अमेरिकी युद्ध अपराधों के सबसे बड़े मददगार हमारे हुक्मरान!
बलि नोटबंदी यूपी में जनादेश का मुद्दा मंजूर है सुपर सिपाहसालार को!
खुशफहमी की हद है कि बलि अमेरिकी निशाने पर पाकिस्तान है!
हम आंखें फोड़कर सूरदास बनकर पदावली कीर्तन करें,हिंदत्व का यही तकाजा है।हिंदुत्व का ग्लोबल एजंडा भी यही है,जिसके ईश्वर डान डोनाल्डे हुआ करै हैं।
पलाश विश्वास
बलि डान डोनल्ड अब केसरिया केसरिया हैं और भारत की ओर से कारगिल लड़ाई के वे ही खासमखास सिपाहसालार हैं।
बड़जोर सुर्खियां चमक दमक रही हैं कि अब पाकिस्तान की बारी है।
बलि डान डोनाल्ड की आतंकवाद विरोधी खेती की सारी हरियाली अपने खेत खलिहान में लूटकर लानेको बेताब है तमाम केसरिया राजनयिक।
बलि नई दिल्ली पलक पांवड़े बिछाये व्हाइट हाउस के न्यौते और रेड कार्पेट का बेसब्री से इंतजार कर रहा है और जतक ओबामा कीतरह ट्रंपवा लंगोटिया यार बनकर हिंदुत्व के हित न साध दें तब तक चूं भी करना मना है।किया तो जुबान काट लेंगे।
मुसलमानों के खिलाफ निषेधाज्ञा चूंकि हिंदुत्व के हित में है,इसलिए केसरिया राजकाज में अमेरिकी युद्ध अपराध की चर्चा तक मना है।हुक्मरान की तबीयत के बारे में मालूम है लेकिन बाकी मुखर होंठों का किस्सा भी लाजबाव है।वे होंठ भी सिले हुए हैं।
अगर पाकिस्तान सचमुच का दुश्मन है तो देश भर में दंगाई सियासत के तमाम सिपाहसालार और सारे के सारे बजरंगी मिलकर पाक फौजों के दांत खट्टे करने के लिए काफी हैं।लेकिन नई दिल्ली टकटकी बांधे बैठा है कि कब डान ऐलान कर दें कि पाकिस्तान भी प्रतिबंधित है।
बागों में बहार है कि साफ जाहिर है कि ट्रंप का इराजा दुनियाभर के मुसलमानों के खिलाफ भारी पैमाने का युद्ध है और जाहिर है कि हिंदुत्व की तमाम बटालियनें अमेरिकी फौज में शामिल होने को बेताब हैं।
पूरा अमेरिका सड़कों पर है।सारे के सारे अमेरिकी वकील हवाई अड्डों पर पंसे हुए दुनियाभर के लोगों को कानूनी मदद देने के लिए लामबंद हैं।आमतौर पर राष्ट्रवाद की संकीर्ण परिभाषा में यक़ीन रखने वाली रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति ने अरब और हिस्पैनिक (स्पेन से ऐतिहासिक रूप से संबद्ध रहे देश), लेकिन मुस्लिम-बहुल सात देशों के शरणार्थियों और नागरिकों पर प्रतिबंध लगाकर अमेरिकी रंग और नस्लभेद की सोई हुई प्रेतात्मा को जगा दिया है।कुकल्कासक्स क्लान का राम राज्य बन गया है अमेरिका।
पूरे अमेरिका में प्रदर्शन शुरू हो गए हैं, अमेरिकी मानवाधिकार संगठन इसका विरोध कर रहे हैं, दुनिया के विकसित देश ट्रंप के फ़ैसले की आलोचना कर रहे हैं और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनकी सरकार पर इसका कोई असर नहीं है।बहरहाल डान के नस्ली फरमान के अमल पर शनिवार को आधी रात के करीब अदालत ने विशेष वैठक में रोक भी लगा दी है लेकिन डान बेपरवाह है।
