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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, July 13, 2013

जख्‍म देने वाली पुलिस से ही मलहम की उम्‍मीद क्‍यों?

जख्‍म देने वाली पुलिस से ही मलहम की उम्‍मीद क्‍यों?

12 JULY 2013 NO COMMENT

बलात्कारी अफसरों को बचाने की कोशिश में जुटी पुलिस

♦ ग्लैडसन डुंगडुंग

Mangri Saband18जून, 2013 को झारखंड के खूंटी जिले के अड़की थाना के कटोई गांव की रहने वाली 14 वर्षीय मंगरी मुंडा (काल्पनिक नाम) और उसके दोस्त 17 वर्षीय सबंद मुंडा का माओवादियों ने अपहरण कर लिया था। मंगरी मुंडा पुलिस मुखबिर (एसपीओ) थी, जिसके सूचना पर पुलिस ने माओवादी सुकराम मुंडा को मार गिराया एवं कई लोगों को हिरासत में लिया था। और जब माओवादियों को इसकी भनक लगी कि वह मंगरी मुंडा ही है, जो उनको क्षति पहुंचा रही है, तो उन्होंने उसका अपहरण किया और उसकी हत्या करने में जुट गये। उन्होंने इन दोनों को 19 दिनों तक जंगल में रखा लेकिन इनकी हत्या करने के सवाल पर वे दो गुटों में बंट गये क्योंकि मंगरी मुंडा ने उन्हें अपनी पूरी कहानी बतायी कि कैसे एक एसपीओ ने उसे मुखबिरी के जाल में फंसाया और पुलिस अफसरों ने उसके साथ बार-बार बलात्कार किया। अंततः पांच जुलाई को माओवादियों ने उन्हें मानवाधिकार कार्यकर्ता शशिभूषण पाठक और सामाजिक कार्यकर्ता अलेस्टर बोदरा को सौंप दिया और हिदायत दी की वे मंगरी को न्याय दिलवाएं।

नाबालिग मंगरी मुंडा प्रोजेक्ट बालिका उच्च विद्यालय अड़की में आठवीं कक्षा की छात्रा है, लेकिन उसका घर स्‍कूल से लगभग बीस किलोमीटर की दूरी पर जंगल के बीचोबीच है, इसलिए वहां से स्‍कूल आना-जाना उसके लिए संभव नहीं था, सो उसने अड़की में ही डेरा ले लिया। उसके पिता धिरजू मुंडा खेतिहर हैं और साथ में बाजार-हाट में पान की बिक्री कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। हुंड़वा निवासी 35 वर्षीय देवेंद्र मुंडा अड़की थाना क्षेत्र में पुलिस मुखबिरी का काम करता है और वह एसपीओ का नेता भी है, जिसे पुलिस ने बोलेरो और हथियार दे रखा है। इसी के बल पर वह क्षेत्र में राज करता है और किसी को भी डरा-धमका कर पुलिस मुखबिर बनाता है। यह अलग बात है कि जब भी इस तरह के मसले सामने आते हैं, पुलिस हकीकत को नकारती है।

मंगरी जिस घर में रहती थी, उस घर का मालिक हड़िया बेचता है और देवेंद्र मुंडा हड़िया पीने के लिए वहां आता रहा है। जब उसे यह मालूम हुआ कि मंगरी नक्सल प्रभावित गांव से आती है, तो उसने उसे अपने जाल में फंसाना शुरू किया। उसने मंगरी को माओवादियों के बारे में सूचना देने के लिए हर महीने चार हजार रुपये देने की पेशकश की और यह भी कहा कि पुलिस मुखबिरी का काम करते हुए भी वह अपनी पढ़ाई जारी रख सकती है। इस तरह से मंगरी उसके चंगुल में फंस कर दिसंबर 2011 में पुलिस मुखबिर बन गयी। अपने कब्जे में करने के बाद देवेंद्र ने उसका यौन शोषण भी करना शुरू किया और उसने दिसंबर में ही उसके साथ दो बार बलात्कार किया।

