अपने बच्चों के कटे हुए हाथों और पांवों का हम क्या करेंगे?
पलाश विश्वास
बिना क्रय शक्ति के मुक्त बाजार में जीने की मोहलत किसी को नहीं है।क्रय शक्ति बिना उत्पादन के हवा में पैदा नहीं हो सकती।जब सांसें तक खरीदनी हों,हवा पानी बिन मोल नहीं मिलता, तब सेवाक्षेत्र और बाजार से किस हद तक कितने लोगों को वह क्रयशक्ति संजीवनी मिल सकती है।हम अपने अपने निजी जीवन में इस संकट से जूझ रहे हैं।
आजीविका और रोजगार के बिना खरीदने की क्षमता खत्म होने के बाद जीना कितना मुश्किल है,रिटायर होने के साल भरमें हमें मालूम हो गया है।
आज अनेक मित्रों ने सोशल मीडिया पर जन्मदिन की शुभकामनाएं भेजी हैं।उनका आभार।हम जिस सामाजिक पृष्ठभूमि से हैं,वहां जीवन मरण का कोई खास महत्व नहीं है। न हम इसे किसी तरह सेलिब्रेट करने के अभ्यस्त हैं।
इस जन्मदिन का मतलब यह भी है कि साल भर हो गया कि हम रिटायर हो चुके हैं।हमने पूरी जिंदगी जिस मीडिया में खपा दी, वहां काम मिलना तो दूर, हमारे लिए कोई स्पेस भी बाकी नहीं है। मीडिया को कांटेट की जरुरत ही नहीं है। मार्केटिंग के मुताबिक कांटेट उस सरकार और कारपोरेट कंपिनयों से मिल जाती है। इसलिए मीडिया को संपादकों और पत्रकारों की जरुरत भी नहीं है।मीडिया कर्मी कंप्यूटर के साफ्टवेयर बन गये हैं।समाचार,तथ्य,विचार,विमर्श,मतामत,संवाद बेजान बाइट हैं और हर हाल में मार्केटिंग के मुताबिक है या राजनीतिक हितों के मुताबिक।बाकी मनोरंजन।
हमारे बच्चों को शिक्षा और ज्ञान के अधिकार से वंचित करके कंप्यूटर का पुर्जा बना देने के उपक्रम के तहत उनके हाथ पांव काट लेने का चाकचौबंद इंतजाम हो गया है।स्थाई नौकरी या सरकारी नौकरी या आरक्षण ये अब डिजिटल इंडिया में निरर्थक शब्द है। कामगारों के हकहकूक भी बेमायने हैं। कायदे कानून भी किसी काम के नहीं है। रेलवे में सत्रह लाख कर्मचारी अब सिमटकर बारह लाख के आसपास हैं और निजीकरण की वजह से रेलवे में बहुत जल्द चार करोड़ ही कर्मचारी बचे रहेंगे।
किसी भी सेक्टर में स्थाई कर्मचारी या स्थाई नियुक्ति का सवाल ही नहीं उठता और हायर फायर के कांटेक्ट जाब का हाल यह है कि मीडिया के मुताबिक सिर्फ आईटी सेक्टर में छह लाख युवाओं के सर पर छंटनी की तलवार लटक रही है।कंपनियों में बड़े पैमाने पर छंटनी की खबरें आ रही हैं. मीडिया में आई रिपोर्ट के मुताबिक कॉग्निजान्ट ने दस हजार कर्मचारियों की छंटनी की है। इन्फोसिस ने दो हजार कर्मचारियों को अलविदा कहा तो विप्रो ने पांच सौ कर्मचारी हटाए हैं। इसके अलावा आईबीएम में भी हजारों लोगों की छंटनी की खबरें आयी हैं।
लेआफ की फेहरिस्त अलग है।यानी आईटी कंपनियों में छंटनी की फेहरिस्त बढ़ती जा रही है। कुल मिलाकर इस वक्त आईटी सेक्टर की तस्वीर बेहद भयावाह दिख रही है। द हेड हंटर्स कंपनी के सीएमडी के लक्ष्मीकांत के मुताबिक आईटी सेक्टर में दो लाख लोगों की नौकरियां जाने की आशंका है।इसी बीच आईटी दिग्गज आईवीएम ने अपने एंप्लायीज की छंटनी की खबरों को निराधार बताते हुए ऐसी संभावनाओं को खारिज किया। हालांकि कंपनी के एंप्लायीज में से 1-2 फीसदी का परफ़ॉर्मेंस अप्रेजल प्रभावित हो सकता है। छंटनी की खबरों पर एक बयान जारी कर कंपनी ने कहा, 'ऐसी रिपोर्ट्स तथ्यात्मक रूप से गलत हैं। हम अफवाहों और अटकलों पर और कोई प्रतिक्रिया नहीं देंगे।' आईवीएम इंडिया में 1.5 लाख कर्मचारी काम करते हैं। कंपनी हर साल एंप्लायीज को अप्रेजल देती है। सूत्रों ने बताया कि इस बार कंपनी खराब प्रदर्शन करने वाले एंप्लायीज का चुनाव बहुत सावधानी पूर्वक करेगी।
