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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Monday, July 15, 2013

सम्पादकीय : सरकार भंग की माँग करना उचित…

सम्पादकीय : सरकार भंग की माँग करना उचित…

uttarakhand-flood-2013-1उत्तराखंड लोक वाहिनी द्वारा राष्ट्रपति को ज्ञापन देकर संविधान के अनुच्छेद 355 व 356 के अन्तर्गत उत्तराखंड की सरकार को भंग करने की माँग करना सर्वथा उचित है। राज्य गठन के बाद उत्पन्न हुए सबसे बड़े संकट में जिस तरह सरकार का कामकाज चला, उसकी जितनी भी निन्दा की जाये कम है। दो दिन तक सरकार सदमे में रही और फिर उसका ध्यान गया भी तो सिर्फ चारधाम पर। निश्चित रूप से 16-17 जून को चारधाम इलाके में प्रकृति ने जैसा कत्लेआम मचाया, उसके उदाहरण इतिहास में कम मिलेंगे। प्रत्यक्षदर्शियों के विवरण रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं। यह ठीक-ठीक कभी भी पता नहीं चल पायेगा कि वहाँ पाँच हजार लोग काल कवलित हुए, दस हजार या उससे भी अधिक। देश में सबसे पहले आपदा प्रबंधन विभाग गठित करने वाला राज्य होने की डींग हाँकने वाले प्रदेश की शर्मनाक सच्चाई यह है कि यदि सेना और अर्द्धसैनिक बल न होते तो राहत और बचाव का कार्य दस प्रतिशत भी नहीं हो पाता। लोग कहने लगे हैं कि यदि सब कुछ सेना को ही करना है तो इस निकम्मी सरकार के बने रहने की जरूरत क्या है ? क्यों न छः महीने के लिये सेना के हवाले ही कर दिया जाये पूरा प्रदेश! दरअसल सरकार का ध्यान पूरे प्रदेश के चप्पे-चप्पे पर फैली आपदा के निवारण पर कम, उस विशाल राहत राशि पर ज्यादा लगी है, जो केन्द्र से ही नहीं विभिन्न प्रदेशों के साथ विदेशों से भी आ रही है। इसमें कोई शक नहीं कि पिछले वर्षों की आपदाओं की तरह इस धनराशि का इस्तेमाल भी अपना सर्वस्व खो चुके दुखियारों के आँसू पोंछने में न होकर राजनीति के छद्म आवरण में ठेकेदारी चमकाने वाले कफनफरोशों की जेबें भरने में होगा। उत्तराखंड में आपदायें राजनीतिज्ञों के लिये वरदान बन कर आती हैं। इसका सबूत यह है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री अभी भी उन कारणों को अत्यन्त बेशर्मी से नकारने में लगे हैं, जिन्होंने मौसम की एक असामान्य घटना को इतनी विशाल मानवीय आपदा बना दिया।


http://www.nainitalsamachar.in/editorial-bahuguna-government-should-go/

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