लेकिन मामला यहीं पर खत्म नहीं हुआ बल्कि अभी इस यातना की शुरुआत ही थी। देवेंद्र 2012 के जनवरी महीने में मंगरी को यह कह कर सरायकेला के दलभंगा थाना साथ चलने को कहा कि थानेदार उसे बुला रहे हैं। जब मंगरी ने वहां जाने से इनकार कर दिया तो देवेंद्र ने उसे पिस्तौल का भय दिखाकर उसे जान से मारने की धमकी दी। अंतः वे दोनों दलभंगा थाना बोलेरो से रात में पहुंचे, जहां उन दोनों को एक कमरे में बैठाया गया। उसके बाद एक पुलिसकर्मी मंगरी को थानेदार से बात करने के बहाने एक अंधेरे कमरा में ले गया, जहां थानेदार ने उसके साथ बलात्कार किया। इसी तरह फरवरी में देवेंद्र उसे रनियां थाना ले गया, जहां उसके साथ वहां के थानेदार ने भी बलात्कार किया।

इसी तरह देवेंद्र मार्च महीने में मंगरी को काम के बदले पैसा दिलाने के बहाने तमाड़ थाना ले गया, जहां उसके साथ थानेदार ने बलात्कार किया और अप्रैल महीने में देवेंद्र ने उसे अपन मोटरसाइकिल में बैठाकर हुंट सीआरपीएफ कैंप ले गया, जहां वहां के प्रभारी ने उसके साथ बलात्कार किया। इसी बीच मई महीने में देवेंद्र ने भी उसके साथ तीन बार बलात्कार किया और एक दिन रात में दस बजे पैदल अड़की थाना यह कहकर ले गया कि वहां उसे काम के एवज में पैसा दिया जाएगा और उसके साथ किसी तरह का बुरा बर्ताव नहीं किया जाएगा। लेकिन वहां पहुंचने के बाद थानेदार ने मंगरी के साथ बलात्कार किया और उसके बाद देवेंद्र के द्वारा उसे डेरा पहुंचा दिया गया।

देवेंद्र ने पुलिस के लिए सात महीने काम करने के एवज में सिर्फ 4000 रुपये पकड़वा कर मंगरी को मनाने की कोशिश की लेकिन अपने साथ लगातार हो रहे बलात्कार से तंग आकर मंगरी ने पुलिस की मुखबिरी करना ही छोड़ दिया। मंगरी के साथ हुए दर्दनाक और शर्मनाक हादसे से यह हकीकत जगजाहिर है कि झारखंड पुलिस स्‍कूल जाने वाले नाबालिग लड़के एवं लड़कियों को पैसे का लालच देकर एसपीओ बनाती है और उनका भरपूर शोषण किया जाता है तथा जब इस तरह के मामलों का पर्दाफाश होता है या पुलिस मुखबिर नक्सलियों द्वारा मारे जाते हैं तो पुलिस सीधे इनकार कर देती है कि अमुक युवक/युवती एसपीओ थे। इस मामले में भी यही हो रहा है। पुलिस साफ कह रही है कि मंगरी मुखबिर नहीं थी और पुलिस अफसरों पर लगाये गये आरोप भी संदिग्ध हैं। मंगरी से सवाल पूछा जा रहा है कि वह पुलिस के पास रिपोर्ट लिखवाने क्यों नहीं गयी? उसने अपने परिवार को घटना के बारे में क्यों नहीं बताया? उसे घटना की तारीखें याद क्यों नहीं हैं?

मंगरी के साथ बलात्कार करने वाले बड़े पुलिस अफसर थे और एसपीओ देवेंद्र उसे मुंह खोलने पर गोली मारने की धमकी देता था, इसलिए सब कुछ भूलकर वह अपनी पढ़ाई में जुटी हुई थी। वह किससे न्याय की उम्मीद कर सकती थी? लेकिन इसी बीच वह घर गयी हुई थी और उसकी भनक मोओवादियों को लग गयी। इस तरह से मंगरी पर फिर से आफत आ गयी। माओवादी उसे उठा कर ले गये और उसकी जान लेने पर तुले हुए थे लेकिन इसी शर्त के साथ उसे छोड़ा कि वह पुलिस अफसरों द्वारा किये गये बलात्कार की घटना को आम-जनता के सामने लाएगी और न्याय की गुहार लगाएगी। अक्सर ऐसा देखा गया है कि माओवादी पुलिस मुखबिरों की हत्या करते हैं लेकिन इस केस में ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि मंगरी नाबालिग लड़की है, वह एसपीओ थी और उसके साथ एसपीओ, चार थानों के थानेदार तथा सीआरपीएफ के अफसर ने बलात्कार किया है, इसलिए उन्होंने इस मामले को बाहर लाना ज्यादा उचित समझा, जिससे पुलिस की फजीहत हो सके। मंगरी की हत्या से क्षेत्र में माओवादियों की खराब छवि बनती, ऐसी स्थिति में मंगरी को रिहा करना उनके लिए ज्यादा फायदेमंद था।

