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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, May 26, 2012

कालेधन को बाज़ार में घुमाने का खेल !

कालेधन को बाज़ार में घुमाने का खेल !

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

आम आदमी को बलि चढ़ाकर विदेशी निवेशकों की पूजा,राजस्व घाटा महज बहाना
है! कालाधन पर श्वेत पत्र के जरिये सरकार ने भी मान लिया है कि शेयर
बाजार में जो विदेशी निवेश है , वह दरअसल भारत में कमाये काले धन, जो
विदेशी बैंकों में जमा है, उसीको अर्थ व्यवस्था में रीसाइकिल करके सफेद
बनाने का खेल है। अर्थात विदेशी निवेश को प्रोत्साहन देने के नजरिये से
नीति निर्धारण दरअसल कालाधन के कारोबारियों के हाथ मजबूत करने की कवायद
ही है। देशवासियों पर पेट्रेल बम बरसाकर भारत का राष्ट्रपति बनने की जुगत
में बाजार का वरदहस्त पाने के मकसद से आम आदमी की बलि चढ़ाकर रोजाना
चंडीपाठ से दिनचर्या शुरू करने वाले वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने विदेशी
निवेश को प्रोत्साहन के बहाने देश के चौतरफा सत्यानाश के लिए कालाधन का
आवाहन ही किया है।यानी वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक की तमाम कलाबाजियों
के बावजूद अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं है। जिसके लिए सख्त वित्तीय नीति की
दरकार है। पर सरकार जब कालधऩ के कारोबार की हिफाजत करना ही सर्वोच्च
प्राथमिकता तय कर चुकी है, तब अपराधियों की हिमायत करने के लिए आम आदमी
की बलि चढ़ाने के अलावा विकल्प ही क्या दूसरा बचता है?पिछले साल जुलाई से
लेकर अब तक भारत की मुद्रा डॉलर के मुकाबले 27 प्रतिशत गिरी है।भारत
निर्यात के मुकाबले आयात अधिक करता है, इसकी वजह से व्यापार में काफी
असंतुलन होता है जिसे व्यापार घाटा भी कहते हैं।मार्च 2012 में समाप्त
होने वाले वित्त वर्ष में यह घाटा बढ़ कर 185 अरब डॉलर पहुंच गया जबकि
इसका अनुमान 160 अरब डॉलर का था।जानकारी मिली है कि भारतीय कंपनियों के
विदेशी निवेश के लिए आरबीआई ने नियम सख्त बनाने का प्रस्ताव रखा
है।आरबीआई चाहता है कि अप्रूवल रूट के तहत किए जा रहे प्रत्यक्ष विदेशी
निवेश के लिए मल्टीलेयर्ड बिजनेस स्ट्रक्चर बनाए जाएं। फिलहाल अप्रूवल
रूट के तहत एसपीवी के जरिए ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया जा सकता
है।टैक्स संधि का बेजा फायदा उठाए जाने पर रोक लगाने के लिए आरबीआई
नियमों में बदलाव चाहता है। आरबीआई के प्रस्तावों को फॉरेन एक्सचेंज
मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) गाइडलाइंस में शामिल किया जा सकता है। आप डीजल के
लिए भी ज्यादा पैसे देने के लिए तैयार हो जाइए क्योंकि अगले महीने ये भी
महंगा हो सकता है। हालांकि, पेट्रोल की तरह डीजल में अचानक 5-7 रुपये की
बढ़ोतरी नहीं की जाएगी लेकिन इसे किस्तों में महंगा किया जा सकता है।

