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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Monday, July 15, 2013

अनियंत्रित पर्यटन इस जनहानि का सबसे बड़ा कारण है

अनियंत्रित पर्यटन इस जनहानि का सबसे बड़ा कारण है

kedarnath-aftermath-2013इस सीमांत क्षेत्र में भीषण वर्षा से हुई त्रासदी में हजारों यात्रियों की जीवनलीला समाप्त हो गई। इसका मुख्य कारण अनियंत्रित यात्रा है। सबसे अधिक जन हानि केदारनाथ में हुईं। बताया जाता है जिस दिन भारी बारिश शुरू हुई तब केदार घाटी में 30,420 यात्री थे। इतने लोगों के लिए केदारनाथ तथा उसके नीचे रामबाड़ा में रहने के लिए स्थान नहीं था। सरकार तथा बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति इस यात्रा को आसानी से नियंत्रित कर सकती थी। वहाँ एक दिन में उतने ही यात्री आने देने चाहिए थे जितनों के रहने-खाने की पूरी व्यवस्था हो सकती थी। क्षमता से अधिक यात्रियों को आने देने के कारण उनका आपदा से बचना असंभव हो गया।

इस अनियंत्रित यात्रा का मुख्य कारण लालच है। प्रति वर्ष यात्रा-काल में समय-समय पर सूचना दी जाती है कि अभी तक इतने लाख यात्री बदरीनाथ-केदारनाथ पहुँच चुके हैं तथा उनका दिया चढ़ावा इतने करोड़ रुपए हो गया है। अधिक यात्रियों के आने से मंदिरों की आय बढ़ती रहती है। इस लालच के कारण माना जा रहा था कि जितने अधिक यात्री आएंगे उतनी अधिक आय बढे़गी।

16-17 जून को लगातार भारी वर्षा के कारण जब ऊपर से भूस्खलन हुआ तथा पानी, मिट्टी-पत्थर मंदिर तथा मकानों में भरने लगे तो यात्री सुरक्षित स्थान ढूँडने ऊपर की ओर भागने लगे। जब तीन दिन बाद बचाव के लिए हेलीकॉप्टर तथा सेना के जवान आने लगे तो उन्हें दूर स्थानों में शरण लेने वालों को ढूँडने में समय लग गया और तब तक कई भूख-प्यास से मर गए। यदि केदारनाथ में सबके रहने का पर्याप्त स्थान होता तो बहुत से यात्रियों को भागकर पहाड़ के ऊपरी स्थानों मे जान बचाने नहीं जाना पडत़ा और वे जहाँ थे वहीं सुरक्षित रहते। पानी-मलबा आने से सुरक्षित स्थान खोजने भगदड़ मच गई।

यह कठिन नहीं है कि सरकारी तंत्र गिनती कर ले कि किस दिन कितने यात्री केदारनाथ पहुँच गए हैं, और अन्य आने वालों को वह नीचे गौरीकुंड या सोनप्रयाग इत्यादि पड़ावों में रोक ले। वे दूसरे दिन आकर दर्शन कर सकते हैं। यह व्यवस्था अभी तक नहीं हो पाई है तथा एक दिन में जितने भी यात्री केदारनाथ आना चाहते हैं, उन्हें वहाँ आने दिया जाता है। यात्रियों की संख्या का नियंत्रण नहीं किया जाता। यही स्थिति बदरीनाथ तथा हेमकुडं साहब की भी है। अत्यधिक संख्या में यात्रियों को आने देने से वहाँ कइयों को रहने-सोने का स्थान नहीं मिलता और कुछ को तब बस अड्डे या खुले में ठिठुरते रात काटनी पडती है। अधिक यात्रियों को दर्शन करने के लिए मंदिर देर रात तक खुला रखा जाता है।

