अब चाहे , लंगोटी पहन कर मोदी दंगल में मनमोहन के मुकाबले उतरें या बंगाल की शेरनी राजग में दुबारा दाखिल हो जाये, कोई फर्क नहीं पड़ने वाला!
भारत के आगामी लोकसभा चुनाव ही नहीं, भारतीय सत्तावर्ग अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के जनादेश का भी बंदोबस्त करने में जोरशोर से जुटा है।ओबामा के प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी इजराइल के समर्थक हैं और इजराइल से पूछकर विदेश नीति तय करने का एलान कर चुके हैं। अमेरिकी अर्थ व्यवस्था पर हावी यहूदी लाबी उनका समर्थक है।केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने सोमवार को दृढ़ता के साथ संकेत दिया कि घरेलू राजनीतिक विरोध के बाद भी केंद्र सरकार आर्थिक विकास में तेजी लाने और निवेश आकर्षित करने के लिए एक के बाद एक आर्थिक और वित्तीय सुधार जारी रखेगी। जाहिर है कि कारपोरेट लाबिंग नीति निर्धारण के लिए तेज होता जा रहा है।सरकार आर्थिक मोर्चे पर बड़े-बड़े फैसले तो ले रही है लेकिन कई जरूरी फैसले जिनका असर तुरंत दिख सकता है आपसी मतभेदों के वजह से अटके पड़े हैं। दूसरी ओर,अन्ना के अनशन के बाद दुनिया दिल्ली से 25 हजार से अधिक लोगों का अनशन देखने वाली है। जल, जंगल और जमीन के सवाल पर ग्वालियर से निकली जनसत्याग्रह पदयात्रा अनुशासित है, गांधीवादी होने का दम भी भर रही है पर 2007 की यात्रा के बाद केंद्र सरकार द्वारा दिखाए ठेंगे से आहत है। अन्ना और रामदेव के आंदोलनों का हश्र भी देख चुकी है, इसलिए इस बार इरादा दूसरा है। वह बिना लिखित समझौते के लौटने वाली नहीं। यह महापदयात्रा आगरा से 11 अक्तूबर को दिल्ली की ओर कूच करेगी।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
लीजिये, अगला जनादेश तैयार है।कॉरपोरेट जगत का मानना है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आर्थिक सुधार संबंधी अपने फैसलों पर डटे रहेंगे और दबाव में आकर सुधार के बढ़ते कदमों को वापस नहीं लेंगे। उद्योग संगठन एसोचैम के एक सर्वे में उद्योग जगत के दिग्गजों ने यह उम्मीद जाहिर की है।जाहिर है कि कारपोरेट लाबिंग नीति निर्धारण के लिए तेज होता जा रहा है।सरकार आर्थिक मोर्चे पर बड़े-बड़े फैसले तो ले रही है लेकिन कई जरूरी फैसले जिनका असर तुरंत दिख सकता है आपसी मतभेदों के वजह से अटके पड़े हैं। कारपोरेट इंडिया और विदेशी निवेशकों के हित में और भी सुधार होते रहेंगे, वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आज इसका खुलासा कर दिया। पिछले लोकसभा चुनाव से पहले चारों शंकराचार्य की अगुवाई में मनुस्मृति शासन लागू करने की मुहिम चलायी गयी थी। पुणे, मुंबई और हरिद्वार में हिंदुत्व की ताकतों और मीडिया संपादकों ने मिलकर आर्थिक सुधारों के समर्थन में सामाजिक न्याय और समता के विरुद्ध डा. मनमोहन को फिर जिताने के लिए समावेश और सभाओं के जरिये अभियान छेड़ा था। इस वक्त अन्ना ब्रिगेड के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ जिहाद छेड़ने वाले बाबा रामदेव की इसमें खास भूमिका थी।याद करें, १९८४ में आपरेशन ब्लू स्टार का समर्थन करते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने जो हिंदू हितों की बात करें, वोट उसी को, नारा दिया था और राजीव गांधी को ऐतिहासिक जनादेश मिला था। आर्थिक सुधारों को लेकर अपनी प्रतिबद्धता के बावजूद नेतृत्व में मतभेद और पांच करोड़ व्यापारी परिवारों के हितों की चिंता में बुरी तरह फंसी भाजपा से कारपोरेट इंडिया का मोहभंग हो गया है। राष्ट्रीय स्वयं संघ के सरसंचालक मोहन राव भागवत ने आज कहा कि दुनिया की अर्थव्यवस्था विनाश की ओर जा रही है, इसलिये उसका अनुसरण करने से भारत को कोई लाभ नहीं होगा । अब चाहे , लंगोटी पहन कर मोदी दंगल में मनमोहन के मुकाबले उतरें या बंगाल की शेरनी राजग में दुबारा दाखिल हो जाये, कोई फर्क नहीं पड़ने वाला!