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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, April 21, 2012

[LARGE][LINK=/edhar-udhar/3948-abhishek-manu-singhvi-sex-cd-6.html]Abhishek Manu Singhvi Sex CD (6) : भस्मासुर बनती सोशल नेटवर्किंग साइट्स![/LINK] [/LARGE] [*][/*]

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Details Category: [LINK=/edhar-udhar.html]आवाजाही, कानाफूसी, सुख-दुख, इंटरव्यू...[/LINK] Published Date Written by आशीष महर्षि
आखिर एक बार फिर से सोशल नेटवर्किग पर फैले कुछेक साथियों ने कानून को दरकिनार वह करने का साहस दिखा दिया, जो साहस मुख्यधारा की मीडिया को करना चाहिए था। बात देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्य सभा सांसद अभिषेक मनु सिंघवी के उस कथित सेक्स टेप की, जिसमें उन्हें एक महिला के साथ अतरंग पलों में दिखाया गया है। इस सीडी के प्रसारण पर कोर्ट ने रोक लगाया तो मीडिया खामोश रहा लेकिन फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉगर और वैकल्पिक मीडिया के अलावा कुछेक न्यूज वेबसाइट्स पर मनु की पोल पट्टी खुलती गई। लेकिन इसी के साथ यह बहस भी पैदा हो गई है कि आखिर किसी की व्यक्तिगत जिंदगी को क्यों ऐसे सरेआम उछाला जाए? जबकि कानूनीतौर पर भी किसी बालिग का किसी बालिग के साथ संबंध गलत नहीं है?

इसका जवाब कुछ यह है कि जब कोई व्यक्ति जिम्मेदार पद पर बैठा हो, जब कोई व्यक्ति देश और समाज को दिशा देने का काम करता हो, यदि ऐसा ही व्यक्ति किसी महिला के साथ भोग-विलास में व्यस्त है, तो यह नैतिक रूप से सरासर गलत है। यह हुई पहली बात। इसी के साथ, सवाल सोशल नेटवर्किग साइट्स और डिजिटल मीडिया पर भी अंगुली उठना लाजिमी है कि आखिर कोर्ट की रोक के बावजूद सेक्स टेप क्यों अपलोड किया गया? क्या यह न्यायपालिका को आंख दिखाने का दुस्साहस है?

जवाब है, जी हां बिल्कुल। न्यायपालिका को जिस तरह से भष्ट्राचार का दीमक पूरी तरह खोखला कर चुका है, यह किसी से छुपा नहीं है। कोर्ट में माननीय जज के सामने अर्दली से लेकर चपरासी तक सरेआम रिश्वत लेते हैं। लेकिन जज साहब की आंखे बंद रहती है। आखिर इस टेप में यही तो दिखाया गया है कि जज बनने के लिए कुछ भी किया जा सकता है।

आखिर यह कैसे हो सकता है कि किसी चैनल के पास मनु की सिंघवी पहुंचती है और फिर बिना इसके प्रसारण के कोर्ट की रोक लग जाती है। चैनल चाहते तो इस सीडी को दिखा सकते थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यदि आप राजस्थान की पत्रकारिता से थोड़ा सा भी जुड़े हैं तो इसकी भी सच्चई सामने आ जाएगी। जयपुर में इनदिनों चर्चा है कि यह सीडी एक रीजनल चैनल के पास सबसे पहले पहुंची थी। लेकिन अपने चरित्र के अनुसार इस चैनल ने कातिलाना अंदाज में नेता जी की तिजोरी खाली करनी चाहिए। लेकिन नेता भी ठहरे बड़े वाले वकील तो पहुंच गए कोर्ट। वही हुआ, जो होना था। इसके बाद यह सीडी बाकी चैनलों तक भी पहुंची लेकिन कोर्ट के डंडे के बाद किसी की हिम्मत नहीं हुई कि वो मनु के खिलाफ कुछ भी बोल सकें। खैर बाद में समझौते हुए। सब खामोश हैं।

अब जरा बात सोशल नेटवर्किग साइट्स और डिजिटल मीडिया की भी कर ली जाए। मीडिया पर अंकुश लगाने की बात करने वालों को इस नए माध्यम के बारे में भी सोचना चाहिए। यहां कोई भी किसी को भी बदनाम कर सकता है। दो लोगों की व्यक्तिगत जी चैट की बातों को सरेआम किया जाता है। एक ब्लॉगर और लेखक के आपसी विवाद को चटखारे लेकर यहां चलाया जा सकता है। कोर्ट की रोक के बावजूद अश्लील वीडियो सरेआम दुनिया को दिखाया जा सकता है। एक धर्म और दूसरे धर्म के खिलाफ यहां जहर उगल सकते हैं। घृणा-मुहिम भी ऐसी कि देश में आग भड़क जाए। चाहे हिंदू हों या फिर मुस्लिम, दोनों ही ओर से घटियापन जारी है।

कई सालों से मीडिया में सेल्फ रेग्युलेशन को लेकर बहस चल रही है। अधिकांश संपादकों का मानना है कि मीडिया को खुद पर खुद ही नियंत्रण करना चाहिए। यह अधिकार सरकार को नहीं सौंपना चाहिए। इसके पीछे तर्क यह है कि यदि सरकार के पास मीडिया को नियंत्रण करने का चाबुक आ गया तो वह उन खबरों को रूकवाने लगेगी, जो उसके लिए अहितकारी है। लेकिन क्या अभी ऐसा नहीं होता है? यह संपादकों और मालिकों को अपने दिल पर हाथ रखकर पूछना चाहिए। खैर हम इस बहस से थोड़ा आगे बढ़ते हैं। क्या अब तक किसी मीडिया संस्थान खुद पर नियंत्रण रखा है? जवाब ना में ही मिलेगा? कुछेक मामले जरूर अपवाद हो सकते हैं।

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है खुद पर सेल्फ रेग्युलेशन सबसे कठिन काम है। वह भी ऐसे दौर में, जहां सबकुछ बाजार तय करता है। बाजार में मुनाफे की अंधी दौड़, टीआरपी और अधिक से अधिक विज्ञापन के लालच में मीडिया ने हर बार अपनी हदे लांघी है। तो क्यों नहीं, एक ऐसी संस्था खड़ी होनी चाहिए, मीडिया पर निगरानी और नियंत्रण का काम कर सके। इसमें अखबारों, इलेक्ट्रानिक मीडिया, सोशल नेटवर्किग साइट्स, डिजिटल मीडिया को शामिल किया जाए। सरकार को इस बात का ध्यान रखना होगा कि इस संस्था में किसी भी प्रकार कोई भी नियंत्रण नहीं होगा। इस संस्था में न कोई नेता हो और न कोई अफसर?

[B]लेखक आशीष महर्षि युवा व प्रतिभाशाली पत्रकार हैं. इन दिनों भास्कर समूह के साथ जुड़े हुए हैं.[/B]

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