Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Friday, January 4, 2013

बंगाल में परिवर्तन के पीछे माओवादियों का हाथ?

बंगाल में परिवर्तन के पीछे माओवादियों का हाथ?

पलाश विश्वास

बंगाल में मां माटी मानुष सरकार बनने के बाद इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि बतौर जंगल महल में अमन चैन और माओवादी उपद्रव पर ​​अंकुश को रेखांकित किया जा रहा था। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बेखटके जंगल महल आ जा रही हैं। किशनजी मारे गये। अनेक माओवादी ​​नेता या तो जेल में हैं या फिर आत्मसमर्पण कर रहे हैं। बंगाल में लालगढ़ अभियान पर रोजाना की सुर्खियां गायब हो गयी हैं। लेकिन ​​तृणूल कांग्रेस के विद्रोही सांसद ने आज एक टीवी चैनल में यह खुलासा करके माकपाइयों के आरोप की ही पुष्टि कर दी कि ममता बनर्जी और माओवादियों के गठजोड़ से ही बंगाल में परिवर्तन संभव हुआ। टीवी चैनल में नंदीग्राम पर उपन्यास लिखनेवाले साहित्यकार माणिक ​​मंडल ने भी नंदीग्राम, लालगढ़ और सिंगुर में माओवादियों की भूमिका के बारे में ब्यौरे दिये हैं।सबसे गंभीर आरोप यह है कि नंदीग्राम आंदोलन की अगुवाई कर रही भूमि उच्छेद कमिटी माओवादियों ने ही बनायी। किशनजी और तेलिगु दीपक ने नंदीग्राम आंदोलन तब संगठित किया, जब उस इलाके में तृणमूल कांग्रेस का नामोनिशान नहीं था। माणिक मंडल ने तो यहां तक कहा कि नंदीग्राम  के सोनाचूड़ा में  माओवादियों ने हथियार बनाने का कारखाना लगाया था और माकपाइयों से हथियारबंद लड़ाई के लिए उन्होंने ही आंदोलनकारियों को ट्रेनिंग दी।मंडल के मुताबिक जंगल महल में कहां तक जाना है, यह तय करने के लिए तृणमूल नेता उनसे पूछ लिया करते थे और वे माओवादी ​​नेताओं से संपर्क करके बता देते थे। मंडल ने दावा किया कि दोनों पक्षों के बीच संपर्क सूत्र, पत्रों के आदान प्रदान का भी वे और माओवादी नेता कंचन  माध्यम बने हुए​ ​ थे। उन्होंने बताया कि जंगल महल में अपने समर्थकों को किशनजी उर्फ कोटेश्वर राव ने तृणमूल का झंडा उठाने की हिदायत दी थी और ममता दीदी को मुख्यमंत्री देखने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयत्न किये।​कबीर सुमन का तो यहां तक दावा है कि अगर किशनजी और माओवादियों का समर्थन न होता तो जंगल महल में दीदी के लिए एक भी सीट जीत पाना मुश्किल था।इन्ही किशनजी की रहस्यजनक परिस्थितियों में मुठभेड़ में मृत्यु के बाद दीदी ने इसे अपनी सरकार की बड़ी  उपलब्धि कहा था। इस ​​मुठभेड़ के दौरान किशनजी की सुरक्षा में लगी महिला माओवादी जख्मी होने के बावजूद सकुशल बच निकली और बाद में तृणमूल नेता का घर बसाने के बाद अचानक प्रकट होकर आत्मसमर्पण कर दिया।