गौरतलब है कि गुजरात के मुख्यमंत्री एवं वरिष्ठ भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चुनौती दी कि वह आगामी गुजरात विधानसभा चुनाव में उनके साथ मुकाबला करें। भाजपा के कद्दावर नेता ने मनमोहन को चुनौती दी कि वह विकास परियोजनाओं को पूरा करने के मामले में उनके साथ मुकाबला करें। मोदी ने कहा कि मैं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चुनौती देता हूं कि वह आएं और मेरे साथ प्रतिस्पर्धा करें! केंद्र सरकार ने रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ के बीच फायदे के लिए लेनदेन मामले पर कार्रवाई से इनकार कर दिया। कांग्रेस ने भी वाड्रा का बचाव करते हुए इंडिया अगेंस्ट करप्शन के लोगों को चुनौती दी कि यदि उनके पास आरोपों को साबित करने के लिए दस्तावेज हैं तो कानूनी कार्रवाई करें। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस इस मामले की जांच कराने से भाग रही है।इसी बीच विश्व बैंक का कहना है कि आने वाले दिनों में पूर्व एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था में तेजी से गिरावट आएगी। इसकी वजह चीन की अर्थव्यवस्था में आई सबसे बड़ी गिरावट है।भारत भी मंदी की इस मार से बच नहीं पाएगा।विश्व बैंक का कहना है कि आने वाले दिनों में पूर्व एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था में तेजी से गिरावट आएगी. इसकी वजह चीन की अर्थव्यवस्था में आई सबसे बड़ी गिरावट है. भारत भी मंदी की इस मार से बच नहीं पाएगा।
भारत के आगामी लोकसभा चुनाव ही नहीं, भारतीय सत्तावर्ग अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के जनादेश का भी बंदोबस्त करने में जोरशोर से जुटा है।ओबामा के प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी इजराइल के समर्थक हैं और इजराइल से पूछकर विदेश नीति तय करने का एलान कर चुके हैं। अमेरिकी अर्थ व्यवस्था पर हावी यहूदी लाबी उनका समर्थक है।अमेरिका में राष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन उम्मीदवार मिट रोमनी का समर्थन कर रहे कुछ प्रमुख भारतीय अमेरिकियों ने उनके प्रचार अभियान के लिए डेढ़ से दो करोड़ डॉलर की रकम जुटाई है। रोमनी के प्रचार दल ने राजनीतिक चंदे को लेकर कोई आंकड़े पेश नहीं किया है और उसने बड़े दाताओं की सूची भी जारी नहीं है। इस सूची में भारतीय मूल के 200 से अधिक लोगों के नाम हैं। रोमनी के प्रचार अभियान दल की राष्ट्रीय वित्त समिति के प्रमुख स्पेंसर जाविक ने नवंबर, 2011 में इंडियन अमेरिकी कोएलिशन की स्थापना की थी, ताकि भारतीय मूल के अधिक लोगों को प्रचार अभियान से जोड़ा जा सके। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव नवंबर में होने वाले है। इसके लिए रिपब्लिकन उम्मीदवार मिट रोमनी और वर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच पहली बहस हो चुकी है। जिसके आधार पर मिट रोमनी को बढ़त मिलती दिख रही थी लेकिन श्रम साख्यिकी ब्यूरों की रिपोर्ट आने के बाद अब स्थितियां ओबामा के अनुकूल हो सकती हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर तक अमेरिका में बेरोजगारी दर 7.8 प्रतिशत ही रह गयी है। इस पर ओबामा ने भी कहा है कि हमने पिछले ढ़ाई सालों में 52 लाख से भी ज्यादा रोजगार के अवसर पैदा किए हैं। देश निरंतर प्रगति कर रहा है।रोमनी ने कहा, हमें अर्थव्यवस्था में वास्तविक सुधार की जरुरत है और मैं ऐसे ही वास्तविक सुधार की आपके समक्ष पेशकश कर रहा हूं। उन्होंने ओबामा के दूसरी बार राष्ट्रपति की कुर्सी मांगने पर सवाल खड़ा करते हुये कहा यदि ऐसा हुआ तो देश में कर बढ़ेंगे, ज्यादा उधार होगा और ज्यादा खर्च किया जायेगा। रोमनी ने दावा किया, मजबूत मध्यम वर्ग की मेरी योजना से सभी की आय में वृद्धि होगी और इससे मेरे पहले ही कार्यकाल में एक करोड 20 लाख रोजगार के नये अवसर सृजित होंगे।'' रोमनी ने कहा कि राष्ट्रपति पद के दावेदारों के बीच पहली बहस में ओबामा अपने रिकार्ड का बचाव नहीं कर पाये।वी कैन चेंज' के नारे के साथ एक बार फिर से राष्ट्रपति पद के चुनाव प्रचार में उतरे बराक ओबामा और उनको बराबर की टक्कर दे रहे रिपब्लिकन उम्मीदवार मिट रोमनी के बीच ट्विटर पर चुनावी जंग शुरू हो गई है और दोनों महारथी एक दूसरे पर जोरदार ट्वीट्स से हमला कर रहे हैं। डेनवर में हुए पहले प्रेज़िडेंशल डिबेट में मैदान मारने वाले मिट रोमनी माइक्रो ब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर पर भी ओबामा पर जोरदार हमला बोल रहे हैं। रोमनी ने अपने ताजा ट्वीट में दावा किया कि महिलाएं बराक ओबामा से ऊब चुकी हैं और वे चाहती हैं कि देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए नया नेतृत्व कमान संभाले।
केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने सोमवार को दृढ़ता के साथ संकेत दिया कि घरेलू राजनीतिक विरोध के बाद भी केंद्र सरकार आर्थिक विकास में तेजी लाने और निवेश आकर्षित करने के लिए एक के बाद एक आर्थिक और वित्तीय सुधार जारी रखेगी।चिदम्बरम ने सलाना आर्थिक सम्पादकों के सम्मेलन में कहा, "सुधार नहीं करने पर आर्थिक सुस्ती के तेजी से गहराने का जोखिम है, जिसे हम बर्दाश्त नहीं कर सकते खासकर इसलिए कि एक बड़ी आबादी के लिए रोजगार पैदा करने की जरूरत है, जिनमें अधिकतर युवा हैं।"आर्थिक सुधारों के बीच गैस, पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ने के बाद अब रेल का किराया भी बढ़ सकता है। रेलवे की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए अब सरकार विभिन्न उपाय करने की तैयारी में है। सरकार आर्थिक सुधार की अपनी योजना का दायरा रेलवे तक बढ़ा रही है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम का कहना है कि अगर लोग रेलवे में बेहतर सुविधाएं चाहते हैं तो उन्हें ज्यादा किराया देना ही होगा। दूसरी ओर,अन्ना के अनशन के बाद दुनिया दिल्ली से 25 हजार से अधिक लोगों का अनशन देखने वाली है। केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश के भूमि के राज्य का विषय होने पर जोर देने के कारण एकता परिषद के प्रतिनिधियों और सरकार के बीच हुई बैठक बेनतीजा रही। दोनों पक्षों ने हालांकि मंगलवार को फिर मिलने पर सहमति जताई क्योंकि रमेश ने उन्हें आश्वासन दिया कि सरकार उपनी मांगों के प्रति संवेदनशील है और भूमि सुधार की प्रक्रिया में अपनी सहायता देने को तैयार है। जल, जंगल और जमीन के सवाल पर ग्वालियर से निकली जनसत्याग्रह पदयात्रा अनुशासित है, गांधीवादी होने का दम भी भर रही है पर 2007 की यात्रा के बाद केंद्र सरकार द्वारा दिखाए ठेंगे से आहत है। अन्ना और रामदेव के आंदोलनों का हश्र भी देख चुकी है, इसलिए इस बार इरादा दूसरा है। वह बिना लिखित समझौते के लौटने वाली नहीं। यह महापदयात्रा आगरा से 11 अक्तूबर को दिल्ली की ओर कूच करेगी।सत्याग्रही असम की निभा, मध्यप्रदेश की बीना, छत्तीसगढ़ के प्रकाश के साथ पदयात्रा की संयोजक एकता परिषद के प्रमुख पीवी राजगोपाल कहते हैं इस बार पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 29 अक्तूबर को दिल्ली पहुंचकर एक दिन इंतजार करेंगे। दूसरे दिन यानी 30 अक्तूबर से सभी लोग मुंह में अन्न का दाना तक डालना बंद कर देंगे और सरकार ने मांगें नहीं मानीं तो दिल्ली की सड़कों पर ही दम तोड़ देंगे।हिंसा से बचना है तो भूमि समस्या हल करो, जमीन की लड़ाई में सारी दुनिया आई है के नारों के बीच जन सत्याग्रहियों का मार्च रविवार को धौलपुर-आगरा की सीमा तक पहुंच गया। हजारों की तादाद में भूमिहीन और अदिवासी बढ़े आ रहे हैं। इस उम्मीद के साथ कि सरकार सुनेगी और उन्हें जमीन मिलेगी। फिर सियासी आश्वासन के छल से आशंकित होने के बावजूद हौसला बुलंद है। सत्याग्रही कहते हैं कि 'जमीन लेकर ही आएंगे नई तो वही भूक्खों मर जान दे देवै।' यानि इशारा अन्ना की तरह अनशन का, जिसमें एक दो नहीं हजारों पेट अन्न त्याग देंगे।वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आज कहा कि सब्सिडी जितनी अधिक बढ़ेगी, महंगाई और वित्तीय घाटा भी उतना अधिक बढे़गा। रसोई गैस की कीमतों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है और इसकी कीमतें गैस कंपनियां ही तय करती हैं। हालांकि कुछ वस्तुओं पर सब्सिडी पूरी तरह समाप्त नहीं की जा सकती है। पी चिदंबरम ने पत्र सूचना कार्यालय द्वारा आयोजित वार्षिक आर्थिक संपादक सम्मेलन के उद्घाटन के दौरान ये बातें कहीं। उन्होंने कहा कि दिल्ली में अभी 800 रूपए की कीमत वाला रसोई गैस सिलेंडर लोगों को 400 रूपए में दिया जाता है और इसकी शेष राशि का भुगतान सरकार करती है। उन्होंने कहा कि इन कीमतों से सरकार का कोई लेना देना नहीं है। ये कीमतें कई कारको पर निर्भर करती हैं, जिसमें परिवहन, पैकिंग, सिलेंडर की कीमत, डीलर कमीशन और गैस के मूल्य शामिल हैं। मालूम हो कि सरकार ने एक साल में रियायती रसोई गैस सिलेंडरों की संख्या छह तक सीमित कर दी है। इससे अधिक सिलेंडर बाजार मूल्य पर दिये जाएंगे।