गौरतलब है कि आईटी कंपनियों में नौकरी ठेके की होती है और काम के घंटे अनंत होते हैं।वहां कामगारों के हक हकूक भी नहीं होते।ठेके का नवीकरण का मतलब नियुक्ति है।इसी रोशनी में इस पर गौर करें कि इस बार कंपनी खराब प्रदर्शन करने वाले एंप्लायीज का चुनाव बहुत सावधानी पूर्वक करेगी।
आईबीएम की ही तर्ज पर सरकार का वादा है।गौरतलब है कि सरकार ने आज कहा कि IT सेक्टर ने उसे आश्वासन दिया है कि इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर छंटनी नहीं होगी और यह क्षेत्र 8-9 फीसदी की दर से वृद्धि कर रहा है।
आईटी सचिव अरूणा सुंदरराजन ने कहा कि कुछ ऐसे मामले हो सकते हैं, जहां कर्मचारियों की वार्षिक मूल्यांकन प्रक्रिया में कंपनियां उनके अनुबंध आगे न बढ़ाएं। इसके अलावा आईटी उद्योग में इस समय क्लाउड कम्प्यूटिंग, बिग डाटा और डिजिटल भुगतान व्यवस्था के उदय के बाद रोजगार का स्वरूप बदलाव से गुजर रहा है।अनुबंध ही नियुक्ति है और अनुबंध के नवीकरण न होने का मतलब छंटनी के अलावा और क्या होता है,सरकार इसका भी खुलासा कर दें।खबर यह है कि भारत में IT सेक्टर में जॉब जाने का खतरा लगातार मंडरा रहा है। ताजा खबर आईबीएम से आ रही है। सूत्रों की मानें तो आईबीएम इंडिया अगली कुछ तिमाही में 5000 एंप्लायीज की छंटनी कर सकता है। कंपनी के इस प्लान से परिचित सूत्रों ने हमारे सहयोगी ET NOW को बताया है कि दूसरी आईटी कंपनियों द्वारा इस तरह के कदम उठाने के बाद आईबीएम ने भी यह सख्त कदम उठाने का फैसला कर लिया है। आईटी कंपनियों का विश्लेषण है कि यह वित्त वर्ष आईटी सेक्टर के लिए चुनौतिपूर्ण होगा। इसके मद्देनजर आईटी कंपनियों ने एंप्लॉयीज की छंटनी का मन बना लिया है।रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि आईबीएम आने वाले क्वार्टर में अपने 5 हजार से ज्यादा कर्मचारियों की छंटनी कर सकती है। परफॉर्मेंस रिव्यू के नाम पर छंटनी. यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है, जब इन्फोसिस, विप्रो और टेक महिंद्रा जैसी आईटी कंपनियां छटनी की तैयारी कर रही हैं। ये कंपनियां परफॉर्मेंस रिव्यू करने में जुट गई हैं। इसी बीच आईबीएम की तरफ से भी छंटनी किए जाने की रिपोर्ट आई।
बहरहाल सरकार ने आईटी सेक्टर में बड़े पैमाने पर छंटनी का डर खारिज किया है। सरकार ने कहा है कि छंटनी की रिपोर्ट्स गलत और गुमराह करने वाली हैं। आईटी और टेलीकॉम सेक्रेटरी अरुणा सुंदरराजन ने मंगलवार को कहा कि आईटी इंडस्ट्री लगातार ग्रोथ कर रही है और सरकार इंडियन प्रोफेशनल्स के एच1बी वीजा के मुद्दे पर अमेरिकी अथॉरिटीज के लगातार संपर्क में है। इंडिया में वानाक्राई रैंसमवेयर साइबर अटैक के मुद्दे पर अरुणा ने कहा कि कई एजेंसियों के लोगों को मिलाकर एक टीम बनाई गई है, जो स्थिति पर लगातार नजर रखे हुए है।
