशिया के लिए नये हवाई मार्ग शुरू किये जायेंगे।

भीतरी सीमा अनुमति व्यवस्था की समीक्षा की जायेगी ताकि उत्तर-पूर्व की पर्यटक क्षमता का पूरी तरह उपयोग किया जा सके।

संविधान की छठवीं अनुसूची के अंतर्गत स्वायत जिला परिषदों को और अधिक प्रशासनिक एवं वित्तीय अधिकार दिये जायेंगे।

सीमापार से अवैध घुसपैठ को प्रभावी ढ बनाया सुदृ

बांग्लादेश के जरिये देश के बाकी भागों को भूमि और नदी मार्गों से जोड़ने के प्रयासों में तेज+ी लायी जायेगी।

जन-वितरण प्रणाली (पीडीएस)

पीडीएस को शहरी क्षेत्रों में खाद्यन्न और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में स्थायित्व लाने के लिए शुरू किया गया था, लेकिन धीरे-धीरे यह शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने की एक प्रमुख व्यवस्था बन गयी।

कांग्रेस यह सुनिश्चित करेगी कि पीडीएस का लाभ सिर्फ ग़रीब और जरूरतमंद लोगों को मिले। भारत के अत्यंत निर्धन राज्यों में पीडीएस की स्थिति बहुत कमजोर है। इस कमजोरी को राज्य सरकारों के साथ मिलकर दूर किया जायेगा। भारतीय खाद्य निगम उपार्जन, संग्रह और वितरण संबंधी गतिविधियों का बड़े पैमाने पर विस्तार किया जायेगा।

जनसंख्या नीति

हमारी जनसंख्या की विकास की दर 2 प्रतिशत से नीचे तो आ गयी है, परंतु यह अभी बहुत अधिक है। हर साल हम अपनी जनसंख्या में डेढ़ करोड़ की वृद्धि कर लेते हैं।

कांग्रेस का यह मानना है कि महिला साक्षरता के विकास, महिलाओं को सबल बनाकर, पोषण संबंधी प्रावधान करके, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के साथ जागरूकता पैदा करने वाले अभियानों के जरिये जनसंख्या विकास की दर को घटाया जा सकता है। केरल और तमिलनाडु के अनुभव यह दर्शाते है, कि सामाजिक विकास और कार्यक्रमों के ज+रिये-जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है। हमारे सामने उत्तर भारत के राज्यों में इस सफलता को दोहराने की चुनौती है जहां देश की 40 प्रतिशत आबादी रहती है। भारत के करीब 150 उन जि+लों में विशेष प्रयासों की आवश्यकता है जहां प्रजनन दर में बहुत धीमी गति से गिरावट आ रही है। कांग्रेस वर्तमान परिवार नियोजन की खामियों को एक सुनियोजित तरीके से दूर करने का प्रयास करेगी। वह इस कार्य में गैर-सरकारी संगठनों और व्यापारिक क्षेत्र का सहयोग लेने के साथ सभी स्तरों पर राजनीतिक समर्थन को सुनिश्चित करेगी।

आवास

कांग्रेस आवास और निर्माण कार्य में तेजी लाने के मार्ग में आ रही सभी कानूनी बाधाओं और अप्रभावी कानूनों को दूर करेगी।

गृह निर्माण और मकानों को किराये पर उपलब्ध कराने के संबंध में वित्तीय लाभों को प्रोत्साहित किया जायेगा। रहन मार्टगेज की पूर्व घोषणा संबंधी कानून को लागू किया जायेगा। मकानों के लिए ऋण उपलब्ध कराने वाली कंपनियों के लिए भी आवश्यक प्रावधान किये जायेंगे।

शहरी क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों के वास्ते आवास उपलब्ध कराने के लिए कम खर्च वाली निर्माण प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित किया जायेगा। झुग्गियों और कच्ची बस्तियों को रहने लायक स्थानों में परिवर्तित किया जायेगा।

शहरी बुनियादी ढ अनुमति पूंजी निजी परियोजनाओं ात संबंझि

न्यायपालिका

टाडा के समस्त लम्बित मामलों पर एक समयबद्ध आधार पर पुर्नविचार किया जायेगा।

कांग्रेस संविधान के अंतर्गत न्यायपालिका को दी गयी स्वतंत्रता के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

कांग्रेस ऐसे कदम उठायेगी जिनसे निर्धन लोगों को कानूनी सहायता उपलब्ध करायी जा सके। वह लोगों को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में जानकारी देने के लिए एक अभियरन चलायेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि मुकदमों के निपटारे में बहुत ज्यादा देरी न हो। उच्चतम न्यायालय में मुकदमों का निपटारा अब जल्दी होने लगा है, लेकिन उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में अभी भी बहुत समय लगता है। इस तरह के विलम्ब को दूर करने के लिए जो कुछ भी जरूरी होगा वह किया जायेगा।