केंद्रीय वित्त मंत्री कहा कि बहुब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई की अनुमति के निर्णय पर चिदंबरम ने कहा, हमें भारत में विदेशी निवेश को लेकर घबराना नहीं चाहिये, एक संप्रभु देश होने के नाते हमारे पास यह निर्णय लेने का पूरा अधिकार है कि किस क्षेत्र में और कितने विदेशी निवेश की अनुमति दी जानी चाहिये। उन्होंने कहा कि विदेशी निवेश की अनुमति देने के फैसलों को अपरिभाषित सिद्धांतों के आधार पर नहीं परखा जाना चाहिये बल्कि उससे होने वाले फायदों का स्पष्ट आकलन किया जाना चाहिये। मुझे विश्वास है कि खुदरा, उड्डयन और एफएम रेडियो प्रसारण में विदेशी निवेश से अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचेगा।
वित्त मंत्री ने कोयला, खनन, उर्जा, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस और ढांचागत परियोजनाओं सहित विभिन्न क्षेत्रों में सुधारों को लेकर उठाये गये कदमों पर कहा कि इनको लेकर कोई विवाद नहीं होना चाहिये। यही क्षेत्र हैं जो आर्थिक वृद्धि को आगे बढ़ायेंगे। इन्हीं क्षेत्रों में रोजगार के लाखों अवसर पैदा होंगे।
चिदम्बरम ने कहा, "विश्व अर्थव्यवस्था चुनौती के दौर से गुजर रही है। बाजार की संवेदनशीलता हर जगह प्रभावित हो रही है। फिर भी देश की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है।"
चिदंबरम ने कहा कि वैश्विक समस्याओं, मुद्रास्फीति के उच्च स्तर और निवेश में कमी से वृद्धि दर में गिरावट आई है। इसके अलावा, भारतीय रिजर्व बैंक की कड़ी मौद्रिक नीति से वृद्धि और निवेश में कमी आई है।
मनमोहन सिंह दबाव में आकर सुधार के बढ़ते कदमों को वापस नहीं लेंगे। उद्योग संगठन एसोचैम के एक सर्वे में उद्योग जगत के दिग्गजों ने यह उम्मीद जाहिर की है। उनका मानना है कि आर्थिक सुधार संबंधी फैसलों के वजह से चालू वित्त वर्ष में विकास दर छह फीसदी से कम नहीं रहेगी। एसोचैम सीईओ सर्वे में अलग-अलग क्षेत्रों के 90 फीसदी मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) ने माना कि सरकार को अपना कार्यकाल पूरा करने में कोई राजनीतिक अड़चन का सामना नहीं करना पड़ेगा। दूसरी ओर, विधानसभा चुनावों से सुधार प्रक्रिया में कोई बदलाव आने की संभावना नहीं है।सर्वे के अनुसार 72 फीसदी सीईओ मानते हैं कि तमाम वैश्विक और घरेलू एजेंसियों के जरिए विकास दर का अनुमान घटाने के बावजूद विकास दर छह फीसदी के नीचे नहीं आएगी। सर्वे में कहा गया है कि अगस्त माह से उद्योग जगत के व्यवसायिक आत्मविश्वास में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इसे बेहतर होने में अभी और तीन माह का समय लग सकता है।
नेशनल इन्वेस्टमेंट बोर्ड और जमीन अधिग्रहण कानून जैसे इन फैसलों को जल्द हरी झंडी देना आने वाले दिनों में सरकार की बड़ी चुनौती होगी।चाहे पावर प्रोजेक्ट हों या फिर हाईवे प्रोजेक्ट। ऐसे करीब 100 बड़े-बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट सालों से अटके पड़े हैं। इन प्रोजेक्ट को ना तो किसी एफडीआई की जरूरत है और ना इनका लेना देना सब्सिडी जैसे संवेदनशील मुद्दों से है। इनको जरूरत है तो सिर्फ सरकार से हरी झंडी की। इसके लिए सरकार ने एक नया और ठोस तरीका नेशनल इंवेस्टमेंट बोर्ड का निकाला है। इसकी अगुवाई खुद प्रधानमंत्री करेंगे और उनका फैसला सर्वोपरि होगा। लेकिन अपने अधिकारों को लेकर मंत्रालय इतने सचेत हैं कि उन्हें विकास की परवाह नहीं। और शायद यही वजह है कि नेशनल इन्वेस्टमेंट बोर्ड के प्रस्ताव पर संबंधित मंत्रालयों की राय समय पर नहीं पहुंच पाई और उसे गुरुवार को हुई महा कैबिनेट में चर्चा तक नहीं हो सकी।
नेशनल इन्वेस्टमेंट बोर्ड तो महज एक मिसाल है। बल्कि ऐसे कई फैसले मंत्रालयों के बीच मतभेद की वजह से अटके पड़े हैं। जरूरत इस बात की है कि इन अटके फैसलों पर भी सरकार उसी कड़े तेवर के साथ फैसले ले जिस तेवर में वो विरोधियों को जवाब दे रही है।
