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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, March 11, 2017

जाति धर्म के चुनावी समीकरण और मुक्तबाजारी धर्मनिरपेक्षता की राजनीति हिंदुत्व सुनामी पैदा करने में मददगार है।विधानसभाओं के नतीजे यही बताते हैं। आगे त्रिपुरा और बंगाल की बारी है। पलाश विश्वास

जाति धर्म के चुनावी समीकरण और मुक्तबाजारी धर्मनिरपेक्षता की राजनीति हिंदुत्व सुनामी पैदा करने में मददगार है।विधानसभाओं के  नतीजे यही बताते हैं।

आगे त्रिपुरा और बंगाल की बारी है।

पलाश विश्वास

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चुनाव समीकरण से चुनाव जीते नहीं जाते।जाति,नस्ल,क्षेत्र से बड़ी पहचान धर्म की है।संघ परिवार को धार्मिक ध्रूवीकरण का मौका देकर आर्थिक नीतियों और बुनियादी मुद्दों पर चुप्पी का जो नतीजा निकल सकता था, जनादेश उसी के खिलाफ  है,संघ परिवार के समर्थन में या मोदी लहर के लिए नहीं और इसके लिए विपक्ष के तामाम राजनीतिक दल ज्यादा जिम्मेदार हैं।

यूपी में 1967 में ही सीपीएम ने भाजपा का समर्थन कर दिया था और संयुक्त विधायक दल की सरकार बनायी थी।तब उत्तर भारत में ही वामपंथियों का गढ़ था केरल के अलावा। बंगाल और त्रिपुरा का कोई किस्सा नही था।

केंद्र और राज्यों में अस्थिरता  और असहिष्णुता की राजनीति के घृणा और हिंसा में तब्दील होते जाने का यही रसायन शास्त्र है।

गैर कांग्रेसवाद से लेकर धर्मनिरपेक्षता की मौकापरस्त राजनीति ने विचारधाराओं का जो अंत दिया है, उसीकी फसल हिंदुत्व का पुनरूत्थान है और मुक्तबाजार उसका आत्मध्वंसी नतीजा है।

हिंदुत्व का विरोध करेंगे और मुक्तबाजार का समर्थन,इस तरह संघ परिवार का घुमाकर समर्थन करने की राजनीति के लिए कृपया आम जनता को जिम्मेदार न ठहराकर अपनी गिरेबां में झांके तो बेहतर।

जाति धर्म के चुनावी समीकरण और मुक्तबाजारी धर्मनिरपेक्षता की राजनीति हिंदुत्व सुनामी पैदा करने में मददगार है।विधानसभाओं के  नतीजे यही बताते हैं।

वामपंथियों ने विचारधारा को तिलांजलि देकर बंगाल और केरल में सत्ता गवाँयी है और आगे त्रिपुरा की बारी है।

कांग्रेस ने भी गांधी वाद का रास्ता छोड़कर अपना राष्ट्रीय चरित्र खो दिया है तो समाजवाद वंशवाद में तब्दील है।

बदलाव की राजनीति में हिटलरशाही संघ परिवार के हिंदुत्व का मुकाबला नहीं कर सकता,इसे समझ कर वैकल्पिक विचारधारा और वैकल्पिक राजनीति की सामाजिक क्रांति के बारे में न सोचें तो समझ लीजिये की मोदीराज अखंड महाभारत कथा है।

अति पिछड़े और अति दलित संघ परिवार के समरसता अभियान की पैदल सेना में कैसे तब्दील है और मुसलमानों के बलि का बकरा बनानाे से धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की बहाली कैसे संभव है,इस पर आत्ममंथन का तकाजा है।

विधानसभा चुनावों में संघ परिवार के यूपी में रामलहर के सात मोदी लहर पैदा करने में कामयाबी जितना सच है,उससे बड़ा सच पंजाब में भाजपा अकाली गठबंधन की हार का सच भी है।

पंजाब में सरकार जिस तरह नाकाम रही है,उसी तरह यूपी में को गुजरात बना देने में अखिलेश सरकार ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ा है।

भाजपा की जीत से बड़ी यह अखिलेश और सपा कांग्रेस के वंशवाद की हार है।मूसलपर्व का आत्म ध्वंस है।

इसी तरह यूपी तो कांग्रेस ने संघ परिवार को सौगात में दे दिया है।

किशोरी उपाध्याय और प्रदीप टमटा से पिछले दो साल से मैं लगातार बातें कर रहा था और उन्हें चेता रहा था,लेकिन उत्तराखंड में कांग्रेस को जिताने से ज्यादा कांग्रेस को हराने में कांग्रेस नेताओं की दिलचस्पी थी।इसीलिए भाजपा को वहां इतनी बड़ी जीत मिली है।हरीश रावत अकेले इस हार के जिम्मेदार नहीं हैं।

दूसरी ओर,मणिपुर में  परिवार की जीत असम प्रयोगशाला के  पूर्व और पूुर्वोत्तर में विस्तार की हरिकथा अंनत है।गायपट्टी के मुकाबले केसरिया करण की यह सुनामी ज्यादा खतरनाक है।

आगे त्रिपुरा और बंगाल की बारी है।




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