मालूम हो कि राष्ट्रपति पद के लिए प्रणव की उम्मीदवारी खारिज करते हुए
ममता दीदी ने उन्हे बंगाल का भूमिपुत्र मानने से इंकार करते हुए उन्हें
विश्व पुत्र कहा है। क्या इसका मायने यह है कि वैस्विक खुले बाजार की
व्यवस्था के पुत्र हैं प्रमव दादा, इस पर शोध की जरुरत है। बहरहाल
पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमत वापस लेने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाने
के उद्देश्य से तृणमूल कांग्रेस शनिवार को कोलकाता में रैली निकालेगी,
जिसका नेतृत्व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व पार्टी की अध्यक्ष ममता
बनर्जी करेंगी। तृणमूल सूत्रों के अनुसार, ममता शनिवार को शाम करीब पांच
बजे जादवपुर से हाजरा क्रॉसिंग तक सात किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर अपना
विरोध जताएंगी। उनके साथ पार्टी के अन्य कार्यकर्ता व सदस्य भी
होंगे।केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार की एक प्रमुख
घटक तृणमूल ने गुरुवार को भी मूल्य वृद्धि के खिलाफ प्रदर्शन किया था,
जिसका नेतृत्व रेल मंत्री मुकुल रॉय ने किया था।

ममता या सत्ता गठबंधन के पक्ष विपक्ष के नेताओं की राजनीति से हालांकि आम
आदमी के धड़ में प्राण फूंके जाने के आसार नहीं है। बल्कि मरे हुओं पर
फिर प्रहार की पूरी तैयारी है। सूत्रों के मुताबिक सरकार जून में डीजल के
दाम बढ़ाने पर फैसला ले सकती है। दाम कब बढ़ाने हैं ये रुपया, बाजार और
राजनीतिक हालत को देखकर तय किया जाएगा। अगर रुपये का भाव 54 प्रति डॉलर
रहा तो मौजूदा वित्त वर्ष में डीजल पर 1,10,000 करोड़ रुपये के घाटे का
अनुमान है।और अगर यही रुपया थोड़ा मजबूत होकर 50 प्रति डॉलर तक आया तो ये
घाटा घटकर 85,000 करोड़ रुपये हो सकता है। इस साल पेट्रोलियम सब्सिडी में
जो पैसे दिए जाने हैं उनसे पहले ही बीते वित्त वर्ष के घाटे की भरपाई की
जा चुकी है।डॉलर के मुकाबले रुपया जिस तरह से कमजोर होता जा रहा है, उससे
भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रश्नचिह्न खड़ा होने लगा है। हो सकता है कि
हमारा आयात-निर्यात संतुलन चरमरा जाए। ऊपर से पेट्रोल के दाम में रिकॉर्ड
वृद्धि हुई है। जाहिर है, एक तरफ अर्थव्यवस्था को करारा झटका लग रहा है,
दूसरी तरफ आम लोगों पर महंगाई की एक और मार पड़ने वाली है।प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह ने विश्वास जताया कि देश की अर्थव्यवस्था मौजूदा कठिनाईयों
को पार कर ले जाएगी और भारतीय अर्थव्यवस्था के पिछड़ने की बात करने वाले
गलत साबित होंगे। सिंह ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के दूसरे
कार्यकाल के तीन वर्ष की प्रगति रिपोर्ट की भूमिका में कहा कि विश्व
अर्थव्यवस्था के मुश्किल रहे इस दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था ने पूरी
कुशलता से काम किया है।संप्रग के 22 मई 2009 को दोबारा सत्ता में आने के
बाद अब तक तीन वर्ष पूरे हो चुके हैं। यह किसी भी सत्ताधारी गठजोड़ के
लिए महत्त्वपूर्ण है लेकिन इस सरकार की नीतिगत निष्क्रियता के बीच यह
बेमानी हो चला है। यह निष्क्रियता संप्रग-2 के कार्यकाल के अधिकांश
हिस्से में हावी रही है और इसकी बदौलत देश की अर्थव्यवस्था संकटपूर्ण
स्थिति में पहुंच गई है।

