राममंदिर को लेकर यूपी की सत्ता के जरिये फिर भारी हंगामा खड़ा करना मकसद है।
कांशीराम उद्यान में मनुस्मृति सरकार की शपथ का इंतजाम बाबासाहेब को डिजिटल कैशलैस इंडिया में भीम ऐप बना देने की तकनीकी दक्षता है,जो बहुजन राजनीति के कफन पर आखिरी कील है।
पलाश विश्वास
वीडियो राममंदिरः
वीडियो कोमल गांधारः https://www.facebook.com/palashbiswaskl/videos/1653837917977944/?l=583145744629963368
दाभोलकर,पानसारे,कलबुर्गी,रोहित वेमुला जैसे लोगों पर हमले अब लगातार होने हैं।
चौथी राम यादव जैसे निरीह व्यक्ति को जब बख्शा नहीं गया है,यूपी में तख्ता पलट होते ही जैसे देशभर में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में खड़े लोगों पर एकतरफा हमले हो रहे हैं,उससे साफ जाहिर है कि नोटबंदी के बाद जुबांबंदी के लिए अरुण जेटली की बहस शुरु करने की ख्वाहिश अधूरी रहेगी,इसे अंजाम देने के लिए बजरंग वाहिनी मैदान में उतर गयी है।
रामनवमी के चंदे को लेकर हावड़ा में संघर्ष ताजा खबर है।जिसमें तीन भाजपाई गिरफ्तार हो गये हैं।
इससे पहले हावड़ा के धुलागढ़ में ही दंगा हो गया है।बाकी हिंदुत्व एजंडे की राजनीति वसंत बहार है और बंगाल आहिस्ते आहिस्ते नहीं, बेहद तेजी से यूपी,गुजरात और असम में तब्दील होने लगा है और प्रगतिशील वामपंथी धर्मनिरपेक्ष बंगालियों को खबर भी नहीं है कि गोमूत्र पान महोत्सव शुरु हो गया है और वे भी गोबर संस्कृति में शामिल हैं। बहरहाल बंगाल के हर जिले में सांप्रदायिक ध्रूवीकरण यूपी के नक्शेकदम पर बेहद तेज हो गया है।
शारदा और नारदा फर्जीवाड़े में लोकसभा चुनावं से पहले खामोशी और यूपी जीतनेके बाद बेहद तेजी,नारदा की जांच सीबीआई से कराने के लिए हाईकोर्ट का आदेश और इस आदेश के खिलाफ ममता बनर्जी की अपील सुप्रीम कोर्ट में खारिज होने के बाद बहुत जल्दी बंगाल में भारी उथल पुथल होने को है।यह बंगाल औरत्रिपुरा जीतने का मास्टर प्लान है।
मणिपुर और असम जैसे राज्यों में जहां मणिपुरी और असमिया राष्ट्रवाद धार्मिक पहचान से बड़ी है,बंगाल और त्रिपुरा में बंगाली राष्ट्रीयता पर भगवा पेशवाई चढ़ाई,घेराबंदी की सारी तैयारियां हो चुकी हैं।
बिखरे हुए मोकापरस्त विपक्ष को यूपी में कड़ी शिकस्त देने के बाद महंत आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री और केशव आर्य व दिनेश शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनाने से संग परिवार की फिर राममंदिर एजंडे में वापसी हो गयी है।
योगी आदित्यनाथ सुनते हैं कि साहित्य और कविता पढ़ते हैं और उन्हें ये चीजें याद भी हैं।इससे कोई रियायत नहीं मिलने वाली है क्योंकि वे हिंदुत्व एजंडा नस्ली दबंगई के साथ लागू करने के लिए और देश भर में रामलहर पैदा करने के लिए अपने प्रवचन दक्षता की वजह से मुख्यमंत्री बनाये गये हैं।अब राम मंदिर बने या नहीं,राममंदिर बनाते हुए दीखने के उपक्रम में यूपी और बाकी देश में भारी बजरंगी तांडव का अंदेशा है।
बाबरी विध्वंस का हादसा भी भाजपाई कल्याण सिंह मंत्रिमंडल का महानराजकाज रहा है उस वक्त भी अदालत से इस मसले का हल अदालत से बाहर निकालने की बात कही जा रही थी।
कांशीराम उद्यान में मनुस्मृति सरकार की शपथ का इंतजाम बाबासाहेब को डिजिटलकैशलैस इंडिया में भीम ऐप बना देने की तकनीकी दक्षता है,जो बहुजन राजनीति के कफन पर आखिरी कील है।जनादेश आने से पहले इसकी जो तैयारियां प्रशासन अखिलेश अवसान से पहले कर रहा था,उसे बहुजनों ने बहनजी की वापसी की आहट समझ ली थी जो कि हाथी पर सवार होकर देवी मनुस्मृति की यूपी और बाकी भारत दखल की तैयारी थी।