एक राष्ट्रीय सुधार आयोग गठित किया जायेगा जो देश के लोगों, व्यापार और उद्योग की जरूरतों को अधिक प्रभावी ढ व्यवस्था भूमिका बदली न्यायपालिका संदर्भ कार्यपालिका आयोग करेगा। रिपोर्ट विस्तृत बारे न्याययिकझ

संवेदनशील प्रशासन

कांग्रेस प्रशासनिक सुधारों की प्रक्रिया को तुरंत शुरू करेगी। इन सुधारों का उद्देश्य सिविल सर्विस को नियमन संबंधी भूमिका निभाने की बजाय एक ऐसे उत्प्रेरक में परिवर्तित करना होगा जो विकास और सामाजिक परिवर्तनों में तेजी ला सके।

पेशेवर लोगों और विशेषज्ञों के सभी स्तरों में प्रवेश को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित किया जायेगा। ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों को शुरू किया जायेगा जो सिविल सर्विस को दुरूस्त रख सकें।

अधिकारियों की उन स्थानीय संस्थाओं के प्रति जवाबदेही को सुनिश्चित किया जायेगा जहां स्थानीय निकायों की संवैधानिक जिम्मेदारिया है।

पांचवे वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार अवकाश प्राप्त करने की उम्र को साठ वर्ष कर दिया जायेगा।

कांग्रेस गोपनीयता बनाये रखने की वर्तमान नीति की समीक्षा करेगी। वह ऐसे प्रयास करेगी कि सरकार के दरवाजे आम लोगों के लिए खुले रहें।

पर्यावरण

कांग्रेस पर्यावरण प्रबंधन के उन कार्यों को पहचानने की प्रक्रिया शुरू करेगी जिन्हें राज्यों को सौंपा जा सकता है। कांग्रेस यह भी सुनिश्चित करने का प्रयास करेगी कि पर्यावरण एवं विकास साथ-साथ चलें ओर दोनों के बीच किसी तरह का टकराव न हो।

कांग्रेस यह सुनिश्चित करेगी कि प्रदूषणकारी और जोखिम वाली औद्योगिक इकाइयों के विरूद्ध अदालती निर्णयों से प्रभावित लोगों को प्राभाविक ढ देने प्रतिबद्ध पुनर्वास पुनर्स्थापना सहायताझ

विकास परियोजनाओं से प्रभावित लोगों को प्रभाविक ढ देने प्रतिबद्ध पुनर्वास पुनर्स्थापना सहायताझ

कांग्रेस इस पक्ष में है कि प्रदूषण फैलानेवाला ही प्रदूषण की मात्रा घटाने, उसका शमन और नियंत्रण करने की कीमत अदा करे।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी

कांग्रेस प्रौद्योगिकी के आयात पर लगाये जाने वाले कर से मिलने वाली राशि को प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड में जमा करेगी, ताकि देश की अपनी प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन दिया जा सके।

राजीवजी ने राष्ट्रीय महत्व के क्षेत्रों, जैसे जलापूर्ति, प्रतिरक्षा, साक्षरता, तिलहन और दूरसंचार में प्रौद्योगिकी मिशनों को आरंभ करके हमारे वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों के लिए चुनौती और अवसर के नये द्वार खोले थे। कांग्रेस अब कृषि, स्वास्थ्य, पशुधन और ऊर्जा के क्षेत्र में नये प्रौद्योगिकी मिशन शुरू करेगी।

हमारी प्रयोगशालाओं और अनुसंधान संस्थानों को युवा पीढ़ी के साथ नये उपकरणों और एक नयी प्रबंध संस्कृति की जरूरत है। कांग्रेस कृषि विश्वविद्यालयों के आधुनिकीकरण के लिए विशेष कार्यक्रम आरंभ करेगी। साथ ही वह आइसीएआर, आसीएमआर और सीएसआइआर की प्रयोगशालाओं को और अधिक उन्नत बनाएगी।

भारतीय वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों की एक बड़ी संख्या इस समय दूसरे देशों में बसी हुई है। देश के उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में इन लोगों की क्षमताओं के उपयोग के लिए नये रास्ते खोजे जाएंगे।

युवा पीढ़ी द्वारा विज्ञान को करियर बनाने में आ रही लगातार गिरावट के प्रति कांग्रेस अत्यंत चिंतित है। हम विज्ञान शिक्षा को और अधिक रोचक और उपयोगी बनाने के प्रयास करेंगे।

बिजली

कांग्रेस यह सुनिश्चित करेगी कि ऊर्जा के क्षेत्र में सरकारी निवेश को उचित स्थान दिया जाए और इस क्षेत्र में निजी और विदेशी पूंजी निवेश को बढ़ावा दिया जाए। देश को इस समय हर वर्ष सात से आठ हजार मेगावॉट बिजली उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता है।