कबीर सुमन तृणमूल के विद्रोही सांसद है और ऐसी बगावत वे पहली बार नहीं कर रहे, इसके बावजूद उनके आरोपों को तुरत खारिज करने का कारण नहीं है। सिंगूर-नंदीग्राम आंदोलन को अपने गीतों के जरिये जिन्होंने जुबान दी थी, उस कबीर सुमन और माणिक मंडल ने पहली बार खुलासा किया कि कम से कम नंदीग्राम आंदोलन में दीदी की कोई भूमिका नहीं थी।मंडल ने बताया कि नंदीग्राम में डेरा डालकर किशन जी उर्फ कोटेश्वर राव और तेलुगु दीपक आंदोलन की जमीन बना रहे थे। तब तृणमूल​​ का वहां अता पता नहीं था। सुमन ने साफ साफ कहा कि बंगाल में परिवर्तन अकेले ददी का चमत्कार नहीं है। यह तो सभी मानेंगे कि ३५ साल के वाममोरचा शासन का अंत सिंगुर,​​ नंदीग्राम और लालगढ़ के जनांदोलनों के कारण ही हुआ। पर इन जनविद्रोहों में दीदी की भूमिका को खारिज करते हुए दोनों ने उन्हें मौकापरस्त करार दिया। इस सिलसिले में किशनजी समेत माओवादी नेताओं की मुठभेड़ में गिरफ्तारी और छत्रधर महतो की गिरफ्तारी के उन्होंने उदाहरण दिये। यह भी सबको मालूम है कि जंगल महल में आंदोलन जिस पुलिसिया जुल्म विरोधी जनता की कमिटी की अगुवाई में हुआ, उसके एकछत्र नेता थे छत्रधर महतो। दीदी और छत्रधर अक्सर एक मंच पर देखे जाते रहे हैं। अब छत्रधर जेल में हैं। कबीर सुमन ने छत्रधर पर एक बहुचर्चित गीत छत्रधरेर गान भी लिखा हुआ है। दोनों ने माओवाद के नाम पर गिरफ्तार लोगों की रिहाई की मांग की है।​
​​
​हकीकत यह है कि ममता दीदी  आंदोलन के दौरान न नंदीग्राम और न सिंगुर पहुंच पायीं। एसयूसी के कार्यकर्ता, नक्सली कार्यकर्ता, दूसरे सामाजिक कार्यकर्ता लगातार आंदोलन की जमीन तैयार करने में माओवादियों के साथ थे। मेट्रो चैनल पर अधिग्रहण विरोधी दीर्घ अनशन से पहले ​​सिंगुर और नंदीग्राम में मेधा पाटेकर और अनुराधा तलवार की अगुवाई मे विभिन्न जनसंगठनों के नेताओं ने पुलिस की लाठियां खायीं और लगातार जेलयात्राएं करते रहे।तब मीडिया भी इस आंदोलन के पक्ष में न था। सिविल सोसाइटी तो नंदीग्राम गोलीकांड के बाद खुलकर सड़क पर आयी।दरअसल नंदीग्राम और सिगुर में विशेष आर्थिक क्षेत्र (एस ई जेड़ ) खास करके हुगली जिले के सिंगुर में टाटा मोटर्स की एक लाख रूपये की ड्रीम कार परियोजना हेतु राज्य सरकार ने ९९७ एकड़ जमीन टाटा समूह को सौपने का निर्णय लिया था इसके अलावा हल्दिया और नंदीग्राम में बनने वाले एस ई जेड़ को इण्डोनेशियाई कम्पनी को सौपने की तैयारी चल रही थी, वस्तुतः पश्चिम बंगाल सरकार बडे औद्योगिक घरानों को खुश करने के लिए किसानों से उनकी उपजाऊ जमीन छीन रही थी । जमीन बचाने के लिए आन्दोलन कर रहे नंदीग्राम के किसानों पर १४ मार्च २००७ को पुलिस ने गोलियां चलाई थी जिसमे कम से कम १४ आन्दोलनकारी मारे गए थे । पर जमीन पर आंदोलन में सिविल सोसाइटी की कोई भूमिका नहीं थी।​​इस गोली कांड के बाद ही सिविल सोसाइटी दीदी के समर्थन में कुलकर सड़क पर उतरी। दीदी के लिे विधानसभा चुनाव में जनाधार बनाने में खास भूमिका अदा करने वाला मीडिया भी माकप के पूंजीवादी विकास का समर्थन तब तक करता रहा, जब तक दीदी के हवा नहीं बनी।जाहिर है कि यह हवा बनाने में किशनजी की भूमिका सबसे खास थी।तब तत्कालीन राज्यपाल गोपाल कृषेण गांधी ने नंदीग्राम गोलीकांड पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए हड्डयों के सर्द हो जाने की बात कही थी।