डान को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।सो,राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शरणार्थियों और सात मुस्लिम बहुल देशों के नागरिकों के अमेरिका में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने के फैसले का बचाव किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रतिबंध मुस्लिमों पर नहीं लगाया गया है बल्कि अमेरिका को आतंकियों से सुरक्षित करने के लिए कदम उठाया गया है। अमेरिका अपने यहां यूरोप जैसे हालात उत्पन्न होने देना नहीं चाहता है। राष्ट्रपति ने कहा कि 90 दिनों में मौजूदा नीतियों की समीक्षा करने के बाद सभी देशों के लिए वीजा जारी किया जाने लगेगा।
सात मुस्लिम बहुल देशों के लोगों के अमेरिका में प्रवेश पर प्रतिबंध के शासकीय आदेश का बचाव करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जोर देकर कहा कि 'यह प्रतिबंध मुस्लिमों पर नहीं है' जैसा कि मीडिया द्वारा गलत प्रचार किया जा रहा है।गौरतलब है कि शपथ लेने के बाद ही 7 मुस्लिम देशों के लोगों प्रतिबंध लगाने के बाद अब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान पर भी प्रतिबंध लगा सकते हैं।
नई दिल्ली बल्ले बल्ले गुले गुलिस्तान है कि ट्रंप के इस कदम के बाद उनका भले ही अमेरिका के अलावा दुनियाभर में विरोध हो रहा है, वहीं हिंदुत्व के हित में सबसे बड़ी खबर यही है कि खबर है कि उन्होंने पाकिस्तान के अलावा अफगानिस्तान और सऊदी अरब को निगरानी सूची में डाला गया है।
जानकारी के अनुसार व्हाइट हाउस के चीफ ऑफ स्टाफ रींस प्रीबस ने कहा है कि जिन सात देशों को प्रतिबंध के लिए चुना गया है उनकी ओबामा और कांग्रेस दोनों ही प्रशासन द्वारा शिनाख्त की गई थी जिनकी जमीन पर आतंक को अंजाम दिया जा रहा है।
हमें व्हाइट हाउस से न्यौते का इंतजार है और कोई फर्क नहीं पड़ता कि बलि अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का फैसला जानलेवा हो सकता है। सात देशों के मुस्लिमों के अमेरिका आने पर प्रतिबंध के उनके फैसले का सीधा असर सीरिया में फंसे सात साल के मोहम्मद पर पड़ रहा है। मोहम्मद आतंकी नहीं है। वह कैंसर से जूझ रहा है, इसलिए उसका परिवार इलाज के लिए उसे अमेरिका ले जाना चाहता है लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप के फैसले की वजह से अमेरिकी अधिकारी उसे वीजा नहीं दे रहे हैं। मोहम्मद की ही तरह उन सात देशों में कई लोग हैं जो बेहतर इलाज के लिए अमेरिका जाना चाहते हैं लेकिन ट्रंप का फरमान उनके लिए बड़ा रोड़ा साबित हो रहा है।
हमें व्हाइट हाउस से न्यौते का इंतजार है और कोई फर्क नहीं पड़ता कि बलि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की ब्रिटेन की राजकीय यात्रा को रद्द करने की मांग करने वाली ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर करने वालों की संख्या काफी जल्दी 10 लाख के आंकड़े को पार कर गई है। यह मांग अमेरिका के राष्ट्रपति के एक आदेश के जरिए सात मुस्लिम देशों के लोगों पर विवादास्पद आप्रवासन प्रतिबंध लगाने के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठ रही आवाज के बीच उठी है।