डिजिटल इंडिया के सुनहले सपने कितने खतरनाक हैं,कितने जहरीले हैं,सबकुछ जानने समझने का दावा करने वाले मीडिया के लोगों को भी इसका कोई अहसास नहीं है , जहां सबसे ज्यादा आटोमेशन हो गया है।मीडियाकर्मियों को वर्तमान के सिवाय न अतीत है और न कोई भविष्य और वे ही लोग डिजिटल इंडिया के सबसे बड़े समर्थक हैं।
बाकी बातें लिख लूं,इससे पहले चालू साइबर अटैक के नतीजे के बारे में आपको कुछ बताना जरुरी है।150 से देशों में रैनसम वायर का हमला हुआ है।एक खास कंपनी के आउटडेटेड प्रोग्राम में सहेजे गये तथ्य हाइजैक हो गये हैं।खास बात है कि भारत में तमाम बैंकिंग,शेयर बाजार,मीडिया, संचार,बीमा,ऊर्जा जैसे तमाम क्षेत्रों में उसी कंपनी के कार्यक्रम पर नेटवर्किंग हैं।
एटीएम से लेकर क्रेडिट डेबिट एटचीएम कार्ड भी उसीसे चलते हैं।अब भारत सरकार इस पूरी नेटवर्किंग का अपडेशन करने जा रही है।यानी उसी खास कंपनी के नये विंडो के साथ बचाव के तमाम साफ्टवेयर खरीदे जाने हैं।
इस पर कितना खर्च आयेगा,इसका हिसाब उपलब्ध नहीं है।जाहिर है हजारों करोड़ का न्यारा वारा होना है और इस साइबर अटैक की वजह से उसी कंपनी के विंडो, प्रोग्राम ,साफ्टवेयर, एंटी वायरस की नये सिरे व्यापक पैमाने पर मार्केटिंग होगी।
भारत के नागरिकों और करदाताओं ने डिजिटल इंडिया का विकल्प नहीं चुना है।कारपोरेट कंपनियों का मुनाफा बढ़ने के लिए श्रमिकों और कर्मचारियों के तमाम हक हकूक,कानून कत्ल कर देने के बाद आधार नंबर को अनिवार्य बनाकर आटोमेशन के जरिये रोजगार और आजीविका,कृषि,व्यापार और उद्योग से बहुंसख्य जनता को एकाधिकार कारपोरेट कंपनियों के हित में उन्हीं के प्रबंधन में आधार परियोजना लागू की गयी है।
अब तेरह करोड़ आधार और बैंक खातों की जानकारियां लीक होने के बाद सरकार ने कोई जिम्मेदारी लेने से सिरे से मना कर दिया है।ताजा ग्लोबल साइबर अटैक के बाद भारत सरकार इससे कैसे निपटेगी,वह मुद्दा अलग है,लेकिन तथ्यों की गोपनीयता की रक्षा करने की जिम्मेदारी उठोने से उसने सिरे से मना कर दिया है और जो आधिकारिक अलर्ट जारी की है,उसके तहत तथ्यों की गोपनीयता,यानी जान माल की सुरक्षा की जिम्मेदारी नागरिकों और करदाताओं पर डाल दी है।
इस पर तुर्रा यह कि मीडिया और सरकार दोनों की ओर से कंप्यूुटर और नेटवर्किंग की ग्लोबल एकाधिकार कंपनी के उत्पादों की साइबर अटैक के बहाने साइबर सुरक्षा के लिए मार्केटिंग की जा रही है कि आप कंप्यूटर और नेटवर्किंग को खुनद बचा सकते हैं तो बचा लें।इसमें होने वाले नुकसान की कोई जिम्मेदारी सरकार की नहीं होगी।
अबी ताजा जानकारी है कि 56 करोड़ ईमेल आईडी और उनका पासवर्ड लीक हो गया है।नेटवर्किंग में घुसने के लिए यह ईमेल आईडी और पासवर्ड जरुरी है।नेट बैंकिंग भी इसी माध्यम से होता है।डिजिटल लेनदेन से लेकर तमाम तथ्य और मोबाइल नेटवर्किंग और ऐप्पस भी इसीसे जुड़े हैं।अब आधार मार्फत लेनदेन मोबािल जरिये करने की तैयारी है।
इसका नतीजा कितना भयंकर होने वाला है,हम इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं।निजी कंपनियों और ठेका कर्मचारियों को हमने उंगलियों की जो छाप समेत अपने तमाम तथ्य सौंपे हैं,उसकी गोपनीयता की कोई गारंटी सरकार देने को तैयार नहीं है,जबकि सारी अनिवार्य सेवाओं से,बाजार और लेन देन से भी आधार नंबर को जोड़ दिया गया है।जिसके डाटाबेस सरकार और गैरसरकारी कंप्यूटर नेटवर्क में है।जैसे कि तेरह करोड़ एकाउंट के लीक होने के बाद भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में खुलासा भी किया कि यह सरकार पोर्टल से लीक नहीं हुआ।