उड़ीसा में कांग्रेस की सरकार ने ऊर्जा में जो दूरगामी और क्रांतिकारी सुधार किये हैं, उनकी पूरी दुनिया में प्रशंसा हो रही है। कांग्रेस राज्य सरकारों के साथ मिलकर यह सुनिश्ति करेगी कि इसी तरह के संगठनात्मक, वित्तीय और कानूनी सुधान पूरे देश में किये जाएं। हम बिजली की चोरी को रोकने और अवैध कनेक्शनों की समस्या से निबटने के लिए अपनी ओर से हर संभव प्रयास करेंगे।

मौजूदा बिजलीघरों के आधुनिकीकरण और नवीकरण का कार्य एक व्यवस्थित ढ उपाय पक्के रोकथाम कनेक्घनों अवै चोरी बिजलीझ

कांग्रेस की यह कोशिश होगी कि एक ऐसा भरोसेमंद राष्ट्रीय ग्रिड तैयार किया जाए जो ऊर्जा की बहुलता वाले क्षेत्रों से उन क्षेत्रों को विद्युत की आपूर्ति कर सके जहां उसकी ज+रूरत है और उत्पादन कम। हम विद्युत वितरण के काम का निजीकरण करेंगे और शुल्क के निर्धारण के लिए नियमन, यानी रेग्युलेटरी, संस्थाओं का गठन करेंगे।

तेल और गैस

निजी और सरकारी क्षेत्रों तथा विदेशी कंपनियों के साथ संयुक्त उपक्रमों के जरिये तेल की अन्वेषण और उत्पादन क्षमता बढ़ने के लिए कांग्रेस तुरंत कार्रवाई करेगी। सभी लंबित ठेके समय सीमा के आधार पर दिये जायेंगे।

हमारी यह पुरज+ोर कोशिश होगी कि एलपीजी के कनेक्शनों के लिए प्रतीक्षा सूची को जल्दी ही समाप्त कर दिया जाए।

कांग्रेस यह सुनिश्चित करेगी कि तेल कंपनियां अपनी प्रौद्योगिकी और संगठन में सुधार करके अपने काे विश्व स्तर पर स्थापित करें।

कांग्रेस प्राकृतिक गैस ग्रिड की स्थापना करेगी। गैस को यों ही जलकर नष्ट होने को रोका जायेगा।

कोयला

कांग्रेस कोयले के अन्वेषण, खनन और उत्पादन को एक व्यावहारिक ढ प्रोत्साहितझ

कोयला खनन क्षेत्रों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए कांग्रेस पर्यावरण प्रबंधन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम आरंभ करेगी। साथ ही वह एक साफ कोयला प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करेगी।

खाद

कांग्रेस यह सुनिश्चित करेगी कि किसानों का हर समय आवश्यक मात्रा में खाद मिले।

फास्फेटिक ओर पोटाश वाली खाद की तुलना में नेत्रजनीय खाद के उपयोग में लगातार कमी आ रही है। कांग्रेस इस असंतुलन को उचित मूल्य नीति के ज+रिये दूर करने का प्रयास करेगी।

संचार

सन् 1998 के अंत तक सभी सब-डीवीज+न और तहसील मुख्यालयों को राष्ट्रीय एसटीडी नेटवर्क के साथ जोड़ दिया जाएगा।

कांग्रेस सत्ता में आने के 18 महीनों के भीतर सभी ग्राम पंचायतों को टेलीफोन की सुविधा उपलब्ध कराएगी। इस समय केवल साठ प्रतिशत पंचायतों को ही यह सुविधा मिली हुई है।

कांग्रेस डाक व्यवस्था के आधुनिकीकरण के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकी का सहारा लेगी। देश के सभी गांवों और कस्बों में मनी ऑर्डर, यानी धनादेश, के वितरण में तेज+ी लाने के लिए कांग्रेस उपग्रह के ज+रिये एक विशेष मनी आर्डर सेवा शुरू करेगी।

कांग्रेस सन् 1994 में लाई गई राष्ट्रीय टेलीकॉम नीति को पूरी गंभीरता के साथ लागू करेगी। निजी और विदेशी कंपनियों को बिना किसी भेदभाव अथवा पक्षपात के, डॉट, यानी टेलीकॉम विभाग, के साथ स्पर्द्धा करने का अवसर दिया जाएगा। इसके साथ ही भारतीय टेलीकॉम प्राधिकरण की स्वतंत्रता को बनाये रखा जाएगा।