हमे कोई फर्क नहीं पड़ा कि बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक एसीएलयू ने जानकारी दी है कि अब कोर्ट के स्टे के बाद राष्ट्रपति के आदेश के बावजूद अमेरिका से शरणार्थियों को निष्कासित नहीं किया जा सकेगा। ट्रंप के आदेश के बाद अमेरिकी एयरपोर्ट्स से करीब 100 से 200 लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है। न्यूयॉर्क, एलेंक्सजेंड्रिया, वर्जिनिया, सिएटल, वॉशिंगटन, बोस्टन मैसाच्यूसेट्स समेत 24 अदालतों ने राष्ट्रपति के आदेश पर रोक लगा दी है।
गौरतलब है कि ब्रिटेन की संसद की वेबसाइट पर शनिवार की दोपहर 'डॉनल्ड ट्रंप को ब्रिटेन की राजकीय यात्रा पर आने से रोकें' शीर्षक वाली याचिका तैयार की गई है।कहने को हमारे यहां भी संसदीय लोकतंत्र है।
इसी बीच गौर करें कि डान के करिश्में से दुस्मन चीन से पींगे बढ़ाने की कोशिश में हैं आईटी कंपनियां ताकि जोर का झटका धीरे से लगे।नैशनल असोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर ऐंड सर्विसेज कंपनीज (नैसकॉम) और शंघाई में भारत के महावाणिज्य दूतावास (कॉन्स्युलट जनरल ऑफ इंडिया) ने मिलकर नानचिंग सरकार के साथ इसी महीने एक समारोह का आयोजन किया। इसका मकसद चीनी कंपनियों और भारत की आईटी कंपनियों के बीच रिश्ते बढ़ाना था।
नैसकॉम के वैश्विक व्यापार विकास के निदेशक गगन सभरवाल ने ईटी को बताया, 'चीन और जापान दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और आईटी के क्षेत्र में दूसरी सबसे बड़ी खर्च करने वाले देश हैं। हमें अमेरिका और यूके पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं कर इन देशों की ओर रुख करने की जरूरत है।'
भारत में जन्में गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई और माइक्रोसॉफ्ट के सत्य नाडेला समेत सिलिकन वैली के कई शीर्ष कार्यकारियों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सात मुस्लिम बहुल देशों से लोगों के अमेरिका आने पर रोक लगाने के आदेश की निंदा की है।इस पर भी गौर फरमायेंः
Trump's executive order, especially the ban on immigrants from these countries, including those with a valid visa, has sparked reactions from all across Silicon Valley, which relies on talent from across the world. Google, Apple, SpaceX's Elon Musk, Uber, Lyft, Netflix, Microsoft, and all the major companies from tech world have reacted to this order.
Additionally Associated Press has reported that leaks of draft executive orders, which are still unverified, suggest that Trump might also revamp the H1-B program that lets Silicon Valley bring foreigners with technical skills to the US for three to six years.
