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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Friday, July 14, 2017

खेती की तरह आईटी सेक्टर में भी खुदकशी का मौसम गोरक्षा समय में पहले करोड़ नौकरियां पैदा करने के सुनहले दिनों के ख्वाब दिखाये गये और अब जीएसटी के जरिये रोजगार सृजन की बात की जा रही है।सुनहले दिनों के ख्वाब में युवाओं का न रोजगार है और न कोई भविष्य।जीवन साथी चुनना भी मुश्किल है।फर्जी तकनीकी शिक्षा के दुश्चक्र में परंपरागत शिक्षा से वंचित इस युवा पीढ़ी के हिस्से में अंधेरा ही अंधेरा


खेती की तरह आईटी सेक्टर में भी खुदकशी का मौसम

गोरक्षा समय में पहले करोड़ नौकरियां पैदा करने के सुनहले दिनों के ख्वाब दिखाये गये और अब जीएसटी के जरिये रोजगार सृजन की बात की जा रही है।सुनहले दिनों के ख्वाब में युवाओं का न रोजगार है और न कोई भविष्य।जीवन साथी चुनना भी मुश्किल है।फर्जी तकनीकी शिक्षा के दुश्चक्र में परंपरागत शिक्षा से वंचित इस युवा पीढ़ी के हिस्से में अंधेरा ही अंधेरा है।

पलाश विश्वास

नोटबंदी और जीएसटी के निराधार आधार चमत्कारों के मध्य अब किसानों मजदूरों के अलावा इंजीनियरों की खुदकशी की सुर्खियां बनने लगी है।प्रधान सेवक अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान महाबलि ट्रंप से हथियारों और परमाणु चूल्हों का सौदा तो कर आये लेकिन अमेरिकी नीतियों की वजह से खतरे में फंसे आईटी क्षेत्र में लगे लाखों युवाओं के लिए एक शब्द भी खर्च नही किया।अभी पिछले  गुरुवार को पुणे की एक होटल की बिल्डिंग से कूदकर एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने अपनी जान दे दी। कमरे में मिले सुसाइड नोट में मृतक इंजीनियर ने आईटी क्षेत्र में जॉब सिक्योरिटी नहीं होने की वजह से खुदकशी  कर ली।

यह आईटी सेक्टर में गहराते संकट के बादलों का सच है,जिससे भारत सरकार सिरे से इंकार कर रही है।

गोरक्षा समय में पहले करोड़ नौकरियां पैदा करने के सुनहले दिनों के ख्वाब दिखाये गये और अब जीएसटी के जरिये रोजगार सृजन की बात की जा रही है।सुनहले दिनों के ख्वाब में युवाओं का न रोजगार है और न कोई भविष्य।जीवन साथी चुनना भी मुश्किल है।फर्जी तकनीकी शिक्षा के दुश्चक्र में परंपरागत शिक्षा से वंचित इस युवा पीढ़ी के हिस्से में अंधेरा ही अंधेरा है।

यह सिर्फ एक आत्महत्या का मामला नहीं है कि आप राहत की सांस लें कि बारह हजार खेत मजदूरों और किसानों की खुदकशी के मुकाबले एक खुदकशी  के मामले से बदलता कुछ नहीं है।

गौरतलब है कि पिछले कई दिनों से आईटी सेक्टर में छाई मंदी को लेकर इस प्रोफेशन से जुड़े लोग अपने करियर को लेकर बेहद चिंतित हैं। आईटी प्रोफेशनल्स को कोई और रास्ता नजर नहीं आ रहा है। बीते महीनों आई एक खबर के मुताबिक, इन्फोसिस कर्मचारियों को नौकरी से निकालने वाली थी। इससे पहले भी दूसरी कंपनियां जैसे विप्रो, टीसीएस और कॉगनिजेंट भी अपने यहां कर्मियों की छंटनी कर चुकी हैं। इसी बात से चिंतित होकर गुरुप्रसाद ने आत्महत्या कर ली।


आईटी सेक्टर में भारी छंटनी के सिलसिले में कंपनियों ने कार्यदक्षता के मुताबिक नवीकरण की बात की तो भारत सरकार की ओर से कह दिया गया कि आईटी सेक्टर में कोई खतरा है ही नहीं।क्योंकि कंपनियां किसी की छंटनी नहीं कर रही है,सिर्फ कुछ लोगों के ठेके का नवीकरण नहीं किया जा रहा है।

मानव संसाधन से जुड़ी फर्म हेड हंटर्स इंडिया ने हाल में कहा है कि कि नई प्रौद्योगिकियों के अनुरूप खुद को ढालने में आधी अधूरी तैयारी के कारण भारतीय आईटी क्षेत्र में अगले तीन साल तक हर साल 1.75-2 लाख इंजीनियरों की सलाना छंटनी होगी। हेड हंटर्स इंडिया के संस्थापक अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक के लक्ष्मीकांत ने मैककिंसे एंड कंपनी द्वारा 17 फरवरी को भारतीय सॉफ्टवेयर सेवा कंपनियों के मंच नासकाम इंडिया लीडरशिप फोरम को सौंपी गई रिपोर्ट का विश्लेषण करते हुए कहा, "मीडिया में खबर आई है कि इस साल 56,000 आईटी पेशेवरों की छंटनी होगी, लेकिन नई प्रौद्योगिकियों के अनुरूप खुद को ढालने में आधी अधूरी तैयारी के चलते तीन साल तक हर साल वास्तव में 1.75-2 लाख आईटी पेशेवरों की छंटनी हो सकती है।"