कांग्रेस विशेष रूप से स्कूलों और कॉलेजों को मदद देने के लिए एक राष्ट्रीय मल्टीमीडिया इन्फ़र्मेशन हाइवे का गठन करेगी। शिक्षा एवं साक्षरता के प्रसार के लिए उपग्रह टेलीविज+न का रचनात्मक ढझ

सड़क और बन्दरगाह

सन् 2000 के अंत तक देश के सभी गांवों को हर मौसम में उपयोग की जा सकने वाली सड़कों से जोड़ा जाएगा। इस काम के लिए आवश्यक धनराशि की कोई कमी नहीं आने दी जाएगी।

अगले पांच से छह सालों में देश की दो गलियारे वाली सड़कों को चार गलियारों में परिवर्तित कर दिया जाएगा। इस कार्यक्रम में निजी और विदेशी निवेश को सक्रिय रूप से प्रोत्साहन दिया जाएगा। भारतीय और विदेशी कंपनियों के सहयोग से नये एक्सप्रेस मार्ग बनाए जाएंगे।

बन्दरगाहों पर होने वाले विलम्ब और आधुनिक सुविधाओं के अभाव के कारण निर्यात के क्षेत्र में हम ज्+यादा प्रगति नहीं कर पाते हैं। कांग्रेस ऐसे कदम उठाएगी जिनसे यह सुनिश्चित किया जा सके कि बन्दरगाहों का प्रबंधन पेशेवर ढ अि नये दी उपयोग करके निजी ात सहायता चाहते करना स्थापित बन्दरगाह निवेघकों जाएगी संभव

रेलवे

पिछले 18 महीनों में रेलवे सुरक्षा की स्थिति में जबरदस्त गिरावट आई है। कांग्रेस रेलों से रोज यात्रा करने वाले देश के लाखों यात्रियों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देगी और इसके लिए सभी जरूरी कदम उठाएगी।

देश में अभी भी ऐसे बहुत से भाग हैं जहां रेल सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। कांग्रेस ऐसे क्षेत्रों को एक निश्चित समय सीमा के भीतर रेल नेटवर्क से जोड़गी।

रेलवे में प्रौद्योगिकी और आधुनिकीकरण के लिए निवेश को बढ़ाने के नये तरीके ढॅ।

रेलवे के संगठनात्मक ाव देने के लिए कांग्रेस एक उच्चाधिकार प्राप्त आयोग नियुक्त करेगी।

सरकारी क्षेत्र

कांग्रेस का यह मानना है कि अब सरकारी क्षेत्र की भूमिका को पुनः परिभाषित करने का समय आ गया है, क्योंकि देश में उद्यमशीलता पनपने लगी है और सरकार पर महत्वपूर्ण सामाजिक क्षेत्रों, जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य, में निवेश के लिए दबाव बढ़ता जा रहा है।

जहां कहीं भी सरकारी क्षेत्र को सामाजिक एवं सामरिक दृष्टिकोण से जारी रखना जरूरी है, वहां उसे जारी तो रखा जाएगा परंतु उसमें पेशेवर सिद्धांतों का समावेश भी किया जाएगा।

डिसइन्वेस्टमेण्ट कमिशन ने सरकारी क्षेत्र की 25 कंपनियों के संदर्भ में दूरगामी सिफारिशें प्रस्तुत की हैं। संयुक्त मोर्चे ने इन सिफारिशों की लगातार अनदेखी की है। कांग्रेस इन सिफारिशों को पूरी गंभीरता से एक क्रमिक ढ संस्था पेघेवर इसे करेगी दर्जा ाानिक वै इस लागूझ

डिसइन्वेस्टमेण्ट, बिक्री और निजीकरण से होने वाली आय को सामाजिक क्षेत्रों के साथ कर्ज उतारने के काम में लाया जाएगा।

लघु उद्योग

लघु उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। सक्रिय वित्तीय, मार्केटिंग और प्रौद्योगिकी प्रोत्साहन संबंधी प्रयासों के जरिये इनकी कार्यक्षमता में सुधार लाया जाना अत्यंत आवश्यक है।

हम लघु उद्योग से जुड़े 100 क्षेत्रों में विशेष बैंक सुविधाएं मुहैया कराएंगे। इन क्षेत्रों को परीक्षण और प्रदूषण नियंत्रण से जुड़ी समान सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाएंगी।

संकाय पूंजी को लघु व्यापार में लगाने के लिए एक सीमित साझेदारी अधिनियम लागू किया जाएगा। पहली पीढ़ी के उद्यमियों के लिए जोखिम पूंजी की उपलब्धता को भी बढ़ाया जाएगा। अधिसंख्य लघु इकाइयों के लिए कार्य पूंजी जुटाना एक बड़ी समस्या होती है, इससे निबटने के लिए बैंक और वित्तीय संस्थानों के लिए नये नियम बनाए जाएंगे जिनका अभी सिर्फ बड़े उद्योगों को ही लाभ मिलता है।