जमीन अधिग्रहण बिल मतभेदों की एक और मिसाल है। वाणिज्य मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय, विमानन मंत्रालय और ट्रांसपोर्ट मंत्रालय में इस बिल पर सहमति नहीं बन पाई। कैबिनेट ने मंत्रियों के समूह को जिम्मा सौंपा है। लेकिन अभी तक कोई फैसला नहीं हो पाया है। इसी तरह सब्सिडी में कटौती के लिए वित्त मंत्रालय यूरिया के दाम बढ़ाना चाहती है लेकिन खाद मंत्रालय की आपत्ति की वजह से ये फैसला 6 महीने से अटका पड़ा है। इंडस्ट्री जगत की मानें तो सरकार को जल्द से जल्द इन प्रस्तावों को हरी झंडी देनी होगी। क्योंकि ये वो फैसले हैं जिनका फायदा तुरंत देखने को मिलेगा। इसके अलावा आने वाले दिनों में रिफॉर्म के तीसरे दौर के तौर पर देखे जाने वाले गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानी जीएसटी और नए बैंकों के लिए लाइसेंस के मुद्दे पर सरकार को तेजी लानी होगी।
केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने सोमवार को कहा कि अप्रैल-जून तिमाही में लगभग नौ सालों में न्यूनतम विकास दर 5.5 फीसदी रहने के बाद मौजूदा कारोबारी साल की दूसरी छमाही में देश के आर्थिक विकास और निवेश में तेजी आएगी। सलाना आर्थिक सम्पादक सम्मेलन में यहां चिदम्बरम ने कहा, पहली तिमाही में विकास दर 5.5 फीसदी थी। आने वाली तिमाहियों में इसके बेहतर रहने की उम्मीद है।संसद में सुधारों से जुड़े विधेयकों को पारित नहीं होने देने पर अड़े विपक्ष को सचेत करते हुये सरकार ने आज कहा कि राजनीतिक दल विरोध तो कर सकते हैं, लेकिन उन्हें निर्णय प्रक्रिया को बाधित नहीं करना चाहिये अन्यथा सुधारों के अभाव में आर्थिक वृद्धि की रफ्तार धीमी पड़ जाएगी।हर सरकार को नीतियां बनाने का अधिकार है। नीतियों का विरोध भी लाजिमी है लेकिन उनमें बाधा पहुंचाना ठीक नहीं। उन्होंने कहा, सत्ता में जो सरकार है उसे नीतियों बनाने देनी चाहिये, जहां कहीं आवश्यक है विधेयक पारित होने चाहिये और उन नीतियों का पालन करते हुये काम आगे बढ़ना चाहिये। चिदंबरम ने माना कि मौजूदा समय काफी चुनौतीपूर्ण है। ऐसे में सुधारों को यदि आगे नहीं बढ़ाया गया तो अर्थव्यवस्था में तेज और लगातार गिरावट का खतरा बन सकता है।अर्थव्यवस्था में सुस्ती को ऐसे समय वहन नहीं किया जा सकता है जब बड़ी जनसंख्या के लिये रोजगार उपलब्ध कराने और उनकी आय बढ़ाने की आवश्यकता है। देश की आर्थिक वृद्धि दर वर्ष 2011.12 में कम होकर 6.5 प्रतिशत रह गई और चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह 5.5 प्रतिशत रही है। वित्त मंत्री ने हालांकि, अर्थव्यवस्था में सुधार की उम्मीद करते हुये कहा है कि बचत और निवेश में वृद्धि होने पर आर्थिक वृद्धि 8 प्रतिशत तक बढ़ सकती है, शायद नौ प्रतिशत तक भी पहुंच सकती है।
चिदम्बरम ने कहा कि हाल में सरकार द्वारा लिए गए आर्थिक सुधार के फैसले के कारण तीसरी और चौथी तिमाहियों में विकास दर में तेजी आएगी। उन्होंने कहा कि घरेलू और विदेशी निवेश से आर्थिक तेजी को बल मिलेगा। उन्होंने कहा, एक बार घरेलू निवेश बढ़ना शुरू होने और विदेशी निवेश आना शुरू होने के बाद स्थिति बेहतर हो जाएगी। उन्होंने कहा, बेहतरी के लिए जो भी सम्भव होगा मैं करुं गा। उन्होंने हालांकि माना कि विरोधी वैश्विक स्थिति के कारण मौजूदा कारोबारी साल में 7.6 फीसदी विकास दर का बजटीय लक्ष्य हासिल हो पाने की सम्भावना नहीं है।उन्होंने हालांकि कहा कि कुछ सुस्ती के बाद भी भारत दुनिया की सबसे अधिक विकास दर वाले देशों में रहेगा। उन्होंने कहा, यदि विकास दर 7.6 फीसदी के लक्ष्य से कम रहा तो भी हमारी विकास दर विकसित अर्थव्यवस्थाओं की औसत दर से चार गुनी और वैश्विक अर्थव्यवस्था की औसत विकास दर की दोगुनी रहेगी। उन्होंने कहा, हमारा सबसे पहला काम है बचत बढ़ाना और फिर उस बचत को निवेश में बदलना।चिदम्बरम ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की तुलना में देश की स्थिति बहुत बेहतर है। वश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर वर्ष 2010 में 5.3 प्रतिशत से गिरकर अगले दो सालों में 3.9 प्रतिशत और 3.5 प्रतिशत हो गई। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में भी 3.2 प्रतिशत, 1.6 प्रतिशत तथा 1.4 प्रतिशत विकास दर दर्ज की गई।उन्होंने कहा, भारत इससे अप्रभावित नहीं रह सकता था। उन्होंने कहा, याद रखना चाहिए कि पिछले आठ सालों में सिर्फ दो सालों (2008-09 और 2011-12) में ही हमारी विकास दर सात फीसदी से कम रही। उन्होंने कहा कि महंगाई पर लगाम लगाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की कड़ी मौद्रिक नीतियों के कारण विकास प्रभावित हुआ, लेकिन चिंता व निराशा की कोई बात नहीं है।