श्रमकानूनों में सुधार की वजह से श्रम विभाग और लेबर कोर्ट की कोई भूमिका नहीं रह गयी है।ठेके पर नोकरियां तो मालिकान और प्रबंधकों की मर्जी है।वे अपने पैमाने खुद तय करते हैं और उसी हिसाब से कर्मचारियों की छंटनी कर सकते हैं ।कर्मचारियों की ओर से इसके संगठित विरोध की संभावना भी कम है।क्योंकि निजीकरण,विनिवेश और आटोमेशन के खिलाफ अभी तक मजदूर यूनियनों ने कोई प्रतिरोध नहीं किया है।नये आर्तिक सुधारों की वजह से ऐसे प्रतिरोध लगभग असंभव है।


डिजिटल इंडिया में सरकारी क्षेत्र में नौकरियां हैं नहीं और सरकारी क्षेत्र का तेजी से विनिवेश हो रहा है।आधार परियोजना से वर्षों से बेहिसाब मुनाफा कमाने वाली कंपनी इंफोसिस भी अब रोबोटिक्स पर फोकस कर रही है।सभी क्षेत्रों में शत प्रतिशत आटोमेशन का लक्ष्य है क्योंकि कंपनियों को कर्मचारियों पर होने वाले खर्च में कटौती करके ही ज्यादा से ज्यादा मुनाफा हो सकता है।


दूसरी ओर मार्केटिंग और आईटी सेक्टर के अलावा पढ़े लिखे युवाओं के रोजगार किसी दूसरे क्षेत्र में होना मुश्किल है।बाजार में मंदी के संकट और कारपोरेट एकाधिकार वर्चस्व,खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजी,ईटेलिंग इत्यादि वजह से मार्केंटिंग में भी नौकरियां मिलनी मुश्किल है।


नालेज इकोनामी में ज्ञान विज्ञान की पढ़ाई,उच्च शिक्षा और शोध का कोई महत्व न होने से सारा जोर तकनीकी ज्ञान पर है और मुक्तबाजार में आईटी इंजीनियरिंग ही युवाओं की पिछले कई दशकों से सर्वोच्च प्राथमिकता बन गयी है।विदेश यात्रा और बहुत भारी वेतनमान की वजह से आईटी सेक्टर में भारतीय युवाओं का भविष्य कैद हो गया है।


मुक्तबाजार से पहले कृषि इस हद तक चौपट नहीं हुई थी।नौकरी न मिले तो खेती या कारोबार का विकल्प था।लेकिन आईटी इंजीनियरों के सामने जीएसटी के जरिये हलवाई की दुकान या किराने की दुकान में आईटी सहायक के सिवाय कोई विकल्प बचा नहीं है।ऐसी नौकरी मिल भी जाये तो वह आईटी सेक्टर के भारी भरकम पगार के मुकाबले कुछ भी नहीं है।


हालत यह है कि मीडिया के मुताबिक आईटी कर्मचारियों के लिए यूनियन बनाने की कोशिश में जुटा द फोरम फॉर आईटी एम्पलॉयीज (एफआईटीई) ने कहा है कि आईटी व अन्य बड़ी कंपनियों की तरफ से  छंटनी के खिलाफ विभिन्न राज्यों में श्रम विभाग के पास करीब 85 याचिका दाखिल की गई है। चेन्नई में संवाददाताओं से बातचीत में फोरम के महासचिव विनोद ए जे ने कहा, अगले छह हफ्तों में हमारे दिशानिर्देश के तहत अपनी-अपनी कंपनियों के खिलाफ करीब 100 कर्मचारी शिकायत दाखिल करेंगे।

फोरम का दावा है कि कॉग्निजेंट, विप्रो, वोडाफोन, सिनटेल और टेक महिंद्रा जैसे संगठनों के 47 कर्मचारियों ने श्रम विभाग पुणे में याचिका दाखिल की है, वहीं 13 याचिकाएं कॉग्निजेंट व टेक महिंद्रा के कर्मचारियों ने हैदराबाद में दाखिल की है। ये याचिकाएं औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 2 ए के तहत दाखिल की गई है, जो वैयक्तिक याचिकाओं के लिए है। उन्होंने कहा, इस अधिनियम की धारा 2के सामूहिक याचिका के लिए है। कॉग्निजेंट व अन्य कंपनियों ने इन आरोपों का खंडन किया है और कहा है कि वे कर्मचारियों की छंटनी नहीं कर रहे हैं। फोरम का दावा है कि करीब 3,000 कर्मचारियों ने उनसे संपर्क किया है। इसकी योजना समर्थन के लिए विभिन्न राजनीतिक पार्टियों से संपर्क की भी है।