उद्योग

कांग्रेस ने उद्योग और व्यापार के उदारीकरण की जो प्रक्रिया 1991 में शुरू की थी, उसे वह जारी रखेगी। कांग्रेस ऐसी पक्की व्यवस्था करेगी कि उद्योगों में स्वस्थ स्पर्धा विकसित हो और भारतीय कम्पनियों को देश में और विदेशों में अन्तर्राष्ट्रीय स्पर्धा में टिके रहने के लिए हर तरह की सुविधा मिलती रहे।

टैरिफ कमिशन को सुदृढ़ बना कर कांग्रेस एक ऐसा संस्थागत ढ करेगी प्रभावी एवं मजबूत डंपिंग दे। प्रतिस्पर्द्धाझ

कांग्रेस सामरिक और सुरक्षा से संबद्ध क्षेत्रों को छोड़कर अन्य सभी उद्योगों में गैर-लाइसेंसीकरण की प्रक्रिया को तेज+ करेगी।

कांग्रेस ऐसी संस्थाओं को और अधिक मजबूती प्रदान करेगी जो यह सुनिश्चित करती है कि प्रतिस्पर्द्धा का उपभोक्ताओं को सीधा लाभ मिले। इसके लिए वह प्रतिरोधात्मक, अनुचित और एकाधिकार की प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाएगी।

कांग्रेस उद्योग जगत के साथ मिलकर काम करेगी ताकि विश्व व्यापार संगठन की बौद्धिक संपदा अधिकार और मात्रा संबंधी प्रतिबंध जैसे क्षेत्रों में चुनौतियों का प्रभावी ढझ

कांग्रेस विदेशी बाजारों में भारतीय बाण्डों को जमाने के काम में सक्रिय सहयोग देगी और भारतीय कम्पनियों के विदेशों में व्यापार करने संबंधी नियमों तथा प्रक्रियाओं को सरल बनायेगी।

कांग्रेस निर्यात को प्रोत्साहन देने को सर्वोच्च प्राथमिकता देगी। उसने 1992 और 1996 के बीच अपने शासन के दौरान ऐसा किया भी था। कृषि सहित सभी क्षेत्रों में निर्यात के संबंध में आने वाली बाधाओं को तेज+ी से हटाया जाएगा।

कांग्रेस पूंजी बाजारों की स्थिति में सुधार लाने के लिए तुरंत कदम उठाएगी, ताकि उद्योग अपने विस्तार और विकास के लिए जरूरी संसाधन जुटा सकें। यूटीआइ, एलआइसी और जीआइसी जैसी संस्थाओं को बाज+ार में और अधिक प्रभावी बनाने के लिए प्रयास तेज+ किये जाएंगे।

कांग्रेस यह सुनिश्चित करेगी कि एक नया कंपनी अधिनियम और एक विदेशी विनिमय प्रबंधन अधिनियम 1998 में ही अपने अस्तित्व में आ जाए। यह बीमार उद्योग कंपनी कानून को नया रूप देगी।

पूंजी बाज+ार

पूंजी बाजार और खासकर प्राथमिक बाज+ार बहुत ढ जुटा संसा आवयकझ

कांग्रेस पूंजी बाज+ार की स्थिति मज+बूत बनाने के उपाय तुरंत करेगी। यूनिट ट्रस्ट, जीवन बीमा निगम और सामान्य बीमा निगम जैसी संस्थाओं को समुचित साधन-समर्थन मुहैया कराके और प्रभावनी बनाया जाएगा ताकि पूंजीबाजार में वे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें।

पूंजी बाजार को सशक्त बनाने और भारतीय लोगों को निवेश के नये अवसर उपलब्ध कराने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों, वित्तीय संस्थानों और निजी कम्पनियों में सरकारी शेयरों की बिक्री (विनिवेश) की जायेगी।

करोड़ों सामान्य निवेशकों के हितों की रक्षा की दृष्टि से पूंजीबाजार को नियमित करके अधिक प्रभावी बनाया जायेगा।

बैंकिंग और बीमा

बैंकिंग व्यवस्था को नयी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार किया जाना अत्यंत आवश्यक है।

बैंकों को नयी प्रौद्योगिकी को अपनाने, नयी सेवाएं प्रदान करने और भर्तियों के साथ अपनी बुनियादी संरचना में सुधार लाने के लिए और अधिक स्वायत्तता दिया जाना आवश्यक हो गया है।

हमारे बैंकों में नॉन-परफॉर्मिग असेट्स का अनुपात 15 प्रतिशत के साथ अभी भी बहुत अधिक है। इसे इस शताब्दी के अंत तक घटाकर 5 प्रतिशत तक लाया जाना चाहिए। अन्य उपायों में कर्ज की वसूली के लिए विशेष ट्राइब्यूनलों को और अधिक प्रभावी बनाया जाना चाहिए।