लोकसभा के पटल पर रखे गए श्वेतपत्र में बताया गया है कि स्विस बैंकों में
जमा काले धन में बीते सालों में कमी आई है। 2006 के 23,373 करोड़ रुपए से
कम होकर 2010 में यह 9295 रह गया। इसमें सबसे कम धन भारतीयों का ही है,
ऐसा रिपोर्ट में बताया गया है। साथ ही काले धन से निबटने के लिए सरकार की
ओर से 5 सूत्रीय रणनीति बनाई गई है। इसके साथ ही श्वेतपत्र में आम माफी
की जरूरत से भी इंकार किया गया है।श्वेतपत्र में काले धन के बारे में कोई
ठोस आंकड़ा नहीं दिया गया है और न ही काले धन से संबंधित नामों का जिक्र
किया गया है। हालंकि सीबीडीटी की जांच पर श्वेतपत्र तैयार है। बताया गया
है कि श्वेतपत्र के बाद काले धन पर एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट अगस्त माह
तक आएगी।विदेशों में पड़े कालेधन की मात्रा का पता लगाने के लिए सरकार ने
एक अध्ययन शुरू किया है, जो सितम्बर तक पूरा हो जाने की सम्भावना है।यह
अध्ययन तीन अलग-अलग सरकारी संस्थाएं- द नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक
फाइनेंस एंड पॉलिसी, द नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंशियल मैनेजमेंट और
नेशल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च कर रही हैं।संसद के भीतर
विपक्ष ने काले धन को लेकर सरकार को कई बार घेरा है। योग गुरु बाबा
रामदेव ने भी काले धन को लेकर अभियान चलाया हुआ है।

विडंबना देखिये कि भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की पन्द्रह सबसे बड़ी
अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। १९९१ से भारत में बहुत तेज आर्थिक प्रगति
हुई है जब से उदारीकरण और आर्थिक सुधार की नीति लागू की गयी है और भारत
विश्व की एक आर्थिक महाशक्ति के रुप में उभरकर आया है। लेकिन भारत की
अर्थव्यवस्था पर विदेशी निवेशकों का भरोसा कम होता जा रहा है। सीएलएसए,
मॉर्गन स्टैनली के बाद बैंक ऑफ अमेरिका मैरिल लिंच और गोल्डमैन सैक्स ने
भी वित्त वर्ष 2013 का जीडीपी अनुमान घटाया है।बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल
लिंच ने वित्त वर्ष 2013 के लिए अनुमानित जीडीपी दर 6.8 फीसदी से घटाकर
6.5 फीसदी की है। बैंक का कहना है कि ग्रीस के यूरोपियन यूनियन से बाहर
होने पर भारत की जीडीपी घटकर 5.5 फीसदी हो सकती है।वहीं, घटते निवेश और
सरकारी नीतियों में अनिश्चितता की वजह से गोल्डमैन सैक्स ने देश का
जीडीपी का अनुमान 7.2 फीसदी से घटाकर 6.6 फीसदी किया है।मॉर्गन स्टैनली
जीडीपी का अनुमान 7 फीसदी से घटाकर 6.3 फीसदी और सीएलएसए 6.7 फीसदी से
घटाकर 6.3 फीसदी कर चुके हैं। जीडीपी अनुमान घटाने की वजह बढ़ती महंगाई
और घटता निवेश है।सीएलएसए के राजीव मलिक का कहना है कि वित्त वर्ष 2013
में भारत में अच्छी ग्रोथ की उम्मीद नहीं है। बेकाबू महंगाई आरबीआई के
लिए सिरदर्द बनी रहेगी। देश का विदेशी पूंजी भंडार 18 मई को समाप्त
सप्ताह में 1.8 अरब डॉलर घटकर 290 अरब डॉलर दर्ज किया गया। यह लगातार
तीसरे सप्ताह की गिरावट है। पिछले दो सप्ताहों में विदेशी पूंजी भंडार
में क्रमश: 1.37 अरब डॉलर और 2.18 अरब डॉलर की गिरावट दर्ज की गई
है।भारतीय रिजर्व बैंक के साप्ताहिक आंकड़ों के मुताबिक विदेशी पूंजी
भंडार का सबसे बड़ा घटक विदेशी मुद्रा भंडार इसी अवधि में 1.74 अरब डॉलर
घटकर 256.11 अरब डॉलर रह गया। रिजर्व बैंक के मुताबिक विदेशी मुद्रा
भंडार को डॉलर में अभिव्यक्त किया जाता है और गैर डॉलर मुद्राओं के
मुल्यों में उतार चढ़ाव का इस पर असर पड़ता है। हालांकि माना जाता है कि
रुपये का अवमूल्यन रोकने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने भंडार से डॉलर की
बिक्री की है। इस सप्ताह रुपये ने डॉलर के मुकाबले 56.40 का रिकार्ड
निचला स्तर छुआ। लगातार आठवें सप्ताह रुपये में गिरावट दर्ज की गई है।
विशेष निकासी अधिकार का मूल्य इस अवधि में 3.55 करोड़ डॉलर घटकर 4.39 अरब
डॉलर रहा, और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में देश का भंडार 2.36 करोड़
डॉलर घटकर 2.86 अरब डॉलर दर्ज किया गया। स्वर्ण भंडार का मूल्य हालांकि
26.61 अरब डॉलर पर स्थिर रहा।हालांकि भारत एक आकर्षक ठिकाना बन गया है जो
विदेशी निवेश और अप्रवासी भारतीयों का पैसा खींच सकता है, यह व्यापार
घाटे को पूरा करने के लिए काफी नहीं है।साल 2011-12 में भारत में स्टॉक
और बॉंड में आए 18 अरब डॉलर के अलावा 30 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया
था।

