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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Friday, March 31, 2017

सबसे हैरतअंगेज है स्त्री संगठनों की निष्क्रियता जो स्त्री स्वतंत्रता के लिए अति मुखर हैं लेकिन न गुर मेहर और न मंदाक्रांता के बारे में उनमें कोई हलचल नजर आ रही है। भारत के जनवादी लेखक संघ ने मंदाक्रांतो को सामूहिक बलात्कार की धमकी की निंदा करते हुए चेतावनी दी है कि श्रीजात बंदोपाध्याय और मंदाक्रांता सेन की लड़ाई थमेगी नहीं, इसमें और-और नाम शामिल होते जायेंगे! पलाश विश्वास


सबसे हैरतअंगेज है स्त्री संगठनों की निष्क्रियता जो स्त्री स्वतंत्रता के लिए अति मुखर
 हैं लेकिन न गुर मेहर और न मंदाक्रांता के बारे में उनमें कोई हलचल नजर आ रही है।
भारत के जनवादी लेखक संघ ने मंदाक्रांतो को सामूहिक बलात्कार की धमकी की निंदा करते हुए चेतावनी दी है कि  श्रीजात बंदोपाध्याय और मंदाक्रांता सेन की लड़ाई थमेगी नहीं, इसमें और-और नाम शामिल होते जायेंगे!
पलाश विश्वास
देर से ही सही,पेसबुक पर ही सही लेखक संगठनों की प्रतिक्रिया आने लगी है।प्रतिक्रिया की रस्म अदायगी के बाद कोई प्रतिरोध या आंदोलनचलाने लायक उनके संघठन हैं या नही ,इस बारे में अभी कुछ कहना मुश्किल ही है।दिल्ली में होने वाली किसी भी घटना को लेकर जैसे तुरतफऱुरत विरोध का सिलसिला चल पड़ता है,शहीद की बेटी गुरमेहर के बाद सामूहिक बलात्कार की एक और धमकी की प्रतिक्रिया में वैसा कुछ हुआ नहीं है।
दोनों महिलाएं विशिष्ट महिलाएं हैं।इससे अदाजा लगाया जा सकता है कि देश में पितृसत्ता का स्वरुप कितना भयंकर है।आम औरतों,खासकर पिछड़े इलाकों की औरतों और दलित ,आदिवासी औरतों के खिलाप जुल्मोसितम सिर्फ धमकियों तक सीमित नहीं होती है और  उन्हें देस में हर रोज कहीं न कहीं उत्पीड़न,बलात्कार और सामूहिक बलात्कार की शिकार बनना पड़ता है और कहीं एफआईआर तक दर्ज नहीं होता।
इससे पहले सामाजिक कार्यकर्ता कविता कृष्णमूर्ति को निशाना बनाया गया है,जिसपर विद्वतजन अमूमन मजा ही लेते रहे हैं।मंदाक्रांता के बारे में फेसबुक टिप्पणियों के अलावा कोई कास प्रतिक्रिया दीक नहीं रही है और नही बजरंगी मुहिम पर कोई अंकुश लगी है।
बंगाल में काकद्वीप से लेकर कामदुनी तक बलात्कार संस्कृति का प्रचलन इतना हैरतअंगेज रहा है कि सिर्फ धमकी से राज्य सरकार की तरफ से कोई कार्रवाई की उ्मीद छोड़ दीजिये।
बंगाल में बुद्धिजीवी भी धार्मिक ध्रूवीकरण के इस तरह शिकार हो गये हैं कि सिविल 
सोसाइटी  का अता पता नहीं है।बहरहाल इक्क दुक्का संगठन विरोद प्रदर्सन कर रहे हैं और बाकी देश में म्लेच्छ करार दिये जाने का डर इतना हावी हो गया है कि सड़क पर कुछभी नजर नहीं आ रहा है।
सबसे हैरतअंगेज है स्त्री संगठनों की निष्क्रियता जो स्त्री स्वतंत्रता के लिए अति मुखर
 हैं लेकिन न गुर मेहर और न मंदाक्रांता के बारे में उनमें कोई हलचल नजर आ रही है।
बहरहाल फेसबुक पर जनवादी लेखक संग का बयान आया है और अभी बाकी वादियों की रस्म अदायगी के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

"मुझे अपनी फ़िक्र नहीं. बुनियादपरस्ती से लड़ने का एकमात्र तरीक़ा यही है कि ज़्यादा-से-ज़्यादा लिखा जाए और अधिक रैलियाँ की जाएँ."

ये शब्द हैं बांग्ला कवयित्री मंदाक्रांता सेन के, जिन्हें हिन्दुत्ववादियों ने फेसबुक पर गैंग-रेप की धमकी दी है. मंदाक्रांता सेन ने 19 मार्च को आदित्यनाथ के यूपी मुख्यमंत्री बनने पर लिखी गयी श्रीजात की कविता पर हिन्दुत्ववादियों के हमले की आलोचना की थी. हिन्दुत्ववादियों का कहना था कि श्रीजात की कविता ने हिन्दू भावनाओं को आहत किया है, इसलिए उन्हें गिरफ्तार किया जाना चाहिए. मंदाक्रांता इस विवाद में श्रीजात के पक्ष में खड़ी रहीं और उन्होंने हिंदुत्ववादियों के खिलाफ एक विरोध रैली में भी हिस्सा लिया. मंदाक्रांता ने 2015 में असहिष्णुता के ख़िलाफ़ साहित्य अकादमी यंग राइटर्स स्पेशल अवार्ड भी वापस किया था.

जो लोग आलोचनात्मक नज़रिया रखनेवाली विचारशील स्त्रियों के लिए हर बार गैंग-रेप की धमकी दुहराते हैं, वे निस्संदेह भारतीय संस्कृति के सबसे सजग रक्षक होंगे. उनके ऐसे कारनामों से उनकी 'भारतीय संस्कृति' को समझने का रास्ता खुलता है. हे रक्षको, शर्म करो! और स्यापा भी, कि श्रीजात बंदोपाध्याय और मंदाक्रांता सेन की लड़ाई थमेगी नहीं, इसमें और-और नाम शामिल होते जायेंगे.

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