बैंकों का काम उत्पादकता संबंधी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कर्ज देना है। पिछले कुछ समय से वे जोखिम लेने से कतराने लगे हैं। कांग्रेस एक ऐसी व्यवस्था आरंभ करेगी जो बैंकों को नया आत्मविश्वास देने के साथ उन्हें उद्योग और व्यापार के लिए आवश्यक पूंजी मुहैया कराने के उद्देश्य से प्रोत्साहित करेगी।

बैंकिंग उद्योग में विलय और एकीकरण को प्रोत्साहित किया जाएगा। बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं के नियमन और निगरानी को और अधिक सुदृढ़ बनाया जाएगा और यदि आवश्यक हुता तो इस काम के लिए भारतीय रिजर्व बैंक से बाहर एक विशेषज्ञ एजेंसी का गठन भी किया जाएगा।

कांग्रेस बीमा नियमन प्राधिकरण को वैधानिक दर्जा प्रदान करेगी। कांग्रेस स्वास्थ्य बीमा और पेंशन व्यापार को सरकारी एवं निजी क्षेत्र की अन्य कंपनियों के लिए खोलेगी। अगले दो से तीन वर्षों के दौरान जीवन बीमा उद्योग का भी पुनर्गठन किया जाना ज+रूरी हो गया है ताकि बुनियादी ढ जुटाया कालीन दीर्घ ज+रूरीझ

वित्तीय अनुशासन

वित्तीय घाटा कितना उचित है इसके बारे में कोई जादुई संख्या भले ही न उपलब्ध हो, परंतु इतना तो तय है कि केंद्र और राज्य सरकारों के वित्तीय घाटे के वर्तमान स्तर को जारी नहीं रखा जा सकता।

लेकिन वित्तीय अनुशासन को जरूरी निवेश को कम करके नहीं लाया जा सकता। गैर-विकास खर्च पर निश्चित रूप से सख्त नियंत्रण की जरूरत है। कांग्रेस सब्सिडीज+ यानी सरकारी सहायता, पर देश में एक आम सहमति बनाने का प्रयास करेगी सब्सिडी का हमारा वर्तमान बिल सकल घरेलू उत्पाद का 15 प्रतिशत है, जिसे यों ही जारी नहीं रखा जा सकता। सब्सिडी के संदर्भ में लक्ष्य का निर्धारण अत्यंत आवश्यक है। हमें हर हाल में यह सुनिश्चित करना होगा कि सब्सिडी का लाभ समाज के गरीब एवं कमजोर तबके के लोगों को मिले।

राष्ट्रीय विकास परिषद और अंतर्राज्यीय परिषद जैसे सभी मंचों का कांग्रेस स्पर्द्धात्मक लोकप्रियता प्राप्त करने वाली प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने के लिए उपयोग करेगी। इस सस्ती लोकप्रियता ने अनेक राज्यों की अर्थव्यवस्था की हालत खस्ता कर दी है। यदि निःशुल्क ऋण, बिजली और पानी मिलने लगे तो देश निवेश कर ही नहीं सकता।

कांग्रेस बढ़ते कर्ज को उतारने के लिए नयी रणनीतियां एवं कार्यक्रम तैयार करेगी और कर्ज के ब्याज पर होने वाले भुगतान में भी कमी लाने का प्रयास करेगी।

कांग्रेस भारतीय रिजर्व बैंक को पूर्ण स्वयत्तता प्रदान करेगी ताकि वह अपने मूल्यों में स्थिरता बनाये रखने के उद्देश्य को प्राप्त कर सके।

कांग्रेस एक ऐसा प्रस्ताव भी लाएगी जिसके आधार पर केंद्र सरकार के सार्वजनिक कर्ज की एक सीमा तय की जा सके।

चुनाव सुधार

कांग्रेस चुनाव सुधारों पर विचार के लिए हुई सर्वदलीय बैठक में प्राप्त सहमति के आधार पर व्यापक चुनाव सुधार विधेयक लायेगी।

चुनाव में सरकार द्वारा खर्च वहन करने कि प्रणाली लागू की जायेगी। आपस में पार्टियों को कितना धन दिया जाये इसके विवरण चुनाव आयोग तैयार करेगा।

केंद्र-राज्य संबंध

बारहवें वित्त आयोग का जल्दी ही गठन किया जाएगा। वित्त आयोग से इस बार केंद्र-राज्य-स्थानीय संस्थाओं के आर्थिक संबंधों की समीक्षा करने का अनुरोध किया जाएगा। पिछली बार इस तरह की समीक्षा अस्सी के दशक के मध्य में सरकारिया आयोग ने की थी। परंतु तब भारतीय अर्थव्यवस्था में इतने ज्+यादा दूरगामी परिवर्तन नहीं हुए थे और स्थानीय संस्थाओं को संवैधानिक अधिकार नहीं दिये गये थे। यह सब कुछ नब्बे के दशक में ही हुआ और इसलिए इन संबंधों की एक बार फिर समीक्षा करना अनिवार्य हो गया है।

