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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Monday, July 15, 2013

यात्राओं पर नियंत्रण जरूरी है

यात्राओं पर नियंत्रण जरूरी है

मदन

उत्तराखंड सरकार ने चारधाम यात्रा नवम्बर तक जारी रखने का इरादा जताया है। सामान्यतः मानसून आने के बाद पहाड़ में सड़कें टूटने से यात्रा जून में बंद सी हो जाती थी। पर इस साल मानसून ने काफी देर कर दी।

Kanwar-Yatraपहले चार धाम का मतलब होता था पदयात्रा के साथ प्रकृति और पर्यावरण के बीच आनंद की अनुभूति करना। अब यह यात्रा एक भयानक दृश्य उपस्थित करती है। देहरादून से ऋषिकेश और रुड़की तक लगे हुए जाम लोगों के श्रम, समय, स्वास्थ्य और धन की ऐसी-तैसी करते नजर आते हैं। इसमें लोगों की धार्मिक आस्था कितनी संतुष्ट होती है, इसे नापने का कोई पैमाना किसी के पास नहीं है। स्थिति यह है कि साल में लगभग छः महीने इस मार्ग में पड़ने वाले नगरों-कस्बों में यातायात लगभग अवरुद्ध रहता है। इस समस्या का सबसे बड़ा कारण निजी कारों की बढ़ती तादाद है। जाम में फँसे हुए पेट्रोल और डीजल वाहनों से इतना धुआँ निकलता है कि पैदल चलते लोगों की ही नहीं, बल्कि स्वयं इन वाहनों में बैठे यात्रियों की आँखों में जलन होने लगती है। इससे हवा में जो शीशा और कार्बन डाई ऑक्साइड घुलती है उसका कोई वैज्ञानिक अध्ययन अब तक नहीं हुआ। मगर इन शहरों में सरकारी और निजी अस्पतालों में बीमारों की तादाद इधर तेजी से बढ़ी है। इसकी पुष्टि दो-चार अस्पतालों का चक्कर काटने और कुछ निजी डॉक्टरों से पूछताछ करने से हो जाती है। यात्रा का सर्वाधिक बोझ ऋषिकेश नगर पर पड़ता है। जाहिर है इससे यहाँ स्थाई रूप से रहने वालों का स्वास्थ्य सबसे ज्यादा प्रभावित होगा।

चार धाम यात्रा के बाद काँवड़ यात्रा शुरू हो जाती है। काँवड़ यात्रा के जत्थों से उत्तराखंड के ट्रांसपोर्ट व्यवसाय को कोई लाभ होता हो तो हो, सामान्यतः उसका यहाँ की अर्थव्यवस्था पर खास प्रभाव नहीं पड़ता। क्योंकि काँवड़ यात्री बाकायदा राशन और चूल्हे तक अपने साथ लाते हैं। उत्तराखंड के हिस्से में काँवड़ यात्रा से महज भीड़भाड़ सहना और प्रदूषण झेलना ही आता है। राज्य के पुलिस प्रशासन का एक बड़ा हिस्सा इस काम में अलग से झोंकना पड़ता है। मुख्यमंत्री खंडूरी के कार्यकाल में इन यात्राओं को नियंत्रित करने की कोशिश हुई थी, पर उसके बाद इधर किसी ने ध्यान नहीं दिया। अब धार्मिक पर्यटन को प्रोत्साहित करने की जगह नियंत्रित करने की जरूरत हैं, क्योंकि इससे उत्तराखंड की बुनियादी समस्यायें तो कहीं हल होती नजर आ नहीं आ रही हैं।

http://www.nainitalsamachar.in/religious-yatra-need-to-be-controlled/

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