मंगरी और संबद को माओवादियों से छुड़ाने के बाद शशिभूषण पाठक ने पुलिस महानिदेशक राजीव कुमार को फोन किया, जिस पर वे पीड़ित से मिलने के लिए राजी हो गये लेकिन उन्हें जब पता चला कि यह खबर मीडिया में लीक हो चुकी है तब उन्होंने पीड़िता से मिलने से साफ मना कर दिया। इसके बाद रांची के आईजी एमएस भटिया ने भी मामले को रांची के एसएसपी साकेत कुमार के पास रेफर कर अपना पल्ला झाड़ लिया और जब साकेत कुमार की बारी आयी, तो उन्होंने शशिभूषण के नीयत पर शक करते हुए रात में मिलने से मना कर दिया। अंतः राज्यपाल के सलाहकार आनंद शंकर के हस्तक्षेप के बाद खूंटी के पुलिस अधीक्षक के लिए इस मामले को सुनना मजबूरी हो गयी, इसलिए उन्होंने पीड़िता को बुलवाया।

इसी बीच पीड़िता और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने महिला आयोग के दफ्तर का भी चक्कर लगाया। महिला आयोग की अध्यक्ष तो नहीं मिली लेकिन आयोग के सदस्य से उनकी मुलाकत हुई, जहां न्याय की बात तो दूर पीड़िता को फटकार के अलावा कुछ हासिल नहीं हुआ। आयोग की एक जानी मानी सदस्य ने पीड़िता के चरित्र पर ही सवाल खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि जब आपके साथ पुलिस बार-बार बलात्कार कर रही थी, तो आपने मुकदमा दर्ज क्यों नहीं किया और अभी पुलिस पर आरोप लगा रही हैं? अभी आप पर ही केस हो जाएगा। ऐसे आयोग से क्या उम्मीद की जा सकती है? क्या महिला आयोग के सदस्य उसी बलात्कारी पुलिस से न्याय की उम्मीद करते हैं?

खूंटी के पुलिस अधीक्षक एम तमिलवाणन ने पीड़िता को सुनने के बाद कहा कि पुलिस ने कभी भी मंगरी का उपयोग एसपीओ के रूप में नहीं किया है और वह जिस तरह से पुलिस पर आरोप लगा रही है, उससे फिलहाल तस्वीर साफ नहीं है और मेडिकल जांच के बाद ही प्राथमिकी दर्ज की जाएगी। लेकिन इसी बीच पुलिस ने चालाकी दिखाते हुए पीड़िता से यह लिखवा लिया कि वह अपने दोस्त के साथ एक ही कमरे में रहती है और उसके साथ उसका शारीरिक संबंध पहले भी था और अब भी हैं तथा उन्होंने एक बार गर्भ ठहरने पर गर्भापात भी करवाया। और इसी के आधार पर दोनों को हिरासत में ले लिया गया। पुलिस ने यह इसलिए किया ताकि बलात्कार के आरोप से अधिकारियों को बचाया जा सकता है।

इस मामले में एक एसपीओ, चार थानेदार और एक सीआरपीएफ अफसर के ऊपर बलात्कार का आरोप है, इसलिए पुलिस के बड़े अधिकारी इसे माओवादियों द्वारा प्लांटेड स्टोरी बनाने के फिराक में भी जुटे हुए हैं, इसलिए उनसे मंगरी के लिए न्याय की उम्मीद करना बेईमानी होगी। मुझे तो इस बात का डर है कि अगर वे अपने मंसूबे में सफल हो गये तो इस मुद्दे को उठाने वाले हमारे साथियों को ही माओवादियों का हमसफर बताकर उन्हें फर्जी मुकदमों में फंसा सकते हैं क्योंकि यह मामला सही साबित हो गया तो झारखंड पुलिस की फजीहत होनी तय है।

(ग्‍लैडसन डुंगडुंग। मानवाधिकार कार्यकर्ता, लेखक। उलगुलान का सौदा नाम की किताब से चर्चा में आये। आईआईएचआर, नयी दिल्‍ली से ह्यूमन राइट्स में पोस्‍ट ग्रैजुएट किया। नेशनल सेंटर फॉर एडवोकेसी स्‍टडीज, पुणे से इंटर्नशिप की। फिलहाल वो झारखंड इंडिजिनस पीपुल्‍स फोरम के संयोजक हैं। उनसे gladsonhractivist@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

http://mohallalive.com/2013/07/12/top-cops-sheilding-the-rapists/

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