कांग्रेस देश में इस सदी के अंत तक वैट प्रणाली शुरू करने के प्रयास करेगी। इस प्रणाली से व्यापार और उद्योग के साथ उपभोक्ताओं को भी लाभ होगा।

जिन राज्य विधान सभाओं ने नये राज्यों को बनाने के लिए प्रस्ताव पारित कर दिये हैं, जैसे उत्तर प्रदेश में उत्तराखण्ड और बिहार में झारखण्ड, कांग्रेस वहां नये राज्य बनाएगी।

ग़ैर-सरकारी संगठन

कांग्रेस का मानना है कि सभ्य समाज में गैर-सरकारी संगठनों, स्वैच्छिक संगठनों और सामाजिक संगठनों का बहुत महत्व होता है और इन सभी को समर्थन देकर प्रोत्साहित करना जरूरी रहता है।

ऐसे संगठनों और सरकार के बीच मतभेद और नोंकझोंक होना अपरिहार्य भी है और अपेक्षित भी है; कांग्रेस सभी विकास कार्यक्रमों में इन संगठनों को पूरी तरह शामिल रखने के पक्के उपाय करेगी। विकासेन्मुख और व्यावसायिक प्रबंधन वाले गैर-सरकारी संगठनों पर नियंत्रण कम करने के उद्देश्य से एफ सी आफर ए तथा अन्य प्रक्रियाएं सरल बनायी जायेंगी।

विदेश नीति

विदेश नीति का जो प्रारूप जवाहर लाल नेहरू ने तैयार किया था उसका मूल स्वरूप और बुनियादी बातें आज भी उसी रूप में अपनायी जा रही हैं और यह असल में नेहरूजी की दूरदृष्टि और सूझबूझ की ही परिचायक है। आधुनिक इतिहास में ऐसा कोई और उदाहरण नहीं है। 50 वर्ष से देश में विदेश नीति पर लगातार राष्ट्रीय सहमति बरकरार है।

कोई भी विदेश नीति तब तक सार्थक, प्रभावी और सम्मानजनक नहीं हो सकती है जब तक उसे लोगों का भारी बहुमत प्राप्त न हो। आज जैसी अव्यवस्था और असहमति की स्थिति में देश की विदेश नीति प्रभावी नहीं रह सकती।

कांग्रेस विदेश नीति को देश की आर्थिक प्राथमिकताओं और चिंताओं से जोड़ेगी। आज अर्थशास्त्र, वाणिज्य और व्यापार कूटनीति की नयी भाषा बन गये हैं। हमारी विदेश नीति ने अतीत में हमें निश्चित रूप से एक अलग पहचान दी, परंतु बदलते समय के अनुसार उसमें बदलाव लाना आवश्यक हो गया है।

कांग्रेस सन् 2002 तक दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र (साफ्टा) बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। कांग्रेस अन्य क्षेत्रीय व्यापार संगठनों, विशेष रूप से अपेक, के साथ भी नज+दीकी संबंध बनाने के प्रयास करेगी। सिर्फ अपेक के लिए ही नहीं, बल्कि नयी विश्व अर्थव्यवस्था के अनुरूप हमारी अपनी अर्थव्यवस्था, व्यापार, प्रौद्योगिकी और निवेश नीतियों में बदलाव लाना आवश्यक हो गया है।

कांग्रेस हमेशा की तरह अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को सुधारने के प्रयास करेगी। वह नेपाल और बांग्लादेश के साथ हिमालय क्षेत्र की नदियों के लिए एक नया एकीकृत विकास कार्यक्रम आरंभ करेगी। विद्युत और प्राकृतिक गैस जैसे अन्य क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए कदम उठाए जाएंगे और भारत यह सुनिश्चित करेगा कि वह विशिष्ट परियोजनाओं में सहयोग के ऐसे अवसरों का पूरा लाभ उठाएं।

कश्मीर और देश के अन्य राज्यों में कांग्रेस पाकिस्तान की हरकतों से भली-भांति परिचित है। कांग्रेस देश में पाकिस्तान के सहयोग से चल रही आतंकवादी और घुसपैठ की गतिविधियों का डटकर मुकाबला करेगी। परंतु इसके साथ ही वह पाकिस्तान के साथ आर्थिक, व्यापार, संस्कृति, शिक्षा और राजनीति के क्षेत्र में नज+दीकी संबंध स्थापित करने का प्रयास करेगी। कांग्रेसस की सरकार ने 1989 में पाकिस्तान की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया था और उसके समक्ष आपसी विश्वास को मजबूत करने वाले कई प्रस्ताव रखे थे। इन प्रस्तावों को एक बार फिर द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने के लिए पेश किया जाएगा।

