Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Sunday, April 1, 2012

जीवन शैली से ही रचना प्रक्रिया का निर्माण होता है : शेखर जोशी

http://www.news.bhadas4media.com/index.php/dekhsunpadh/1037-2012-04-01-12-40-24

[LARGE][LINK=/index.php/dekhsunpadh/1037-2012-04-01-12-40-24]जीवन शैली से ही रचना प्रक्रिया का निर्माण होता है : शेखर जोशी   [/LINK] [/LARGE]
Written by NewsDesk Category: [LINK=/index.php/dekhsunpadh]खेल-सिनेमा-संगीत-साहित्य-रंगमंच-कला-लोक[/LINK] Published on 01 April 2012 [LINK=/index.php/component/mailto/?tmpl=component&template=youmagazine&link=a434b652fe18b5d3d8a84ddbcf60342159e2581f][IMG]/templates/youmagazine/images/system/emailButton.png[/IMG][/LINK] [LINK=/index.php/dekhsunpadh/1037-2012-04-01-12-40-24?tmpl=component&print=1&layout=default&page=][IMG]/templates/youmagazine/images/system/printButton.png[/IMG][/LINK]
वर्धा : महात्मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के इलाहाबाद क्षेत्रीय केंद्र में ''मेरी शब्द यात्रा'' विषय पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान हिंदी के वरिष्‍ठ कथाकार शेखर जोशी ने अपनी रचना प्रक्रिया को साझा करते हुए कहा कि जीवन शैली से ही रचना प्रक्रिया का निर्माण होता है पर आज संकट इस बात का है कि हमारी जीवन शैली में सामाजिक सरोकारों के लिए जगह नहीं बची है। सत्यप्रकाश मिश्र सभागार में आयोजित समारोह की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध नाटककार अजीत पुष्‍कल ने की।

नामचीन साहित्यिक दिग्गजों को संबोधित करते हुए शेखर जोशी ने कहा कि मेरा जन्म किसान परिवार में हुआ। लोक गीत व संगीत से मेरी जीवन पद्धति जुड़ी रही है। कुछ ऐसी परिस्थितियां हुई कि मुझे विस्थापित होना पड़ा। विस्थापन का मेरे जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा कि मैं लेखन की ओर प्रवृत्त हुआ। मुझे दो बार विस्थापन होना पड़ा। पहली बार विस्थापन के दौरान नानी के गांव जाना पड़ा, गांव का आकर्षण अदभुत था। पेड़, पहाड़ आदि का परिवेश के सौन्दर्य बोध को स्मृतियों में रखकर सृजनात्मक कार्य किया। मेरा दूसरा विस्थापन पढ़ाई के लिए हुआ। इस दौरान भी मेरा जुड़ाव पुस्तकालयों की साहित्यिक पुस्तकों से रहा। विज्ञान का विद्यार्थी होने के बावजूद भी मेरा मन कहानी-कविता में लगता था। इलाहाबाद को अपनी लेखकीय भूमि बताते हुए कहा कि अजमेर, अल्मोड़ा, देहरादून और दिल्ली प्रवास के उपरांत जब मैं इलाहाबाद आया तो देखा कि यह भूमि साहित्यिक रूप से बहुत ही समृद्ध है।

उन्‍होंने कहा कि परिमल व प्रलेस वालों ने साहित्य, कला, संस्कृति के लिए बहुत ही अच्छा माहौल बनाया था। परिमल वालों को लगा कि हमारे बीच एक कथाकार आ गया है। भैरव जी, अश्‍क जी के यहां बराबर गोष्ठियां हुआ करती थीं। भगवती चरण उपाध्याय, शमशेर बहादुर सिंह, मार्कण्डेय, अमरकांत जी आदि ने इस परम्परा का निर्वहन किया। उन्होंने चिन्ता जताते कहा कि इलाहाबाद की धरती साहित्यिक रूप से संबल थी पर आज इसकी कमी देखने को मिल रही है। शेखर जोशी ने अपने कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए अपनी प्रमुख कृतियों का पाठ भी किया। कार्यक्रम का संयोजन, संचालन व धन्यवाद ज्ञापन क्षेत्रीय केंद्र के प्रभारी प्रो. संतोष भदौरिया द्वारा किया गया। अजित पुष्‍कल एवं एए फातमी ने शॉल, पुष्‍पगुच्छ प्रदान कर साहित्यकार शेखर जोशी का स्वागत किया।

गोष्ठी में प्रमुख रूप से अनुपम आनंद, अनिल रंजन भौमिक, जयकृष्‍ण राय तुषार, रविरंजन सिंह, अनिल सिद्धार्थ, हिमांशु रंजन, नन्दल हितैषी, असरार गांधी, धनंजय चोपड़ा, अविनाश मिश्र, हिमांशु रंजन, श्रीप्रकाश मिश्र, नीलम शंकर, मत्स्येन्द्र लाल शुक्ल, फजले हसनैन, एहतराम इस्लाम, रेनू सिंह, संजय पाण्डेय, अनिल भदौरिया, सुरेन्द्र राही, अमरेन्द्र सिंह, सत्येन्द्र सिंह, शिवम सिंह, राकेश सहित तमाम साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...