कारपोरेट इंडिया की दलील है कि जो कारपोरेट लाबिइंग बन कर पेट्रोल बम
बरसाती है। भारत के आर्थिक सुधारों के प्रति वचनबद्धता को लेकर
अनिश्चितिता, बीते समय से लगाए जाने वाले कर और सरकारी नीतियों में
गतिहीनता ने विदेशियों को यहां निवेश करने के फैसले स्थगित करने या
भारतीय स्टॉक बाजार से पैसे निकालने के लिए मजबूर कर दिया है।बाजार
विश्लेषकों का कहना है कि कमजोर होता रुपया उन विदेशी निवेशकों का रिटर्न
कम कर रहा है, जिन्होंने डॉलर में निवेश किया है। इंड्सइंड बैंक के
इकोनामिक एंड मार्केट रिसर्च के प्रमुख मॉसेस हार्डिंग का कहना है कि
विदेशों में डॉलर के मजबूत होने घरेलू स्तर पर बैंकों और आयातकों की ओर
से डॉलर की मांग की जा रही है। इसका असर रुपये के भाव पर पड़ रहा है।
यानी, डॉलर के मुकाबले उसमें अवमूल्यन हो रहा है।जून 2011 में सरकार ने
तेल विपणन कंपनियों को यह स्वतंत्रता प्रदान की थी कि वे अंतरराष्ट्रीय
बाजार में कच्चे तेल की कीमतों के मुताबिक पेट्रोल कीमतों का समायोजन कर
सकें। डीजल और घरेलू गैस की कीमतों में भी इजाफा किया गया था, हालांकि
उन्हें नियंत्रण मुक्त नहीं किया गया था। हालांकि इन उत्पादों को
नियंत्रणमुक्त किए जाने की कई सिफारिशें नहीं माने जाने के कारण सरकार को
लेकर निराशा तो थी लेकिन पेट्रोल की कीमतों को नियंत्रणमुक्त करने के
फैसले ने थोड़ी राहत भी दी थी।समूचे टालमटोल ने देश की अर्थव्यवस्था को
दोहरे घाटे की ओर धकेल दिया है। बढ़ता राजकोषीय घाटा और चालू खाता घाटा
वर्ष 1991 के आर्थिक संकट की याद दिला रहे हैं। संप्रग सरकार में ऊंचे
पदों पर आसीन नौकरशाह अब उम्मीद कर रहे हैं कि राजनीतिक नेतृत्व अब तो
जरूरी कदम उठाएगा। उन्हें यह आश्चर्य भी है कि आखिर क्यों सरकार वस्तु
एवं सेवा कर जैसे कर सुधार के मुद्दे पर इच्छुक राज्यों के
मुख्यमंत्रियों के साथ चर्चा कर आगे नहीं बढ़ रही है। अगर इन राज्यों में
नई व्यवस्था लागू हो जाती है तो बाकी राज्यों को उसका अनुसरण करना चाहिए।
राज्य मूल्य वर्धित कर के मामले में भी कमोबेश ऐसा ही हुआ था।रुपये के
मूल्य में गिरावट और मुद्रस्फीति के दबाव बीच वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी
ने बुधवार को कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था अंदर से मजबूत है ऐसी चुनौतियों
से निपटने में सक्षम है। वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार महंगाई पर काबू
तथा चालू खाते के घाटे (सीएडी) को कम करने के लिए पूरी कोशिश कर रही है।
उन्होंने कहा, ''मुझे भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियों से निपटने की
क्षमता पर पूरा भरोसा है। पूर्व में हम जिस तरह सफलतापूर्वक आर्थिक
चुनौतियों से बाहर निकले हैं, इस बार भी ऐसा करने में सफल रहेंगे।'