गौरतलब है ऩई दिल्ली के खासमखास खाड़ी युद्ध के युद्ध अपराधी राष्ट्रपति पिता पुत्र के युद्ध अपराधों का साथ देते देते भारत देश के हुक्मरान ने देशभक्ति की सुनामी के तहत एक झटके से अमेरिका के आतंक के खिलाफ युद्ध में भारत को शामिल कर दिया।अब वही देशभक्त समुदाय सोशल मीडिया पर चीख पुकार मचा रहे हैं कि ट्रंपवा का सीना जियादा चौड़ा है और उनके सांढ़ सरीखे कंधे जियादा मजबूत है कि बलि रामराज्य का राष्ट्रपति भी डान डोनाल्ड के होवैक चाहि।बलिहारी हो।
खाड़ी युद्ध के दौरान भारत की सरजमीं से ईंधन भर रहे थे अमेरिकी युद्धक विमान तो नाइन इलेविन ट्विन टावर के विध्वंस के बाद समुंदर से अफगानिस्तान की तबाही के लिए भारत का आसमान चीर कर मिसाइलें अफगानिस्तान में बरस रही थीं,तब किसी माई के लाल को मातृभूमि की स्वतंत्रता या संप्रभुता की याद नहीं आयी।बजरंगियों की नई पीढ़ियों ने वह नजारा देखा नहीं है,भारत की सरजमीं प डान डोनाल्ड का विश्वरुप दर्शन भौते जल्दी मिलेला।पछताओ नको।
इससे भी पहले प्राचीन काल में जब युद्ध सचमुच सरहदों पर हो रहा था,कैनेडी से लेकर क्लिंटन तक किस किसके साथ न जाने कितना मधुर संबंध रहा है लेकिन अमेरिका ने भारत के खिलाफ युद्ध और शांतिकाल में भी मदद देना नहीं छोड़ा।
तनिकों याद करेें जो तनिको बु जुर्ग हुआ करै हैं और बाल कारे भी हों तो चलेगा , लेकिन सफेदी धूप के बजाय तजुर्बे की होनी चाहिए कि आठवें दशक में जब सारा देश लहूलुहान था,तालिबान और अल कायदा को सोवियत संघ को हराने के लिए जब अत्याधुनिक हथियार बताशे की तरह बांट रहा था वाशिंगटन,तब भी अमेरिको के तालिबान अलकायदा को दिये उन तमाम हथियारों का इस्तेमाल भारत की सरजमीं पर भारत को तहस नहस करने के लिए हो रहा था।अमेरिका को कोई फर्क पड़ा नहीं।
बजरंगी बिरादरी शायद अटल बिहारी वाजपेयी को भूल गये हैं,जो सन इकात्तर के चुनाव में इंदिरा गांधी का दूत बनकर विदेश की धरती पर अमेरिकी सातवें नौसेनिक बेड़े के हमलावर बढ़त के खिलाफ मोर्चाबंदी में कामयाब रहे थे औरतब अमेरिका पाकिस्तान के लिए भारत से युद्ध करने के लिए भी तैयार था।
भारत सोवियत मैत्री के बाद अमेरिका की वह ख्वाहिस पूरी नहीं हुई,यह जितना सच है,उससे बड़ा सच यह है कि वाजपेयी की राजनय ने उस अपरिहार्य युद्ध को टाल दिया।यही नहीं,1962 के युद्ध के बाद दुश्मनी का माहौल को हवा हवाई करके चीन से संबंध बनाने में भी वाजपेयी ने जनता जमाने में बाहैसियत विदेश मंत्री पहल की थी।
खास बात यह है कि इसके अलावा 1971 के युद्ध के बाद पाकिस्तान के साथ संबंध सामान्य बनाने में तबके विदेश मंत्री अटलजी ने पहल की थी।जिन्होंने बाद में केसरिया सरकार का प्रधानमंत्री बनकर गुजरात के नरसंहार के बाद किसी मसीहा को राजधर्म का पाठ दिया था और कारगिल की लड़ाई भी उनने ही लड़ी थी।
अब पहेली यह है कि भारत इजराइल अमेरिका गठजोड़ की नींव बनाने वाले रामरथी लौहमानुष लाल कृष्ण आडवानी बड़का रामभक्त देश भक्त हैं तो क्या अटलजी रामभक्त देशभक्त वगैरह वगैरह नहीं है।बूझ लें तो भइया हमें भी जानकारी जरुर दें।हालांकि अटलजी वानप्रस्थ पर हैं कि संन्यास के मोड में हैं,पता नहीं चलता जैसा कि लौहपुरुष के अंतरालबद्ध हस्तक्षेप से अक्सर पता चल जाता है और बहुत संभव है कि अटल जी को याद करने की कवायद में बजरंगी वाहिनी को गोडसे सावरकर वगैरह की ज्यादा याद आ जाये क्योंकि गांधी हत्या का एजंडा अभी अधूरा है।