सरकार जब नियंत्रण करना आरंभ करती है तो वह यात्रियों की सुविधा के लिए नहीं होता। उससे यात्री और कठिनाई में पड़ जाते हैं। हेमकुंड साहिब से लौटकर आनेवाला एक नौसेना के परिवारों का बड़ा दल घागरिया से जोशीमठ हेलीकाप्टर से लाया गया तो उसे नीचे ऋषिकेश जाने मोटर गाड़ियों की आवश्यकता हुई। टेलीफोन के द्वारा उसने देहरादून से सात टैक्सियाँ मंगाई जिन्हें रुद्रप्रयाग में एक अधिकारी दल (आर.टी.ओ.) ने रोक दिया और कहा कि केवल चार को ही जोशीमठ जाने दिया जाएगा और बाकी तीन को केदारनाथ के रास्ते में ऊखीमठ जाना होगा। इस बेहूदा आदेश के बाद उन टैक्सियों के रजिस्ट्री के कागज आर.टी.ओ. ने ले लिए। यह अफसर कोई तिवारी थे। जोशीमठ से निकलने के लिए यह गाडियाँ देहरादून से मंगाई गई थीं। उनको रास्ते में ज़बर्दस्ती रोकने तथा कहीं और भेजने का किसी को भी कोई अधिकार नहीं था। संभव है यह अधिकारी उन्हें रास्ते में रोक उनसे पैसे वसूलने का प्रयास कर रहा हो!  ऋषिकेश में एक दफ्तर है, जहाँ प्रदेश के बाहर से आनेवाली मोटर गाडियों की तथाकथित जाँच की जाती है कि वह पहाड़ी रास्तों में चलने में सक्षम है कि नहीं। वहाँ बाहर से आई गाड़ियों को इस परीक्षा के लिए लाइन लगा घंटों रुका रहना पडता है और जब उनका नंबर आता है तो परीक्षक गाड़ी की रजिस्ट्री के कागज़ देख केवल कहता है कि गाड़ी की बत्ती जलाओ और वाइपर चलाओ, लेकिन उनके ब्रेक (रोकने के साधन) ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं इसकी परीक्षा नहीं करता, जो पहाडी मार्गों में चलने के लिए अति आवश्यक हैं। इस अनावश्यक परीक्षा के लिए बाहर से आने वाली गाड़ियों को तीन-चार घंटे ऋषिकेश में रुकना पडता है।

सबसे अधिक आपदा हुई केदारनाथ, उसके रास्ते तथा हेमकुंड साहिब की यात्रा में। हेमकुंड के रास्ते में दो पुल पानी ने तोड़ दिए, पहला गोविंदघाट में अलकनंदा गंगा के ऊपर का, जहाँ से 16 किलोमीटर की पैदल यात्रा आरंभ होती है। उस पर रस्से बाँध फौज तथा भारत-तिब्बत पुलिस के जवानों ने यात्रियों को पार करवाया। सभी स्थानों में सहायता-राहत पहुँचाने का इन जवानों का बहुत बडा योगदान रहा। कुछ यात्रियों को हेलीकॉप्टर से जोशीमठ लाया गया। 16 जून की रात्रि को जब गोविंदघाट के गुरुद्वारे में पानी भरने लगा तो यात्री भागकर ऊँचे स्थानों को जाने लगे। भागते समय कई जूते तथा कपडे़ छोड़ आए। जोशीमठ पहुँचने पर वह वहाँ दूकानों से कपड़े-जूते खरीदने लगे।

सभी का कहना है कि राहत पहुँचाने राज्य सरकार ने बहुत विलम्ब किया, जिसके कारण कई यात्री भूखे-प्यासे थक कर मर गए। राहत काम आरंभ करने से पहले राज्य के मुख्यमंत्री ने दिल्ली प्रधान मंत्री तथा केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता मांगना अधिक आवश्यक समझा। जिन दिनों यात्रियों को बचाने का काम आरंभ किया जा सकता था, राज्य सरकार आपदाओं के लिए तैयार न रहने तथा समय पर काम आरंभ न करने के लिए उत्तरदाई है। उसने आरंभ में आपदा की व्यापकता का कम आकलन किया, जब उसके मुख्यमंत्री ने कहा कि इस विभीषिका में लगभग एक सौ यात्रियों की जान गई है, जब कि यह संख्या हजारों में है। राहत के काम को भी बढ़-चढ़ कर बताया कि दो दिनों में 10,000 यात्रियों को खतरे से बचा कर निकाल लिया गया है। उन दिनों केवल नौ हेलिकॉप्टर इस काम में लगाए गए थे, जिनमें से प्रत्येक एक बार में केवल छः यात्रियों को निकाल कर नीचे ला पा रहा था। आरंभ के दो दिनों में वे एक हज़ार यात्री भी नहीं निकाल ला पाए होंगे!

इस कठिनाई के समय भारत संचार निगम ने भी काम करना बंद कर दिया। उससे जुडे़ मोबाइल फोन से बात होनी बंद हो गई तथा कई लोग अपने कठिनाई में फँसे संबंधियों से उनकी स्थिति नहीं जान पाए।
एक बात जिस पर हमारे यहाँ के पहाड़ियों को ( सच है तो) शर्म आनी चाहिए कि आपदाओं के समय कठिनाई में पड़े लोगों से खाने-पीने के सामान का अधिक दाम लेना, बारह रुपए की पानी-बोतल का मूल्य 200 रुपए कर दिया गया तथा एक रोटी का 50 रुपए! सभी वस्तुओं पर ऐसी ही मुनाफाखोरी की गई। कुछ यात्रियों का कहना था कि निजी हेलिकॉप्टर कंपनियाँ उनको नीचे सुरक्षित स्थानों में ले जाने हज़ारों रुपए की माँग करने लगी थीं!

http://www.nainitalsamachar.in/uncontrolled-tourism-is-the-main-reason-of-so-many-deaths/

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