खनन मंत्रालय हिंदुस्तान जिंक और बाल्को के बाकी हिस्से को बेचने की
तैयारी में जुटने वाला है। मामले पर सचिवों की समिति की राय कैबिनेट सचिव
को भेजी जाएगी।

हिंदुस्तान जिंक और बाल्को का बाकी हिस्सा बेचने के लिए खनन मंत्रालय
ईजीओएम से सलाह लेगा। वित्त मंत्रालय जल्द ईजीओएम की बैठक की तारीख तय
करने वाला है।

सचिवों की समिति में हिंदुस्तान जिंक और बाल्को का बाकी हिस्सा बेचने पर
अंतिम फैसला नहीं लिया जा सका था। समिति का मानना था कि हिस्से के लिए
प्रस्तावित रकम कम थी।

वेदांता रिसोर्सेज ने हिंदुस्तान जिंक और बाल्को के बाकी हिस्से के लिए
17274 करोड़ रुपये चुकाने का प्रस्ताव रखा था।

आपराधिक नीति निर्धारण पर बटमारो की नजर है। रुपये की लड़ाई लड़ रहे रिजर्व
बैंक को एक और चुनौती से रूबरू होना पड़ा। इंटरनेट के डकैतों ने आरबीआई की
वेबसाइट को अपने कब्जे में ले लिया। हालांकि सरकारी वेबसाइट को हैक करने
का ये अकेला मामला नहीं है कुछ दिन पहले ही कई और वेबाइसाइट को शिकार
बनाया जा चुका है।

आरबीआई की वेबसाइट ऐसी पहली वेबसाइट नहीं थी, जिसे हैक किया गया हो। इससे
पहले भी कई अहम वेबसाइटों को हैकरों ने अपना निशाना बनाया है। पिछले
हफ्ते ही सुप्रीम कोर्ट और कांग्रेस पार्टी की वेबसाइट को हैक कर लिया
गया था जिसे हैकरों ने 3 घंटे बाद अपने आप ही छोड़ दिया। अब सवाल ये उठता
है कि सरकारी वेबसाइटों को कुछ देर तक के लिये हैक करने के पीछे हैकरों
का मकसद क्या होता है? इस बार हैकरों ने भारतीय इंटरनेट पर कुछ वीडियो
शेयरिंग साइटों पर लगे पाबंदी के चलते सरकारी साइटों को हैक किया।

क्या भारतीय सरकार की वेबसाइटों को हैक करना इतना आसान होता है। देखिये
कुछ तो हैकर काफी प्रशिक्षित हो गये है, दूसरा भारतीय सरकार अभी भी कुछ
मामलों में अपनी ऑनलाइन सिक्योरिटी को ज्यादा तवज्जो नहीं देती। जिसके
कारण हैकरों के लिए हैकिंग करना और भी आसान हो जाता है।

खैर इस बार हैकिंग तो हैक्टिविजिम की मिसाल थी जिसका मुख्य उद्देश्य
सरकार और मीडिया का ध्यान अपनी और खींचना था। पर सोचिये, अगर आरबीआई पर
हुआ ये हैकिंग हमला जरूरी जानकारियों या पैसे चुराना होता, तो कितना
नुकसान होता ये हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते। तो सरकार के लिए अब जागने का
और अपने सिस्टम को हैकिंग प्रूफ बनाने का वक्त आ गया है।

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