खबरों के मुताबिक पुणे में एक इंजीनियर ने केवल इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि उसके फील्ड में जॉब सिक्योरिटी नहीं थी। मृतक गोपीकृष्ण गुरुप्रसाद (25) आंध्र प्रदेश का निवासी था। कुछ दिनों पहले ही मृतक ने पुणे में नई कंपनी जॉइन की थी। पुणे के विमानगर इलाके स्थित एक होटल के ऊपर वाली मंजिल से गुरुप्रसाद ने छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली। आत्महत्या करने से पहले मृतक ने अपना हाथ काटने की  कोशिश की। गुरुप्रसाद इससे पहले दिल्ली और हैदराबाद में भी नौकरी कर चुका था। मौके से पुलिस ने एक सुसाइड नोट भी बरामद किया।


नोट में मृतक ने लिखा, 'आईटी में कोई जॉब सिक्योरिटी नहीं है। मुझे अपने परिवार को लेकर चिंता होती है।' शव को पोस्टमार्टम के बाद परिजनों को सौंप दिया गया है। पुलिस मामले की जाँच कर रही है।


खुदकशी की इस घटना को नजर्ंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि मैककिंसे एंड कंपनी की रिपोर्ट में कहा गया था कि आईटी सेवा कंपनियों में अगले 3-4 सालों में आधे कर्मचारी अप्रासंगिक हो जाएंगे। मैककिंसे एंड कंपनी के निदेशक नोशिर काका ने भी कहा था कि इस उद्योग के सम्मुख बड़ी चुनौती 50-60 फीसदी कर्मचारी को पुन: प्रशिक्षित करना होगा क्योंकि प्रौद्योगिकियों में बड़ा बदलाव आएगा। इस उद्योग में 39 लाख लोग कार्यरत हैं और उनमें से ज्यादातर को फिर से प्रशिक्षण देने की जरूरत होगी।


बड़ी संख्या में आईटी इंजीनियरों के बेरोजगार होने या उनकी नौकरियां असुरक्षित हो जाने की स्थिति खेतों की तरह आईटी सेक्टर के बी कब्रिस्तान में तब्दील हो जाने का खतरा है।

अमेरिका, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों में वर्क वीजा पर कड़ाई की वजह से भारतीय सॉफ्टवेयर निर्यातक पर विशेष रूप से मार पड़ी है। आर्टिफिशल इंटेलिजेंस  में नई प्रौद्योगिकी, रोबोटिक प्रक्रिया ऑटोमेशन और क्लाउड कंप्यूटिंग की वजह से कंपनियों अब कोई कार्य कम श्रमबल से कर सकती हैं। इसकी वजह से सॉफ्टवेयर कंपनियों को अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करना पड़ रहा है।


भारतीय आईटी सेक्टर के प्रोफेशनल्स के छंटनी की टेंशन बाद एक और समस्या का पहाड़ उन लोगों पर टूटने लगा है। आईटी प्रोफेशनल्स को पहले अपनी जॉब तो अब अपने जीवनसाथी ढ़ढने में दिक्क्तें आ रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आईटी प्रोफेशनल्स से लोग शादी करने से अब कतरा रहे हैं।


मैट्रीमोनियल वेबसाइट के ट्रेंड और पारंपरिक तौर पर 'रिश्ते मिलाने वालों' को देखा जाए तो मालूम होता है कि समय बदल चुका है| 'साफ्टवेयर इंजीनियर' दूल्हों की डिमांड अब पहले के मुकाबले बहुत कम हो गई है। सूत्रों के मुताबिक सामने आया है कि इसकी मुख्य वजह है आईटी सेक्टर में अनिश्चतता और छंटनी, ऑटोमेशन से नौकरियों पर मंडराता खतरा। इसके पीछे एक बड़ी वजह मानी जा रही है अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के तहत संरक्षणवादी भावना का बढ़ना। इस वजह कई भारतीय को अमेरिका से भारत लौटना पड़ा हैं।


सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल्स पर जो आदर्श वर का ठप्पा लगा था वह अब कम होने लग गया है, खासतौर पर जब अरेंज मैरिज की बात हो।

एक अंग्रेजी पेपर में छपी खबर के मुताबिक एक मेट्रीमोनियल एड का जिक्र है जिसमें तमिल के रहने वाले माता-पिता ने अपनी बेटी के लिए दूल्हे का ऐड छपवाया जिसके अंत में लिखा था हमें आईएएम, आईपीएस, डॉक्टर और बिजनेस मेन की तलाश है, कृपया सॉफ्टवेयर इंजीनियर कॉल न करें। शादी डॉट कॉम के सीईओ गौरव ने बताया कि, इस साल की शुरूआत से ही आईटी प्रोफेशनल्स तलाशने वाली लड़कियों की संख्या में कमी दर्ज की है।


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