प्राइवेट नेटवर्क में जो डाटाबेस है,जाहिर है कि उसकी लीकेज की कोई जिम्मेदारी भारत सरकार भविष्य में भी उठाने नहीं जा रही है।
रोजगार सृजन हो नहीं रहा है और डिजिटल इंडिया की मुक्तबाजार व्यवस्था में रोजगार और आजीविका दोनों खत्म होने जा रहे हैं।
हिंदू राष्ट्र में किसानों की आमदनी दोगुणा बढाने के दावे के बावजूद तीन साल में कृषि विकास दर 1.6 फीसद से ज्यादा नहीं बढ़ा है ,जबकि किसानों और खेतिहर मजदूरों की आत्महत्या की दर में तेजी से इजाफा हो रहा है।
रोजगार विकास दर न्यूनतम स्तर पर है।केंद्र में मोदी सरकार को तीन साल पूरे हो चुके हैं, कई क्षेत्र में सरकार का दावा है कि उसने काम किया है।
बिजली उत्पादन, सड़क निर्माण से लेकर कई विभाग में बड़े कामों का केंद्र सरकार ने दावा किया है, लेकिन इन सबके बीच सरकार के सामने जो सबसे बड़ी समस्या है वह यह कि पिछले तीन सालों में बेरोजगारी बड़ी संख्या में बढ़ी है।
लोगों को रोजगार देने में मौजूदा केंद्र सरकार तकरीबन विफल रही है और आज भी देश के युवा रोजगार की तलाश में यहां वहां भटक रहे हैं और एक अदद अच्छे दिन की तलाश कर रहे हैं। आठ साल के सबसे निचले स्तर पर रोजगार सृजन।
गौरतलब है कि केंद्रीय श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2015 और साल 2016 में क्रमशः 1.55 लाख और 2.31 लाख नई नौकरियां उपलब्ध हुईं थी।
ये आंकड़े रोजगार के 8 प्रमुख क्षेत्रों टेक्सटाइल, लेदर, मेटल, ऑटोमोबाइल के 1,932 यूनिट के अध्ययन पर आधारित थे। 2009 में मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 10 लाख नई नौकरियां तैयार हुई थीं।
वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार हैं जो नई नौकरियां तैयार नहीं कर पाई है। दरअसल, भारत में बहुत बड़े वर्ग को रोजगार देने वाले आईटी सेक्टर में हजारों युवाओं की छंटनी हो रही है।
नरेंद्र मोदी सरकार अपने तीन साल पूरे होने का जश्न मनाने की तैयारी में है, वहीं देश में नए जॉब्स की संभावनाओं को लेकर जारी एक रिपोर्ट ने सभी को चिंता में डाल दिया है।
पिछले आठ साल का रिकॉर्ड देखें तो रोजगार लगातार घट रहे हैं और 2016 में तो यह आंकड़ा सबसे नीचे पहुंच गया। ऊपर से यह आशंका भी है कि आने वाला समय कहीं ज्यादा मुश्किलों भरा रह सकता है। टेलिग्राफ के अनुसार, 2016 में महज 2.31 लाख नई नौकरियां पैदा हुई हैं।
नए रोजगार का आकंड़ा 2009 के बाद से लगातार गिर रहा है। आठ प्रमुख सेक्टर्स की बात करें तो 2009 में 10.06 लाख लोगों को नौकरी मिली थी।
छंटनी का आलम इतना भयंकर है कि आउटसोर्सिंग आधारित आईटी को शिक्षा और रोजगार का फोकस बनाकर विश्वविद्यालयों,ज्ञान विज्ञान,उच्चशिक्षा और शोद को तिलाजंलि देकर डिजिटल इंडिया में विकास का इंजन जिस सूचना तकनीक को बना दिया गया,वहां युवाओं के हाथ पांव काट देने के पुख्ता इंतजाम हो गये हैं।