एसोचैम के अध्यक्ष राजकुमार धूत का कहना है कि मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई, डीजल की कीमतों में इजाफा, पूंजी बाजार का उदारीकरण, विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के आने और रुपये की मजबूती से कॉरपोरेट जगत को सकारात्मक संकेत मिलने लगे हैं। उल्लेखनीय है कि सितंबर में एफआईआई ने 3.5 अरब डॉलर का निवेश देश में किया है, जबकि एक डॉलर की कीमत 57 रुपये से घटकर अब 52 रुपये से नीचे आ गई है।
हालांकि 71 फीसदी सीईओ मानते हैं कि बाजार में मांग बढ़ाने और निवेश की आगामी योजना को आकार देने में अभी कुछ और समय लग सकता है। सर्वे में बैंकिंग, एनबीएफसी, मैन्यूफैक्चरिंग, पर्यटन, सूचना व प्रौद्योगिकी क्षेत्र के सीईओ और कमोडिटी विशेषज्ञों को शामिल किया गया है। संगठन ने यह सर्वे 25 सितंबर से 5 अक्तूबर के बीच किया है।
वित्त मंत्री ने आय बढ़ाने और रोजगार के लिये सुधारों को आगे बढ़ाने पर जोर देते हुये कहा, विभिन्न कारणों से लंबे समय से निवेश बढ़ाने और उच्च आर्थिक वृद्धि हासिल करने के लिये कुछ बुनियादी सुधार लंबित पड़े हैं।'' इन सुधारों के अभाव में ऐसे कई कार्यक्रमों को लेकर चिंता बढ़ी है जिन्हें गरीबों को लाभ पहुंचाने के लिये बनाया गया है। ऐसे में सुधारों को लेकर आमसहमति बनाने की आवश्यकता है।
वित्त मंत्री ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियां हैं। राजकोषीय घाटा, राजस्व घाटा और चालू खाते के घाटे की स्थिति को देखकर अर्थव्यवस्था की स्थिति का आकलन किया जा सकता है। समाप्त वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 4.6 प्रतिशत के बजट अनुमान से बढ़कर 5.9 प्रतिशत तक पहुंच गया। इसी प्रकार राजस्व घाटे का बजट अनुमान 1.8 प्रतिशत था लेकिन वर्ष की समाप्ति पर यह 2.9 प्रतिशत तक पहुंच गया।उन्होंने कहा कि सुधारों को आगे बढ़ाये बिना इस स्थिति में सुधार नहीं लाया जा सकता और अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट का खतरा बढ़ेगा। इस जोखिम को भारत जैसी अर्थव्यवस्था में जहां बड़ी जनसंख्या के लिये आय और रोजगार बढ़ाने की आवश्यकता है, वहन नहीं किया जा सकता।उन्होंने कहा कि सत्ता में जो भी सरकार है उसे नीतियां बनाने और विधेयक पारित करने देना चाहिये। उन्होंने कहा, नीतियां सही हैं अथवा गलत या फिर नीतियों से देश के लोगों का फायदा पहुंचा है अथवा नहीं इसपर केवल देश की जनता ही फैसला ले सकती है और हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली में हर सरकार के लिये पांच साल के आखिर में फैसले का दिन होता है। वित्त मंत्री ने महंगाई पर अंकुश की जरूरत भी बताई। उन्होंने कहा कि रुपये की दर में लगातार वृद्धि से आयातित वस्तुओं की लागत कम होगी। डालर के मुकाबले रुपये में मजबूती से कच्चे तेल, पेट्रोलियम पदाथरें और उर्वरक की लागत घटेगी। उल्लेखनीय है कि हाल ही में डालर के मुकाबले रुपया 57.22 प्रति डालर तक गिरने के बाद अब मजबूत होकर हाल ही में 52.13 प्रति डालर तक पहुंच गया है।
कुछ समय पहले ही विश्व बैंक ने भारत की विकास दर के बारे में रिपोर्ट पेश की है। इसमें कहा गया है कि भारत की विकास दर 2012-13 में 6.9 प्रतिशत होगी। कमजोर आर्थिक विकास के लिए विश्व बैंक ने नीतिगत अनिश्चितताओं, आर्थिक घाटे और महंगाई को जिम्मेदार ठहराया। रिपोर्ट इसी साल जून महीने में पेश हुई है।
अब इसी तरह का अनुमान पूर्वी एशियाई और प्रशांत इलाके के देशों के बारे में जारी किया गया है। बैंक का कहना है कि आने वाले समय में चीन, थाइलैंड, इंडोनेशिया, कंबोडिया जैसे देशों की आर्थिक रफ्तार काफी धीमी हो जाएगी। विश्व बैंक के मुताबिक इसके लिए चीन की आर्थिक गिरावट मुख्य रूप से जिम्मेदार है। इस रिपोर्ट के मुताबिक चीन की विकास दर 7.2 प्रतिशत होगी, जो पिछले 13 साल में सबसे कम है। पिछले साल चीन की आर्थिक विकास की दर 9.3 प्रतिशत थी. 1999 के बाद ये विकास का सबसे निचला स्तर है।