इन दिनों आदरणीय शम्सुल इस्लाम जी की दो किताबों का अनुवाद हिंदी और बांग्ला में कर रहा हूं और आगे और काम है।इसलिए लगातार लिखना थोड़ा मुश्किल हो गया है।
हम आनंद तेलतुंबड़े से अपनी बातचीत का हवाला देते हुए अरसे से निरंकुश सत्ता के खिलाफ सृजनशील जनपक्षधर सक्रियता और आम जनता की व्यापक देशव्यापी गोलबंदी की बातें की है।
बिजन भट्टाचार्य की जन्मशताब्दी पर हमने नये सिरे से इप्टा को सक्रिय करने पर जोर दिया था।
इसी सिलसिले में कल हमने भारत विभाजन और इप्टा के बिखराव पर केंद्रित ऋत्विक घटक की फिल्म कोमल गांधार पर अपना वीडियो विस्लेषण फेसबुक पर जारी किया,जिसे बड़ी संख्या में लोग देख भी रहे हैं।
हम नहीं जानते कि देशभर के रंगकर्मी और खासतौर पर अब भी इप्टा आंदोलन के प्रति प्रतिबद्ध लोगों ने इस वीडियो को देखा है या नहीं या हमारे वाम पंथी मित्र आत्ममंथन करके सत्ता के लिए मौकापरस्ती छोड़कर फिर मेहनतकश आम जनता के हक हकूक के लिए जमीन पर विचारधारा की लड़ाई शुरु करने के लिए तैयार हैं या नहीं।
इस वीडियो को जारी करने काम मकसद इप्टा और रंगकर्म की प्रासंगिकता पर नये सिरे से बहस करनी की अपील जारी करना है।
असम से कमसकम एक संकेत बहुत अच्छा है कि संघ परिवार की सुनियोजित साजिश के बावजूद वहां फिलहाल धार्मिक या असमिया गैरअसमिया ध्रूवीकरण के तहत हिंसा नहीं भड़की और अासू और अगप के आंदोलन में बंगाली और मुसलमान शामिल हैं,जिससे समुदायों के बीच टकराव फिलहाल टल गया है।
सबसे अच्छी बात तो यह है कि आसू और अगप समेत पूरा असम इसे बहुत अच्छी तरह समझ गया है कि असम और पूर्वोत्तर में धार्मिक ध्रूवीकरण की राजनीति करके संघ परिवार हिंसा और घृणा की मजहबी सियासत से उनकी संस्कृति पर हमला कर रहा है और अब धेमाजी शिलापाथर की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के सिलसिले में वे भाजपा और संघपरिवार के खिलाफ आंदोलन शुरु करके हिमंत विश्वशर्मा के निलंबन की मांग लेकर आंदोलन कर रहे हैं।
अरुणाचल से लेकर मणिपुर तक इस मजहबी सियासत के खिलाफ आंदोलन की गूंज हो रही है।लेकिन बंगाल और त्रिपुरा में इसके खिलाफ कोई राजनीतिक गोलबंदी नहीं है।
आज हमने हाल में सड़क दुर्घटना में मारे गये युवा गायक संगीतकार कालिका प्रसाद भट्टाचार्य का आखिरी गीत का वीडियो अपनी अंग्रेजी में लिखी टिप्पणी के साथ जारी की है।
लोकसंगीत के मामले में कालिका की शैली एकदम अलहदा थी तो रवींद्र संगीत में भी उनका लोक मुखर था।
खास बात तो यह है कि वे एक साथ बंगाल और असम की लोकपरंपराओं और विरासत के मुताबिक गा रहे थे,रच रहे थे।कालिका प्रसाद असम के शिलचर से हैं और बांगाल में उनका बैंड दोहार अत्यंत लोकप्रिय है।उनके निधन पर असम और बंगाल एक साथ शोकमग्न है।
हमें हर सूबे में अमन चैन के लिए कालिका प्रसाद जैसे कलाकारों की बेहद सख्त जरुरत है।
कला और संगीत से मनुष्यता और सभ्यता के हित सधते हैं।
प्रेम,शांति और सौहार्द का माहौल बनता है।
भारतीय सिनेमा की यही परंपरा रही है।भारतीय संगीत और कला ने देश को हर मायने में जोड़ने का काम किया है तो रंगकर्म ने भी और खास तौर पर इप्टा ने यह काम किया है।
मजहबी सियासत और अलगाववाद,नये सिरे से राममंदिर को लेकर हिंदुत्व की सुनामी के मुकाबले देश को जोड़ने की चुनौती सबसे बड़ी है।
सुप्रीम कोर्ट ने फिर कहा है कि राममंदिर का मसला अदालत से बाहर सुलझा लिया जाये तो केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने कह दिया है कि इस मामले में केंद्र सरकार मध्यस्थता करने को तैयार है।
जाहिर है कि अब इस देश में सबसे बड़ा मुद्दा राममंदिर है और राम सुनामी में बंगाल जैसा प्रगतिशील राज्य भी संघ परिवार के शिकंजे में है।
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