देश में बड़ी संख्या में रोजगार देने वाले इन्फ़र्मेशन टेक्नॉलजी सेक्टर में छंटनी की आशंका से देश के उन शहरों में रियल एस्टेट कंपनियों की चिंता बढ़ गई है जिन्हें आईटी हब कहा जाता है। रेजिडेंशल प्रॉपर्टी की सेल्स में हाल के समय में तेजी आई है, लेकिन अगर आईटी कंपनियों में छंटनी का दौर चलता है तो बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे, चेन्नै और गुड़गांव सहित कई बड़े शहरों में प्रॉपर्टी मार्केट में मंदी आ सकती है। नाइट फ्रैंक इंडिया के चीफ इकनॉमिस्ट और नैशनल डायरेक्टर सामंतक दास ने कहा, 'रेजिडेंशल प्रॉपर्टी मार्केट काफी हद तक सेंटीमेंट से चलता है।
बहरहाल आईटी कंपनियों में छंटनी का शिकार हुए कर्मचारी अब इन कंपनियों के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। इसके लिए उन्होंने ऑनलाइन आईटी विंग बनाया है, जिससे रोजाना सैकड़ों की तादाद में वो आईटी कर्मचारी जुड़ रहे हैं, जिन्हें कंपनियों ने नौकरी से निकाल दिया है। अप्रेजल का ये सीजन आईटी इंप्लॉईज के लिए बुरा सपना क्यों साबित हो रहा है।
आईटी सेक्टर में आने वाले समय में छंटनी की संभावनाओं को देखते हुए चेन्नै में एंप्लॉयीज यूनियनें सॉफ्टवेयर प्रफेशनल्स को एक होने के लिए कह रही हैं। बढ़ते ऑटोमेशन और आउटसोर्सिंग के सबसे बड़े बाजार अमेरिका में बढ़ रहे विरोध के चलते आईटी सेक्टर में छंटनी की संभावना है। तमिलनाडु में करीब चार लाख आईटी प्रफेशनल्स काम करते हैं। यहां पर ज्यादातर मिडिल लेवल के मैनेजरों को नौकरी से निकाले से जाने के मामलों में बढ़ोतरी देखने को मिली है।
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के अनुभवों से उत्साहित ट्रेड यूनियनों को लग रहा है कि आईटी सेक्टर में इस सेक्टर के जैसा भाव लाना आसान नहीं है।
कोलकाता के दीप्तिमान सेनगुप्ता ने 2011 में सीनियर सिस्टम एनालिस्ट के रूप में दिग्गज सॉफ्टवेयर कंपनी आईबीएम में काम शुरू किया था। अच्छे परफॉर्मेंस की वजह से वो 2013 में बेस्ट इंप्लाई भी बने। लेकिन पिछले साल ये कंपनी की नॉन-परफॉर्मर लिस्ट में शामिल हुए और अब इन्हें नौकरी से निकाल दिया गया।
दीप्तिमान की ही तरह कैपजैमिनी के ईशान बनर्जी को भी छंटनी का शिकार होना पड़ा।
आईटी कंपनियों के ये सारे कर्मचारी अब एकजुट हो रहे हैं। उन्होंने न्यू डेमोक्रैट्स डॉट कॉम वेबसाइट पर आईटी विंग बनाया है, जिसमें आईटी कंपनियों की छंटनी का शिकार हुए कर्मचारी जुड़ रहे हैं। अब 18 मई को डेमोक्रेटिक वन के सभी सदस्य मल्टीनेशनल कंपनियों के खिलाफ आगे की रणनीति तैयार करेंगे।
एक्जीक्यूटिव सर्च फर्म हेडहंटर्स इंडिया का अनुमान है कि अगले 3 सालों में देश में आईटी कंपनियों में पौने दो लाख से दो लाख तक कर्मचारियों की छंटनी हो सकती है। हालांकि आईटी कंपनियों की संस्था नैसकॉम छंटनी की आशंका से इनकार कर रही है।
दरअसल, आईटी सेक्टर में ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का चलन बढ़ने की वजह से लोगों की जरूरत कम होती जा रही है। वहीं ग्लोबल इकोनॉमी में मंदी जारी रहने का असर आईटी सेक्टर की कंपनियों की ग्रोथ पर भी दिखने लगा है।
वहीं इस पर आइटी सेक्रटरी अरूणा सुंदराजन का कहना है कि, आइटी सेक्टर में बड़े पैमाने पर नौकरियां नहीं गई हैं। अरूणा सुंदराजन ने आगे कहा कि आईटी सेक्टर पर कोई बड़ा संकट नहीं है और इसका डाटा मंत्रालय के पास है। सेक्टर की स्थिति सामान्य है।
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