पूर्वी एशिया और प्रशांत सागर इलाके में विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री बर्ट हॉफमन का कहना है, "हमारा कहना यही है कि चीन की अर्थवव्यवस्था में गिरावट आएगी. इसकी वजह दोहरी मार है। एक तो चीन के निर्यात में कमी आएगी दूसरा घरेलू मांग में कमी की वजह से इसमें गिरावट आएगी।"
रिपोर्ट ऐसे समय आई है, जब विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष इसी सप्ताह के आखिर में एक बैठक करने वाले हैं। दुनिया की सात सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश इस बैठक में विचार विमर्श करेंगे। बैंक के अनुमान के मुताबिक 2001 के बाद ये सबसे बड़ी गिरावट होगी। यहां तक कि 2009 में आई आर्थिक मंदी से भी ये खतरनाक होगी। विश्व बैंक का कहना है कि इसके लिए यूरो संकट और अमेरिकी अर्थव्यवस्था की समस्याएं भी जिम्मेदार हैं। यूरोपीय सेंट्रल बैंक यूरो संकट से क्षेत्र को उबारने की कोशिश कर रहा है। इसके लिए बांड खरीदने का कार्यक्रम शुरू किया गया है। विश्व बैंक का कहना है कि इसके बाद भी स्थिति खराब ही होगी। हालांकि एशिया प्रशांत इलाके की विश्व बैंक की उपाध्यक्ष पामेला कॉक्स का कहना है कि गिरावट के बाद भी यहां की अर्थव्यवस्था दुनिया के दूसरे हिस्से के मुकाबले मजबूत रहेगी।
सरकार ने 113.35 करोड़ रुपये के 14 एफडीआई प्रस्तावों को मंजूरी प्रदान की है। इनमें ब्रिटेन की फार्मा कंपनी के डरमेटालॉजी, एंटी बॉयोटिक्स और कैंसर की दवाओं के कारोबार में 68.22 करोड़ रुपये का एफडीआई प्रस्ताव भी शामिल है।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार गत 18 सितंबर को विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) की बैठक में की गई सिफारिशों के आधार पर सरकार ने विदेशी निवेश के इन प्रस्तावों को मंजूरी दी है। सरकार ने पांच सितारा होटल के निर्माण के लिए मुंबई के नीओ कैपरीकान प्लाजा प्राइवेट लिमिटेड में 11.87 करोड़ रुपये के विदेशी निवेश के प्रस्ताव को भी अनुमोदित किया है। सरकार ने विदेशी निवेश के सात प्रस्ताव को लंबित कर दिया, जबकि सात प्रस्ताव खारिज कर दिए गए।
विमानन क्षेत्र के ढांचागत विकास को रफ्तार देने की मुहिम के तहत अगले कुछ वर्षों में सरकार की योजना 10-15 नए ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट बनाने की है। वहीं, अगले दो वर्षों में सरकार 50 गैर मेट्रो एयरपोर्ट्स का आधुनिकीकरण कर देगी।
नागरिक विमानन मंत्री अजीत सिंह ने यहां एशिया-प्रशांत क्षेत्र के नागरिक विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) की 49वीं कांफ्रेंस के दौरान कहा कि करीब 50 गैर मेट्रो एयरपोर्ट का अगले दो सालों में आधुनिकीकरण कर दिया जाएगा। इसके साथ ही 10-15 ग्रीनफील्ड (नए) एयरपोर्ट बनाने की योजना है।
उन्होंने कहा कि देश में विमानन सेक्टर की सालाना ग्रोथ 9 फीसदी है। हमें उम्मीद है कि अगले कुछ सालों में एयर ट्रैफिक की वृद्धि दर दोहरे अंक में पहुंच जाएगी। देश के मध्यम वर्ग तेजी से बढ़ रहा है, कारोबार बढ़ रहा है और अब देश की जीडीपी के 6 फीसदी पर पहुंचने का भरोसा है। ऐसे में विमानन सेक्टर के भी लगातार आगे बढ़ने की उम्मीद है।
इससे पहले, कांफ्रेंस में उन्होंने कहा कि सरकार ने देश के एयरपोर्ट के आधुनिकीकरण के लिए व्यापक स्तर पर पहल की है। इसके साथ ही एयर ट्रैफिक को बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र, सार्वजनिक क्षेत्र, साझा उद्यम और लोक-निजी भागीदारी जैसी मिलीजुली कारोबारी रणनीति के जरिये ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट भी विकसित किए जा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि दिल्ली, मुंबई, बंगलूरू और हैदराबाद एयरपोर्ट निजी क्षेत्र के भागीदारी के साथ बनाए गए हैं।
कोलकाता और चेन्नई में बनाए गए गए नए एयरपोर्ट जल्द ही शुरू हो जाएंगे। सरकार ने अब ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट्स में 100 फीसदी तक एफडीआई को अनुमति दे दी है।
