This FB post raises solid and valid question to be answered by Secular and democratic forces if they seriously want to resist racist fascist institutional Hindutva agenda.Muslim community is misused by political parties irrelevant of their ideology just to reduce them in Vote Bank. Aggressive Islamic identity provokes majority Hindu population,it should be understood.Why they should react so violently?If they behave like this,it is just cake walk for cow politics!It is happening in Bengal and trending in rest of India.It would further strengthen Islamophobia as Islamic terror organized and aligned Anti Islam forces world wide.
Majority of Hindus tend to be secular and democratic and majority of Muslims are also secular and democratic.Majority people of India irrespective of caste,class,religion,language and race are also secular and democrate.
If we happen to be secular and democrat and want peace and fraternity,resistance of Islamic terror is as much as necessary as the resistance against cow politics.
I am sharing a FB post already shared by Gandhian Activist Himanshu Kumar ji.A muslim brother has raised very justified questions for Muslim community and these questions must be addressed by all secular,democrat and peace loving patriotic citizens irespective of identity if we seriously want to resist institutional fascist ethnic cleansing !
#नाॅट_इन_माई_नेम_अगेन
तनिक भी भ्रमित मत होइयेगा कि अब क्यों नाॅट इन माई नेम... अब तो बंगाल में मियाँ भाई भी गदर काट दिये। हाँ काट दिये तो... इसीलिये तो शायद अब ऐसे बैनर की जरूरत और प्रासंगिक हो उठी है, क्योंकि अब वह हिंदू, जो इस अभियान में हमारे साथ हमारी आवाज उठाने आया था, वह कशमकश में पड़ा हमें देख रहा है।
क्या था औचित्य इस अभियान का... यही न कि धर्म या आस्था के नाम पर हिंसक होती भीड़ का विरोध। सड़क पर होते इंसाफ के नंगे प्रदर्शन के खिलाफ एकजुट कोशिश... लेकिन बंगाल में तो इसी कोशिश को पलीता लगा दिया गया। साबित कर दिया कि धर्म या आस्था के नाम पे हिंसक होने वाली भीड़ भगवा ही नहीं हरी भी होती है।
चालीस पचास साल के मर्द अधेड़ मशाले लिये एक लड़के का घर फूंकने चल पड़े... खुद आपने मैच्योरिटी दिखाई न और उस सोलह-सत्रह साल के लड़के से मैच्योरिटी की उम्मीद कर रहे थे? इस बात का कोई मतलब नहीं कि यह संघ या भाजपा की साजिश है... हाँ है तो? नाक से खाना तो नहीं खाते होंगे न आप, तो कैसे सब जानते हुए संघ/भाजपा की साजिश में फंस जाते हैं।
नाॅट इन माई नेम के बैनर तले आपका प्रतिकार इसलिये भी तो था कि अगर कोई गौकशी या गौमांस भक्षण का दोषी भी है तो उसे पुलिस के हवाले कीजिये, और कानून जो भी उचित कार्रवाई समझे, करे... लेकिन जैसी ही चोट अपनी आस्था पर आयी तो कानून पर से विश्वास डिग गया और निकल पड़े सड़कों पर भीड़ बनके इंसाफ करने।
पहले कमलेश तिवारी ने और फिर सौविक सरकार ने जो किया वह फेसबुक पर हर रोज होता है और सैकड़ों बार होता है, लेकिन खैर बाकियों की तरफ से आंखें मूंद कर आप जिसे 'चिन्हित' कर पायें, उसके खिलाफ कानून सम्मत कार्रवाई करवाइये और उस पर संतुष्ट होना सीखिये।
यह क्या कि भीड़ बन के सड़कों पर आतंक फैला कर दोषी के लिये फांसी की मांग करना... इस्लामिक हुकूमत है भारत में? शरिया लागू है कि ईशनिंदा कानून के तहत पैगम्बर पर उंगली उठाने वाले को फांसी पर लटका दिया जाये? आप अपने लिये तो सेकुलर मुल्क चाहते हैं, जहां एक अल्पसंख्यक के बावजूद आपको सारे अधिकार और सुरक्षा मिले, लेकिन दूसरों को सेकुलर मुल्क देने में क्यों पीछे हट जाते हैं? क्यों आपका धर्म घर से निकल कर सड़कों पर उतर आता है?
जिन्होंने बंगाल में यह हिंसक भीड़ बनाई, जितने वे दोषी हैं, उतने ही दोषी वे भी हैं जो एसी हरकतों को अपने कुतर्कों से जस्टिफाई करते हैं... बजाय खुल कर, मुखर हो के विरोध करने के। बजाय आगे आ कर लोगों को यह बताने के... कि हम बंगाल में आस्था को लेकर दंगा करने वाली भीड़ के भी उतने ही खिलाफ हैं, जितने अखलाक या जुनैद को मारने वाली भीड़ के हैं।
नाॅट इन माई नेम के तहत आपके हक की आवाज उठाने वाले और आपकी तकलीफ पर आपके साथ खड़े होने वाले हिंदू देख रहे हैं आपकी तरफ... खुद से आगे बढ़िये और उन्हें यकीन दिलाइये कि गलत बात पर अपने धर्म के लोगों का भी समर्थन हम नहीं करते।
देश सबका है, समस्यायें भी सबकी हैं और उनसे लड़ने के लिये साथ भी सबका चाहिये... मेरा तेरा करके लड़ाइयां नहीं लड़ी जातीं। गलत को हर हाल में मुखर हो के, बआवाजे बुलंद गलत कहने की आदत बनानी होगी।
आपको खुल के कहना होगा कि मजहब या आस्था के नाम पे हिंसक होने वाली किसी भी भीड़ का समर्थन हम नहीं करेंगे, फिर चाहे वह भीड़ हमारे अपने ही लोगों की क्यों न हो।
नाॅट इन माई नेम सबके लिये है... और हर हिंसक भीड़ के खिलाफ एक कोशिश है।
~ Ashfaq Ahmad
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