हिंदुत्व के एजंडे के तहत अबतक सिर्फ विष्णु भगवान जी के मंदिर में बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर की प्राण प्रतिष्ठा हुई है और टैगोर बख्श दिये गये हैं,लेकिन नेताजी और विवेकानंद को श्यामाप्रसाद श्रेणी में आरक्षित कर दिया गया है।गांधी को कर पाते गौडसे की जरुरत नइखे होती।अटल जी भी अभी श्रेणीबद्ध हुए हैं कि नाही,पता नको।शिवसेना के निकर जाने के बाद बालासाहेब का भी नये सिरे से मूल्यांकन बाकी है।झोलाछाप बिरादरी शोध किये जा रहे हैं।
अमेरिकी खुफिया एजंसियों को सारी बातें मालूम होती है।
अभी भंडा फूटा है कि राजीव गांधी की हत्या की प्लानिंग सीआईए को पांच साल पहले मालूम थी।
इंदिरा गांधी की हत्या का रहस्य अभी खुला नहीं है और उस हत्याकांड से संबंधित अमेरिकी दस्तावेज अभी लीक हुए नहीं है।
फिक्र न करें,विकी लीक्स है।
राजनीतिक समीकरण के हिंदुत्व से सराबोर केसरिया राजनय का किस्सा यह है कि अमेरिका का पार्टनर बनने के बाद,भारत अमेरिका परमाणु संधि हो जाने के बाद नई दिल्ली इसी इंतजार में है कि कभी न कभी अमेरिका पाकिस्तान का दामन छोड़कर उसे आतंकवादी देश घोषित कर देगा।वैसा कुछ भी नहीं हुआ है।
Dozens of Foreign Service officers and other career diplomats stationed around the world are so concerned about Pres. Donald J. Trump's new executive order restricting Syrian refugees and other immigrants from entering the U.S. that they're contemplating taking the rare step of sending a formal objection to senior State Department officials in Washington.
केसरिया बिरादरी देश के नाम याद भी कर लें कि गुजरात नरसंहार में क्लीन चिट के सिवाय अमेरिका से अबतक कुछ हासिल नहीं हुआ है और न भोपाल गैस त्रासदी के रासायनिक युद्ध के प्रयोग से कीड़ मकोड़े की तरह मारे गये,विकलांग और बीमार हो गये भारतीय नागरिकों को मुआवजा दिलाने में अमेरिका ने कोई मदद की है।
इसके बावजूद बलि लोहा गरम है और इसी वक्त पाकिस्तान पर निर्णायक वार अमेरिकी हाथों से कराने का मौका है।
जाहिरै है कि इसलिए डान डोनाल्ड के खिलाफ सारा अमेरिका और सारी दुनिया भले लामबंद हो जाये,हमारे लिए राष्ट्रभक्ति यही है कि हम अपने होंठ सी लें और आंखें फोड़कर सूरदास बन जायें।
हम आंखें फोड़कर सूरदास बनकर पदावली कीर्तन करें,हिंदत्व का यही तकाजा है।हिंदुत्व का ग्लोबल एजंडा भी यही है,जिसके ईश्वर डान डोनाल्डे हुआ करै हैं।
गौरतलब है कि भारत ने पहले ही भारतीय सैनिक अड्डों के इस्तेमाल के लिए अमेरिकी फौज को इजाजत के करारनामे पर दस्तखत कर दिया है और डान डोनाल्ड अमेरिका के गौरव को हासिल करने के लिए तीसरे विश्वुयुद्ध शुरु करने पर आमादा है।