भारत के दुनिया के सभी देशों के साथ नज+दीकी संबंध हैं। इन संबंधों को और अधिक मधुर और मजबूत बनाया जाएगा। कांग्रेस पूर्ण निरस्त्रीकरण के लिए अपने प्रयासों को जारी रखेगी। हमारी परमाणु नीति शांतिपूर्ण और विकासात्मक बनी रहेगी। लेकिन ज+रूरत पड़ने पर हम अपने अन्य विकल्पों को भी खुला रखेंगे।

सीमा पार से होने वाला आतंकवाद आज समूचे विश्व में चिन्ता का एक बड़ा कारण है और यह शांति और स्थिरता के प्रति बड़ा खतरा भी बना हुआ है। इसका खतरनाक असर किसी एक क्षेत्र में ही नहीं होता। नशीले पदार्थों की तस्करी और हथियारों की तस्करी का आतंकवाद से सीधा संबंध है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस बुराई से निपटना चाहिए। भारत भी जम्मू-कश्मीर, पंजाब और पूर्वोत्तर क्षेत्र में सीमापार से हो रहे आतंकवाद का शिकार है। इस सिलसिले में पाकिस्तान की खतरनाक भूमिका के बारे में कांग्रेस को अच्छी तरह मालूम है।

कांग्रेस देश में पाकिस्तान के समर्थन से चलाए जा रहे आतंकवाद का मुकाबला करेगी। साथ ही, वह पाकिस्तान के साथ निकट आर्थिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और राजनीतिक संबंध विकसित करने के प्रयास भी करेगी। 1989 में कांग्रेस सरकार ने पाकिस्तान की तरफ शांति और मैत्री का हाथ बढ़ाया था और आपसी विश्वास बढ़ाने के अनेक उपाय सुझाये थे। इन्हें फिर क्रियान्वित किया जायेगा।

भारत के विश्व के सभी देशों के साथ मधुर संबंध हैं। इन्हें और विकसित किया जायेगा।

1993 में राष्ट्रपति येल्सिन की भारत यात्रा से रूस के साथ भारत के विशेष संबंधों को और बल मिला। भारत, रूस के साथ व्यापार और रक्षा के क्षेत्रों में और निकट संबंध बनाने के प्रयास जारी रखेगा। रूस के साथ ऋण समस्या का मान्य हल खोजने के प्रयास भी किये जायेंगे।

अमरीका भारत के सबसे बड़े व्यापार सहयोगी और भारत में सबसे बड़े निवेशक के रूप में उभरा है। कांग्रेस इन संबंधों को और मजबूत बनाने तथा अमरीका से आर्थिक, वाणिज्यिक, वैज्ञानिक और प्रौद्योगिक संबंधों को और बढ़ायेगी। 1991 के बाद दोनों देशों के बीच कई बार उच्च स्तरीय आदान-प्रदान हुआ है। कांग्रेस अमरीका के साथ आपसी हित और चिन्ता के सभी मुद्दों पर रचनात्मक बातचीत जारी रखेगी।

यूरोपीय संघ भारत का विश्वस्त मित्र और सहयोगी रहा है। आर्थिक और व्यापारिक संबंधों के विस्तार के लिए यूरोपीय संघ के साथ कुछ नये समझौते पर हस्ताक्षर किए गये हैं। कांग्रेस इस सिलसिले को और आगे बढ़ायेगी।

जापान की कम्पनियां भी अब भारत में बड़ा पूंजीनिवेश करने की सोच रही हैं। कांग्रेस जापान के साथ और निकट आर्थिक तथा निवेश संबंध स्थापित कराने का विशेष अभियान चलायेगी ताकि वर्तमान निकट राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों का भी और विस्तार हो।

कांग्रेस पूर्ण निरस्त्रीकरण के प्रयास जारी रखेगी। हमारी परमाणु नीति का उद्देश्य शांतिपूर्ण विकास ही रहेगा। परंतु हम आक्रामक शक्तियों की तरफ से चुनौती मिलने पर किसी का मुंह नहीं ताकेंगे वरन्‌ अपने बलबूते पर उससे निपट सकेंगे।

अपील

आगे आने वाले चुनाव कोई सरकार बनाने की लड़ाई नहीं है।

यह लड़ाई है सरकार चलाने की।

कांग्रेस भारत की जनता से अपील करती है।

पूरे भारत से नाता है।

सरकार चलाना आता है।

कांग्रेस को विश्वास है कि एक बार उसे फिर भारत की जनता का विश्वास और समर्थन प्राप्त होगा।



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