मालूम हो कि नक्सलियों ने पश्चिम बंगाल में वामपंथी पार्टी को हराने के लिए तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी को अपना समर्थन दिया है,इसी दलील पर उन्होंने तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी से महंगाई और 'ऑपरेशन ग्रीन हंट' के खिलाफ मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने का अनुरोध किया था।भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) नेता बिक्रम ने एक बयान में बनर्जी और तृणमूल से अपने 'पुराने सम्बंधों' के बारे में बताया। उसने कहा कि लालगढ़ में विद्रोही आंदोलन के अलावा उसने सिंगुर और नंदीग्राम में किसानों के आंदोलन में तृणमूल के साथ मिलकर काम किया है।बंगाल, झारखण्ड, उड़ीसा की क्षेत्रीय समिति के सदस्य और पश्चिम बंगाल के पुरुलिया इकाई के प्रमुख बिक्रम ने कहा कि हमारे रिश्ते जन आंदोलन पर आधारित थे। नंदीग्राम और सिंगुर में आंदोलन, जन वितरण में भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन और लालगढ़ आंदोलन में हम साथ थे।उसने दावा किया कि नक्सलियों ने बनर्जी को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्‍सवादी) का 'पूंजीपति वर्ग के विकल्प' के रूप में पेश किया है। उसने कहा कि बनर्जी ने नक्सलियों के साथ कई बार 'सहयोग' किया है। पश्चिम बंगाल की नयी सरकार के पास सिंगुर और नंदीग्राम में राजनीतिक आंदोलन के दौरान हिरासत में किए गए लोगों की कोई सूची नहीं है।बंदीमुक्ति समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति :सेवानिवृत: मौली सेनगुप्ता ने एक बैठक के बाद कहा कि राज्य सरकार के पास उन लोगों की कोई सूची नहीं है, जिन्हें हिरासत में लिया गया और सिंगुर एवं नंदीग्राम में राजनीतिक आंदोलनों में भाग लेने को लेकर बाद में जेल में डाल दिया गया।बनर्जी की सरकार की ओर से गठित बंदी मुक्ति रिव्यू कोर कमेटी ने नंदीग्राम कांड के 202 मामलों में से 35 मामले वापस लेने की अनुशंसा की है। जबकि सिंगुर में जमीन अधिग्रहण के दौरान हिंसक घटनाओं से संबंधित कुल 132 मामलों में 112 को वापस लेने की अनुशंसा की गई है। ये सभी मामले गैर सत्र अदालत अर्थात् मजिस्ट्रेट के अधीन विचाराधीन हैं।

सिर्फ आंदोलन में ही नहीं, बंगाल में माकपाइयों के तख्ता पलट में भी माकपाइयों की खास भूमिका का दोनों ने खुलासा किया है। सुमन ने बताया कि लोकसभा चुनाव के दौरान उनके संसदीय क्षेत्र यादवपुर में तृणमूल के समर्थन में नक्सली नेता संतोष राणा की अगुवाई में नक्सली खास सक्रिय थे।

माओवादियों के मुद्दे को लेकर तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी के कोप का शिकार बने विवादास्पद सांसद कबीर सुमन ने दावा किया है कि वह शुरू से ही उनके झुकाव के बारे में जानकारी रखती थी।सांसद ने अपनी वेबसाइट पर पोस्ट में कहा है कि मुझे जानकारी मिली है कि उन्होंने (ममता) कहा है कि उन्हें यह जानकारी नहीं थी कि मैं माओवादियों का समर्थक हूं।
उन्होंने यह भी कहा कि वह मुझे एक सेकेंड में बर्खास्‍त कर सकती हैं लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि तब मुझे मौका मिल जाएगा।


जादवपुर लोकसभा सीट से निर्वाचित सुमन ने कहा कि जैसे आप यह अनुमान नहीं लगा सकते कि मैं उग्रवादी हूं, मैं भी कई बातें नहीं समझ सकता। अगर मेरे पास दृष्टि और मानसिक ताकत होती तो मैं इस बात का अंदाजा लगा सकता था. सांसद और लोकप्रिय गायक ने अपनी वेबसाइट पर दिवंगत माओवादी नेता किशनजी का नाम लिये बिना खुद का लिखा गाना 'हीरो' गाया है। हाल में आत्मसमर्पण करने वाले एक और माओवादी गुरिल्ला लड़ाके जागोरी बास्की की प्रशंसा में उन्होंने एक और गाने को अपलोड किया है।

इस बीच कांग्रेस नेता व केंद्रीय मंत्री दीपा दासुंशी ने ममता बनर्जी को चुनौती दी है कि वे जनता को बतायें कि सत्ता में आने के लिए उन्होंने माओवादियों की मदद ली है या नहीं! दीपा ने कहा, 'हम एक और सिंगुर एवं नंदीग्राम नहीं चाहते। सिंगूर और नंदीग्राम के मुद्दों की वजह से सत्ता में बदलाव हुआ लेकिन तृणमूल कांग्रेस सरकार भू-नीति बनाने में नाकाम रही।' बंगाल के पूर्व उद्योग मंत्री निरुपम सेन का यह कहना है  कि तृणमूल सांसद कबीर सुमन आज उन्हीं बातों को दोहरा रहे हैं, जो पूर्व में माकपा द्वारा कही गई थीं। इसमें कोई नयी बात नहीं है। तृणमूल कांग्रेस की माओवादियों से सांठगांठ थी और आज भी है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। इसी बात को कबीर सुमन उजागर कर रहे हैं। वे शुक्रवार को सिलीगुड़ी अनिल विश्वास भवन में जिला के राजनीतिक पाठशाला का शुभारंभ करने के बाद पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि नंदीग्राम, जंगलमहल, सिंगूर या दक्षिण बंगाल में जो भी हिंसा हुई उसके लिए सिर्फ तृणमूल कांग्रेस जिम्मेदार है।
​​

​​

​​

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...