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Friday, October 26, 2012

Fwd: [New post] प्राकृति आपदाएं : क्या हम अब भी कुछ सीखेंगे?



---------- Forwarded message ----------
From: Samyantar <donotreply@wordpress.com>
Date: 2012/10/26
Subject: [New post] प्राकृति आपदाएं : क्या हम अब भी कुछ सीखेंगे?
To: palashbiswaskl@gmail.com


समयांतर डैस्क posted: "एक संवाददाता जुलाई से सितंबर तक के तीन महीनों में बादल फटने और अचानक आई बाढ़ों से अकेले उत्तराखं�¤"

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प्राकृति आपदाएं : क्या हम अब भी कुछ सीखेंगे?

by समयांतर डैस्क

एक संवाददाता

Uttarkashi_bridge-washoutजुलाई से सितंबर तक के तीन महीनों में बादल फटने और अचानक आई बाढ़ों से अकेले उत्तराखंड में ही सौ से अधिक जानें जा चुकी हैं। मौसम में इतना परिवर्तन है कि उत्तर भारत के तीन पहाड़ी राज्यों जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड में अगस्त के पहले ही हफ्ते में इतनी वर्षा हुई जितनी कि लगभग छह महीनों में होती है। इसी दौरान बादल फटने से भगीरथी में आई अचानक बाढ़ से उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में भारी तबाही हुई। मकान, बाजार, सड़कें और पुल ही नहीं बहे बल्कि असि गंगा विद्युत उत्पादन परियोजना में काम करनेवाले 19 मजदूर भी बह गए। कुल मरनेवालों की संख्या 30 थी। इस महीने 14 तारीख को फिर से वही तांडव हुआ और मरनेवालों की संख्या 33 बतलाई गई।

असी गंगा परियोजना का पहला चरण तो पूरी तरह बह गया। प्रदेश की 19 विद्युत उत्पादन परियोजनाओं में बिजली उत्पादन बिल्कुल रुक गया और कुल मिला कर 15 परियोजनाओं को जबर्दस्त गाद भर जाने के कारण विद्युत उत्पादन को कम करना पड़ा। इसी तरह हिमाचल प्रदेश के नाथपा-झाकरी (1500 मेगावाट उत्पादन क्षमता) और कारचम-वांगटू (1000 मेगावाट) विद्युत परियोजनाओं को अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई गाद के कारण बंद करना पड़ा। स्थिति इस हद तक खराब है कि स्वयं टिहरी बांध गाद के कारण अपनी निर्धारित क्षमता से आधा ही विद्युत उत्पादन कर पा रहा है।

पर्यावरण और विज्ञान पत्रिका डाउन टु अर्थ में प्रकाशित एक लेख के अनुसार सामान्यत: किसी एक बांध की आयु दो सौ वर्ष मानी जाती है। पर भाखड़ा बांध जिसे अभी सिर्फ 50 वर्ष हुए हैं उसके जलाश की क्षमता गाद के कारण आधी हो चुकी है। इसी तरह से पश्चिम बंगाल में सिलिगुड़ी के निकट का हिमालयीय क्षेत्र का जलढाका बांध लगभग पूरा भर चुका है। हिमालय से आनेवाली नदियों में गाद की मात्रा बहुत होती है इसलिए इन नदियों पर पहाड़ी क्षेत्रों में बननेवाले बांधों में मिट्टी के भारी मात्रा में आने से इन बांधों की क्षमता के जल्दी ही घटने के अलावा इन के खतरनाक हो जाने का खतरा भी बना रहेगा।

इस संदर्भ में सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इधर आई आपदाएं मुख्यत: मानव जनित हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इनके स्वाभाविक बहाव के मार्ग में बड़े पैमान पर मानवीय हस्तक्षेप हो रहा है। पर सरकारें इस पर भी रुकने को तैयार नहीं हैं।

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