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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Tuesday, September 16, 2014

हमन त बचपन माँ हजारों मीलै जात्रा करि याल छे

हमन त बचपन माँ हजारों मीलै जात्रा करि याल छे 

                         हंसोड्या , चबोड़्या : भीष्म कुकरेती 

            पैल  पत्र - पत्रिकाओं अर अजकाल इंटरनेट माँ लोग बाग़ अपण बचपन की सुखद याद बथान्दन अर फिर तरसद छन कि कास ! वु बचपन वापस बौड़िक ऐ जांद तो अहा वाहा आदि ! अर मि अपण नाती नतिणणियूं उमर  का बच्चों बचपन   दिखुद तो मि तैं लगद यूँ बच्चों बचपन हिसर की गुंदकिदार फल च तो म्यार अपण बचपन टरमरु गन्धेला (कड़ी पत्ता ) कु फल छौ । 
  हम बि अचकालौ बच्चों तरां बचपन मा फॉरेन या अंतर्देशीय टूरिस्ट प्लेसुं  घुमणो राड़ घल्द था अर पैल त हमर ब्वै बाब हमर टूरिज्म प्रेम रुकणो बान  "नि जाण पैल तू ऋषिकेश " गाळी अस्त्र प्रयोग करिक तड़ तड़ाक हमर इच्छा उखमि मार दींद था अर यदि हम मा अपण टारगेट पर पौंछणो दृढ़शक्ति बचीं रौंदि छे अर हम फिर बि ऋषिकेश जाणो इच्छा कम नि करदा छा तो हमर ब्वै बाब सदाबहार धौल या थप्पड़ जन अहिंसक शस्त्र प्रयोग करिक हमर अंदर बैठ्युं प्राकृतिक घुमन्तु गुण का सरेआम कतल्यौ करि दींद छा। थप्पड़, मुठकी आदि  शस्त्र  हूंद छा  जु हम बच्चों अंदर मनुष्य का प्राकृतिक गुण खतम करणो सबसे सुलभ अर सटीक शस्त्र छया अर यदि हमर मनुष्य का प्राकृतिक गुण याने घुमणो इच्छा तब बि ज़िंदा रै जावो तो डंडा शस्त्र कु प्रयोग करिक इच्छा मर्दन कु कर्मकांड पूरा करे जांद छौ।  हमर इच्छा मर्दन कर्मकांड से गाँव वळु तैं बगैर बातौ मनोरंजन बि प्राप्त ह्वे जांद छौ।  भौत सा हौर ब्वे बाबुं कुण अपण बच्चों घुमणो इच्छा मारणो एक घर बैठा उपाय याने  देव दत्त अवसर मिल जांद थौ वु अपण बच्चा या बच्चों तैं हमर मार का उदाहरण देकि सचेत करदा छा कि " यदि तुमन बि ऋषिकेश या कोटद्वार दिखणो राड़ घाळ तो ये घौरम क्वी बि डंडा या फण्यट साबुत नि बचल। " कैक ग्वाठ  बाग़ अर हैंकाक ग्वाठ जाग वळ हिसाब ह्वे जांद छौ। 
 ब्वे बाबुंम गाळी दीण या पिटण से अधिक समय हूंद नि छौ तो उ त जिमदार करणो खेतुं मा चलि जांद छा। 
      एक बाद बच्चा या तो अपण ददिक खुकली खुज्यांद छौ अर यदि अपण ददि नि ह्वा तो दुसराक दादी की खोज मा गां मा घुमण मिसे जांद छौ। दादी कैक बि हो वा इन बगत बड़ी संवेदनशील ह्वे जांद छे अर जब अपण दादी अथवा दूसरोंकी ददि इन बगत संवेदनशील ह्वे जाव तो एक ना चार पांच बच्चा वीं संवेदनशील बुडड़ि ध्वार बैठ जांद छा अर हम सब बगैर खुट उठयां , बगैर ठोकर का , बगैर थक्यां ऋषिकेश पौंच जांद छा। 
  वा संवेदनशील ददि (बुडड़ि ) बड़ी सलीका से हम तैं सिंगटाळी बिटेन बस से शिवानंद आश्रम लिजांदी छे अर बीच मा व्यासिम आलू का गुटका अर परांठा बि खलांदी यदि दादीक क्वी भैर नौकरी करदार हो तो दादी व्यासिम छोला बि खलांद छे।  दादी फिर बस की मीमांसा बि उनि करदि छे जन नरेंद्र सिंग नेगीन अपण कैसेट " बस चली प्वां प्वां  "  मा कौर।  में सरीखा छै -सात साल का बच्चा तैं बस मा कनकै बैठण, बस मा दुसर उल्टी करणु हो तो कनकै बचण से लेकि बस से उतरण कु अनुभव ह्वे जांद छौ। फिर दादी हम तैं मुनि की रेती , त्रिवेणी घाट,  भौत सि  धर्मशाला , भरत मंदिर , लक्ष्मण झूला , स्वर्गाश्रम आदि घुमांदि  छे । ददि ऋषिकेश बजार बि दिखान्दि छे अर अपण गेड़ीम पैसों हिसाबन जलेबी व पेड़ा खलांदि छे। 
   उन  वा ददि कबि  बि बस मा बैठी छे ना ही वीं ददिन कबि ऋषिकेश देख छौ।  बस ददिन बि बगैर जयां ही ऋषिकेश दर्शन कौर छौ याने कैन ददि मा ऋषिकेश यात्रा बृतान्त सुणै होलु त ददि बि हम बच्चों तैं बगैर खुट हिलयां ऋषिकेश दर्शन करै दींदी छे।  इनि मेरी ददिन या गां मा दूसरों ददिन हम तैं घर बैठ्याँ कथगा इ दफै देहरादून , दिल्ली अर मुंबई बि घुमाई।  यी त हम पर पड़ी मार पर निर्भर करदु छौ कि दादी हम तैं कखाकि यात्रा करांदि।  छुट -मुट मार पड़नो बाद दादी लोग हम तैं ऋषिकेश -देहरादून तक लिजांदा छा अर बड़ी मार का बाद दादी लोग हम तैं ट्रेन मा बिठैक दिल्ली अर बॉम्बे घुमान्दि छे। चूँकि भूतकाल मा हमर गां का क्वी कोलकत्ता नि जयूँ छौ तो गांकि क्वी बि हम तैं  कलकत्ता यात्रा पर नि लीग। 
        बचपन मा मि अर म्यार दगड्या बर्मा अर ईरान तुरान बि जयां छंवां किलैकि हमर गांवक द्वी ददा ब्रिटिश फ़ौज मा जि छया। 
 बचपन मा हम बच्चोंन क्या दसियों दादी , काकी , बोडा  , बोडियुंन बगैर हिट्यां-चल्यां  हजारो मील की यात्रा करीं याल छौ । छै -सात साल मा मीन गंगोत्री , जमनोत्री चार धाम यात्रा करी याल छौ अर वू बि बगैर गाँव से भैर जयूँ। 



Copyright@  Bhishma Kukreti 16  /9/ 2014       
*लेख में  घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं ।
 लेख  की कथाएँ , चरित्र व्यंग्य रचने  हेतु सर्वथा काल्पनिक है 

  

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