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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Sunday, April 16, 2017

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं!

पलाश विश्वास

Video:https://www.facebook.com/palashbiswaskl/videos/1685033008191768/?l=3021243169750074783

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आजीविका के बतौर पेशेवर पत्रकार से पत्रकारिता से पिछले साल 16 मई को रिटायर हो गया हूं।इस बीच जो लोग बिना पारिश्रामिक मुझे छाप रहे थे,इस केसरिया दुःसमय में वे भी मुझ जैसे दुर्मुख को छापना सही नहीं मान रहे हैं।बाजार में होने की उनकी सीमाएं हैं।फिरभी कभीकभार वे मुझे छाप ही देते हैं,पैसे भले न दें।

माननीय प्रभाष जोशी की कृपा से उनके धर्मनिरपेक्ष,प्रगतिवादी,गांधीवादी चित्र में कोटे का चेहरा बन जाने के बावजूद,वेतन बोर्ड के मुताबिक समाचार संपादक का स्केल तक पहुंच जाने के बावजूद उप संपादक पद से रिटायर हुआ हूं और मेरा प्रोफाइल या सीवी किसी के काम का नहीं है।

विविध विषयों को पढ़ा सकता हूं,विभिनिन भाषाओं में लिख पढ़ सकता हूं,लेकिन बाजार में हमारे विचार और सपने प्रतिबंधित हैं।

ऐसे हालात में चूंकि सामंती मनोवृत्ति का नहीं हूं।जैसे हमारे पुरखे पूर्वी बंगाल के जमींदारों सामंती मूल्यों के आधार पर बाकी लोगों पर खुद हावी हो जाते थे,वैसा हमने इतने सालों से कोशिश करके न करने का अभ्यास करते हुए अपना डीएनए बदल डालने की निरंतर कोशिश की है।

हम ऐसा फैसला कुछ नहीं कर सकते,जिसपर मेरे परिवार के लोगों को ऐतराज हो।इसलिए फिलहाल घर वापसी के रास्ते बंद हैं तो महानगर में बिना किसी स्थाई छत के जिंदा रहना हमारी बची खुची क्रयशक्ति के हिसाब से नामुमकिन है।

इसलिए पत्रकारिता से भी रिटायर होने का वक्त हो आया है।साहित्य से रिटायर होते वक्त भी कलेजा लहूलुहान था।

1980 से लगातार सारे ज्वलंत मुद्दों को बिना देरी संबोधित करने की बुरी लत रही है।1991 से आर्थिक मुद्दों और नीति निर्धारण की वैश्विक व्यवस्था पर मेरा लगातार फोकस रहा है।

अब मेरे पास वैकल्पिक माध्यम कोई नहीं है।

यह सोशल मीडिया भी मुक्तबाजार का एकाधिकार क्षेत्र है,जहां विचारों और सपनों पर सख्त पहरा है।

हम जिंदगी भर कोशिश करेक जमीन पर कोई स्वतंत्र स्वनिर्भर वैकल्पिक मीडिया गढ़ नहीं सके हैं।यह हमारी सबसे बड़ी अयोग्यता है।

जन्मजात मेधावी नहीं रहा हूं।हमेशा हमने सीखने समझने की कोशिश की है और उसी बूते लगातार संवाद जारी रखने की कोशिश की है।

अब मौजूदा हालात में जब मेरे पास लिखने की कोई फुरसत निकलना क्रमशः मुश्किल होता जा रहा है,हम भविष्य में ऐसे किसी विषय पर नहीं लिखेंगे,जो घटनाक्रम की प्रतिक्रिया में लिखा जाये।

क्योंकि इन प्रतिक्रियाओं से जनविरोधी नरसंहारी संस्कृति के लिए धार्मिक ध्रूवीकरण और तेज होता है।

किसी भी राजनीतिक गतिविधि,समीकरण पर मेरी अब कोई टिप्पणी नहीं होगी क्योंकि पूरा राजनीतिक वर्ग आम जनता के खिलाफ लामबंद है और इस वर्ग से हमारा किसी तरह का कोई संबंध नहीं है और जनसरोकार से बिल्कुल अलहदा यह सत्ता की मौकापरस्त राजनीति आम जनता के किसी कामकाज की नहीं है।

जिन मुद्दों पर जानकारी मीडिया या अन्य माध्यमों तक आपको मिल रही है, उनपर अपना विचार व्यक्त करने की जरुरत नहीं है।

इसलिए मीडिया की सुर्खियों पर अपना पक्ष अब नहीं रखेंगे।

जरुरी हुआ तो कभी कभार आर्थिक,सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों या नीति निर्धारण प्रक्रिया पर लिखेंगे।

राजनीतिक कवायद नहीं,अब हम जमीन पर जो भी रचनात्मक हलचल है या जो प्रासंगिक द्सतावेज मिलते रहेंगे, उन पर कभी कभार मंतव्य करेंगे।यह पत्रकारिता नहीं होगी और न प्रतिक्रिया होगी।सीधे हस्तक्षेप होगा।

अब तक जो लोग मुझे झेलते रहे हैं,उनका आभारी हूं।

खासकर उन मित्रों का आभार जो लगातार पांच दशकों से मेरा समर्थन करते रहे हैं और जिनके बना मेरा मेरा कोई वजूद है ही नहीं।

कविता छोड़कर पत्रकारिता अपनाने की जो गलती की है,वह सुधारी नहीं जा सकती,लेकिन अब रोजमर्रे की पत्रकारिता से मेरा अवसान।धन्यवाद।

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