गौरतलब है कि दुनियाभर में सैन्य हस्तक्षेप और युद्ध गृहयुद्ध में अभ्यस्त अमेरिकी नौसेना और जापान केसात हमलावर त्रिभुज भी अमेरिका के अव्वल नंबर दुश्मन चीन से निबटने के लिए तैयार है।बलि कि चीन के खिलाप अमेरिकी जंग की हालत में भी रामराज्य अमेरिकी डान के मातहत हैं।
बलि डान डोनल्ड के बाहुबल से एक मुशत दो दो जानी दुश्मनों पाकिस्तान और चीन को करीरी शिकस्त देने की तैयारी है और इसके लिए अमेरिका से हथियारों की खरीद भी भौते हो गयी है।सैन्यीकरण में कोई कमी सर न हो ,इसलिए रक्षा प्रतिरक्षा का विनिवेश कर दिया है और तमाम कारपोरेट निजी कंपनियों के कारोबारी हित राष्ट्रभक्ति में ऩिष्णात है।इस सुनामी को दुधारी तलवार बनाने के लिए तीसरे विश्वयुद्ध भौते जरुरी है।क्योंकि इस विश्वयुद्ध में काले और मुसलमान मारे जायेंगे और हिंदुओं को जान माल को कोई कतरा नहीं होना है।
बांग्लादेश या पाकिस्तान भले तबाह हो जाये और दुनियाभर के आतंकवादी मुसलमानों को इराक, अफगानिस्तान,लीबिया और सीरिया की तरह मिसाइलें या परमाणु बम दागकर मार गिराये महाबलि डान डोनाल्ड,रामराज्य के हिंदू प्रजाजनों को आंच तक नही आयेगी हालाकि यमन में जैसा हो गया डानोल्ड जमाने के पहले युद्ध में , कुछ बेगुनाह नागरिकों की बलि चढ़ सकती हैषबलि और बलिदान दोनों वैदिकी संस्कृति है और राष्ट्रहित में सबसे जियादा बलिदान जाहिका तौर पर संघियों ने दिया है,देश को भी उनने आजाद किया है।झूठे इतिहास को दोबारा लिखा जा रहा है।मिथकों का इतिहास ही सबसे बड़ा सच है।
यमन पर हमला करके उनने इरादे भी साफ कर दिये हैं।अमेरिकी सेना को युद्धकालीन तैयारियों के आदेश दे दिये गये हैं और अमेरिका परमाणु हथियारों का भंडार और तैनाती बढ़ायें,ऐसा निर्देश भी डान ने दे दिया है।
Pres. Donald J. Trump says his executive order restricting entry into the U.S. of people from 7 Muslim-dominated countries is to keep Americans safer, but one former Homeland Security official says the move could instead do the opposite by inspiring violent extremist attacks in the U.S.
जाहिर है कि जैसे पहले और दूसरे विश्वयुद्ध में यूरोप से लेकर जापान तक नरसंहार का सिलसिला बना,उसी तरह तीसरे विश्वयुद्ध में एशिया और अफ्रीका के देशों में न जाने कितने हिरोशिमा और नागासाकी बनाने की तैयारी है।
भला हो सोवियत संघ का और उनके जिंदा महानायक गोर्बचेव महान का कि सोवियत संघ पहले खाडी़ युद्द के बाद ही तितर बितर हो गया।
अफगानिस्तान में सैन्य हस्तक्षेप के भयंकर प्रतिरोध के बाद महाबलि खुद ही टूटकर बिखर गया और दुनिया सिरे से बदलकर अमेरिकी गोद के हवाले हो गयी।
यही वजह है कि तेल युद्ध और अरब वसंत के बावजूद अमेरिकी हमालावर रवैये के बावजूद तीसरा विश्वयुद्ध शुरु नहीं हुआ।
अब मुसलमानों और काली दुनिया के खिलाफ यह तीसरा विश्वयुद्ध डान डोनाल्ड लड़ना चाहते हैं तो अपनी अपनी जनता और अपनी अपनी अर्थव्यवस्था की सेहत की भीख मांगते हुए यूरोप के तमाम रथी महारथी डान की खिलाफत आंदोलन में शामिल हो गये हैं।