यूरोपीय संघ द्वारा थोपे गए विवादास्पद कार्बन टैक्स (जिसका भारत सहित कई देशों ने विरोध किया है) के मसले पर विमानन मंत्री ने कहा कि हम यूरोपीय संघ या दूसरे किसी भी समूह द्वारा थोपे गए एकतरफा पर्यावरण उपायों का प्रतिनिधिमंडल से विरोध करने का अनुरोध करेंगे।
मार्गारीता स्तान्काती ने वाल स्ट्रीट जर्नल में लिखा हैः
कुछ दलील देते हैं कि इसने अर्सा पहले रुखसत ले ली थी और भारत के विकास संबंधी आंकड़े निश्चित तौर पर काफी कुछ यही सुझाते हैं: 'इंडिया शाइनिंग' यानी 'भारत उदय' अब बीते ज़माने की बात हो गई है, एक वर्णन जो अब ज्यादातर लोगों के गले नहीं उतरता।
ये यूएस के प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा आयोजित एक नए जनमत सर्वेक्षण की आधार रेखा है। सोमवार को जारी किया गया ये अध्ययन, इस बात का खुलासा करता है कि ज्यादा से ज्यादा भारतीय अपने देश को लेकर निराशावादी रवैय्या अख्तियार कर रहे हैं-विशेष तौर पर तब जब बात देश के आर्थिक प्रदर्शन की हो।
इस वर्ष, जिन लोगों ने सर्वेक्षण में हिस्सा लिया, उनमें से महज़ 45 फीसदी इस बात को लेकर आशावान थे कि देश की अर्थव्यवस्था अगले एक साल में सुधरेगी, एक साल पहले 60 फीसदी लोग इसको लेकर आशावान थे, ज़ाहिर है ये एक बड़ी गिरावट है। इसकी दो अन्य उभरते बाज़ारों ब्राज़ील और चीन से तुलना कीजिए, जहां सर्वेक्षण में शामिल हुए 80 फीसदी से ज्यादा लोगों ने इस बात पर भरोसा जताया कि अगले वर्ष तक उनकी अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा।
आखिर ये निराशावाद आया कहां से?
"धीमी प्रगति करती अर्थव्यवस्था और राजनीतिक गतिरोध का सामना कर रहे भारतीय, अपने देश की व्यवस्था से असंतुष्ट हैं, वे देश के आर्थिक भविष्य को लेकर बेहद विषादग्रस्त और अपने बच्चों के लिए आर्थिक संभावनाओं के संदर्भ में भी चिंतित हैं," अध्ययन में कहा गया। "कल्याण और आशावाद की वो भावना लुप्त हो गई है, जो कुछ वर्षों पहले तब मौजूद हुआ करती थी, जब कई निजी अर्थशास्त्रियों ने भविष्यवाणी की थी कि भारत का आर्थिक विकास जल्द ही चीन को पीछे छोड़ देगा," अध्ययन में आगे कहा गया है।
बेशक अध्ययन में 'इंडिया शाइनिंग' (2004 के आम चुनावों से पहले तत्कालीन सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की मार्केटिंग स्लोगन हेतु अवधारणा) का उल्लेख नहीं है, लेकिन ये 2000 के दशक के मध्य में देश के तीव्र आर्थिक विकास हेतु अनौपचारिक आदर्श वाक्य बन गया था।
हाल ही के वर्षों में, विकास संबंधी आंकड़े एक अलग ही कहानी बयां कर रहे हैं।
भारत की अर्थव्यवस्था में अप्रैल-जून के दौरान 5.5 फीसदी का विस्तार हुआ। जबकि ये पिछले तीन महीनों की तुलना में 5.3 फीसदी सकल घरेलू उत्पाद विकास से ज्यादा थी, ये 2011 की शुरुआत वाले 9 फीसदी विस्तार की तुलना में बेहद कम है।
इस बात पर बगैर हैरान हुए, कुछ लोग अब आर्थिक स्थिति का 'अच्छा' कहकर उल्लेख करने लगे हैं: अध्ययन के मुताबिक ये आंकड़े 2011 के 56 फीसदी के मुकाबले गिरकर 49 फीसदी रह गए। सबसे बड़ी आर्थिक चिंताओं में शामिल हैं: बेरोज़गारी, मुद्रास्फिति और अमीर-गरीब के बीच विभाजन।
इस वर्ष मार्च और अप्रैल में 4,000 युवाओं पर किए सर्वेक्षण पर आधारित इस अध्ययन में ये भी देखा गया कि भारत विश्व को किस नज़रिए से देखता है।
जब बात पाकिस्तान की हुई, तो कुछ आश्चर्यजनक बातें सुनने को मिलीं: जिन लोगों ने सर्वेक्षण में हिस्सा लिया, उनमें महज़ 13 फीसदी ने कहा कि वो अपने पड़ोसी को प्रशंसात्मक ढंग से देखते हैं। ये बदल सकता है, क्योंकि दोनों ही पक्ष द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने के लिए प्रयास कर रहे हैं। कम से कम भारत में, लोक मत ऐसी आशा करता प्रतीत होता है: हालांकि वे पाकिस्तान को नापसंद करते हैं, फिर भी सर्वेक्षण में शामिल ज्यादातर (70 फीसदी) पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के पक्ष में थे।
यहां चीन को भी ज्यादा पसंद नहीं किया जाता। अध्ययन में पाया गया कि प्रतिक्रिया देने वालों में केवल 23 फीसदी ही एशिया के इस दूसरे बड़े देश के प्रति स्नेह की भावना रखते हैं।
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