शारदा घोटाले की जांच के नाम पर सरकारी खजाने से करोड़ों का न्यारा वारा, मुआवजे और रिकवरी की दिशा नहीं खुली लेकिन!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
शारदा समूह के फर्जीवाड़े के शिकार सत्रह लाख से ज्यादा आम निवेशकों को मुआवजा कब तक मिलेगा, इसकी अभी कोई दिशा नहीं खुली है। केंद्रीय एजंसियों की कार्रवाई और जांच, सेबी की चेतावनी के बावजूद दूसरी सैकड़ों चिटफंड कंपनियों का पोंजी नेट खूब काम कर रहा है। मुख्यमंत्री ने आम निवेशको को मुआवजा देने के लिए जो पांच सौ करोड़ के फंड की घोषणा की थी, उसके लिे अभी ाधिकारिक विज्ञप्ति भी जारी नहीं हुई है। सघन पूछताछ और सुदीप्त देवयानी की लंबी जेल हिरासत से भी रिकवरी के दरवाजे नहीं खुले। विशेष जांच टीम क्या कर रही है, किसी को नीं मालूम। दागी मंत्री, सांसद, विपक्ष के नेता फारिग हो गये और मजे में राजनीति कर रहे हैं। सिर्फ तकलीफें आम निवेशकों की खत्म नहीं हुई। एजंट भी अन्यत्र खप गये हैं।
इस बीच इस फर्जीवाड़े के लिए गठित श्यमल सेन आयोग पर सालाना चार करोड़ के खर्च होने का पता चला है।जांच टीम पर कितना खर्च आयेगा, अभी उसका खुलासा नहीं हुआ है। जांच कबतक चलेगी और कब खत्म होगी , किसी को नहीं मालूम। रिकवरी शून्य है, पर जांच के नाम पर सरकारी खजाने से करोड़ों का न्यारा वारा हो रहा है।बाजार नियामक सेबी ने फर्जावाड़े का पर्दाफाश होते ही शारदा समूह की कम से कम 10 कंपनियों को जांच के दायरे में रखा है। कंपनी की सामूहिक निवेश योजनाओं में भारी गड़बड़ी के मद्देनजर शारदा रियल्टी इंडिया को भी बंद करने और निवेशकों के पैसे लौटाने के लिए कहा गया था।शारदा समूह के खिलाफ कार्रवाई के जरिये रिकवरी और मुआवजा का रास्ता निकालने में अभीतक कोई कामयाबी हासिल हुई नहीं।सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने शारदा समूह पर शिकंजा कसते हुए, गृह मंत्रालय से, समूह के द्वारा संचालित चैनलों की सुरक्षा मंजूरी की समीक्षा करने को कहा है। लेकिन वे चैनल मजे से ्पने एजंडा के मुताबिक ही चल रहे हैं। बड़ी संख्या में हालांकि पत्रकार और गैरपत्रकार सड़क पर आ गये। जिनकी वैकल्पिक रोजगार का भी अभी कोई इंतजाम नहीं हुआ है।
पता चला है कि अप्रैल से लेकर जुलाई तक श्यामल सेन जांच आयोग पर वेतन और दूसरे खर्च के मद में एक करोड़ पचीस लाख खर्च हो चुके है। देवयानी और बुंबा का सरकारी गवाह बनाये जाने की चर्चा थी। वैसा कुछ भी नहीं हुआ अभीतक। सुदीप्त सेन और उसके साथियों की सरकारी मेहमानवाजी और अदालतों में पेशी के लिए होने वाला खर्च भी राजकोष से हो रहा है। जो बेहिसाब है।
शारदा समूह द्वारा आम लोगों की गाढ़ी कमाई पर चपत लगने के मामले में रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर डी सुब्बाराव से भी जवाब मांगा गया । कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने निवेशकों के साथ धोखाधड़ी के आपारों में घिरे कोलकाता के शारदा समूह की जांच कराने का आज निर्णय किया। लेकिन इसका नतीजा क्या निकला , कुछ भी नहीं मालूम। इस कवायद में कितना खर्च आया, यह भी नामालूम है।प्रवर्तन निदेशालय अलग े से जांच कर रहा है। उसपर भी खर्च आता होगा।आयकर विभाग अलग जांच कर रहा है।
भंडाफोड़ के बाद नया कानून बनाने के लिए विधानसभा का विशेष अधिवेशन भी हुआ। उसके खर्च की अभी हिसाब नहीं हुआ है।
अह करदाताओं के लिए यह बहुत मुश्किल जरुर है कि उनकी जेबें इस झमेले में कितनी हल्की हुई, इसका पता कैसे लगाया जाये।
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