नई विश्व व्यवस्था जिस तकनीकी चमत्कार की वजह से ग्लोबल विलेजवा में तब्दील है ससुरी दुनिया,उसी तकनीकी दुनिया की राजधानी सिलिकन वैली में डान का विरोद संक्रामक महामारी है।गुगल,फेसबुक,ट्विटर से लेकर सारी ग्लोबल कंपनियां इस नस्ली युद्दोन्माद के खिलाफ बाबुलंद आवाज में डान के खिलाफ आवाज उठा रही हैं।
तीसरा विश्वयुद्ध हुआतो मुसलमानों के खिलाफ इस विश्वयुद्ध के भूगोल में रामराज्य के महारथियों की खवाहिशों के मुताबिक अमेरिकी मिसाइलों और अमेरिकी नेवी ने अरब और खाड़ी देसों के मुसलमानों के साथ साथ पाकिस्तान को भी निशाना बांध लिया तो पश्चिम एशिया के सारे तेल कुंए हिंदुस्तान की सरजमीं पर दहकने वाले हैं क्योंकि इस तीसरे विश्वयुद्ध में अमेरिका के सबसे खास पार्टनर भारत ही को बनना है।फिर अमेरिका के दुस्मन हमारे भी दुश्मन होंगे।बजरंगियों को फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उनके आका डानडोनाल्डको वे पहले से दुश्मन मानकर हिंदुस्तान के चप्पे चप्पे में उनके सफाये के ढेरों दंगा फसाद करते रहे हैं।अब सोने पर सुहागा है।
हामीरी राजनीति और राजनय इसविश्वव्यापी भयानक संकट में भी भारत के राष्ट्रहित,नागरिकों की जानमाल सेहत के बजाय पाकिस्तान को नजर में रखरकर अमेरिकी युद्ध अपराधों के साथ हैं।
अमेरिकी युद्ध अपराधों के सबसे बड़े मददगार हमारे हुक्मरान है।
बलि केसरिया जबरंगी जिहादी सेना के सुपर सिपाहसालार ने रामराज्य के प्रजाजनों के लिए बाबुलंद ऐलान कर दिया है कि यूपी के विधानसभा चुनाव को नोटबंदी पर जनादेश मानें तो यह चुनौती उन्हें मंजूर है।गौरतलब है कि चुनाव घोषणापत्र में यह उदात्त स्वर कहीं नहीं है।
गौरतलब है कि एक दो दिन पहले रिजर्व बैंक ने वायदा किया था कि एटीएम से निकासी की हदबंदी फरवरी के आखिर तक खत्म कर दी जायेगी लेकिन फरवरी से पहले जनवरी की अंतिम तिथि को ही एटीएम से निकासी हफ्ते में किसी भी दिन कुल 24 हजार की रिजर्व बैंक ने औचक छूट दे दी है,हालांकि हफ्ते में कुल वही 24 हजार रुपये निकालने की हद जस की तस है।
बहरहाल बार बार एटीएम जाने से निजात मिल गयी है कि अब चाहे हफ्तेभर दौड़ते रहकर 24 हजार निकालो या फिर हफ्ते के किसी रोज अपनी सुविधा के मुताबिक एक मुश्त 24 हजाक खेंच लो।
इससे बाजार में नकदी का संकट खत्म नहीं होने जा रहा है क्योंकि हफ्तेभर की निकासी जहां थी ,वही बनी रहेगी।
संजोग यही है कि रिजर्व बैंक के ऐलान के बाद ही छप्पन इंच सीना फिर चौड़ा है और रमारथी रामधुन के अलावा नोटराग अलापने लगे हैं।
जाहिर है कि चुनौती मानें या न माने खेती और कारोबार में समान रुप से तबाह यूपी वालों के लिए नोटबंदी बड़ा मुद्दा है।
सरदर्द के इस सबब को खत्म करने के लिए औचक रिजर्व बैंक का यह फरमान है कि संकट चाहे जारी रहे लेकिन चार तारीख से शुरु विधानसभाओं के लिए चुनाव के लिए जो वोट गेरे जाने वाले हैं,उनपर केसरिया के बजाय कही गुलाबी हरा नीला रंग चढ़कर सारा हिंदुत्व गुड़गोबर न कर दें।
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